आधुनिक मानव :-
मानव का है रुप सलोना,
मानवता है पर शेष नहीं।
धर्म कर्म जीवन दर्शन का,
समझ और परवाह नहीं।।
नीच असभ्य अधर्मी अपराधी,
इनका अपना कोई देश नहीं।।
खानाबदोश-सा रहते, खाते,
इनको कोई अफसोस नहीं।।
पाप छिपाये छिप नहीं पाता,
ढ़ीठ, कुकर्मी, विवेक नहीं।
घृणा पशु सब करते इनसे,
आदमखोर, अफसोस नहीं।।
अज्ञानी हैं, पर करते हैं,
सदा ज्ञान की बात है ये।
रहते जहाँ, उसे ही करते,
सदा नष्ट औ भ्रष्ट ही ये।।
मारो-काटो, तोड़ो-जोड़ो,
नारा इनकी, सीख है ये।
उत्तम पथ से घृणा इन्हें है,
चाटुकार, पथभ्रष्ट हैं ये।।
धन,बल,पद,मद,लीन स्वार्थ,
सदा मांगते भीख हैं ये।
राजनीति के कुटिल खिलाड़ी,
भ्रष्टाचार की पीठ हैं ये।।
डॉ प्रो अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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