मंगलवार, 29 अक्तूबर 2024

दीपावली निर्णय वर्ष २०२४ ई० पश्चात् :-

दीपावली निर्णय वर्ष २०२४ ई० पश्चात् :-

वर्ष २०२४ ई० पश्चात् में कार्तिक अमावस्या दिनांक ३१/१०/२०२४ तदनुसार गुरुवार को अपराजिता पंचाग के अनुसार (मकरन्दानुसार)  अपराह्न ३/२२ बजे से तथा चिन्ता हरण पंचागानुसार अपराह्न ३/५४ बजे से प्रारम्भ हो रही है तथा दिनांक ०१/११/२०२४ तदनुसार शुक्रवार के सायं को क्रमशः ०५/२३ बजे तक एवं ०६/१८ बजे सायंकाल तक रहेगी ऐसी स्थिति में "निर्णय-सिन्धु" के अनुसार दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात् / बाद यदि १ घटी अर्थात् २४ मिनट तक अमावस्या रहे तो दीपावली पूर्व के दिन न मनाकर उसी दिन रात्रि में दीपावली मनाया जाना चाहिए, परन्तु यदि सूर्यास्त के बाद अमावस्या तिथि १ घटी से कम तक व्यतीत हो रही हो तो दीपावली पूर्व दिन ही मनाना चाहिए। दिनांक ०१/११/२०२४ को भारतीय स्टैण्डर्ड टाइम के अनुसार सूर्यास्त ५/१४ बजे हो रहा है अतः मकरन्दानुसार बने पंचाग के अनुसार दीपावली ३१/१०/२०२४ को मनाया जायेगा और चिन्ता हरण पंचाग में भी ऐसा ही निर्णय लिया गया है। 

रविवार, 27 अक्तूबर 2024

प्राक्कथन

होमियोपैथी के जन्म दाता जर्मनी के एलोपैथिक‌ चिकित्सक डॉ० सैमुएल हैनीमेन ने एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका का जर्मन भाषा में अनुवाद के क्रम मे अपने शरीर पर चायना के प्रभाव से उत्पन्न वैसे मनो- शारीरिक लक्ष्णों को जो मलेरिया में पाये जाते हैं, उन् लक्षणों को चायना के तनुकृत, अल्प मात्रा और सूक्ष्म अंश के सेवन से दूर कर चिकित्सा विज्ञान के "बिषमस्य बिषमौषधम्" सिद्धांत के स्थान पर लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति पर आधारित "समं समे समयति”_सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे होमियोपैथी कहा गया और उन्हीं के शिष्य एवं सहयोगी डॉ० शुस्लर ने सजीव प्राणी के रक्त तथा हड्डियों के भस्म दोनों में 12 तत्वों को समान अनुपात में पाया जिस जीव रसायन (बायोकेमिक) के शरीर में सन्तुलन के अभाव में प्राणियों में होने वाले मनो शारीरिक विकृतियों के निदान हेतु उन्हीं जीव रसायन (बायोकेमिक औषधियाँ) के सम्यक् उपयोग के द्वारा महात्मा हैनीमेन के समान ही बायोकेमिक चिकित्सा विधि द्वारा निर्दोष आरोग्य का मार्ग प्रशस्त किया, जिनके पद चिन्हों पर डॉ० अरुण कुमार सिन्हा, बाघा, बेगूसराय के साथ एवं निर्देशन में रहकर तथा बेगूसराय, बिहार के डॉ० सुरेश प्रसाद चौधरी, डॉ० दिगम्बर लाल, डॉ० शिव शंकर हजारी, डॉ० राम चन्द्र प्रसाद, डॉ० योगेन्द्र सिन्हा, डॉ० मतलूब आलम, डॉ० अबू बकर, डॉ० एस एस साह, डॉ० विश्वास, डॉ० अशोक कुमार यादव, डॉ० अशोक चौधरी, डॉ० वाई पी सिन्हा, डॉ० महेन्द्र चौधरी, डॉ० आनन्द कुमार, डॉ० सुल्तान बिहारी आलम, डॉ० प्रेम पंकज तथा बेगूसराय से इतर अन्य क्षेत्रों के अनेक होमियोपैथिक चिकित्सकों के मार्ग दर्शन एवं सानिध्य से मुझे होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित होने का अवसर मिला फलस्वरूप 1989 से आज की तिथि तक होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक तथा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा विधि से रुग्ण नर-नारियों, पशु पक्षियों एवं पौधों को निर्दोष आरोग्य के पथ पर लाने के क्रम में अनेक विद्वानों के पुस्तकों और निबन्धों अध्ययन करने एवं चिकित्सा क्षेत्र के अनुभवों के आधार पर होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक चिकित्सा से सम्बन्धित मूल लक्ष्णों पर आधारित होमियोपैथिक और बायोकेमिक मेटे रिया मेडिका, रेपेर्टरी एवं चिकित्सा सम्बन्धी अनेक पुस्तकों के लेखन तथा सम्पादन का अवसर प्राप्त हुआ है, जिसके लिए मैं उन समस्त महानुभावों तथा डॉ० ज्योति कुमारी, बेगूसराय का हृदय से आभारी हूँ।

डॉ० अवधेश कुमार शैलज

पचम्बा, बेगूसराय (बिहार))

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

बायोकेमिक चिकित्सा सार : डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

बायोकेमिक औषधियों से असाध्य रोगों का उपचार :-

होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक चिकित्सक हेतु स्मरणीय सूत्र :-

1. फेरम फॉस  : हर तरह का बुखार तथा फेफड़े के समस्त विकार की महत्वपूर्ण औषधि है, लेकिन लक्षण समष्टि के आधार पर ही फेरम फॉस या अन्य औषधियों या दवाओं का भी आवश्यकतानुसार उपयोग उचित है। सूखी खाँसी। टी बी, निमोनिया, श्वास कष्ट। श्वास लेने में कष्ट। पेशाब कम और किडनी का दर्द। भूख की कमी। पेट दर्द के साथ अतिसार। सामने ललाट का दर्द और / या दायीं ओर का सिर दर्द। आँख के गोलकों में मुख्यतः दायीं आँख का दर्द। कन्धे का दर्द और मुख्यत: बायें कन्धे का दर्द। हृदय रोग और दायें ठेहुँने का दर्द। ठंढ़ा पसन्द। फेरम फॉस अनिद्रा की स्थिति में रात में न लें, दिन में लें। रक्त श्राव की स्थिति में फेरम फॉस 3x या 6x का चूर्ण लगाने तथा गर्म पानी के साथ खाने से आराम मिलता है। फेरम फॉस 3x या 6x काली फॉस 6x के साथ हर घाव को तथा फेरम फॉस 6x कैल्कैरिया फॉस 6x के साथ यकृत (liver), वृक्क या गुर्दे (kidney) और / या हृदय (Heart) के विकार से उत्पन्न शोथ को भी दूर करता है। लाल एवं गर्म रक्तस्राव। दाहिनी हथेली गर्म। सम्भोग के प्रारम्भ में कष्ट या दर्द। योनि की तीव्र खुजली एवं जलन या गर्मी। मासिक धर्म या रज:श्राव प्रायः तीन सप्ताह अर्थात् 21 दिन में ही हो जाता है।

फेरम फॉस 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 
बच्चों के बुखार में फेरम फॉस 12x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

हर तरह का बुखार तथा फेफड़े के समस्त विकार की 
फेरम फॉस की क्लोरोसिस में कैल्कैरिया फॉस से तुलना करनी चाहिए। 

सिर दर्द में नेट्रम फॉस से तुलना करनी चाहिए। 
बहुमूत्र या मूत्रमेह या मूत्राधिक्य में नेट्रम सल्फ से तुलना करनी चाहिए। 

जंघा सन्धि प्रदाह में कैल्कैरिया सल्फ से तुलना करनी चाहिए। 

सिर दर्द में नेट्रम फॉस, बहुमूत्र में नेट्रम सल्फ, बबासीर में कैल्कैरिया फ्लोर, रक्ताल्पता में कैल्कैरिया फॉस तथा डिफ्थीरिया एवं प्रदाह आदि रोगों में कैली म्यूर का प्रयोग फेरम फॉस के बाद या साथ में ही किया जाता है।

फेरम फॉस एण्टिसोरिक तथा एण्टिट्युबरक्युलर औषधि है।

फेरम फॉस (Ferrum Phos) का पूरा नाम फेरम फॉस्फोरिकम (Ferrum Phosphoricum) तथा सामान्य नाम आयरन फॉस्फेट या फॉस्फेट ऑफ आयरन है।

माघ मास तथा मीन राशि के सूर्य में जन्म लेने से पाँव में कष्ट एवं रक्त का अभाव होता है। (20 फरवरी से 20 मार्च तक सायन सायन सूर्य)। 

2. काली फॉस 6x : मस्तिष्क ज्वर। भूलना। भय। भोजन से आराम। दायीं कनपट्टी का दर्द जो बायीं ओर जाती है। संगति पसन्द। आवाज से कष्ट। धड़कन। दम फूलना। स्वप्न चारिता। अनिद्रा। बग्घा लगना। मिर्गी। उड़ने, गिरने, आग, पहाड़, भूत प्रेत का सपना। दुर्गन्ध रहित चावल के धोवन-सा दस्त। धीमी गति पसन्द। स्वर भंग। लकवा एवं पागलपन को दूर करता है। भविष्य की चिन्ता या भय। चमड़े पर काला दाग या काला रक्तस्राव। मूत्रमार्ग से रक्तस्राव। काला घाव। कटी मछली के धोवन-सा दुर्गन्धित रज:श्राव। रज:श्राव के बाद तीब्र कामेच्छा।नारंगी रंग की योनि और लिकोरिया या प्रदरश्राव। लिंग तनाव रहित। अचानक पेशाब का वेग और उसे रोकना कठिन। पेशाब रास्ते या लिंग तथा मुख का लकवा। वृद्धों को बिछावन पर पेशाब हो जाना।

काली फॉस 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

दमा एवं निम्न रक्तचाप में काली फॉस 3x तथा उच्च रक्तचाप में 12x अधिक उपयुक्त औषधि है। 

मीठा कम पसन्द। मस्तिष्क के हिल जाने की स्थिति में काली फॉस का होमियोपैथिक प्रयोग 30 शक्ति में करना विशेष लाभप्रद होता है।

कैली फॉस का मैग फॉस, नेट्रम म्यूर, फेरम फॉस तथा केली म्यूर का विशिष्ट सम्बन्ध पाया जाता है।

शू्ल वेदना और मूत्र-स्थल में आक्षेपिक वेदना होने पर मैग फॉस का तथा पाक्षाघातिक लक्षणों की अधिकता होने पर केली फॉस का प्रयोग किया जाता है।

बड़बड़ाहट वाले प्रलाप एवं रक्त श्राव में नेट्रम म्यूर के साथ पर्याय क्रम में केली फॉस का प्रयोग किया जाता है।

उच्च प्रलाप में फेरम फॉस के साथ तथा सूतिका ज्वर में केली म्यूर के साथ केली फॉस का प्रयोग किया जाता है।

अनेक प्रकार की पीड़ाओं में कैल्कैरिया फॉस के साथ कैली फॉस के प्रयोग की आवश्यकता होती है। 

किडनी के लक्षणों में मैग फॉस के साथ । 

नाड़ी-मण्डल या स्नायु संस्थान के रोगों में साइलीशिया के साथ केली फॉस की तुलना की जाती है।

कैली फॉस एण्टिसोरिक तथा एण्टि ट्युबरक्युलर औषधि है।

कैली फॉस (Kali Phos) को केली फॉस या काली फॉस भी कहा जाता है। इसका सामान्य नाम फॉस्फेट ऑफ पोटाश है। इसे पोटाशियम फॉस्फेट भी कहा जाता है। इसे कैलियम फॉस्फोरिकम नाम से भी जाना जाता है।

मेष राशि, सायन सूर्य 21 मार्च से 19 अप्रैल तक का समय, फाल्गुन मास तथा सिर का क्षेत्र प्रभावित होने पर काली फॉस उपयोगी है।

