कैल्केरिया फॉस :- ऋतु से पहले अत्यधिक कामोत्तेजना। ऋतु के समय प्रसव (बच्चा पैदा होने के समय की वेदना) जैसी वेदना। ऋतु या रज:श्राव दूसरे सप्ताह या १५ दिनों में। कष्टप्रद रज: श्राव या ऋतु। ऋतु परिवर्तन से ऋतुरोध (साईलीसिया से तुलना करें)। अण्डे के अन्दर के गाढ़े लस्सेदार जल अर्थात् अण्डलाल की श्लेष्मा के समान प्रातः कालीन प्रदरश्राव। योनि का बाहरी किनारा /हिस्सा / भाग दर्दनाक। स्तन का कड़ापन (कैल्केरिया फ्लोर से तुलना करें)। हरित्पाण्डु रोग (फेरम फॉस एवं नेट्रम म्यूर से तुलना करें)। बच्चों का हरित्पाण्डु रोग। हृदयावरण झिल्ली में पुराना प्रदाह (कैल्केरिया सल्फ से तुलना करें)।
शुक्रवार, 15 जुलाई 2022
स्त्री जनेन्द्रिय (Female Sex Organ) : -
नेट्रम म्यूर: -स्त्री जनेन्द्रिय (Female Sex Organ) :- ऋतु के साथ या बाद में सिर दर्द। ऋतु के साथ उदासी। ऋतु पतली (काली फास से तुलना करें)। ऋतु देर से या अनियमित या अत्यधिक। ऋतु के साथ उदर में फड़कन (कैल्केरिया सल्फ से तुलनीय)। जरायु का निकलना, बैठने से आराम। खांसने और/या छींकने से जरायु का बाहर निकलना और/या पेशाब हो जाना। खारिश पैदा करने वाला या खुजलीदार प्रदर (साईलीसिया से तुलना करें)। प्रसव वेदना (कैल्केरिया फास एवं फेरम फास से तुलना करें)। योनि में पेशाब के बाद जलन। योनि का सूखापन (फेरम फास से तुलना करें)। रजोरोध रक्तहीनता से (कैल्केरिया फास से तुलना करें)। हृत्पाण्डु रोग (कैल्केरिया फास एवं फेरम फास से तुलना करें)। विपरीत लिंगियों में विवाहित का अविवाहित तथा अविवाहित का विवाहित के प्रति आकर्षण। ऋतु या रज: श्राव या मेन्स चालू कर गर्भावस्था को दूर करना।
तन्तु (Tissues): -
ने म्यूर: - अच्छी तरह खाते पीते रहने पर भी दुबला होते जाना। पहले शरीर का ऊपरी अंग यथा गला तथा बाद में अन्य अंगों में कृशता आना। ज्वर में धातु विकार। रक्ताम्बु वाला श्रावण।
कैल्केरिया फॉस :- धातु दोष। पीव की विषाक्तता। पीव का निस्सरण। अस्थि वृद्धि या हड्डी का गुल्म या हड्डी का मुड़ जाना और/या मुरमुरी हड्डी। पोषण की कमी या कमजोरी और या किसी रोग के बाद की कमजोरी।
त्वचा (Skin): -
ने म्यूर: -त्वचा (Skin) :- आतशक या उपदंश के दाने। घमौरियाँ। उद्भेद संकोची पेशी पर। एक्जिमा या दाद दिनाय गोलाकार घेरे वाला और / या पानी भरे फफोले वाला और मुख्यतः जोड़ों पर एवं अधिक नमक खाने के कारण। चमड़े से जलीय नि:श्राव (नेट्रम सल्फ की तरह) । खुजली बहुत तेज और/या भयंकर परिश्रम करने के कारण। चमड़ा गन्दा और / या कड़ा और / या शिथिल और / या दरार युक्त और / या दर्द युक्त। चमड़े पर खारिश (काली म्यूर से तुलना करें)। चमड़े पर जलन युक्त खारिश या चकत्ते (काली सल्फ की तरह)। पेड़ू या योनि या छिपे हुए स्थानों का और / या सर्वांग शरीर के बाल झड़ना और / या गंजापन और / या जल्दी पकना या भूरा हो जाना। केश का झड़ना (काली सल्फ से तुलना करें)। त्वचा पर काले-काले दाग (नेट्रम फास, काली फास एवं कैल्केरिया फास से तुलना करें)। रूसी छूटना (काली सल्फ एवं काली म्यूर से तुलना करें)। पैरों की अंगुलियों में दरारें। दाद एवं नाखून के नीचे के चमड़े का लटकना। काछ लगना या काछ का दिनाय (रस टाक्स एवं हीपर सल्फर से तुलना करें)।
कैल्केरिया फॉस :- खारिश दोष (काली फॉस से तुलना करें)। योनि का खारिश दोष (काली फॉस एवं नेट्रम सल्फ से तुलना करें)। खाल उघड़ना (काली फॉस एवं मैग्नीशिया फॉस से तुलना करें)। गंडमाला दोष जनित कड़ा घाव। सूखा चमड़ा (काली सल्फ से तुलना करें)। चमड़े पर फफोले (नेट्रम सल्फ से तुलना करें)। चमड़े पर पपरियाँ (काली फॉस से तुलना करें)। सफेद पपरियाँ, छाले या दाग या पीली पपरियाँ या यक्ष्मा के दाने या दाद और मुख्यत: पुराना दाद। रक्तहीन उद्भेद। घाव जो जल्द नहीं भरता हो। भगन्दद। चूतड़ पर घाव या फफोले।
उदर या तलपेट तथा मल (Abdomen & Stool): -
ने म्यूर: -उदर या तलपेट तथा मल (Abdomen & Stool) :- अतिसार एवं कब्ज बारी बारी से। अतिसार चमड़ा छिल जाने वाला या झागदार। अतिसार स्वत: और अधिक मात्रा में। कब्ज आंतों में अशक्तता या कमजोरी या नमी की कमी के कारण। लम्बा और टूट टूट कर होने वाला मल। मलान्त्र में कोंचने, डसने या दपदपाहट जैसा दर्द। दर्द उदर के घेरे में। प्लीहा में कष्ट। रक्तार्ष। मलद्वार में दाद। बिखरता हुआ मल। सरलान्त्र में जलन। कमर पर कसा हुआ वस्त्र असहनीय।
कैल्केरिया फॉस:- आंत उतरना या हर्निया, पेट के निचले भाग में। औदरिक ग्रन्थियों का क्षयरोग। कब्ज, मुख्यतः वृद्धों का कडा मल। कृमि। कोख और नाभि में और / या उसके आसपास खालीपन। गर्मी के समय के उपसर्ग। तलपेट धसा हुआ। त्रिकास्थि में और / या उसके नीचे दर्द। बदबूदार नासूर। पित्त पथरी पुनः नहीं बनने हेतु। मलान्त्र की ग्रन्थियाँ बढ़ी हुई। मल गरम एवं आवाज के साथ निकले। मलद्वार में स्नायुशूल। पुराना रक्तार्श। खाने की चेष्टा के साथ ही शूल। दाँत निकलने वाले बच्चों का सुखण्डी रोग।
श्वसन यन्त्र (Respiratory System): -
ने म्यूर: -श्वसन यन्त्र (Respiratory System) :- निश्चित समय पर आने वाली, फैलने वाली खाँसी। श्वास कष्ट एवं सिर दर्द दर्द पैदा करने वाली रात्रिकालीन खाँसी।स्वच्छ, पानी जैसा, पारदर्शक बलगम और/या दमा के साथ आक्षेपिक खाँसी।
