Awadhesh kumar 'Shailaj'
गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017
'कलियुग' :-प्रो०अवधेश कुमार 'शैलज'
'कलियुग' :-
चिन्मय सत्ता मानव की सृष्टि से,
विश्व की रचना कर
अपनी अभिव्यक्ति से-
देश-काल-पात्र की सृष्टि करती है।
यह सब कुछ जो अगोचर है
या कि दृष्टगोचर है - अनन्त है।
इसका न आदि है और न अन्त है।
मानव समय को आदि अन्त की सीमा में-
बाँधना चाहता है, सीमांकन करता है ।
मानव की कल्पना- समय की त्रुटि से..
....वर्षों, युगों और कल्पों में जाती है।
फिर भी समय की सीमा मिल नहीं पाती है।
क्योंकि समय सीमा रहित भूत, वर्त्तमान् औ भविष्य है ।
समय वास्तव में- हर समय वर्तमान् है।
यह न भूत है और न भविष्य है।
आर्ष ग्रन्थों ने, आर्यों ने, गहन चिन्तकों ने,
वेदों, पुराणों, उपनिषदों, ग्रन्थों में......
स्रष्टा की वाणी को- श्रुति एवं स्मृति से.....
लिपि देवनागरी में, सुसंस्कृत भाषा में.....
बोध को, बुद्धत्व को- पिरोया सजाया है।
समय के महत्व को- तत्व के चिन्तन से-
करके समृद्ध - सारे जग को बताया है।
सतयुग से कलियुग तक, बोध से विज्ञान तक
अनुभूति से प्रयोग तक- मार्ग दिखलाया है।
:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें