गुरुवार, 26 जुलाई 2018

अदद् दर्द......

अदद् दर्द.....

कहो रूठ कर क्यों रुलाते हो मुझको?
अदद् दर्द दे क्यों बुलाते हो मुझको?
यों रूठ कर क्यों मनाते मुझे हो ?
आखिर अदद् दर्द देते ही क्यों हो?
गफलत है तेरी या गलती है मेरी ?
दबा दर्द दिल में , बताते नहीं हो?
बताओ तो जानूँ,क्या चाहत है तेरी?
तू भी जान पाओ, क्या दिल में है मेरी ?
वर्षों से आ रही अखण्डित कहानी।
रूठने की है तेरी ये आदत पुरानी ।।
लेकिन तेरे दिल की ये लम्बी बीमारी।
मन से यों उपजी कि दु:ख है हमारी।।
क्या मिलता है यों,जो मुझको सताते ?
हो दिल से बुलाते,या नफरत दिखाते ?
अजब सोच तेरी, गजब की अदा है ।
दिशा हीन हूँ क्या, जो ऐसी सजा है ?
समर्पित है तेरे लिए मेरा तन-मन ।
समर्पित है तेरे लिए मेरा जीवन ।।
कहो रूठ कर क्यों रूलाते हो मुझको?
अदद् दर्द दे क्यों बुलाते हो मुझको ?

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय ।

अदद् दर्द.....

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बुधवार, 30 मई 2018

घटनाओं का प्राकृतिक रिकॉर्ड एवं न्यायिक प्रक्रिया.....।

सृष्टि के आदि से ही संसार में घटित हो रही गोचर या अगोचर; सूक्ष्म या स्थूल; व्यक्त या अव्यक्त समस्त घटनाओं का रिकॉर्ड प्रकृति रखती है, जो अन्ततोगत्वा सत्य एवं वास्तविकता का मार्ग प्रशस्त करती है और हमारे द्वारा काम, क्रोध या लोभ के वशीभूत होकर लिये गए पक्षपात् पूर्ण या पूर्वाग्रह युक्त निर्णय के परिणाम स्वरूप पाप या पुण्य का भागी बनाता है।
वास्तव में कोई भी व्यक्ति अपने हृदय में स्थित आत्मा की परमात्मा प्रेरित पवित्र आवाज को जब अनसुनी कर निर्णय लेता है तो वह पुण्य के स्थान पर पाप को प्रतिष्ठित करने की भूल करता है और न्याय नहीं कर पाता है तथा उसकी सजा में वह खुद को अपनी गलतियों के लिए व्यक्त या अव्यक्त रुप में कोसते रहता है और उसके पास प्रायश्चित के अलावा कुछ भी शेष नहीं रहता है।
अतः विवेकपूर्ण निर्णय एवं सम्यक् व्यवहार हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

सोमवार, 14 मई 2018

दाम्पत्य जीवन: समस्या एवं समाधान...।

विवाह : जिम्मेदारी या मजाक.....। ( सम्बन्धों की दिशा एवं दशा...) :- आधुनिक जीवन शैली के सन्दर्भ में यह संक्षिप्त नाटिका प्रस्तुत की जा रही है। हममें से किसी व्यक्ति के जीवन के भूत, वर्त्तमान या भविष्य की घटनाओं से यह कल्पना-प्रधान रचना कदाचित् मिलती जुलती महसूस हो रही हो तो इसके लिए रचनाकार क्षमा प्रार्थी हैं। कृपया, अन्यथा भाव न लेकर रचना के रचनात्मक एवं सकारात्मक पक्ष से लाभान्वित होने का प्रयास करेंगें। :- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय । Follow my writings on https://www.yourquote.in/akumarpbb #yourquote

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

आदर्श मनोवैज्ञानिक संगठन एवं शोध-संस्थान, पचम्बा, बेगूसराय ( IPORI-PBBI ) के उद्देश्य और कार्य-क्रम :-

आदर्श मनोवैज्ञानिक संगठन एवं शोध-संस्थान, पचम्बा, बेगूसराय ( IPORI-PBBI )

 स्थापना दिवस : 23/04/2012.

आदर्श मनोवैज्ञानिक संगठन एवं शोध-संस्थान, पचम्बा, बेगूसराय ( IPORI-PBBI ) के उद्देश्य और कार्य-क्रम :-
1. मानव एवं मानवेतर प्राणियों के उद्भव, विकास एवं मनो-शारीरिक स्थितियों का अध्ययन करना।
2. किसी प्राकृतिक / स्वाभाविक या कृत्रिम परिस्थिति में प्राणी के अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन प्रक्रिया का अध्ययन करना।
3. मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों यथा कला, विज्ञान, वाणिज्य तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों में आदर्श एवं समर्थक / विधायक विज्ञान सम्मत और तुलनात्मक अध्ययन करना।
4. मनोविज्ञान का अन्य विज्ञानों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना।
5. संस्था-हित एवं लोक-हित में आदर्श, रचनात्मक और सकारात्मक सोच को विकसित करना तथा उनसे सम्बन्धित कार्यक्रमों का आयोजन करना।

-प्रो० अवधेश कुमार ,
अध्यक्ष सह सचिव,

IPORI-PBBI

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Ideal ​​Psychological Organization and Research Institute, Pachamba, Begusarai (IPORI-PBBI) 

Foundation Day: 23/04/2012.

Objectives and Programs of " Ideal ​​Psychological Organization and Research Institute, Pachamba, Begusarai (IPORI-PBBI) " :-


1. To study the origin, development and psycho-physical conditions of human and non-human beings.


2. To study the feeling, behavior and adjustment process of a being in a natural or artificial situation.


3. To do ideal and supportive / constructive science-based and comparative studies in various fields of human life such as art, science, commerce and spiritual fields.


4. To do comparative study of psychology with other sciences.


5. To develop ideal, constructive and positive thinking in the interest of the organization and public interest and to organize programs related to them.


-Prof. Awadhesh Kumar,

President cum Secretary,

IPORI-PBBI

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

उद्दीपक की संवेदना, प्रत्यक्षण, भ्रम एवं विभ्रम की सामान्य परिभाषा :-

किसी प्राणी ( Organism ) के अपने या दिये गये वातावरण ( Environment ) में किसी  उद्दीपन ( Stimulus ) की उपस्थिति की अनुभूति उसके वास्तविक स्वरूप के अनुरूप होना उस वस्तु या घटना का ' हू व हू प्रत्यक्षण' है। वस्तु या घटना के प्रत्यक्षण ( Perception ) होने की ठीक पूर्व की अवस्था संवेदना ( Sensation ) है। वस्तु या घटना का 'हू व हू' प्रत्यक्षण नहीं होकर उसके समान्य प्रसम्भावना के अनुरूप प्रत्यक्षण नहीं होकर अन्य रुप में या द्रष्टा के अनुरूप प्रत्यक्षण भ्रम (Illusion) है तथा किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी या घटना की अनुपस्थिति में उनका बोध या प्रत्यक्षण होना विभ्रम (Hallucination) कहलाता है।

शनिवार, 21 अप्रैल 2018