भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय :-
समलैंगिकता (Homosexuality) जो मस्तिष्क की सामान्य मानव से भिन्न बनावट एवं अन्य जैविक कारणों, आकाशीय पिण्डों के विशिष्ट प्रभाव, माता की तुलना में पिता का कम आक्रामक होना, बचपन से ही विपरीत लिंगियों के साथ या संरक्षण में अधिक रहना, अपने विपरीत लिंग द्वारा धारणीय वस्त्रों को धारण करना, पुरुषों में स्त्री हार्मोन एवं स्त्रियों में पुरुष हार्मोन की वृद्धि होना, तथा दो स्त्रियों या किन्हीं दो पुरुषों की आपसी सहमति या रजामंदी या आत्मा की आवाज पर स्थायी या सामयिक प्रेममय सम्बन्ध हेतु लैंगिक सम्बन्धों को स्थापित करने की प्राकृतिक स्थिति है। इस सन्दर्भ में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक जोड़ों को आपस में लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया और 158 वर्ष की पुरानी धारा 377 के अमानवतावदी हिस्से को अतार्किक,मनमाना एवं समझ से बाहर बताते हुए निरस्त कर समलैंगिकों तथा LGBT को अपेक्षित अधिकार एवं स्वतंत्रता प्रदान कर एक उच्च स्तरीय, मानवतावादी , मनोवैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
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