3. कैल्कैरिया फॉस  : खट्टा पसन्द। कल्ला ऐंठना। लेटने से आराम। टेढ़ी, टूटी हुई या कमजोर हड्डी । दाँतों में खोंढ़र। प्रातःकालीन तथा अण्डे की सफेद जल-सा लिकोरिया। मासिक धर्म या रज: श्राव प्रायः दो सप्ताह अर्थात् 15 दिनों में ही हो जाता है। रज:श्राव के पूर्व तीब्र कामेच्छा। हस्त मैथुन की प्रवृत्ति। समलैंगिकता। बारम्बारता मन:स्नायु विकृति (Obsesive Compulsive Neurosis). पढ़ाई से थकान। विद्यार्थियों और मुख्यतः छात्राओं का सिर दर्द। नाक का अगला छोर ठंडा। हाथ पांव में सुन्नता, रेंगने की अनुभूति एवं शीतलता। शरीर के अंगों में सूजन की अनुभूति। यात्रा पसन्द लेकिन घर लौटना या स्थान परिवर्त्तन पसन्द। मौसम परिवर्त्तन से कष्ट। सिर दर्द में सिर का ऊपर ठंढा महसूस होता है। सिर पर टोपी वरदास्त नहीं। जल शीर्षता। बच्चों के सिर के ऊपरी भाग में प्रायः कड़ापन नहीं रहता और वह स्थान देर से भरता है। तला या सूखा मांस तथा रोटी पसन्द। भोजन के बाद कष्ट होता है। नेट्रम म्यूर में भोजन नहीं करने से जल्द परेशान नहीं होता है और खाने के बाद भी दुबला होता जाता है। काली फास खाना खाने से प्रायः आराम महसूस करता है। कैल्कैरिया फास के मुख का स्वाद फीका होता है। आवाज़ के साथ दुर्गन्धित पाखाना। कण्ठ का जलन। थूक निगलना कठिन। अफरा। दूध की बनी वस्तु ठीक, लेकिन दूध नहीं पचे मुख्यतः रात्रि में। पेट के बल लेटना और आराम पसन्द। घर और घर से बाहर गये परिजनों की विशेष चिन्ता। वृद्धावस्था के कब्ज एवं लगातार उपयोग करने की स्थिति में कैल्कैरिया फॉस 12x का सेवन उपयुक्त। बुखार या किसी रोग के बाद की कमजोरी में Calcaria Phos 3x देना चाहिए। नेट्रम फॉस के साथ कैल्कैरिया फॉस नहीं लिया जाता है। जिन दवाओं के साथ कैल्कैरिया फॉस का सुसम्बन्ध है, उनके साथ मध्यवर्ती दवा के रूप में प्रयोग करना उपयुक्त है। कैल्कैरिया फॉस मैग फॉस का अनुपूरक है।

कैल्केरिया फॉस 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

कैल्कैरिया फॉस की तुलना बहुमूत्र में काली फॉस एवं नेट्रम फॉस से करनी चाहिए। 

अर्श या बबासीर में फेरम फॉस से करनी चाहिए। 

भगन्दर या फिश्चुला में शल्यक्रिया के बाद कैल्कैरिया फॉस से तथा हड्डी के रोग में भी कैल्कैरिया फ्लोर एवं साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

भगन्दर के साथ फुफ्फुस उपसर्ग पर्याय क्रम में रहने पर फेरम फॉस एवं साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

काली खाँसी में कैल्कैरिया फ्लोर से तुलना करनी चाहिए। 

कृमि में नेट्रम फॉस से तुलना करनी चाहिए। 

लूपस में केली म्यूर से तुलना करनी चाहिए। 

रक्त हीनता, घुटने के दर्द (विशेष कर गृहिणी के लिए) तथा छात्र-छात्राओं के सिर दर्द में नेट्रम म्यूर से तुलना करनी चाहिए। 

दाँत के क्षरण में मैग फॉस एवं साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

दाँत के घाव में फ्लोरिक एसिड से तुलना करनी चाहिए। 

क्षय रोग में साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

शिशु की दुर्बलता तथा सिर पर तैलीय पसीना आने पर साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

मिर्गी रोग में फेरम फॉस, केली म्यूर, केली फॉस एवं साईलीसिया से तुलना करनी चाहिए। 

कैल्कैरिया फॉस एण्टि-सोरिक, एण्टि-साइकोटिक एवं एण्टि-ट्युबरक्युलर औषधि है।

कैल्कैरिया फॉस (Calcaria Phos) का सामान्य नाम फॉस्फेट ऑफ लाईम है। इसे कैल्कैरिया फॉस्फोरिका एवं कैल्शियम फॉस्फेट भी कहा जाता है।

मकर राशि, मार्ग शीर्ष या अगहन माह, 22 दिसम्बर से 20 जनवरी के मध्य का समय तथा हड्डी एवं घुटने के भाग कैल्कैरिया फॉस के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित biochemic दवा : Kali mure. Silicia . 

4. मैगनीशिया फॉस  : मीठा, गर्मी एवं सेंकना पसन्द। जबड़ा अकड़ना। दायें कंधे तथा बायीं आँख का दर्द।
एक वस्तु का कई विम्ब दीखना। प्रसव के बाद रोटी हरा दीखना। स्वतः बुदबुदाना। नशा सेवन करना। आँखों में खुजलाहट तथा आँसू आना।

रीढ़ की हड्डी में गर्मी का अनुभव। शरीर का काँपना या लेखकों का हाथ काँपना। मेन्स या रज:श्राव के पूर्व नाभि के चारों ओर घूमता हुआ तीब्र दर्द जो रज:श्राव होने पर धीरे-धीरे घटता है।

मैग फॉस में थोड़े दबाव या स्पर्श से वेदना या कष्ट बढ़ता है, लेकिन अधिक दबाव से घटता है, लेकिन कैल्कैरिया फॉस में हर स्थिति में दबाव से कष्ट बढ़ता है।

मैग फॉस तथा कैल्कैरिया फॉस की क्रिया बहुत समानता रहने के कारण शरीर में मैग फॉस का अभाव होने पर प्रकृति कैल्कैरिया फॉस से कुछ अंश लेकर मैग फॉस के अभाव की पूर्ति करती है, इसीलिए मैग फॉस के प्रयोग से सभी लक्षण दूर होते हैं।

मैग फॉस की कमी से पाकस्थली की पेशियाँ सिकुड़ जाती है जिसे रोकने के लिए प्रकृति पेट में गैस बना देती है जिससे पाकस्थली में तनाव के कारण पेट में शू्ल का दर्द हो जाता है, जो मैग फॉस के प्रयोग से दूर हो जाता है।
मैग फॉस 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 
दायें कंधे के दर्द या हृदय शूल में मैग फॉस 3x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

मैग फॉस का फेरम फॉस के साथ विपरीत सम्बन्ध है, क्योंकि फेरम फॉस को ठण्ड लेकिन मैग फॉस को गर्मी पसन्द है। फेरम फॉस को परमाणु क्रिया की गड़बड़ी से सभी तन्तु संकुचित होते हैं लेकिन मैग फॉस के परमाणु क्रिया की गड़बड़ी से सब अणु संकुचित होते हैं। अतः अंगों में खिंचाव, अकड़न तथा स्नायविक कारणों से उत्पन्न रोगों में मैग फॉस से लाभ मिलता है।

पाकस्थली के वाम भाग में गैस के साथ हृदय रोग में मैग फॉस बहुत लाभदायक है। उदर वेदना में रोगी टहलने के लिए बाध्य हो जाता है, जिससे आराम मिलता है।
गर्दन एवं पीठ के रोगों में 3x से लाभ नहीं होने पर उच्च शक्ति का प्रयोग होता है।

अत्यधिक खुजली में मैग फॉस के मरहम से लाभ नहीं होने पर कैल्कैरिया फॉस के मरहम का पर्याय क्रम में उपयोग करना चाहिए।
कैल्कैरिया फॉस मैग फॉस की पूरक (शेष कार्य को पूरा करने वाली) औषधि है।

मैग फॉस की तुलना शूल दर्द में कैल्कैरिया फॉस के साथ; मिर्गी में कैल्कैरिया फॉस, कैली म्यूर तथा साइलीशिया के साथ; सिर दर्द में खास कर सिर के पिछले भाग से आँख तक दर्द फैलने पर साइलीशिया के साथ, जबकि गर्म प्रयोग से कष्ट घटता है; और इसी तरह उदरामय, होठ में छाले तथा होठ फटने पर अन्य औषधियों का मैग फॉस से तुलना करना चाहिए।

प्रदाह जनित शूल वेदना में फेरम फॉस के साथ, पित्त शू्ल में नेट्रम सल्फ के साथ, अम्ल शू्ल में नेट्रम फॉस के साथ तथा मूत्राशय शू्ल में कैल्कैरिया फॉस के साथ मैग फॉस का पर्याय क्रम में प्रयोग किया जाता है।

स्नायविक लक्षणों में मैग फॉस एवं कैली फॉस दोनों ही प्रभावकारी है। मैग फॉस में अकड़न के लक्षण गर्मी से घटते हैं, लेकिन कैली फॉस उससे विपरीत लक्षणों में लाभप्रद है।

मैग फॉस एण्टि-साइकोसिक है। 

5. नेट्रम फॉस : झागदार पेशाब, पाखाना एवं रक्त श्राव या अन्य श्राव। पढ़ते समय ऊँघना। नींद में खर्राटा। शीत पित्त या जुल पित्ती समूचे शरीर में। खट्टा डकार। किनारों में दाँतों के दाग युक्त पीली क्रीम जैसी जिह्वा। जुलपित्ती या रक्तपित्त में, ब्लड शुगर या मधुमेह में काली फॉस के साथ लक्षणानुसार अदल बदल कर लें। स्त्री पुरुषों की नपुंसकता,  स्वप्नदोष, पानी-सा वीर्यश्राव, मृतक या साँप का सपना, खर खर ध्वनि से किसी व्यक्ति की उपस्थिति की आशंका या भय।

नेट्रम फॉस 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

नेट्रम फॉस रक्त-शर्करा (Blood sugar) नामक मधुमेह या बहुमूत्र की मुख्य औषधि है।

पीलिया में नेट्रम फॉस 1x अधिक लाभदायक होता है।

कृमि रोग में नेट्रम फॉस 6x का तरल पिचकारी द्वारा गुदा में डाला जाता है।

शिशुओं के उदरामय या दस्त में नेट्रम फॉस के साथ कैल्कैरिया फॉस की तुलना अम्ल एवं दुर्गन्ध के आधार पर होती है।

शुक्र क्षय के बाद पीठ एवं घुटने दोनों की कमजोरी में नेट्रम म्यूर के साथ नेट्रम फॉस की तुलना करनी चाहिए।

पानी पीने के बाद खाँसी में नेट्रम फॉस के साथ साइलीशिया की तुलना करनी चाहिए।

नैट्रम फॉस एण्टिसाइकोटिक औषधि है।

नेट्रम फॉस (Nat Phos) का पूरा नाम नेट्रम फॉस्फोरिकम तथा सामान्य नाम फॉस्फेट ऑफ सोडा है। इसके अन्य नाम सोडियम फॉस्फेट है।

भाद्रपद मास, तुला राशि, 22 सितम्बर से 21 अक्टूबर के मध्य का समय तथा मूत्र संस्थान एवं प्रजनन यन्त्र नेट्रम फॉस के क्षेत्र में आते हैं।

6. नेट्रम म्यूर  : नमक, मिर्च एवं चवल पसन्द। रोटी नापसन्द। दूसरे का कष्ट खुद भोगने की इच्छा।  झूठ बोलना या चोरी करने की इच्छा या चोरी करने जैसा अपराध बोध। स्वप्न में चोरों का सपना और जगने पर उसे ढ़ूंढ़ना। ऊँघना लेकिन नींद से जगने पर जल्द नींद नहीं आना। धूप चढ़ाने पर मुख्यतः प्रातः 9 बजे से अपराह्न 3 बजे तक कष्ट वृद्धि। पानी से भरे फफोले। लोगों के सामने पेशाब करना संभव नहीं।पेशाब करने के बाद कमर दर्द होना (लाईकोपोडियम में पेशाब करने के बाद कमर दर्द घट जाता है)। सिर में रूसी एवं पीछे का सरदर्द। सान्त्वना से कष्ट। खिड़की या छत से कूद कर आत्महत्या की इच्छा। फूट-फूट कर रोना। पेशाब में जलन एवं दर्द। जीभ के बीच में केश का अनुभव एवं बुलबुले। लार टपकना या बहना। कमर से ऊपर दुबलापन खूब खाने के बाद भी। भूखे रहना पसन्द। जोड़ों पर गोलाकार दाद दिनाय। जननांगों का बाल पहले पकना और झड़ना। योनि का रंग भूरा या हल्का सफेद-सा। योनि सूखी हुई। खाँसने-छींकने से पेशाब होना। ( सिर दर्द एवं बुखार के समय इस दवा का प्रयोग वर्जित है। )

नेट्रम म्यूर 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

कीट दंश की प्रथमावस्था में फेरम फॉस और कैली फॉस के प्रयोग से जलन आदि दूर हो जाने के बाद नेट्रम म्यूर के प्रयोग से सभी उपसर्ग दूर हो जाते हैं।


बिच्छू के काटने पर नेट्रम म्यूर के 1:100 भाग के घोल की एक बूँद आँख में डालने से लाभ होता है।

युवतियों के मासिक श्राव के समय सिर दर्द होने पर नेट्रम म्यूर के साथ पर्याय क्रम में कैल्कैरिया फॉस एवं फेरम फॉस का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है।

युवतियों के ऋतु कालीन सिर दर्द में कैल्कैरिया फॉस से नेट्रम म्यूर की विशेष समानता है।

ऋतु काल में अत्यधिक रक्तस्राव होते रहने पर नेट्रम म्यूर की तुलना केली सल्फ के साथ करनी चाहिए।

