मंगलवार, 8 अगस्त 2017

महिला उपेक्षा : समाज का कलंक

महिला को प्रायः अबला कहा जाता है और महिलाओं के प्रति इस सोच को बनाए रखने में महिला एवं पुरुष दोनों वर्गों का हाथ रहा है, क्योंकि महिलाओं के सम्बन्ध में कहा गया है कि
 स्त्रियों का आहार दुगुणा, साहस चार गुणा,
व्यवसाय बुद्धि छ: गुणा तथा कामचेष्टा आठ गुणा पाया जाता है । यह प्रचीन कालिक मत है।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।
 फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।
यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ  प्रायः अधिक पाया जाता है ।
 नर-नारी के मध्य पारस्परिक स्वाभाविक या आकस्मिक आकर्षण के फलस्वरूप नर बीज का नारी के अण्डाणु के साथ संयोग से अथवा परखनली शिशु का जन्म होता है और एक माँ जो अपने सन्तान का परित्याग वह अपने वात्सल्य भाव के परिणाम स्वरूप एक क्षण के लिए भी नहीं कर सकती है उसे प्रायः उसकी मानसिकता के विपरीत वातावरण में रहने, पलने, विकसित या अभियोजित होने हेतु भेजने की यथासंभव हर तैयारी के साथ प्रायः स्वेच्छा से और / या अपने परिवार / समाज के प्रभाव में आकर भेज देती है जहाँ पहुँचकर उस लड़की का उस नये वातावरण में अपने आपको अभियोजित करना या न करना नये परिवेश के साथी या सदस्य की मनोदशा से अधिक उस लड़की पर मुख्य रूप से निर्भर करता
है।
                  ( क्रमशः )

नर-नारी सम्बन्धों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।

 फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।

यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य स्वाभाविक आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ  प्रायः अधिक पाया जाता है ।

                  ( क्रमशः )

सोमवार, 7 अगस्त 2017

असुरक्षा भावना (Insecurity feeling)

अपने अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा हेतु प्राणी द्वारा किये जा रहे संघर्षों के वावजूद यदि लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित बाधायें दूर नहीं हो पाती है , तो असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है ।

होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र :-

होमियोपैथी के जनक जर्मनी के प्रसिद्ध एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन ने एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका के जर्मन भाषा में अनुवाद के क्रम में China के अध्ययन के सन्दर्भ में किये गए अपने प्रयोगात्मक अध्ययन के पश्चात् आरोग्य प्राप्ति के ' समं समे समेयति ' का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे होमियोपैथी कहा गया ।
        होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र अधोलिखित हैं :-
1. जिससे रोग होता है,  उससे रोग जाता है।
2. रोगी की चिकित्सा करें, न कि रोग की ।
3. रोगी की प्रसन्नता में वृद्धि, रोग नाश का सूचक लक्षण है ।
4. किसी भी प्राणी के शरीर एवं मन पर यदि किसी सजीव या निर्जीव पदार्थ का प्रभाव पड़ता है तो उस पदार्थ के विषाक्त प्रभाव से मुक्त होने के लिये उसी पदार्थ की सूक्ष्म मात्रा का उपयोग करने से प्राणी मनोशारीरिक रुप से रोग मुक्त या स्वस्थ हो जाता है ।
5.
                                          (क्रमशः)