भावनाओं को लिपिबद्ध करने को समुत्सुक,
साहित्य शैली व्याकरण तज शब्द सिन्धु,
मूल प्रकृति को भूलकर निज देश भाषा,
वेशभूषा त्याग कर किस मोह में पड़
चेतना निज संस्कृति संस्कार तजकर,
भटकता है छन्द बन्धन मुक्त हो अज्ञात पथ पर
ज्ञान गुण से हीन "शैलज" सहज लाचार होकर।
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