इयुस्टेशियन नली एवं कर्ण पटल की नली में पीब होने की स्थिति में नेट्रम म्यूर की तुलना केली म्यूर तथा केली सल्फ के साथ की जाती है।

चित्तोन्मत्तता (हाइपोकाण्ड्रिया) के साथ अजीर्णता के लक्षण में नेट्रम म्यूर की तुलना नेट्रम सल्फ के साथ आवश्यक है, लेकिन नेट्रम म्यूर में कब्ज तथा नेट्रम सल्फ में उदरामय पाया जाता है।

जीभ के बीच में केश होने का अनुभव नेट्रम म्यूर में होता है, परन्तु अगले भाग में साइलीशिया में होता है।

बड़बड़ाहट के साथ प्रलाप की स्थिति में केली फॉस एवं नेट्रम म्यूर दोनों का प्रयोग पर्याय क्रम में होता है।

मुँह में पानी आने पर नेट्रम म्यूर के साथ नेट्रम फॉस एवं नेट्रम सल्फ की तुलना करनी चाहिए, क्योंकि नेट्रम म्यूर में स्वच्छ तथा स्वादहीन पानी, नेट्रम फॉस में अम्लीय, जलन कारक एवं दुर्गन्धित पानी तथा नेट्रम सल्फ में तिक्त (तीता), दुर्गन्धित एवं पर्याप्त मात्रा में हर श्लेष्मा युक्त पानी आता है। 

ऋतु श्राव के समय युवतियों के सिर दर्द में नेट्रम म्यूर की तुलना कैल्कैरिया फॉस और फेरम फॉस के साथ की जाती है।

नेट्रम म्यूर एण्टिसोरिक, एणसिफलेटिक तथा एण्टसायोकेटिक औषधि है।

नेट्रम म्यूर (Nat Mure) साधारण नमक है। इसे सोडियम क्लोराइड या नेट्रम म्यूरेटिकम कहते हैं।

पौष या पूस माह, कुम्भ राशि, 21 जनवरी से 19 फरवरी तक की अवधि तथा टखने तक पिण्डलियाँ एवं चेतना तन्तु नेट्रम म्यूर के क्षेत्र में आते हैं।

7. नेट्रम सल्फ : मछली या पानी में उत्पन्न किसी भी चीज का भोजन करने से कष्ट वृद्धि। किसी भी करवट मुख्यतः बायीं ओर लेटने से कष्ट। सिर के पीछे या कहीं भी नया या पुराना चोट के कारण सिरदर्द या blood cancer का प्रभाव। आत्महत्या की प्रवृत्ति। मुख का स्वाद तीता। रक्त कैंसर में 3x, पुराने चोट या होमियोपैथिक प्रयोग में 200 शक्ति उचित है। इस दवा को रक्तस्राव की स्थिति में लेने से रोगी की मृत्यु हो सकती है। अतः रक्तस्राव की स्थिति में नहीं लें।

नेट्रम सल्फ 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

चैत्र मास या वृष राशि के सूर्य में (20 अप्रैल से19 मई तक) कण्ठ, गर्दन एवं मष्तिष्क रोग में नेट्रम सल्फ।

नेट्रम सल्फ चेचक हैजा एवं मलेरिया आदि बुखार की प्रतिषेधक औषधि है तथा संक्रमण फैलाने की जानकारी के बाद नित्य प्रातः इसकी एक खुराक से भी रोग सहज साध्य हो जाता है तथा रोगी की रक्षा होती है। हैजा में नैट्रम सल्फ 3x प्रातःकाल एक बार लेना हितकर है, इसे दो बार भी ले सकते हैं।

चर्मरोग में नेट्रम सल्फ के बाद नैट्रम म्यूर का प्रयोग उपयोगी होता है।

दमा में साइलीशिया के साथ नेट्रम सल्फ की तुलना की जाती है। 

नेट्रम म्यूर एवं सल्फर के अनेक लक्षण नेट्रम सल्फ में भी पाये जाते हैं। 

नेट्रम सल्फ एण्टि-सोरिक, एणटि-सिफलेटिक तथा एण्टि-सायोकेटिक औषधि है।

नेट्रम सल्फ (Nat Sulph) का पूरा नाम नेट्रम सल्फ्यूरिकम तथा सामान्य नाम सल्फेट ऑफ सोडा या ग्लूबर्स साल्ट है। इसे सोडियम सल्फेट भी कहते हैं।

चैत्र मास, वृष राशि, 20 अप्रैल 21 मई के बीच की अवधि, गर्दन, कण्ठ तथा मष्तिष्क नेट्रम सल्फ के क्षेत्र में आता है।

8. काली सल्फ : सायं काल से अर्द्ध रात्रि तक तथा मुख्यतः कमरे में एवं गर्मी में खुजली या अन्य कष्ट वृद्धि।

काली सल्फ 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

मोतियाबिंद एवं आँख की पुतली की अस्वच्छता में नेट्रम म्यूर के साथ काली सल्फ का सेवन किया जाता है। 

सर्दी की तृतीयावस्था में कैली सल्फ का प्रयोग किया जाता है और प्रथमावस्था में फेरम फॉस के साथ प्रयोग किया जाता है।

नवीन ज्वर में 6x तथा पुराने ज्वर में 12x का प्रयोग करना चाहिए।

कैली सल्फ 6x तथा 12x कैली म्यूर के अवशिष्ट (छोड़े गये) कार्य को पूरा करता है। 

रोग की पुरानी अवस्था में कैली सल्फ की उच्च शक्तियों का व्यवहार किया जाता है।

सूखे चर्मरोग में कैली सल्फ 2x के मलहम का प्रयोग किया जाता है।

ज्वर एवं प्रादाहिक रोगों में फेरम फॉस के साथ कैली सल्फ को पर्याय क्रम में देने से इस औषध की अच्छी क्रिया होती है।

शू्ल वेदना में मैग फॉस के बाद कैली सल्फ की अच्छी क्रिया होती है।

खुजली एवं त्वचा का रंग लाल होने पर साइलीशिया के साथ कैली सल्फ की तुलना करनी चाहिए।

सर्दी तथा श्वसन यन्त्रों के रोग में कैली म्यूर तथा नेट्रम म्यूर के साथ कैली सल्फ की तुलना करनी चाहिए।

बधिरता, वक्षःस्थल में भारी घड़घड़ाहट तथा पाकस्थली की वेदना या कष्ट में नेट्रम म्यूर के साथ कैली सल्फ की तुलना आवश्यक है। 

केली म्यूर के बाद भी प्रायः कैली सल्फ का ही प्रयोग किया जाता है।

कैली सल्फ एण्टिसोरिक तथा एण्टिट्युबरक्युलर औषधि है।

श्रावण या सावन माह, कन्या राशि, 22 अगस्त से 21 सितम्बर तक की अवधि तथा पेट कैली सल्फ के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित बायोकेमिक दवा :   Natrum mure., Silicia.

9. काली म्यूर  : डॉक्टरों का कष्ट। जिह्वा पर सफेद, भूरा या गन्दा लेप। कोलतार सा काला एवं थोड़ा मेन्स तथा दूध सा लिकोरिया ( प्रदरश्राव )। स्थान परिवर्तन करनेवाला ट्यूमर। जिह्वा का ठण्डापन मुख्यतः सायंकाल में। घावों या मुँहासे से सफेद पेस्ट या तार-सा पदार्थ निकलता है। 

काली म्यूर 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

फेरम फॉस के प्रादाहिक रोगों की प्रारंभिक अवस्था में तथा काली म्यूर द्वितीयावस्था में लाभ प्रद होती है।

नेट्रम म्यूर के गुणों से भी काली म्यूर की बहुत समानता है।

कैली म्यूर का अन्य औषधियों के साथ पर्याय क्रम में सेवन उन औषधियों की क्रिया को बढ़ाता है तथा यह सभी धातु का संशोधन करने वाला अर्थात् त्रिदोषनाशक (एण्टिसोरिक, एणसिफलेटिक एवं एण्टसायोकोटिक) होता है।

कैली म्यूर के समान ही कैल्कैरिया फॉस भी गहरी क्रिया करनेवाली और इसके साथ तुलना करने योग्य है।

कैली म्यूर से रोग समाप्त नहीं होने पर कैल्कैरिया सल्फ की आवश्यकता होती है ।

नेट्रम म्यूर एवं साइलीशिया के साथ केली म्यूर का सम सम्बन्ध है। गनोरिया में नेट्रम म्यूर से तुलना होती है।

कैली म्यूर का फेरम फॉस के बाद तथा कैल्कैरिया सल्फ के पहले प्रयोग होता है।

सिफलिस में कैली म्यूर के बाद कैली सल्फ का उपयोग किया जाता है। 

कैली म्यूर ( Kali Mere ) का पूरा नाम कैली म्यूरेटिकम तथा सामान्य नाम क्लोराइड ऑफ पोटाश है। इसे पोटैशियम क्लोराइड भी कहा जाता है।

बैशाख माह, मिथुन राशि, 20 मई से 21 जून के मध्य की अवधि तथा श्वसन यन्त्र एवं लसीका तन्त्र कैली म्यूर के क्षेत्र में आते हैं।


10. कैल्कैरिया सल्फ : तलवे की खुजली एवं घाव। रक्तमिश्रित पूयस्त्राव। मुँह का स्वाद मीठा या बेमजा।

कैल्केरिया सल्फ 6x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 
डॉ० शुश्लर ने कैल्कैरिया सल्फ के स्थान पर नेट्रम फॉस तथा साइलीशिया के प्रयोग की सलाह दी है।

कैल्कैरिया सल्फ की काली खाँसी, आमाशय, चर्मरोग और गल-गण्ड की सूजन में केली म्यूर से तुलना की जाती है। 

प्रदाह की तृतीयावस्था में केली सल्फ एवं साइलीशिया से तुलना कैल्केरिया सल्फ से करना चाहिए। 

आरक्त ज्वर में नेट्रम सल्फ से तुलना करनी चाहिए। 

स्नायु शू्ल में मैग फॉस एवं केली फॉस से तुलना करनी चाहिए। 

कार्निया के घाव या पीब मय ग्रन्थि, मसूड़ों के फोड़े, स्तनों के प्रदाह तथा टांसिल प्रदाह में साइलीशिया से तुलना करनी चाहिए। 

प्रदाह में कैली म्यूर के बाद कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग किया जाता है।

आश्विन मास, वृश्चिक राशि,  22 अक्टूबर से 21 नवम्बर तक की अवधि तथा कूल्हा कैल्कैरिया सल्फ के क्षेत्र हैं।

कैल्कैरिया सल्फ (Calc sulph) का पूरा नाम कैल्कैरिया सल्फ्यूरिकम है। इसका सामान्य नाम जिप्सम या प्लास्टर ऑफ पेरिस है। इसे कैल्शियम सल्फेट भी कहते हैं। 

11. कैल्कैरिया फ्लोर : गरीबी का भय या अत्यधिक कंजूस। कड़ा और / या नीला चमड़ा या घाव का किनारा। दाँतों का हिलना। हड्डी पर का घाव या ट्यूमर। उजला मोतियाबिंद।

कैल्केरिया फ्लोर 12x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

कैल्कैरिया फ्लोर पीब होने पर साइलीशिया के बाद प्रयोग में लाया जाता है।

रक्ताल्पता में कैल्कैरिया फॉस के साथ पर्याय क्रम में इसका उपयोग होता है।

हड्डी में पीब उत्पन्न होने पर कैल्कैरिया फॉस तथा साइलीशिया के साथ कैल्कैरिया फ्लोर की तुलना की जा सकती है।

कैल्कैरिया फ्लोर (Calc Fluor) का पूरा नाम कैल्कैरिया फ्लूरिका तथा सामान्य नाम फ्ल्युराइड ऑफ लाईम है। इसे कैल्शियम फ्ल्युराइड या कैल्कैरिया फ्ल्युरेटा भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ माह, कर्क राशि, 22 जून से 21 जुलाई तक की अवधि तथा आमाशयिक स्नायु तंत्र एवं छाती कैल्कैरिया फ्लोर के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित बायोकेमिक दवा :  Calcaria Phos., Kali Mure., Natrum Mure.,  Silicia. 