दाँतों एवं मसूड़ों ( Teeth & Gums): -
नेट्रम म्यूर: -दाँतों एवं मसूड़ों ( Teeth & Gums) :- जिह्वा का अर्बुद या घाव। मसूढ़ों का घाव। दातों के उपसर्ग या दर्द के साथ लार टपकना या बहना। लार बहने वाली ग्रन्थियों में प्रदाह। दात निकलते समय लार बहना।
कैल्केरिया फास: -दाँतों निकलते समय के रोग या उपसर्ग। दन्त रोग के साथ बच्चों में सुखण्डी रोग। दर्द खोदने की तरह। दन्त रोग या उपसर्ग के साथ झुनझुनाहट। दन्त रोग में सूई चुभने जैसा दर्द। मसूढ़ों का दर्द और / या प्रदाह। तीव्र दन्त क्षय और / या खोढ़र। दर्द धीरे धीरे बढ़े। मीठा मीठा दर्द। दात कठिनता से निकले।
गले एवं चेहरे (Throat & Face): -
ने म्यूर: - उपजिह्वा शिथिल। उपजिह्वा में प्रदाह। कर्ण मूल प्रदाह के साथ लार का बहना। कर्णमूल प्रदाह के साथ खारा बलगम। गंडमाला या गलझिल्ली प्रदाह के साथ पानी सा नि:श्राव। गलझिल्ली प्रदाह के साथ तन्द्रालुता।गले में वृद्धि, सूखापन और/या स्वच्छ कफ या बलगम का आवरण। गले में सूई चुभने का-सा दर्द। चेहरे के दर्द के साथ कब्ज तथा वाल का झड़ना।
कैल्केरिया फास:- गलकोष / टान्सिल में क्षत या घाव मुख्यतः पादरियों का। गले की ग्रन्थियों में दर्द। तालुमूल प्रदाह से या वृद्धि से बहरापन। कर्ण मूल ग्रन्थि में सूजन। खाते समय ठंडा पसीना। नीला, सफेद, गंदा या रक्तहीन चेहरा। चेहरे का वात रोग। चेहरे पर नाक के पास ठंडा पसीना। रात में चेहरे के उपसर्ग या रोग में वृद्धि। रक्तहीन चेहरा।
नाक
नेट्रम म्यूर :- नकसीर खांसने या झुकने पर। नाक लाल। साफ पानी का सा जुकाम। नाक का पिछला भाग सूखा। नाक का श्राव खारा (Allium Cipa 30 की तरह)। नाक की एक ओर सुन्न का सा अनुभव। नाक में महक नहीं आना। नाक के घाव में सूजन और पपड़ी। नाक पर फुन्सिया। नाक का श्लेष्मा खारा या नमकीन।
कैल्केरिया फास:- रक्तहीन लोगों का जुकाम। नाक की नोक का ठंडापन। नाक के उपसर्ग या घाव या सडने की स्थिति गण्डमाला धातु वाले बच्चों में। नाक में अनेक जड़ों वाला फोड़ा या घाव। नाक से श्वेतसार जैसा श्राव। नाक में या नासास्थि में मांसार्बुद। रक्तहीन रोगियों में सर्दी।
शुक्रवार, 1 जुलाई 2022
वैदेही अवध रामायणं :-
वैदेही अवध रामायणं :- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
