सम्बन्धों की परस्परिक समझ............
संसार के प्राणियों में से मुख्य रूप से मानव प्रजाति के पूर्व परिचित या अपरिचित नर-नारी के पारस्परिक दैहिक सम्बन्ध से अथवा कृत्रिम संसाधनों से उन दोनों के रज-वीर्य से उनका आपस में बनाया गया रक्त सम्बन्ध उन्हें पुत्र या पुत्री सन्तान के रूप में प्राप्त होता है और परिवार नामक संस्था का जन्म स्वत: हो जाता है तथा यह रिश्ता वास्तव में किसी भी परिस्थिति में समाप्त नहीं होता है साथ ही प्रकृति स्त्री के उस सन्तान को गर्भ रखने एवं प्रसवोपरांत उसके पालन पोषण हेतु उसके स्तनों में सर्वोत्तम आहार दुग्ध प्रदान करती है, परन्तु यदि वही माता अपने दिल से लगाकर उसे अपना दूध नहीं पिलाती है तो सन्तान को प्रताड़ित करने के दण्ड स्वरूप प्रायः स्तन कैंसर (जिसकी उत्पत्ति कफ/काम,पित्त/क्रोध तथा वात/लोभ की विकृति या अशुभ विचारों के कारण होती है) का कष्ट भोगने हेतु बाध्य भी करती है।
इस प्रकार संसार में मानव और/या मानवेतर प्राणियों का पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध ही मूल सम्बन्ध है, जिसकी रक्षा हमारा मूल धर्म है।
प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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