12. साइलीशिया  : ठण्डा पेयजल एवं भोजन, लेकिन गर्म ओढ़ना पसन्द (बालू अर्थात् ऊपर से गरम लेकिन भीतर ठण्डी प्रकृति)। अमावस्या और / या पूर्णिमा के आसपास के नये चाँद का या एकादशी के आसपास कष्ट वृद्धि। पैरों का पसीना दबने से कष्ट। घावों में ठण्डापन महसूस करना। मिर्गी या किसी अन्य कष्ट में रात्रि 2 बजे के बाद से कष्ट का बढ़ना। 

साईलीसिया 12x का उपयोग प्रायः किया जाता है। 

सोरायसिस में मैग फॉस के साथ पर्याय क्रम में साइलीशिया का मरहम उपयोगी होता है।

पत्थर खोदने वालों की बीमारियों में साइलीशिया अत्यंत हितकर है।

साइलीशिया का प्रयोग कैल्कैरिया फॉस एवं कैली म्यूर के बाद किया जाता है।

स्थानानुसार स्फोटक या फोड़ा में फेरम फॉस के साथ पर्याय क्रम में साइलीशिया का प्रयोग किया जाता है।

साइलीशिया के पीब में दुर्गन्ध रहती है, लेकिन नेट्रम सल्फ में वैसी नहीं रहती है।

साइलीशिया की पीब को उत्पन्न कर तथा उसे पकाकर पूरी तैयारी की स्थिति में ला देता है, लेकिन कैल्कैरिया सल्फ इसके अलावा पीब को दूर कर आरोग्य करता है। अतः दोनों औषधियों की आपस में तुलना की जा सकती है।

कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग साइलीशिया के बाद ही करना चाहिए।

अश्रु प्रवाही ग्रन्थि की नली के सम्बन्ध में साइलीशिया की तुलना नेट्रम म्यूर के साथ की जा सकती है।

टीके के दुष्परिणाम की अवस्था में साइलीशिया की तरह ही सामान्यतः कैली म्यूर का व्यवहार किया जाता है।

साइलीशिया एण्टि-सोरिक, एण्टि-सिफलेटिक तथा एण्टि-सायोकेटिक औषधि है।

साइलीशिया (Silica) को सिलिका या बालू भी कहते हैं।

कार्तिक मास, धनु राशि, 22 नवम्बर से 21 दिसम्बर तक की अवधि तथा जंघा साइलीशिया के क्षेत्र में आते हैं। 

नोट :  1. इस लेख में किसी भी बायोकेमिक औषधि के लक्षणों में से किन्हीं एक लक्षण का रोगी के लक्षणों से पूर्णतया साम्य हो जाने से उन औषधियों का उपयोग करने से रोगी मनो-शारीरिक दोनों तरह से शीघ्रातिशीघ्र लाभ प्राप्त करेंगे अथवा होमियोपैथिक सिद्धांत के अनुसार निर्दोष आरोग्य के पथ पर अग्रसर होगें और उनके द्वारा प्रसन्नता का अनुभव होना रोग नाश का सूचक होगा। निर्वाचित बायोकेमिक औषधियों को खूब गर्म जल के साथ ही सेवन करें।

2. कोई एक बायोकेमिक औषधि यदि किसी अन्य या दूसरी औषधि का विरोधी हो तो उनका एक साथ या पहली औषधि के प्रभाव को निरस्त किये बिना दूसरी दवाओं का उपयोग नहीं करें।

3. विद्वान चिकित्सकों द्वारा दिये गये निर्देश के विरुद्ध चल कर औषधि का चुनाव या उपयोग नहीं करें साथ ही औषधि की मात्रा, अनुपान एवं सहपान के सम्बन्ध में डॉक्टर शुस्लर या अन्य विद्वान् चिकित्सकों के मतों का अनुशरण करें। नीम हकीम नहीं बनें।

4. सरलता, पवित्रता, मानवता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, परोपकारिता, आत्मोन्नति, सेवा, सहयोग, सदभाव, समरसता, प्रसन्नता, अहंकार शून्यता, मध्यम मार्ग, बड़ों के प्रति आदर, बच्चों के प्रति वात्सल्य, हम उम्रों के प्रति प्रेम, ईश्वर में विश्वास एवं जियो और जीने दो के सिद्धांत को जीवन और चिन्तन में स्थान दें।

5. मेरी इस रचना में कोई छेड़छाड़ नहीं करें। अपनी आन्तरिक क्षमता को उन्नत करें और उनका सदुपयोग करें।

6. चिकित्सा एवं अन्य परामर्श हेतु कृपया अगली सूचना तक सम्पर्क नहीं करें। (कम से कम एक माह तक अस्वस्थता तथा विशेष व्यस्तता के कारण चिकित्सा एवं अन्य परामर्श हेतु समय देना संभव नहीं है।)

7. मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति से यदि कोई भूल हुई हो माँफ करने की कृपा करेंगे।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

    of the eye. Kali sulph is used in the third ternary of the winter and with ferrum phos in the first stage.

 6x should be used in new fever and 12x in old fever.

 Kali sulf completes the residual (discarded) function of 6x and 12x kali mur.

 In the chronic state of the disease, high potency of kali sulf is treated.

 The ointment of kali sulf 2x is used in dried dermatitis.

 In Fever and Territorial diseases, giving the kali Sulph in synonymous order with Ferrum Phos, this drug has good action.

 Kali sulph is followed by good action in Mag phos.

 Kali sulph should be compared with Silicia when itching and skin color is red.

 Kali sulf should be compared with kali Mur and Natrum Mur in cold and respiratory diseases. Comparison of kali Sulph with Natrum Mur is necessary in case of constipation, heavy thunder in the chest, and pain or soreness of the stomach.

 Many symptoms of Pulsatilla have a similarity to kali Sulph, so it is a medicine near it.  There is no difference in the secretion and respiration of pulsatilla and cali sulph, but there is a great difference in the mental state of both.

 Pulsatilla's mood is calm, cold, and severe, but kali sulph is irritable.

 Kali sulphate activity is deeper and more permanent than pulsatilla.

 There is a surprising benefit from the use of kali sulph if there is no benefit from Pulsatilla.

 Cali sulph is often used even after kelly muur.

 Kali sulf is an antipsoric and antitubercular medicine.

 The month of Shravan or Sawan, Virgo, the period from August 22 to September 21, and stomach fall in the area of ​​Cali Sulph.

 9. Kali Mure 6x or 12x: The pain of doctors.  White, brown or messy coating on the tongue.  Bitumen like black and little mens and milk like licorice (leprosy).  Relocatable tumors.  Glossitis is mainly in the evening.  A white paste or wirey substance coming out of wounds or acne.

 Ferrum phos provides benefits in early stage of diseases and in kali mur twilight.

 Kali Mur also has a lot in common with the qualities of Natrum Mur.

 Consumption of kali mur with other drugs increases the action of those drugs and is an all metal modifier ie antidysoric, antipsychotic and antipsychotic.

 Calcarea phos, like kali Mure, is also deep actionable and comparable to it.

 Calcarea sulph is needed when the disease is not eliminated by kali mur.

 Kali Mur has connections with Natrum Muir and silicia.  In Ganoria there is a comparison with Natrum Mur.

 Kali Mure is used after Ferrum phos and before Calcarea Sulph.

 In syphilis, kali mur is followed by kali sulph and silicia.

 In the second stage of Pradahadi diseases, Bryonians (deep action from kali Mur), merc, pulsatilla, sulfur etc. are used in the same way as Cali Mur.

 The full name of Kali Mur is kali Muraticum and the common name is Chloride of Potash.  It is also called potassium chloride.

 The month of Baishakh, Gemini, the period between May 20 to June 21 and the respiratory tract and lymphatic system fall in the area of ​​Cali Mu.

 10. Calcarea Sulf 6x: Sole itching and wounds.  Bloodshed sacrilege.  The taste of the mouth is sweet or tasteless.

 Dr. Shushler has suggested the use of Natrum Phos and silicia in place of Calcarea Sulph.

 Comparison of Calcarea sulph with kali mur in black cough, gastric, dermatitis, and inflammation of gonads;

 Comparison of Kali sulph and silicia in the perennial stage of inflammation;

 Comparison of Natrum sulph in blood fevers;

 Comparison of Mag Phos and Kali Phos in Muscle Shoe;

 Compare with Silicia in corneal wounds or exudate glands, gingival abscesses, mastitis and tonsillitis.

 Calcaria sulph has a deeper, longer lasting and effective effect than hepar sulphur.

 Calcarea sulph is compared to the calendula in the exudate.

 Calcarea sulph is used after kali mur in inflammation.

 Calcarea sulph is used after or after sulphur in Pradaadi.

 If there is no benefit from well-prescribed medicines, Calcarea sulph is used like sulphur and Psorinum.

 Ashwin month, Scorpio zodiac, period from 22 October to 21 November and the regions of hip calcaria sulfa.

 Calcaria sulph is the full name of Calcarea sulfuricum.  Its common name is Gypsum or Plaster of Paris.  It is also called calcium sulfate.

 11. Calcarea Fluor 12 x: Fear of poverty or excessive stinging.  Hard and / or blue leather or wound edge.  Teeth move  Bone lesion or tumor.  Bright cataract.

 Calcarea fluor benefits from Rhus Tox.

 Calcaria is used after floor exudate followed by Silicia and in the evening after Calcaria and Bryonia.

 In anemia, it is used in a synonym with calcaria phos.

 Calcaria fluor can be compared with calcaria phos and Silicia when bone exudate is produced.

 Calcaria carb also has many mental symptoms of calcaria fluor.

 Calcaria iod can be compared with calcaria iod and cali iod in the stiffness of fibroid.

 Calcaria fluor can be compared with barita iod and calcarea iod in hard edema and goat.

 Deodorant secretion of the respiratory tract can be compared with calcarea fluor with aram and cali bicromechum.

 The full name of Calc Fluor is Calcaria fluorica and the common name is Fluoride of Lime.  It is also called Calcium Fluoride or Calcarea Flurata.

 The first month, Cancer zodiac, the period from 22 June to 21 July and the stomach nervous system and chest fall in the area of ​​the calcaria fluor.

 12. Silicia 12x: Cold drinking water and food, but like hot muffles (sand means warm from above but cold nature inside).  New moon around Amavasya and / or Poornima or increase in suffering around Ekadashi.  Trouble with feet sweat.  Feeling of cold in wounds.  Increase in epilepsy or any other pain after 2 pm.

 Psoriasis ointment is useful in psoriasis in synonyms with Mag phos.

 Silicia is very beneficial in stone carvers' diseases.

 Silicia is used after Calcarea phos and kali mur.

 Silicia is used in synonymous order with ferrum phos in placenta or abscess.

 The exudate of Silicia contains foul smell but does not remain the same in natrum sulph.

 By producing and cooking the exudate of Silicia, it brings it to the state of complete preparation, but Calcaria sulph also heals by removing the exudate and hence the two drugs can be compared among themselves.

 Calcarea sulph should be used only after psilia.

 In relation to the lacrimal flow gland, Silicia can be compared with Natrum Mur.

 Pulsatilla requires silicia in its chronic state.

 Thuja, pulsatilla, senicula and fluoric acid are all complementary medicines of Silicia.

 In bone disease, Silicia can be compared to Merc.  But the use of Silicia after Merc is dangerous.

 Silicia can be compared with spigelia, sangunaria and gelcium in headache.

 Graphitis often proves beneficial when Silicea is sterilized in the growth of chilli and whitening corner.

 In the case of vaccine side effects, like Silicia, Silicia, Thuja, kali mur, sulphur and melandrinum are commonly treated.

 Symptoms of Pulsitilla and picric acid should also be considered.

 After Pulsatilla and Calcaria, Silicia is used successfully.

 The Merc of Silicia is anti-dote.

 Silicia is an anti-soric, anti-syphilic and anti-psychotic drug.

 Silica is also known as silica or sand.

 Kartik month, Sagittarius, period from November 22 to December 21 and thighs fall in the region of Silicia.

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Note: 1. In this article, if any one of the symptoms of any biochemic drug is completely equated with the symptoms of the patient, then by using those drugs, the patient will get both psycho-physiological benefits as soon as possible or according to the homeopathic principle.  The innocent will move on the path of health and the feeling of happiness through them will be an indicator of disease destruction.  Take elected biochemical medicines with plenty of hot water only.

2. If any one biochemic medicine is antagonistic to any other or other medicine, do not use other medicines simultaneously or without canceling the effect of the first drug.

3. Do not choose or use the medicine in accordance with the instructions given by the learned doctors, as well as follow the opinion of the doctor Shusler or other learned doctors regarding the quantity, intake and coagulation of the medicine.  Do not become quacks.

4. Simplicity, purity, humanity, creativity, positivity, altruism, self-promotion, service, cooperation, harmony, harmony, happiness, ego emptiness, middle way, respect for elders, respect for children, love for ages, God  Place the principle of faith and live and let live in life and thinking.

5. Do not tamper with this creation of mine.  Improve your internal capacity and make good use of them.

6. Please do not contact for further information for medical and other consultation.  (Due to illness and special busyness for at least one month, it is not possible to give time for medical and other counseling.)

7. Will be pleased to apologize to a normal person like me if there is any mistake.

Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj, Pachamba, Begusarai.

 
4. मैगनीशिया फॉस 6x : मीठा, गर्मी एवं सेंकना पसन्द। जबड़ा अकड़ना। दायें कंधे तथा बायीं आँख का दर्द।
एक वस्तु का कई विम्ब दीखना। प्रसव के बाद रोटी हरा दीखना। स्वतः बुदबुदाना। नशा सेवन करना। आँखों में खुजलाहट तथा आँसू आना।

रीढ़ की हड्डी में गर्मी का अनुभव। शरीर का काँपना या लेखकों का हाथ काँपना। मेन्स या रज:श्राव के पूर्व नाभि के चारों ओर घूमता हुआ तीब्र दर्द जो रज:श्राव होने पर धीरे-धीरे घटता है।

मैग फॉस में थोड़े दबाव या स्पर्श से वेदना या कष्ट बढ़ता है, लेकिन अधिक दबाव से घटता है, लेकिन कैल्कैरिया फॉस में हर स्थिति में दबाव से कष्ट बढ़ता है।

मैग फॉस तथा कैल्कैरिया फॉस की क्रिया बहुत समानता रहने के कारण शरीर में मैग फॉस का अभाव होने पर प्रकृति कैल्कैरिया फॉस से कुछ अंश लेकर मैग फॉस के अभाव की पूर्ति करती है, इसीलिए मैग फॉस के प्रयोग से सभी लक्षण दूर होते हैं।

मैग फॉस की कमी से पाकस्थली की पेशियाँ सिकुड़ जाती है जिसे रोकने के लिए प्रकृति पेट में गैस बना देती है जिससे पाकस्थली में तनाव के कारण पेट में शू्ल का दर्द हो जाता है, जो मैग फॉस के प्रयोग से दूर हो जाता है।

मैग फॉस का फेरम फॉस के साथ विपरीत सम्बन्ध है, क्योंकि फेरम फॉस को ठण्ड लेकिन मैग फॉस को गर्मी पसन्द है। फेरम फॉस को परमाणु क्रिया की गड़बड़ी से सभी तन्तु संकुचित होते हैं लेकिन मैग फॉस के परमाणु क्रिया की गड़बड़ी से सब अणु संकुचित होते हैं। अतः अंगों में खिंचाव, अकड़न तथा स्नायविक कारणों से उत्पन्न रोगों में मैग फॉस से लाभ मिलता है।

पाकस्थली के वाम भाग में गैस के साथ हृदय रोग में मैग फॉस बहुत लाभदायक है। उदर वेदना में रोगी टहलने के लिए बाध्य हो जाता है, जिससे आराम मिलता है।
गर्दन एवं पीठ के रोगों में 3x से लाभ नहीं होने पर उच्च शक्ति का प्रयोग होता है।

अत्यधिक खुजली में मैग फॉस के मरहम से लाभ नहीं होने पर कैल्कैरिया फॉस के मरहम का पर्याय क्रम में उपयोग करना चाहिए।
कैल्कैरिया फॉस मैग फॉस की पूरक (शेष कार्य को पूरा करने वाली) औषधि है।

मैग फॉस की तुलना शूल दर्द में कैल्कैरिया फॉस के साथ; मिर्गी में कैल्कैरिया फॉस, कैली म्यूर तथा साइलीशिया के साथ; सिर दर्द में खास कर सिर के पिछले भाग से आँख तक दर्द फैलने पर साइलीशिया के साथ, जबकि गर्म प्रयोग से कष्ट घटता है; और इसी तरह उदरामय, होठ में छाले तथा होठ फटने पर अन्य औषधियों का मैग फॉस से तुलना करना चाहिए।

प्रदाह जनित शूल वेदना में फेरम फॉस के साथ, पित्त शू्ल में नेट्रम सल्फ के साथ, अम्ल शू्ल में नेट्रम फॉस के साथ तथा मूत्राशय शू्ल में कैल्कैरिया फॉस के साथ मैग फॉस का पर्याय क्रम में प्रयोग किया जाता है।

स्नायविक लक्षणों में मैग फॉस एवं कैली फॉस दोनों ही प्रभावकारी है। मैग फॉस में अकड़न के लक्षण गर्मी से घटते हैं, लेकिन कैली फॉस उससे विपरीत लक्षणों में लाभप्रद है।

शूल दर्द में कोलोसिन्थ से तथा वायु संचय जनित शू्ल दर्द में डायस्कोरिया से मैग फॉस से प्रतियोगिता है।

ऋतु शू्ल में तथा प्रसव के दर्द में मैग फॉस पल्सेटिला, सिमिसिफ्यूगा तथा बाईबर्नम के समान प्रभावशाली है, परन्तु मैग फॉस का कष्ट गर्म प्रयोग से घटता है, जबकि अन्य औषधियों में ठण्ड से।

स्नायविक दर्द में मैग फॉस आर्सेनिक का प्रतियोगी है और दोनों के रोग लक्षण गर्मी से घटता है।

श्लैष्मिक बाधक दर्द में मैग फॉस की तुलना बोरेक्स से करनी चाहिए।

आक्षेप में मैग फॉस का प्रयोग प्रायः बेलाडोना के बाद ही किया जाता है। मैग फॉस का प्रभाव बेलाडोना जैसा ही होता है।

मैग फॉस का विषघ्न (Anti dote) जेल्सीमियम तथा लैकेसिस होता है।
मैग फॉस एण्टि-साइकोसिक है।

मैग फॉस (Mag Phos) का सामान्य नाम फॉस्फेट ऑफ मैग्नीशिया तथा अन्य नाम मैग्नीशियम फॉस्फोरिकम है।

आषाढ़ मास, सिंह राशि, 22 जुलाई से 21 अगस्त तक के मध्य तथा हृदय एवं चेतना संस्थान मैग्नीशिया फॉस के क्षेत्र में आते हैं।

सामान्य रूप से या तीव्रता से स्थान परिवर्तनशील दर्द में मैग फॉस की तुलना कैली सल्फ से करनी चाहिए, जबकि कैली सल्फ के रोगी को ठण्ड से आराम होता है और यह अन्तर ध्यान में रखना आवश्यक है।

मैग फॉस दुबले-पतले, जीर्ण-शीर्ण, अत्यंत स्नायविक तथा हल्के रंग वाले मनुष्यों के लिए विशेष उपयोगी औषधि है।
सब प्रकार के ज्वरों में अकड़न रोकने के लिए मैग फॉस सर्वोत्तम औषधि है।

हृदय शूल में मैगनीशिया फॉस 3x का उपयोग आवश्यकतानुसार काली फॉस 6x और / या फेरम फॉस 6x के साथ या अदल बदल कर करें। रात्रि में मुख्यतः 7 बजे भोजन के बाद जाड़ा लगना।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Borex., Acetic Acid., Vervinum op., Lobeliya., Symphytom., Stramonium., Arsenic alb., Zincum Met., Colocynth., Dioscoriya., Gelsemium., Belladona. 

5. नेट्रम फॉस 6x : झागदार पेशाब, पाखाना एवं रक्त श्राव या अन्य श्राव। पढ़ते समय ऊँघना। नींद में खर्राटा। शीत पित्त या जुल पित्ती समूचे शरीर में। खट्टा डकार। किनारों में दाँतों के दाग युक्त पीली क्रीम जैसी जिह्वा। जुलपित्ती या रक्तपित्त में, ब्लड शुगर या मधुमेह में काली फॉस के साथ लक्षणानुसार अदल बदल कर लें। स्त्री पुरुषों की नपुंसकता, स्वप्नदोष, पानी-सा वीर्यश्राव, मृतक या साँप का सपना, खर खर ध्वनि से किसी व्यक्ति की उपस्थिति की आशंका या भय।

नेट्रम फॉस रक्त-शर्करा (Blood sugar) नामक मधुमेह या बहुमूत्र की मुख्य औषधि है।

पीलिया में नेट्रम फॉस 1x अधिक लाभदायक होता है।

कृमि रोग में नेट्रम फॉस 6x का तरल पिचकारी द्वारा गुदा में डाला जाता है।

शिशुओं के उदरामय या दस्त में नेट्रम फॉस के साथ कैल्कैरिया फॉस की तुलना अम्ल एवं दुर्गन्ध के आधार पर होती है।

शुक्र क्षय के बाद पीठ एवं घुटने दोनों की कमजोरी में नेट्रम म्यूर के साथ नेट्रम फॉस की तुलना करनी चाहिए।

पानी पीने के बाद खाँसी में नेट्रम फॉस के साथ साइलीशिया की तुलना करनी चाहिए।

शिशुओं के खट्टी गन्ध वाली टट्टी में नेट्रम फॉस की तुलना कैल्कैरिया कार्ब और रियुमेक्स से की जानी चाहिए।

सम्पूर्ण शरीर में खुजली होने पर नैट्रम फॉस की तुलना आर्टिका युरे़न्स, डोलीकास तथा सल्फर के साथ की जानी चाहिए।

अम्लता प्रधान गठिया वात रोग में कॉलचिकम, बेन्जोइन तथा लाइकोपोडियम के साथ नेट्रम फॉस की तुलना की जाती है।

सीपिया तथा एपिस मेल दोनों औषधियाँ नैट्रम फॉस के दोषघ्न (Anti-dote) हैं।

नैट्रम फॉस एण्टिसाइकोटिक औषधि है।

नेट्रम फॉस (Nat Phos) का पूरा नाम नेट्रम फॉस्फोरिकम तथा सामान्य नाम फॉस्फेट ऑफ सोडा है। इसके अन्य नाम सोडियम फॉस्फेट है।

भाद्रपद मास, तुला राशि, 22 सितम्बर से 21 अक्टूबर के मध्य का समय तथा मूत्र संस्थान एवं प्रजनन यन्त्र नेट्रम फॉस के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Nux Vomica., Colchicum., Benzoic Acid., Guicum., Lycopodium., Sulphur. Dolicus., Urtica Uren bf azaad

6. नेट्रम म्यूर 6x : नमक, मिर्च एवं चवल पसन्द। रोटी नापसन्द। दूसरे का कष्ट खुद भोगने की इच्छा। झूठ बोलना या चोरी करने की इच्छा या चोरी करने जैसा अपराध बोध। स्वप्न में चोरों का सपना और जगने पर उसे ढ़ूंढ़ना। ऊँघना लेकिन नींद से जगने पर जल्द नींद नहीं आना। धूप चढ़ाने पर मुख्यतः प्रातः 9 बजे से अपराह्न 3 बजे तक कष्ट वृद्धि। पानी से भरे फफोले। लोगों के सामने पेशाब करना संभव नहीं।पेशाब करने के बाद कमर दर्द होना (लाईकोपोडियम में पेशाब करने के बाद कमर दर्द घट जाता है)। सिर में रूसी एवं पीछे का सरदर्द। सान्त्वना से कष्ट। खिड़की या छत से कूद कर आत्महत्या की इच्छा। फूट-फूट कर रोना। पेशाब में जलन एवं दर्द। जीभ के बीच में केश का अनुभव एवं बुलबुले। लार टपकना या बहना। कमर से ऊपर दुबलापन खूब खाने के बाद भी। भूखे रहना पसन्द। जोड़ों पर गोलाकार दाद दिनाय। जननांगों का बाल पहले पकना और झड़ना। योनि का रंग भूरा या हल्का सफेद-सा। योनि सूखी हुई। खाँसने-छींकने से पेशाब होना। ( सिर दर्द एवं बुखार के समय इस दवा का प्रयोग वर्जित है। )

कीट दंश की प्रथमावस्था में फेरम फॉस और कैली फॉस के प्रयोग से जलन आदि दूर हो जाने के बाद नेट्रम म्यूर के प्रयोग से सभी उपसर्ग दूर हो जाते हैं।

कीट दंश में नेट्रम म्यूर की तुलना लीडम से की जाती है।

बिच्छू के काटने पर नेट्रम म्यूर के 1:100 भाग के घोल की एक बूँद आँख में डालने से लाभ होता है।

युवतियों के मासिक श्राव के समय सिर दर्द होने पर नेट्रम म्यूर के साथ पर्याय क्रम में कैल्कैरिया फॉस एवं फेरम फॉस का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है।

युवतियों के ऋतु कालीन सिर दर्द में कैल्कैरिया फॉस से नेट्रम म्यूर की विशेष समानता है।

ऋतु काल में अत्यधिक रक्तस्राव होते रहने पर नेट्रम म्यूर की तुलना केली सल्फ के साथ करनी चाहिए।

इयुस्टेशियन नली एवं कर्ण पटल की नली में पीब होने की स्थिति में नेट्रम म्यूर की तुलना केली म्यूर तथा केली सल्फ के साथ की जाती है।

चित्तोन्मत्तता (हाइयोकाण्ड्रिया) के साथ अजीर्णता के लक्षण में नेट्रम म्यूर की तुलना नेट्रम सल्फ के साथ आवश्यक है, लेकिन नेट्रम म्यूर में कब्ज तथा नेट्रम सल्फ में उदरामय पाया जाता है।

जीभ के बीच में केश होने का अनुभव नेट्रम म्यूर में होता है, परन्तु अगले भाग में साइलीशिया में होता है।

बड़बड़ाहट के साथ प्रलाप की स्थिति में केली फॉस एवं नेट्रम म्यूर दोनों का प्रयोग पर्याय क्रम में होता है।

मुँह में पानी आने पर नेट्रम म्यूर के साथ नेट्रम फॉस एवं नेट्रम सल्फ की तुलना करनी चाहिए, क्योंकि नेट्रम म्यूर में स्वच्छ तथा स्वादहीन पानी, नेट्रम फॉस में अम्लीय, जलन कारक एवं दुर्गन्धित पानी तथा नेट्रम सल्फ में तिक्त (तीता), दुर्गन्धित एवं पर्याप्त मात्रा में हर श्लेष्मा युक्त पानी आता है।

एपिस मेल तथा अर्जेण्टिकम् नाइट्रिकम ये दोनों नेट्रम म्यूर की पूरक औषधि है।

नेट्रम म्यूर के बाद पुराने रोग की स्थिति में सीपिया तथा सल्फर के प्रयोग की आवश्यकता होती है।

अत्यधिक नमक खाने के दुष्परिणाम में नेट्रम म्यूर के समान ही फास्फोरस की भी आवश्यकता होती है।

समुद्र स्नान के दुष्परिणाम में नेट्रम म्यूर के समान ही आर्सेनिक का भी प्रयोग किया जाता है।

श्लैष्मिक झिल्ली की शुष्कता में नेट्रम म्यूर की तुलना एलुमिना एवं ब्रायोनियाँ से की जानी चाहिए।

ऋतु श्राव के समय युवतियों के सिर दर्द में नेट्रम म्यूर की तुलना कैल्कैरिया फॉस और फेरम फॉस के साथ की जाती है।

आर्सेनिक तथा फॉस्फोरस नेट्रम म्यूर का विषघ्न (Anti-dote) है।  

नेट्रम म्यूर एण्टिसोरिक, एणसिफलेटिक तथा एण्टसायोकेटिक औषधि है।

नेट्रम म्यूर (Nat Mure) साधारण नमक है। इसे सोडियम क्लोराइड या नेट्रम म्यूरेटिकम कहते हैं।

पौष या पूस माह, कुम्भ राशि, 21 जनवरी से 19 फरवरी तक की अवधि तथा टखने तक पिण्डलियाँ एवं चेतना तन्तु नेट्रम म्यूर के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Apis Mel., Argentum Nitricum., Sepia., Sulphur., Graphitis., Bryonia alba., Alumina., Arsenic alb. 

7. नेट्रम सल्फ : मछली या पानी में उत्पन्न किसी भी चीज का भोजन करने से कष्ट वृद्धि। किसी भी करवट मुख्यतः बायीं ओर लेटने से कष्ट। सिर के पीछे या कहीं भी नया या पुराना चोट (मुख्यतः रक्तस्राव रहित जिसमें शक्तिकृत Arnica M का भी उपयोग होता है) के कारण सिरदर्द या blood cancer का प्रभाव। आत्महत्या की प्रवृत्ति। मुख का स्वाद तीता। रक्त कैंसर में 3x, पुराने चोट या होमियोपैथिक प्रयोग में 200 शक्ति उचित है। इस दवा को रक्तस्राव की स्थिति में लेने से रोगी की मृत्यु हो सकती है। अतः रक्तस्राव की स्थिति में नहीं लें।


चैत्र मास या वृष राशि के सूर्य में (20 अप्रैल से19 मई तक) कण्ठ, गर्दन एवं मष्तिष्क रोग में नेट्रम सल्फ।

नेट्रम सल्फ चेचक हैजा एवं मलेरिया आदि बुखार की प्रतिषेधक औषधि है तथा संक्रमण फैलाने की जानकारी के बाद नित्य प्रातः इसकी एक खुराक से भी रोग सहज साध्य हो जाता है तथा रोगी की रक्षा होती है। हैजा में नैट्रम सल्फ 3x प्रातःकाल एक बार लेना हितकर है, इसे दो बार भी ले सकते हैं।

चर्मरोग में नेट्रम सल्फ के बाद नैट्रम म्यूर का प्रयोग उपयोगी होता है।

दमा में साइलीशिया के साथ नेट्रम सल्फ की तुलना की जाती है।

धातुगत साइकोटिक रोग की चिकित्सा में थूजा नेट्रम सल्फ की अनुपूरक औषधि है और इन दोनों औषधियों के ह्वास एवं वृद्धि में भी समानता है।

साइकोटिक रोग में आर्सेनिक का प्रयोग नये रोग की चिकित्सा के रूप में की जाती है तथा नेट्रमसल्फ आर्सेनिक की प्रतिपूरक ( Complement ) औषधि है।

नेट्रम म्यूर एवं सल्फर के अनेक लक्षण नेट्रम सल्फ में भी पाये जाते हैं।

खाँसी में नेट्रम सल्फ की तुलना ब्रायोनियाँ से की जाती है, लेकिन अंतिम अवस्था में जब खाँसी के समय छाती नहीं दबाने से मानो फटकर बाहर आने की अनुभूति हो रही हो, उस समय दोनों का प्रयोग किया जाता है।

आँखों के पुराने कष्टों में नेट्रम सल्फ की तुलना ग्रेफाइटिस से की जाती है।

नेट्रम सल्फ एण्टि-सोरिक, एणटि-सिफलेटिक तथा एण्टि-सायोकेटिक औषधि है।

नेट्रम सल्फ (Nat Sulph) का पूरा नाम नेट्रम सल्फ्यूरिकम तथा सामान्य नाम सल्फेट ऑफ सोडा या ग्लूबर्स साल्ट है। इसे सोडियम सल्फेट भी कहते हैं।

चैत्र मास, वृष राशि, 20 अप्रैल 21 मई के बीच की अवधि, गर्दन, कण्ठ तथा मष्तिष्क नेट्रम सल्फ के क्षेत्र में आता है।

8. काली सल्फ 6x : सायं काल से अर्द्ध रात्रि तक तथा मुख्यतः कमरे में एवं गर्मी में खुजली या अन्य कष्ट वृद्धि।
मोतियाबिंद एवं आँख की पुतली की अस्वच्छता में नेट्रम म्यूर के साथ काली सल्फ का सेवन किया जाता है। सर्दी की तृतीयावस्था में कैली सल्फ का प्रयोग किया जाता है और प्रथमावस्था में फेरम फॉस के साथ प्रयोग किया जाता है।
नवीन ज्वर में 6x तथा पुराने ज्वर में 12x का प्रयोग करना चाहिए।
कैली सल्फ 6x तथा 12x कैली म्यूर के अवशिष्ट (छोड़े गये) कार्य को पूरा करता है। 
रोग की पुरानी अवस्था में कैली सल्फ की उच्च शक्तियों का व्यवहार किया जाता है।
सूखे चर्मरोग में कैली सल्फ 2x के मलहम का प्रयोग किया जाता है।
ज्वर एवं प्रादाहिक रोगों में फेरम फॉस के साथ कैली सल्फ को पर्याय क्रम में देने से इस औषध की अच्छी क्रिया होती है।
शू्ल वेदना में मैग फॉस के बाद कैली सल्फ की अच्छी क्रिया होती है।
खुजली एवं त्वचा का रंग लाल होने पर साइलीशिया के साथ कैली सल्फ की तुलना करनी चाहिए।
सर्दी तथा श्वसन यन्त्रों के रोग में कैली म्यूर तथा नेट्रम म्यूर के साथ कैली सल्फ की तुलना करनी चाहिए। बधिरता, वक्षःस्थल में भारी घड़घड़ाहट तथा पाकस्थली की वेदना या कष्ट में नेट्रम म्यूर के साथ कैली सल्फ की तुलना आवश्यक है।
पल्सेटिला के अनेक लक्षणों में कैली सल्फ से समानता है, अतः यह इसके निकट की औषधि है। पल्सेटिला और कैली सल्फ के श्राव एवं ह्वास-वृद्धि में कोई अन्तर नहीं होता है लेकिन दोनों की मानसिक अवस्था में बहुत अन्तर है।
पल्सेटिला का मिजाज शान्त, धीर एवं गम्भीर होता है लेकिन कैली सल्फ का चिड़चिड़ा होता है।
पल्सेटिला की अपेक्षा कैली सल्फ क्रिया गहरी एवं स्थाई होती है।
पल्सेटिला से लाभ नहीं होने पर कैली सल्फ के प्रयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
केली म्यूर के बाद भी प्रायः कैली सल्फ का ही प्रयोग किया जाता है।
कैली सल्फ एण्टिसोरिक तथा एण्टिट्युबरक्युलर औषधि है।

श्रावण या सावन माह, कन्या राशि, 22 अगस्त से 21 सितम्बर तक की अवधि तथा पेट कैली सल्फ के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Pulsatila., Acitic Acid., Arsenic Alb., Calcaria carb., Dolicus., Heper Sulphar., Sepia., Rhus tox., Natrum mure., Silicia., Sulphur., Urtica urens. 

9. काली म्यूर 6x या 12x : डॉक्टरों का कष्ट। जिह्वा पर सफेद, भूरा या गन्दा लेप। कोलतार सा काला एवं थोड़ा मेन्स तथा दूध सा लिकोरिया ( प्रदरश्राव )। स्थान परिवर्तन करनेवाला ट्यूमर। जिह्वा का ठण्डापन मुख्यतः सायंकाल में। घावों या मुँहासे से सफेद पेस्ट या तार-सा पदार्थ निकलना।
फेरम फॉस के प्रादाहिक रोगों की प्रारंभिक अवस्था में तथा काली म्यूर द्वितीयावस्था में लाभ प्रद होती है।

नेट्रम म्यूर के गुणों से भी काली म्यूर की बहुत समानता है।

कैली म्यूर का अन्य औषधियों के साथ पर्याय क्रम में सेवन उन औषधियों की क्रिया को बढ़ाता है तथा यह सभी धातु का संशोधन करने वाला अर्थात् त्रिदोषनाशक (एण्टिसोरिक, एणसिफलेटिक एवं एण्टसायोकोटिक) होता है।

कैली म्यूर के समान ही कैल्कैरिया फॉस भी गहरी क्रिया करनेवाली और इसके साथ तुलना करने योग्य है।

कैली म्यूर से रोग समाप्त नहीं होने पर कैल्कैरिया सल्फ की आवश्यकता होती है ।

नेट्रम म्यूर एवं साइलीशिया के साथ केली म्यूर का सम सम्बन्ध है। गनोरिया में नेट्रम म्यूर से तुलना होती है।
कैली म्यूर का फेरम फॉस के बाद तथा कैल्कैरिया सल्फ के पहले प्रयोग होता है।

सिफलिस में कैली म्यूर के बाद कैली सल्फ तथा साइलीशिया का व्यवहार किया जाता है।

प्रदाहादि रोगों की द्वितीयावस्था में कैली म्यूर के समान ही ब्रायोनियाँ (कैली म्यूर से गहरी क्रिया करनेवाली), मर्क, पल्सेटिला, सल्फर आदि का प्रयोग किया जाता है।

कैली म्यूर ( Kali Mere ) का पूरा नाम कैली म्यूरेटिकम तथा सामान्य नाम क्लोराइड ऑफ पोटाश है। इसे पोटैशियम क्लोराइड भी कहा जाता है।

बैशाख माह, मिथुन राशि, 20 मई से 21 जून के मध्य की अवधि तथा श्वसन यन्त्र एवं लसीका तन्त्र कैली म्यूर के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Bryonia alba., Merc sol., Apis Mel., Thuja., Spongia., Iodium., Puls., Rhus-Tox., Sulphur., Phytolacca., Senguneria., Stilingia., Pinus., Ailenthus., Cimicifuga (Actia- recemosa), Berberis valgeris. 

10. कैल्कैरिया सल्फ 6x : तलवे की खुजली एवं घाव। रक्तमिश्रित पूयस्त्राव। मुँह का स्वाद मीठा या बेमजा।

डॉ० शुश्लर ने कैल्कैरिया सल्फ के स्थान पर नेट्रम फॉस तथा साइलीशिया के प्रयोग की सलाह दी है।

कैल्कैरिया सल्फ की काली खाँसी, आमाशय, चर्मरोग और गल-गण्ड की सूजन में केली म्यूर से तुलना;
प्रदाह की तृतीयावस्था में केली सल्फ एवं साइलीशिया से तुलना;
आरक्त ज्वर में नेट्रम सल्फ से तुलना;
स्नायु शू्ल में मैग फॉस एवं केली फॉस से तुलना;
कार्निया के घाव या पीब मय ग्रन्थि, मसूड़ों के फोड़े, स्तनों के प्रदाह तथा टांसिल प्रदाह में साइलीशिया से तुलना करें।

हिपर सल्फर की अपेक्षा कैल्कैरिया सल्फ की क्रिया गहरी, दीर्घ स्थायी तथा प्रभावी होती है।

कैल्कैरिया सल्फ की पीब में कैलेण्डुला से तुलना होती है।
प्रदाह में कैली म्यूर के बाद कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग किया जाता है।

प्रदाहादि में सल्फर के बाद या उसके कार्य समाप्त होने पर कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग होता है।

सुनिर्वाचित औषधियों से लाभ नहीं होने पर सल्फर और सोरिनम के समान कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग होता है।

आश्विन मास, वृश्चिक राशि, 22 अक्टूबर से 21 नवम्बर तक की अवधि तथा कूल्हा कैल्कैरिया सल्फ के क्षेत्र हैं।

कैल्कैरिया सल्फ (Calc sulph) का पूरा नाम कैल्कैरिया सल्फ्यूरिकम है। इसका सामान्य नाम जिप्सम या प्लास्टर ऑफ पेरिस है। इसे कैल्शियम सल्फेट भी कहते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Heper Sulphar., Apocynam., Calandula., Pyroginum., Anthraxinum., Sulphur., Tuberculinum. 

11. कैल्कैरिया फ्लोर 12 x : गरीबी का भय या अत्यधिक कंजूस। कड़ा और / या नीला चमड़ा या घाव का किनारा। दाँतों का हिलना। हड्डी पर का घाव या ट्यूमर। उजला मोतियाबिंद।

रस टॉक्स के असफल होने पर कैल्कैरिया फ्लोर से लाभ होता है।

कैल्कैरिया फ्लोर पीब होने पर साइलीशिया के बाद तथा सन्धिवात में कैल्कैरिया और ब्रायोनिया के बाद प्रयोग में लाया जाता है।

रक्ताल्पता में कैल्कैरिया फॉस के साथ पर्याय क्रम में इसका उपयोग होता है।

हड्डी में पीब उत्पन्न होने पर कैल्कैरिया फॉस तथा साइलीशिया के साथ कैल्कैरिया फ्लोर की तुलना की जा सकती है।

कैल्कैरिया कार्ब में भी कैल्कैरिया फ्लोर के अनेक मानसिक लक्षण दिखाई देते हैं।

फाइब्रॉइड के कड़ेपन में कैल्कैरिया आयोड तथा कैली आयोड के साथ कैल्कैरिया फ्लोर की तुलना की जा सकती है।

कठिन शोथ एवं गूमड़ में बैरायटा आयोड तथा कैल्कैरिया आयोड के साथ कैल्कैरिया फ्लोर की तुलना की जा सकती है।

श्वास नली के दुर्गन्धित श्राव में आरम एवं कैली बाइक्रोमेकम के साथ कैल्कैरिया फ्लोर की तुलना की जा सकती है।

कैल्कैरिया फ्लोर (Calc Fluor) का पूरा नाम कैल्कैरिया फ्लूरिका तथा सामान्य नाम फ्ल्युराइड ऑफ लाईम है। इसे कैल्शियम फ्ल्युराइड या कैल्कैरिया फ्ल्युरेटा भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ माह, कर्क राशि, 22 जून से 21 जुलाई तक की अवधि तथा आमाशयिक स्नायु तंत्र एवं छाती कैल्कैरिया फ्लोर के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Rhus tox., Shyphilinum., Calcaria Phos., Kali Mure., Natrum Mure., Acid Phos., Silicia. 

12. साइलीशिया 12x : ठण्डा पेयजल एवं भोजन, लेकिन गर्म ओढ़ना पसन्द (बालू अर्थात् ऊपर से गरम लेकिन भीतर ठण्डी प्रकृति)। अमावस्या और / या पूर्णिमा के आसपास के नये चाँद का या एकादशी के आसपास कष्ट वृद्धि। पैरों का पसीना दबने से कष्ट। घावों में ठण्डापन महसूस करना। मिर्गी या किसी अन्य कष्ट में रात्रि 2 बजे के बाद से कष्ट का बढ़ना।
सोरायसिस में मैग फॉस के साथ पर्याय क्रम में साइलीशिया का मरहम उपयोगी होता है।

पत्थर खोदने वालों की बीमारियों में साइलीशिया अत्यंत हितकर है।

साइलीशिया का प्रयोग कैल्कैरिया फॉस एवं कैली म्यूर के बाद किया जाता है।

स्थानानुसार स्फोटक या फोड़ा में फेरम फॉस के साथ पर्याय क्रम में साइलीशिया का प्रयोग किया जाता है।

साइलीशिया के पीब में दुर्गन्ध रहती है, लेकिन नेट्रम सल्फ में वैसी नहीं रहती है।

साइलीशिया की पीब को उत्पन्न कर तथा उसे पकाकर पूरी तैयारी की स्थिति में ला देता है, लेकिन कैल्कैरिया सल्फ इसके अलावा पीब को दूर कर आरोग्य करता है। अतः दोनों औषधियों की आपस में तुलना की जा सकती है।

कैल्कैरिया सल्फ का प्रयोग साइलीशिया के बाद ही करना चाहिए।

अश्रु प्रवाही ग्रन्थि की नली के सम्बन्ध में साइलीशिया की तुलना नेट्रम म्यूर के साथ की जा सकती है।

पल्सेटिला की पुरानी अवस्था में साइलीशिया की आवश्यकता होती है।

थूजा, पल्सेटिला, सैनिक्युला एवं फ्लोरिक एसिड ये सब साइलीशिया की परिपूरक औषधियाँ हैं।

हड्डी की बीमारी में साइलीशिया की मर्क से तुलना की जा सकती है। परन्तु मर्क के बाद साइलीशिया का प्रयोग खतरनाक है।

सिर दर्द में स्पाइजेलिया, सैंगुनेरिया तथा जेल्सीमियम के साथ साइलीशिया की तुलना की जा सकती है।

छिलौरी (Whitlow) तथा नाखून का कोना बढ़ने में साइलीशिया के निष्फल हो जाने पर प्रायः ग्रेफाइटिस लाभ दायक सिद्ध होता है।

टीके के दुष्परिणाम की अवस्था में साइलीशिया की तरह ही सामान्यतः साइलीशिया, थूजा, कैली म्यूर, सल्फर तथा मैलेण्ड्रिनम का व्यवहार किया जाता है।

पल्सेटिला तथा पिकरिक एसिड के लक्षणों से भी साइलीशिया की समता पर विचार करना चाहिए।

पल्सेटिला और कैल्कैरिया के बाद साइलीशिया का प्रयोग सफलता पूर्वक किया जाता है।

साइलीशिया का मर्क दोषघ्न (Anti-dote) है।

साइलीशिया एण्टि-सोरिक, एण्टि-सिफलेटिक तथा एण्टि-सायोकेटिक औषधि है।

साइलीशिया (Silica) को सिलिका या बालू भी कहते हैं।

कार्तिक मास, धनु राशि, 22 नवम्बर से 21 दिसम्बर तक की अवधि तथा जंघा साइलीशिया के क्षेत्र में आते हैं।

सम्बंधित होमियोपैथिक दवा : Spig., Paris., Cocculus ind., Petrolium., Graphitis., Psora., Floric Acid., Picric Acid., Hypericim., Ruta G., Merc. Sol. 

नोट : 1. इस लेख में किसी भी बायोकेमिक औषधि के लक्षणों में से किन्हीं एक लक्षण का रोगी के लक्षणों से पूर्णतया साम्य हो जाने से उन औषधियों का उपयोग करने से रोगी मनो-शारीरिक दोनों तरह से शीघ्रातिशीघ्र लाभ प्राप्त करेंगे अथवा होमियोपैथिक सिद्धांत के अनुसार निर्दोष आरोग्य के पथ पर अग्रसर होगें और उनके द्वारा प्रसन्नता का अनुभव होना रोग नाश का सूचक होगा। निर्वाचित बायोकेमिक औषधियों को खूब गर्म जल के साथ ही सेवन करें।

2. कोई एक बायोकेमिक औषधि यदि किसी अन्य या दूसरी औषधि का विरोधी हो तो उनका एक साथ या पहली औषधि के प्रभाव को निरस्त किये बिना दूसरी दवाओं का उपयोग नहीं करें।

3. विद्वान चिकित्सकों द्वारा दिये गये निर्देश के विरुद्ध चल कर औषधि का चुनाव या उपयोग नहीं करें साथ ही औषधि की मात्रा, अनुपान एवं सहपान के सम्बन्ध में डॉक्टर शुस्लर या अन्य विद्वान् चिकित्सकों के मतों का अनुशरण करें। नीम हकीम नहीं बनें।

4. सरलता, पवित्रता, मानवता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, परोपकारिता, आत्मोन्नति, सेवा, सहयोग, सदभाव, समरसता, प्रसन्नता, अहंकार शून्यता, मध्यम मार्ग, बड़ों के प्रति आदर, बच्चों के प्रति वात्सल्य, हम उम्रों के प्रति प्रेम, ईश्वर में विश्वास एवं जियो और जीने दो के सिद्धांत को जीवन और चिन्तन में स्थान दें।

5. मेरी इस रचना में कोई छेड़छाड़ नहीं करें। अपनी आन्तरिक क्षमता को उन्नत करें और उनका सदुपयोग करें।

6. चिकित्सा एवं अन्य परामर्श हेतु कृपया अगली सूचना तक सम्पर्क नहीं करें। (कम से कम एक माह तक अस्वस्थता तथा विशेष व्यस्तता के कारण चिकित्सा एवं अन्य परामर्श हेतु समय देना संभव नहीं है।)

7. मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति से यदि कोई भूल हुई हो माँफ करने की कृपा करेंगे।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

सोशल मीडिया

  सोशल मीडिया आत्माभिव्यक्ति, आत्मोन्नति, प्रेरक एवं सकारात्मक विकास और लोकहित जैसे महत्वपूर्ण माध्यम है। बल्कि सदुपयोग की आवश्यकता है। 

बुधवार, 31 जुलाई 2024

प्रेमचन्द :-

धनपत नयाब मुंशी प्रेमचन्द :-  

श्रीवास्तव साहित्य निधि, 
धनपत राय नयाव। 
गोरों से पीड़ित त्रसित, 
प्रेमचन्द कहलाय।। 

धनपत नाम गरीब सुजन, 
लेखन में रुचि पाय। 
उपन्यास कथा रचि, 
रचनाकार पद पाय।। 

हिन्दी उर्दू सम रुचि, 
करम धरम पथ धाय। 
प्रगति शील लेखक सुघर, 
विश्व पटल गये छाय।। 

३१/०७/८० तिथि, 
सदी उन्नीस जब पाय। 
समही काशी नगरी निकट, 
अजायब घर जन्मे जाय।। 

मातृ वियोग आठवें बरस, 
भ्रातृ विमाता पाय। 
सहधर्मिणी द्वितीय बनी, 
प्रथमा गयी पराय।। 

लेखन १३ वें बरस शुभद्, 
आत्माभिव्यक्ति दिखाय। 
जाति धरम धनी दीन गति, 
प्रेम चन्द दिये बताय।। 

अध्यापक इन्सपैकटर बने, 
शिक्षाविद् धनपत पद पाय। 
रचना धर्म अनवरत रहा, 
साहित्य समाज गति गाय।। 

सदी २० वीं ३६ वें बरस, 
गये जैनेन्द्र बताय। 
ईश्वर को दु:ख हो नहीं, 
प्रेम चन्द दिये बताय।। 

पुत्री एक, दो पुत्र सहित, 
छोड़ परम गति पाय। 
प्रेम चन्द पद कृति परम, 
शैलज निस्वार्थ पद गाय।।

गुरुवार, 7 मार्च 2024

दोहा

काम, क्रोध, मद, लोभ में, 
शैलज भूला सत् राह। 
चला रौंदने जगत को,
रहित हर्ष परवाह।।

