श्रीवास्तव साहित्य निधि,
धनपत राय नयाव।
गोरों से पीड़ित त्रसित,
प्रेमचन्द कहलाय।।
धनपत नाम गरीब सुजन,
लेखन में रुचि पाय।
उपन्यास कथा रचि,
रचनाकार पद पाय।।
हिन्दी उर्दू सम रुचि,
करम धरम पथ धाय।
प्रगति शील लेखक सुघर,
विश्व पटल गये छाय।।
३१/०७/८० तिथि,
सदी उन्नीस जब पाय।
समही काशी नगरी निकट,
अजायब घर जन्मे जाय।।
मातृ वियोग आठवें बरस,
भ्रातृ विमाता पाय।
सहधर्मिणी द्वितीय बनी,
प्रथमा गयी पराय।।
लेखन १३ वें बरस शुभद्,
आत्माभिव्यक्ति दिखाय।
जाति धरम धनी दीन गति,
प्रेम चन्द दिये बताय।।
अध्यापक इन्सपैकटर बने,
शिक्षाविद् धनपत पद पाय।
रचना धर्म अनवरत रहा,
साहित्य समाज गति गाय।।
सदी २० वीं ३६ वें बरस,
गये जैनेन्द्र बताय।
ईश्वर को दु:ख हो नहीं,
प्रेम चन्द दिये बताय।।
पुत्री एक, दो पुत्र सहित,
छोड़ परम गति पाय।
प्रेम चन्द पद कृति परम,
शैलज निस्वार्थ पद गाय।।
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