आँखों में पानी रहने पर दिल में तस्वीर बनी रहती है।
सुख्वाबों की निगरानी से तकदीर सहज बनती है।
रिश्ते प्रेम आपस के आसक्ति रहित अनुपम हैं।
सच्चे दिल के सब रिश्ते नि:स्वार्थ कर्म होते हैं।
जीवन अनन्त यात्रा है, प्रभु प्रेरित जड़ चेतन का।
सिद्धांत कार्य-कारण का, है खेल प्रकृति पुरुष का।
संकल्प विकल्प मनुज का, जड़ चेतन योग जगत् का।
विज्ञान ज्ञान जगत् का, कलि काम क्रोध अन्तर का।
पर निज का लोभ त्रिविध दु:ख खोलता द्वार नरक का।
ध्रुव उत्तर औ दक्षिण के मिलकर चुम्बक बनते हैं।
पारस से बढ़ लोहे में निज चुम्बकीय गुण भरते हैं।
कहते हैं लोग जगत् यह सपना, झूठा, माया है।
पर सृष्टि प्रभु की सच यह तत्वज्ञ समझ पाया है।
अन्तर्दृष्टि निरीक्षण की शक्ति सोच देता है।
पर अन्तर्निरीक्षण से वह योग युक्त होता है।
मिट जाती सारी दूरी, सब समय सिमट जाता है।
सत्रिविमीय अनन्त परमेश्वर ऊँ कार पूर्ण होते हैं।
वह परम ज्योति कण-कण में,जड़- चेतन में रहता है।
एक दूजे से हिल-मिल कर निज रूप नया रचता है।
सब साथ सदा रहते हैं, भ्रम दूर महज करना है।
बस एक तत्व है सबमें, सब में निज को लखना है।
मर्कट-शुक न्याय प्रमाणिक जग सहज मोह बन्धन है।
जड़-जीव स्वतंत्र सक्षम हैं, श्रद्धा विश्वास अटल हो।
स्व में सन्निहित जगत् हो, जग में हो निज का दर्शन।
मित्रता प्रेम समर्पण, मधुमय करता जग जीवन।
मन कर्म वचन सत संगत सौभाग्य सौख्य दायक हो।
शैलज सुचि जीवन दर्शन कवि राज सुश्री वर्धन हो।
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