शुभ संवत् २०७६-२०७७ की दीपावली के मांगलिक अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं मिथिलेश नन्दिनी जगत् जननी माँ सीता जी की प्रेरणा एवं कृपा से प्रस्तुत अवध रामायणं की रचना हुई और आज के दिन जब श्री राम जी के जन्म-भूमि अयोध्या में भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के द्वारा भूमि पूजन एवं शिलान्यास हुआ । माँ वैदेही जानकी नाथ श्री राम के जन्म काल सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त अभिजित मुहूर्त्त के दिव्य शुभ अवसर पर भगवत्कृपा से १०४ श्लोकों वाला प्रस्तुत अवध रामायणं १०८ श्लोकों के रूप में प्रकट हुआ । अतः आज दिनांक ०५/०८/२०२० तदनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया बुधवार से यह "अवध रामायणं" जगत् जननी माँ सीता एवं प्रभु श्री राम जी की प्रेरणा से "वैदेही अवध रामायणं" के नाम से प्रतिष्ठित होगा।
वैदेही अवध रामायणं :-
भजाम्यहम् अवधेशं, भक्त वत्सलं श्री रामं।
द्वादश कला युक्त प्रभु श्री रामावतारं।।१।।
जगत् पाप मोचनं, प्रभु कृतं सुविचारं।।
अहं अज्ञान प्रबोधं, प्रभु माया अज्ञातं।। २।।
कृतयुगेरेकदा श्री हरि दर्शनेन सुविचारं।
सनकादिक मुनिवरा: गताः विष्णुलोकं।। ३।।
द्वारपालौ बोध हीनं, न कृतं अतिथि सम्मानं।
प्रभु माया विस्तारं, द्वारपालौ प्राप्त शापं।। ४।।
जय-विजय द्वारपालादि शापोद्धार सेतु।
स्वीकारं कृतं नारदस्य श्रापं कल्याण हेतु।। ५।।
सतोगुणं रजोगुणं तमोगुणस्य मूलम्।
अनन्तं प्रणव ऊँ सर्वज्ञं समर्थं।।६।।
निराकारं आकारं , रंजनं निरंजनं।
निर्गुणं गुणं, सचराचरस्य मूलम्।।७।।
कर्त्ता त्रिलोकी देवासुर जनकं।
अव्यक्तं सुव्यक्तं, अबोधं सुबोधं।।८।।
प्रकृति पुरुषात्मकं कार्य कारणस्य मूलम्।
अर्धनारीश्वरं स्वयंभू अज विष्णु स्वरूपं।।९।।
ज्योति: प्रकाशं, नित्यं, चैतन्यं स्वरूपं।
तिमिर नाशकं, जीवनामृतं स्वरूपं।।१०।।
ताड़नं जड़त्वं, मोहान्धकारं।
गगन ध्रुव शिशुमार चक्र स्वरूपं।।११।।
प्रभा श्रोत दीपस्य, अवतरणं अशेषं।
भास्करस्य भास्करं, श्री रामं रं स्वरूपं।।१२।।
कौसिल्या, कैकेयी, सुमित्रा सुपुत्रं ।
अवधेश दशरथ रघुकुल प्रदीपं।।१३।।
प्रसीदति अहैतुकी सज्जनानां भक्त्या।
सर्वस्य कारणं यस्य माया दुरत्यया।।१४।।
वरं श्राप भक्तस्य उद्धार हेतु।
अवतरति जगत धर्म कल्याण सेतु।।१५।।
प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समस्तं।
प्राकट्यं वभूव संस्थापनार्थं सुधर्मं।।१६।।
सानुजं गुरु विश्वामित्रेण समेतं।
मिथिला सिमरिया धामं प्रवासं।।१७।।
शिव धनु दधीचि अस्थि विशालं,
जनकी हेतु भंगं अकुर्वत पिनाकंं।।१८।।
स्वयंवरं विवाहं जनकात्मजा समस्तं।
सहोदरं सवेदं निज शक्ति स्वरूपं।।१९।।
माण्डवी, श्रुतकीर्ति, उर्मिला समस्तं।
अनुशीलनं जनकस्य वशिष्ठ आदेशं।।२०।।
सृजनहार, पालन, समाहार कर्त्ता।
रामौ परशु आदौ देशकालस्वरूपं।।२१।।
नारद जय विजय देवादि भानु प्रतापस्य उद्धारं।
मनु शतरूपा प्रिय अवध भारत भूमि अवतारं।।२२।।
माता कुल कैकेयी सप्रजा दशरथ अवधेशं।
हर्षितं राज्याभिषेकं रमापति रामं जगदीशं।।२३।।
शारदा मायापति विचारं, मंथरा कैकयी सम्वादं।
देवार्थे अवधेश रथ चक्र कीलांगुलि संस्मरणं।।२४।।
लोक जननी जन्म भूमिश्च हितार्थं।
श्री रामस्य वियोगं, जनकस्य निधनं।।२५।।
प्रणार्थ प्राणेश भजनं, प्रणार्थ प्राण तजनं।
प्रणार्थ प्राणेश रंजनं, प्रणार्थ राज तजनं।।२६।।
भरतस्य हेतु पादुका, राज पद तजनं।
सुर नर जगत् हित लीला सुरचितम् ।।२७।।
नन्दी निवासं करणं, व्रती भरतस्य राज सुख तजनं।
सिंहासीनं प्रभु श्री राम चरणस्य पदुकादेशं सुपालनं।।२८।।
रक्षार्थ वचनं कुल शीलं समेतं।
गतं वन उदासं कुलाचारं कुलीनं।।२९।।
जनकस्यादेशं पालकं, भव पालकं ।
मर्यादा पुरुषोत्तमम् रघुकुल भूषणं।।३०।।
पद् नख नि:सृता यस्य सुर सरि गंगा।
केवटस्याश्रितं भव केवट, तटे त्रिपथगा।।३१।।
चरण स्पर्श आतुर कुलिष कंटकादि।
शुचि सौम्य उदभिद् खग पशु नरादि।।३२।।
पथ अवलोकति शबरी, जड़ अहिल्या।
उद्धारं कृतं शबरी, निर्मला अहिल्या।।३३।।
दर्शनं अत्रि ऋषि वर, सती संग सीता।
प्रभु मुग्ध रामानुज वैदेही विनीता।।३४।।
जड़ भील मुनि वर भव मोक्ष याचक।
विचरन्ति सर्वे असुर भय मुक्त सत्वर ।।३५।।
बधं ताड़कादि असुरगणं समस्तं।
कुर्वीतं श्री रामं शास्त्रोचितं पुनीतं।। ३६।।
गिरि वन सरित सर तटे निवास करणं।
योगानुशरणं, नित्यानुष्ठानादि करणं।। ३७।।
कन्दमूलफलपयौषधि प्रसाद ग्रहणं।
जल-वायु सेवनं, आश्रम धर्म विवेचनं।। ३८।।
चित्रकूटादि सुदर्शनं, सर्व धाम सुसेवनं।
सुजन सम्मान करणं, मदान्ध मद मर्दनं।। ३९।।
सूर्पनखा सौंदर्य वर्धनं, लक्ष्मण रामाकर्षणम्।
नासासौन्दर्य छेदनं, खरदूषणादि उन्मूलनम्।।४०।।
साष्टांग, ध्यान मग्नं प्रणत् सुर नर मुनीन्द्रं ।
यजयते स्त्री रुपं ऋषि कुमारा: षोडशं सहस्त्रं।।४१।।
स्वीकारं कृतं वरं राम भक्तंं सस्नेहं।
भवामि प्रिया केशवस्य कृष्णावतारं ।४२।।
पावकं ऊँ रं राम शक्ति सीता निवासं।
वधं हेतु गतं राम मृगा स्वर्णिम मारीचं।।४३।।
मिथिलेश नंदिनी सीता वैदेही अम्बा।
रावणस्य कुलोद्धार हेतु गता द्वीप लंका।।४४।।
ब्राह्मणवेश रावणस्य कृतं सम्मानं।
दानं हेतु कृतं लक्ष्मण रेखाग्नि पारं।।४५।।
सहितं पंचवटी पर्णकुटी उदासं।
सानुज प्रभु सर्व लोकाधिवासं।।४६।।
वैदेही हरणं चराचर खग वन पशूनां।
पृच्छति सानुज सरित सर पर्वताणां।।४७।।
महेश्वरस्य सुवन्दनं राजकुमारौ स्वरूपं।
चकितं उमा माया पति माया जगदीशं।।४८।।
वैदेही स्वरूपा जगन्माता स्वरूपं।
वन्दिता भवानी हरि हर रूपं अनेकं ।।४९।।
स्त्री गुण प्रधानं निज सन्तति वात्सल्य सेतु।
