बुधवार, 23 जुलाई 2025

बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति

वास्तव में बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति अर्ध- रोगी केन्द्रित चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि यह सहज, सुगम, सार गर्भित, बहु आयामी, पूर्ण, निर्दोष आरोग्य प्रदान करने वाली एवं सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है, जो 1989 से अभी तक के अर्थात् 36 वर्षों के चिकित्सकीय प्रयोग एवं अनुभवों से मुझे ज्ञात हुआ।
विगत 36 वर्षों में मुझे हजारों औषधियों के विस्तृत भंडार वाली होमियोपैथिक औषधियों और बायोकेमिक की 12 औषधियों के माध्यम से प्रायः जटिल रोग परिस्थितियों में रोगी की चिकित्सा करने का अवसर मिला। मुझे इस अवधि में होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक दोनों चिकित्सा पद्धति से चिकित्सा करने पर सन्तोषजनक सफलता मिली।

मैंने अनुभव किया कि रोगी के साथ संवाद करने के क्रम में रोग लक्षण संग्रह की अवधि में बायोकेमिक की 12 औषधियाँ जिनका बायोकेमिक एवं होमियोपैथिक दोनों चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग होता है और मैने रोगी के लक्षण समष्टि के ही आधार पर ही उन औषधियों का होमियोपैथिक या बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति द्वारा उपयोग किया।

मैंने चिकित्सा अवधि में पाया कि जब कभी रोगी के लक्षण समष्टि के आधार पर किसी होमियोपैथिक औषधियों के लक्षण समष्टि का अध्ययन करने के क्रम में किसी होमियोपैथिक औषधि का स्पष्ट चित्र सहजता से उपलब्ध नहीं हुआ तो वैसी परिस्थितियों में बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति से रोगी के लक्षण समष्टि के आधार पर बायोकेमिक औषधियों के लक्षण समष्टि का अध्ययन और चिकित्सा कर रोगी को निर्दोष आरोग्य के पथ पर लाने में मुझे कोई विलम्ब या कठिनाई नहीं हुई।

चिकित्सा के प्रारम्भिक दिनों में जब मैं होमियोपैथिक औषधियों के साथ-साथ बायोकेमिक औषधियों के महत्व, उपयोग एवं सुपरिणाम की चर्चा करता था तो होमियोपैथिक के अधिकांश चिकित्सक मेरी बातों में विश्वास नहीं करते थे, जबकि होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक दोनों पद्धतियों की औषधियों के माध्यम से मुझे अपने आज तक केे चिकित्सा कार्य के दौरान लगभग 99% रोगियों को आरोग्य के पथ पर लाने में समान रूप से सफलता मिली।

ज्ञातव्य है कि कुछ लोगों को भ्रम है कि होमियोपैथिक औषधियाँ शक्ति कृत होने से जल्द कार्य करती है और बायोकेमिक औषधियाँ विचूर्ण होने से देर से काम करती हैं, परन्तु ऐसा नहीं है। मैंने अनुभव किया है कि होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक दोनों ही पद्धतियों की औषधियाँ लक्षण समष्टि के आधार पर रोगी की जीवनी शक्ति, रोग और रोगी की प्रकृति, अवस्था, रोगी के हित में उपलब्ध संसाधनों आदि के आधार पर ही कार्य करती हैं।

बायोकेमिक औषधियाँ न केवल प्राणी के शरीर में आवश्यक जैव रसायन की पूर्ति ही करती है, वरन् शरीर स्थित जैव रसायनों के मध्य सन्तुलन भी पैदा करती है तथा अपनी सहज, सूक्ष्म एवं उत्कृष्ट घुलनशीलता एवं समायोजनशीलता शक्ति के कारण जीवनी शक्ति के पुनर्गठन में सद्यः योगदान कर शरीर स्थित जैव रसायन में सन्तुलन पैदा करती है; ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों एवं तन्त्रिका तन्त्र को सशक्त एवं सुनियोजित करती है, मस्तिष्क को निर्णय योग्य बनाती है और शरीर के समस्त अंगों के हित साधन की व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। इस प्रकार न केवल होमियोपैथिक या बायोकेेमिक चिकित्सा पद्धति वरन् समस्त चिकित्सा पद्धतियों की अपनी-अपनी विशेषता एवं सीमाएँ हैं।

क्योंकि प्रत्येक प्राणी को अपनी स्वाभाविक आवश्यकतानुसार "आहार, निद्रा, भय, मैथुनश्च" हेतु अपने वातावरण में समायोजन करना पड़ता है और इसके लिये प्रकृति प्रदत्त और / या कृत्रिम संसाधनों की जरूरत होती है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें