वह जो अनुकूल नहीं हो,
तन-मन-समाज के हित में ।
असहज स्थिति दायक हो,
हर पल जीवन , चिंतन में ।।
यह जीव जगत निर्मित हो,
या मूल प्रकृति प्रेरित हो ।
मानव की भूल सहज या,
अज्ञान-अहम् प्रेरित हो ।।
हर पल घटते जीवन की,
अर्जित संचित कर्म लड़ी में ।
प्रारब्ध भोग करते हैं,
जीवन भर प्रत्येक घड़ी में ।।
आपदा नियन्त्रण हेतु,
कर हम आत्मनियंत्रण ।
मिल जायें एक दूजे में,
सुन्दर है यही प्रबंधन।।
प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय
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