महात्मा सैमुएल हैनीमैन के शिष्य एवं विद्वान् चिकित्सक डॉ० शुस्लर ने अपने अध्ययन एवं शोध में पाया कि मानव की हड्डियों के राख एवं रक्त दोनों में 12 जैव-रसायन पाये जाते हैं, जिनकी कमी या अधिकता से व्यक्ति में विभिन्न प्रकार के रोग लक्षण पैदा हो जाता है और उन लवणों या उत्तकों के उपयोग या प्रयोग से रोगी को आरोग्य लाभ होता है।
होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक किसी व्यक्ति या प्राणी पर किसी वस्तु की स्थूल मात्रा यदि कोई मनो-शरीरिक रोग लक्षण पैदा करता है, तो उसकी सूक्ष्म मात्रा के एक या एकाधिक बार प्रयोग या उपयोग किये जाने से उक्त रोग लक्षण तरुण एवं तीव्र प्रभाव रहने पर शीघ्र, परन्तु जीर्ण, मन्द एवं स्थिर प्रकृति का रहने पर देर से समाप्त होता है।
तरूण रोग लक्षण रोगी को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक रूप से शीघ्रातिशीघ्र प्रभावित करता है और स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, जिससे रोग लक्षण रोगी, परिचारक तथा चिकित्सक को शीघ्र समझ में आता है या अनुभूत होता है, जिससे रोग लक्षणों की प्रायः अधिक स्पष्टता होने से औषधि चयन अधिक आसान, सही तथा शीघ्र हो जाता है, जिससे रोग लक्षण एवं औषधि की प्रकृति के आधार पर प्रायः निम्न शक्ति की औषधि के प्रयोग या उपयोग से और विशेष अवस्था में मध्यम या उच्च शक्ति के उपयोग या प्रयोग से रोगी को निर्दोष आरोग्य की प्राप्ति होती है।
जीर्ण रोग लक्षण रोगी को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक रूप से धीरे-धीरे, छद्म एवं गहन रूप से प्रभावित करता है, जिससे रोग लक्षण प्रायः स्पष्ट दृष्टिगोचर होने के बाद भी रोगी, परिचारक तथा चिकित्सक को शीघ्र समझ में नहीं आता है या नहीं अनुभूत होता है, जिससे रोग लक्षणों की वास्तव में अस्पष्टता होने की स्थिति में औषधि चयन अधिक आसान नहीं होने से शीघ्र सही या समुचित औषधि चयन प्रायः तरूण रोग की तुलना में अधिक कठिन, श्रम-साध्य एवं शोध-पूर्ण हो जाता है, परिणामस्वरूप अनेक अवस्थाओं में सम्यक् औषधि चयन हेतु रोगी और / या उनके परिजनों-पुरजनों, परिवार के सदस्यों, सम्बन्धियों और पूर्वजों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष शील-गुणों या रोग बीजों या अनुवांशिक प्रभाव को जानने की आवश्यकता महसूस की जाती है, जबकि ऐसे अनेक लक्षण रोगी एवं उनके परिजनों-पुरजनों की निजता की गोपनीयता से सम्बन्धित भी हो सकते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें रोगी के निर्दोष आरोग्य हेतु चिकित्सक की जानकारी में आना सम्यक् औषधि चयन हेतु अपेक्षित होता है, अन्यथा रोगी के किसी ऐसे अन्य सामान्य रोग लक्षणों के आधार पर ही चिकित्सक को रोग बीजों को समझना पड़ता है, जिससे गोपनीयता भी बनी रहे और सम्यक् औषधि चयन या निर्वाचन भी सरलता से हो सके तथा रोग लक्षण एवं औषधि की प्रकृति के आधार पर आवश्यकतानुसार प्रायः मध्यम या उच्च शक्ति के उपयोग या प्रयोग से रोगी को निर्दोष आरोग्य की प्राप्ति होती है, क्योंकि तरूण रोगावस्था में आत्मा, मन एवं शरीर क्रमशः अधिक प्रभावित होता है, जबकि जीर्ण रोगावस्था में शरीर, मन एवं आत्मा अधिक प्रभावित होती है।
तरूण रोगावस्था में औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग प्रायः कम अन्तराल पर किया जाता है, लेकिन मध्यम शक्ति का अधिक अन्तराल पर एवं उच्च शक्ति का प्रयोग या उपयोग उससे भी अधिक पर या नहीं के बराबर किया जाता है।
जीर्ण रोगावस्था में औषधि की मध्यम शक्ति का प्रयोग प्रायः कम अन्तराल पर किया जाता है, लेकिन उच्च शक्ति का अधिक अन्तराल पर एवं निम्न शक्ति का प्रयोग या उपयोग नहीं के बराबर किया जाता है।
अतः मेरी दृष्टि में होमियोपैथिक और / या बायोकेमिक चिकित्सा-पद्धति की औषधियों का उपयोग या प्रयोग उनके नियमों एवं सिद्धान्तों के आलोक में, औषधियों के सत्यापन कर्त्ता, अनुभवी विद्वानों एवं चिकित्सकों के निर्देश के आलोक में होना चाहिए। अतः किसी मनोरंजन, कौतुहल, उत्साह या अनावश्यक प्रयोग के दृष्टिकोण से या व्यवसायिक एवं आकर्षक विज्ञापनों के प्रभाव से और / या किसी निश्चित निर्देशों के आलोक में अनुमान करने वाली या निर्णय लेने वाली मशीनी प्रणाली के माध्यम से ही नहीं करना चाहिए अन्यथा रुग्ण मानव, मानवेतर प्राणी या वनस्पति को सम्यक् लाभ मिलना सम्भव नहीं है, बल्कि हानि भी हो सकती है, क्योंकि मानव, मानवेतर प्राणी एवं वनस्पति की मनो-शरीरिक स्थिति, बोध या निर्णय अपने वातावरण के उद्दीपनों से प्रभावित होने के बाद भी अपने अनुभूति, प्रत्यक्षण बोध, अनुवांशिक प्रभाव, मनो-शरीरिक अवस्था एवं समायोजनात्मक प्रक्रिया के कारण किसी मशीनी प्रणाली के समान पूर्ण नियन्त्रित स्थिति में नहीं रहती है।
अतः औषधि चयन, उपयोग या प्रयोग में अध्ययन, अनुभव एवं विवेक के साथ ही चिकित्सा-पद्धति के नियमों, सिद्धान्तों एवं अनुभवी विद्वानों और चिकित्सा-पद्धति सहित अन्य सद्ग्रन्थों का अनुशीलन महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
S/o स्वर्गीय राजेन्द्र प्रसाद सिंह,
पता :- पचम्बा, बेगूसराय, पिन कोड : 851218, बिहार (भारत)