स्वीकारं कृतं भवानी, भवेशं वृषकेतु।।५०।।
उमा भवानी त्र्यम्बिके प्रजापति दुहिता।
पतिव्रता भवानी, जगन्माता स्वरुपा।।५१।।
व्यथिता भवानी देवादि स्थानं भवेश रहितं।
उमा आहूति करणं, शिव रौद्र शक्ति सहितं ।।५२।।
अष्टोत्तरशतं शक्ति पीठं संस्थापनं।
भवं भवानी कृपा लोकहित कारकं।।५३।।
वरणं हरं मैना सुता शैलजा सुख कारकं।
पाणिग्रहणाख्यानमिदं सर्व मंगल कारकं।।५४।।
वैदेही पूज्या भवानी वैदेही वरदायिनी।
माता सर्व लोकस्य त्रिविध ताप हारिणी।।५५।।
मिथिलेश नन्दिनी जानकी जगन्माता अम्बा।
त्रिविध ताप नाशिनी वैदेही सीता जगदम्बा।।५६।।
सीता हित विकल विधि त्रिभुवन पति लक्ष्मी रमणं।
बालि बध, सुग्रीव सहायं, किष्किंधा पावन करणं।।५७।।
सीता सुधिदं, सम्पाती मिलनं, जटायु संग्राम करणं।
सुग्रीव सहायं, नल नील सेतु, सागर पथ प्रदानं।।५८।।
असुर विभीषण रहित सर्वे सशंका।
त्रिजटा करोति वैैदेेही सेवा नि:शंका।।५९।।
शरणागत दीनार्त त्रिविध ताप हारं।
राजीव लोचनस्य रामेश्वरानुष्ठानं।।६०।।
जामबन्त अंगद वन्य बासिन: समस्तं।
समर्पित सशरीरं सुकाजं समीपं।।६१।।
लंकेश विभीषण अनुग्रह श्री रामंं।
सहायं कपीशं भू आकाशं पातालं।।६२।।
पातालं गता: पद स्पर्शात् पर्वताणि।
छाया ग्रह दम्भ हननं समुद्र मध्याणि।।६३।।
द्विगुण विस्तारं, मुख कर्णे निकासं।
अहिन अम्बा सुरसा परीक्षा कृत पारं।।६४।।
लंका प्रवेश द्वारे लंकिनी निवासं।
राम दूतं बधे तेन मुष्टिका प्रहारं।। ६५।।
सूचकं लंकोद्धारं, लंकिनी उदघोषं।
असुर संहारं हेतुमिदं श्री रामावतारं।।६६।।
उल्लंघ्यं समुद्रं, लंका प्रवेशं।
हरि भक्त विभीषण सम्वादं।।६७।।
लंका सुदर्शनं, अशोक शोक हरणं।
मुद्रिका रं दर्शनं, वैदेही शोक हरणं।।६८।।
वने फल भक्षणं, निज प्रकृति रक्षणं।
राक्षस दल दलनं, रावणस्य मद मर्दनं।६९।।
राज धर्मानुसरणं, ब्रह्म पाश सम्मानं।
पुच्छ विस्तरणं, घृत, तैल वस्त्र हरणं।।७०।।
हरि माया करणं, कपि पुच्छ दहनं।
निज रक्षणं, स्वर्णपुरी लंका दहनं।।७१।।
अंगद पदारोपणं, असुर सामर्थ्य दोहनं।
विभीषण पद दलनं, मंदोदरी नीति हननं।।७२।।
कुम्भकर्ण मेघनादादि संहरणं।
अहिरावणादि विनाश करणं।।७३।।
देवादि ग्रह कष्ट हरणं, रावणोद्धार करणं।
विद्वत् सम्मान करणं, राज धर्मानुशरणं।।७४।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि निधानं।
बुद्धि, बल, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धामं।
जगत प्रत्यक्ष देवं, सकल सिद्धि दायकं।
चिरायु, राम भक्तं, हनुमानं सुखदायकं।।७६।।
हनुमानं संस्मरे नित्यं आयु आरोग्य विवर्धनम्।
त्रिविध ताप हरणं, अध्यात्म ज्योति प्रदायकम्।।७७।।
