काजल तू आँखों की शोभा,
आँखों को दिव्य बनाती है।
अनुपम सौंदर्य छटा तेरी,
लख प्रकृति नटी लजाती है।।
तू लिपट बरौनी संग पलक,
घन श्याम घटा बन जाती है।
मद मस्त मधुप संग केलि प्रसंग,
नित तेरी छटा बढ़ाती है।।
काजल कपोल की शोभा तू,
आनन की छटा बढ़ाती है ।
गोरे क्या, श्यामल गालों की,
शोभा को सदा बढ़ाती है ।
तू भेद बुद्धि से रहित सदा,
प्रियतम प्रियतमा मिलाती हो ।
तू काम मोहिनी तन्वंगी,
तुमसे अलि रति लजाती है ।।
प्रिय संग तुम्हारा पाकरके,
अभिचार चकित हो जाते हैं।
तेरे संग नयनों के कटाक्ष,
घायल उर को कर जाते हैं।
(क्रमशः)
प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा,
बेगूसराय ।
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