शंकर पवन सुतं, अंजना केसरी नन्दनं।
रावण मद मर्दनं, जानकी शोक भंजनं ।।७८।।
श्री राम भक्तं, चिरायु, भानु सुग्रासं।
हृदये वसति रामं लोकाभिरामं।।७९।।
एको अहं पूर्णं , वेद सौरं प्रमाणं।
रघुनाथस्य वचनं, भरतस्य ध्यानं।।८०।।
जलज वनपशु खग गोकुल नराणां।
सरयू प्रसन्ना, भूपति, दिव्यांगनानां।।८१।।
आलोकितं पथ, नगर, ग्राम, कुंज, वन सर्वं।
प्रज्वलितं सस्नेहं दीप, कुटी भवनंं समस्त्तं।।८२।।
गुरू चरण पादुका राज प्रजा प्रतीकं।
दर्शनोत्सुकं सर्वे सीता राम पदाम्बुजं।।८३।।
नैयायिक समदर्शी प्रभु श्री चरणं।
भव भय हरणं, सुख समृद्धि करणं।।८४।।
आचारादर्श धर्म गुण शील धनं।
सूर्य वंशी सत्पथ रत निरतं ।।८५।।
जनहित दारा सुत सत्ता तजनं।
लीला कुर्वन्ति लक्ष्मी रमणं।।८६।।
शुचि सत्य सनातन पथ गमनं।
शिव राम कृपा दुर्लभ सुलभं।।८७।।
दीपावल्याख्यानं तमान्तस् हरणं।
राक्षसत्वं दलनं, रक्षक गुण भरणं।।८८।।
आदौ महाकाव्यं वाल्मीकि ऋषि रचितं।
क्रौंचस्य वियोगाहत कृतं राम चरितं।।८९।।
चरितं सुरचितं निज भाषानुरूपं।
निज भावानुरूपं रावणं राम काव्यं।।९०।।
संस्कृत सुगूढ़ं, अवधी सुलब्धं।
दनुज व्यूह त्रसितं कृते तदर्थेकं।।९१।।
सत्यं शिवं सुन्दरं श्री राम चरितं।
भरद्वाज कथनं, गोस्वामी रचितं।।९२।।
कथा सज्जनानां अवतार हेतु।
आगमनस्य रघुकुल साकेत धामं।।९३।।
वैष्णवी तपस्या, अवतार कल्कि,
गाथा सुदिव्यं जग कल्याण हेतु।।९४।।
एकासनवर्धनं गुण शीलंं समेतं,
हर्षितं दर्शितं अवध पुष्पक विमानं।।९५।।
रजकस्यारोपं वैदेही वने प्रवासं।
ऋषि सुता चरितं, वाल्मीकि शरणं।।९६।।
अश्वमेध यज्ञस्य हय विजय करणं।
सीता सुत लव कुश संग्राम करणं।।९७।।
श्री राम राज्यं समत्वं योग वर्धनं।
प्रजा सुपालनं त्रिविध ताप हरणं।।९८।।
सुता हेतु धरित्री हृदय विदीर्णं।
सीतया धरा अर्पणं निज शरीरं।।९९।।
सीता वसुधा, प्रभु सरयू शरणं।
शेषावतार सहर्ष सत् पथ गमनं।।१००।।
अवधेश गतं साकेत शुभम्।
सप्रजा साकेत अवध सहितं।।१०१।।
शुचि कथा उमाशंकर पावन।
कैलाश कपोत युगल सहितं।।१०२।।
खग काक भुषुण्डि शिव श्राप हरं।
गुरु कृपा श्री राम भव पाप हरं।।१०३।।
रामायण अवध अवधेश कृतं।
मन मोद धाम शुभदं सुखदं।।१०४।।
भारत बिहार जम्बूद्वीपं।
नयागाँव पचम्बा सुसंगम्।।१०५।।
ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र कुलं।
जातक शैलजा राजेन्द्र सुतं।।१०६।।
आख्यान रचित शैलज अनुपम।
निज ज्ञान विवेक सहित अल्पम्।।१०७।।
सप्रेम रामायणमिदं पठनं।
आतप त्रयताप हरं सुखदं।।१०८।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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