रविवार, 14 जनवरी 2024

# रामायणं # वैदेही अवध रामायणं (अद्यतनं संशोधितं):- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

वैदेही अवध रामायणं :- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

नमामि भक्त वत्सलं, श्री रामं अवधेशं।
द्वादश कला युक्तं प्रभु श्री रामावतारं।।१।।
धर्मार्थकाममुक्तिदं ईशं, विष्णु जगदीश्वरं।
भजाम्यहम् अवधेशं, जगत् पाप मोचनं। २।।
कृतयुगेरेकदा श्री हरि दर्शनेन सुविचारं।
सनकादिक मुनिवरा: गताः विष्णुलोकं।। ३।।
द्वारपालौ बोध हीनं, न कृतं अतिथि सम्मानं।
प्रभु माया विस्तारं, द्वारपालौ प्राप्त शापं।। ४।।
जय-विजय द्वारपालादि शापोद्धार सेतु।
स्वीकारं कृतं नारदस्य श्रापं कल्याण हेतु।। ५।।
सतोगुणं रजोगुणं तमोगुणस्य मूलम्।
अनन्तं प्रणव ऊँ सर्वज्ञं समर्थं।।६।।
निराकारं आकारं , रंजनं निरंजनं।
निर्गुणं गुणं, सचराचरस्य मूलम्।।७।।
कर्त्ता त्रिलोकी देवासुर जनकं।
अव्यक्तं सुव्यक्तं, अबोधं सुबोधं।।८।।
प्रकृति पुरुषात्मकं कार्य कारणस्य मूलम्।
अर्धनारीश्वरं स्वयंभू अज विष्णु स्वरूपं।।९।।
ज्योति: प्रकाशं, नित्यं, चैतन्यं स्वरूपं।
तिमिर नाशकं, जीवनामृतं स्वरूपं।।१०।।
ताड़नं जड़त्वं, अहं मोहान्धकारं।
गगन ध्रुव शिशुमार चक्र स्वरूपं।।११।।
प्रभा श्रोत दीपस्य, अवतरणं अशेषं।
भास्करस्य भास्करं, श्री रामं रं स्वरूपं।।१२।।
कौसिल्या, कैकेयी, सुमित्रा सुपुत्रं ।
अवधेश दशरथ रघुकुल प्रदीपं।।१३।।
प्रसीदति अहैतुकी सज्जनानां भक्त्या।
सर्वस्य कारणं यस्य माया दुरत्यया।।१४।।
वरं श्राप भक्तस्य उद्धार हेतु।
अवतरति जगत धर्म कल्याण सेतु।।१५।।
प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समस्तं।
प्राकट्यं वभूव संस्थापनार्थं सुधर्मं।।१६।।
सानुजं गुरु विश्वामित्रेण सुसंगं,
मिथिला सिमरिया धामं प्रवासं।।१७।।
शिव धनु दधीचि अस्थि विशालं,
जनकी हेतु भंगं अकुर्वत पिनाकंं।।१८।।
स्वयंवरं विवाहं जनकात्मजा सुवेदं।
सहोदरं सवेदं निज शक्ति स्वरूपं।।१९।।
माण्डवी, श्रुतकीर्ति, उर्मिला सहर्षं।
अनुशीलनं जनकस्य, वशिष्ठ आदेशं।।२०।।
सृजनहार, पालन, समाहार कर्त्ता।
रामौ परशु आदौ देशकालस्वरूपं।।२१।।
नारद, जय-विजय, देवादि, भानु प्रतापस्य उद्धारं।
मनु शतरूपा प्रिय प्रभु अवध भारत भुवि अवतारं।।२२।।
माता कुल कैकेयी सप्रजा दशरथ अवधेशं।
हर्षितं राज्याभिषेकं रमापति रामं जगदीशं।।२३।।
शारदा मायापति विचारं, मंथरा कैकयी कूट सम्वादं।
देवार्थे अवधेश रथचक्रस्य कीलांगुलि वरं संस्मरणं।।२४।।
लोक जननी जन्म भूमिश्च हितार्थं, सवल्कल वने गमनं।
वैदेही शेषश्च रामानुशरणं, वियोगेन रं जनकस्य निधनं।।२५।।
प्रणार्थ प्राणेश भजनं, प्रणार्थ प्राण तजनं।
प्रणार्थ प्राणेश रंजनं, प्रणार्थ राज तजनं।।२६।।
भरतस्य हेतु पादुका, राज पद तजनं।
सुर नर जगत् हित लीला सुरचितम् ।।२७।।
नन्दी निवासं करणं, व्रती भरतस्य राज सुख तजनं।
सिंहासीनं प्रभु श्री राम चरणस्य पदुकादेशं सुपालनं।।२८।।
रक्षार्थ वचनं कुल शीलं समेतं, गतं वन उदासं कुलाचारं कुलीनं।
रक्षार्थ धर्मं, सुकर्मं प्रबोधं, असुरोद्धार हेतु विचरन्ति नर रूपं।। २९।।
जनकस्यादेशं पालकं, भव पालकं सुरेशं। 
मर्यादा पुरुषोत्तमम् रघुकुल भूषणं श्री रामं।३०।।
पद् नख नि:सृता यस्य सुर सरि श्रेष्ठ गंगा।
केवटस्याश्रितं भव केवट, तटे त्रिपथगा।।३१।।
चरण स्पर्श आतुर कुलिष कंटकादि।
शुचि सौम्य उदभिद् खग पशु नरादि।।३२।।          
पथ अवलोकति शबरी, जड़ अहिल्या।
उद्धारं कृतं शबरी, निर्मला अहिल्या।।३३।।
दर्शनं अत्रि ऋषि वर, सती संग सीता।
प्रभु मुग्ध रामानुज वैदेही विनीता।।३४।।
भव मोक्ष याचक जड़ भील मुनि वर।
विचरन्ति सर्वे असुर भय मुक्त सत्वर ।।३५।।
बधं ताड़कादि असुरगणं समस्तं।
कुर्वीतं श्री रामं शास्त्रोचितं पुनीतं।। ३६।।
गिरि वन सरित सर तटे निवास करणं।
योगानुशरणं, नित्यानुष्ठानादि करणं।। ३७।।
कन्दमूलफलपयौषधि प्रसाद ग्रहणं।
जल-वायु सेवनं, आश्रम धर्म विवेचनं।। ३८।।
चित्रकूटादि सुदर्शनं, सर्व धाम सुसेवनं।
सुजन सम्मान करणं, मदान्ध मद मर्दनं।। ३९।।
सूर्पनखा सौंदर्य वर्धनं, लक्ष्मण रामाकर्षणम्।
नासासौन्दर्य छेदनं, खरदूषणादि उन्मूलनम्।।४०।।
साष्टांग, ध्यान मग्नं प्रणत् सुर नर मुनीन्द्रं ।
यजयते स्त्री रुपं ऋषि कुमारा: षोडशं सहस्त्रं।।४१।।
स्वीकारं कृतं वरं राम भक्तंं सस्नेहं। 
भवामि प्रिया केशवस्य कृष्णावतारं ।४२।।
पावकं ऊँ रं राम शक्ति सीता निवासं।
वधं हेतु गतं राम मृगा स्वर्णिम मारीचं।।४३।।
मिथिलेश नंदिनी सीता वैदेही अम्बा।
रावणस्य कुलोद्धार हेतु गता द्वीप लंका।।४४।।
ब्राह्मणवेश रावणस्य कृतं सम्मानं।
दानं हेतु कृतं लक्ष्मण रेखाग्नि पारं।।४५।।
सहितं पंचवटी पर्णकुटी उदासं।
सानुज प्रभु सर्व लोकाधिवासं।।४६।।
वैदेही हरणं चराचर खग वन पशूनां।
पृच्छति सानुज सरित सर पर्वताणां।।४७।।
महेश्वरस्य सुवन्दनं राजकुमारौ स्वरूपं।
चकितं उमा माया पति माया जगदीशं।।४८।।
वैदेही स्वरूपा जगन्माता स्वरूपं।
वन्दिता भवानी हरि हर रूपं अनेकं ।।४९।।
स्त्री गुण प्रधानं निज सन्तति वात्सल्य सेतु।
स्वीकारं कृतं सहर्ष भवानी , भवेशं वृषकेतु।।५०।।
उमा भवानी त्र्यम्बिके प्रजापति दुहिता।
पतिव्रता भवानी, जगन्माता स्वरुपा।।५१।।
व्यथिता भवानी देवादि स्थानं भवेश रहितं।
उमा आहूति करणं, शिव रौद्र शक्ति सहितं ।।५२।।
अष्टोत्तरशतं शक्ति पीठं संस्थापनं।
भवं भवानी कृपा लोकहित कारकं।।५३।।
वरणं हरं मैना सुता शैलजा सुख कारकं।
पाणिग्रहणाख्यानमिदं सर्व मंगल कारकं।।५४।।
वैदेही पूज्या भवानी वैदेही वरदायिनी।
माता सर्व लोकस्य त्रिविध ताप हारिणी।।५५।।
मिथिलेश नन्दिनी जानकी जगन्माता अम्बा।
त्रिविध ताप नाशिनी वैदेही सीता जगदम्बा।।५६।।
सीता हित विकल विधि त्रिभुवन पति लक्ष्मी रमणं।
बालि बध, सुग्रीव सहायं, किष्किंधा पावन करणं।।५७।।
सीता सुधिदं, सम्पाती मिलनं, जटायु संग्राम करणं।
सुग्रीव सहायं, नल नील सेतु, सागर पथ प्रदानं।।५८।।
असुर विभीषण रहित सर्वे सशंका।
त्रिजटा करोति वैैदेेही सेवा नि:शंका।।५९।।
शरणागत दीनार्त त्रिविध ताप हारं।
राजीव लोचनस्य रामेश्वरानुष्ठानं।।६०।।
जामबन्त अंगद वन्य बासिन: समस्तं।
समर्पित सशरीरं सुकाजं समीपं।।६१।।
लंकेश विभीषण अनुग्रह श्री रामंं।
सहायं कपीशं भू आकाशं पातालं।।६२।।
पातालं गता: पद स्पर्शात् पर्वताणि।
छाया ग्रह दम्भ हननं समुद्र मध्याणि।।६३।।
द्विगुण विस्तारं, मुख कर्णे निकासं।
अहिन अम्बा सुरसा परीक्षा कृत पारं।।६४।। 
लंका प्रवेश द्वारे लंकिनी निवासं।
राम दूतं बधे तेन मुष्टिका प्रहारं।। ६५।।
सूचकं लंकोद्धारं, लंकिनी उदघोषं।
असुर संहारं हेतुमिदं श्री रामावतारं।।६६।।
उल्लंघ्यं समुद्रं, लंका प्रवेशं।
हरि भक्त विभीषण सम्वादं।।६७।।
लंका सुदर्शनं, अशोक शोक हरणं।
मुद्रिका रं दर्शनं, वैदेही शोक हरणं।।६८।।
वने फल भक्षणं, निज प्रकृति रक्षणं।
राक्षस दल दलनं, रावणस्य मद मर्दनं।६९।।
राज धर्मानुसरणं, ब्रह्म पाश सम्मानं।
पुच्छ विस्तरणं, घृत, तैल वस्त्र हरणं।।७०।।
हरि माया करणं, कपि पुच्छ दहनं।
निज रक्षणं, स्वर्णपुरी लंका दहनं।।७१।।
अंगद पदारोपणं, असुर सामर्थ्य दोहनं।
विभीषण पद दलनं, मंदोदरी नीति हननं।।७२।।
कुम्भकर्ण मेघनादादि संहरणं।
अहिरावणादि विनाश करणं।।७३।।
देवादि ग्रह कष्ट हरणं, रावणोद्धार करणं।
विद्वत् सम्मान करणं, राज धर्मानुशरणं।।७४।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि निधानं।
बुद्धि, बल, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धामं।
जगत प्रत्यक्ष देवं, सकल सिद्धि दायकं।
चिरायु, राम भक्तं, हनुमानं सुखदायकं।।७६।।
हनुमानं संस्मरे नित्यं आयु आरोग्य विवर्धनम्।
त्रिविध ताप हरणं, अध्यात्म ज्योति प्रदायकम्।।७७।।
शंकर स्वरूपं, पवन सुतं, अंजना केसरी नन्दनं।
रावण मद मर्दनं, जगन्माता जानकी शोक भंजनं ।।७८।।
श्री राम भक्तं, चिरायु, भानु सुग्रासं।
हृदये वसति रामं लोकाभिरामं।।७९।।
एको अहं पूर्णं , वेद सौरं प्रमाणं।
रघुनाथस्य वचनं, भरतस्य ध्यानं।।८०।।
जलज वनपशु खग गोकुल नराणां।
सरयू प्रसन्ना, भूपति, दिव्यांगनानां।।८१।।
आलोकितं पथ, नगर, ग्राम, कुंज, वन सर्वं।
प्रज्वलितं सस्नेहं दीप, कुटी भवनंं समस्त्तं।।८२।।
गुरू चरण पादुका राज प्रजा प्रतीकं।
दर्शनोत्सुकं सर्वे  सीता राम पदाम्बुजं।।८३।।
नैयायिक समदर्शी प्रभु श्री चरणं।
भव भय हरणं, सुख समृद्धि करणं।।८४।।
आचारादर्श धर्म गुण शील धनं।
सूर्य वंशी सत्पथ रत निरतं ।।८५।।
जनहित दारा सुत सत्ता तजनं।
लीला कुर्वन्ति लक्ष्मी रमणं।।८६।।
शुचि सत्य सनातन पथ गमनं।
शिव राम कृपा दुर्लभं सुलभं।।८७।।
दीपावल्याख्यानं तमान्तरस्य हरणं।
दलनं राक्षसत्वं, रक्षकस्य गुण भरणं।।८८।।
आदौ महाकाव्यं ऋषि वाल्मीकि रचितं।
क्रौंचस्य वियोगाहतं कृतं राम चरितं।।८९।।
चरितं सुरचितं निज भाषानुरूपं।
निज भावानुरूपं रावणं राम काव्यं।।९०।।
संस्कृत सुगूढ़ं, अवधी सुलब्धं।
दनुज व्यूह त्रसितं कृते तदर्थेकं।।९१।।
सत्यं शिवं सुन्दरं श्री राम चरितं।
भरद्वाज कथनं, गोस्वामी रचितं।।९२।।
कथा सज्जनानां अवतार हेतु।
आगमनस्य रघुकुल साकेत धामं।।९३।।
वैष्णवी तपस्या, अवतार कल्कि,
गाथा सुदिव्यं जग कल्याण हेतु।।९४।।
एकासनवर्धनं गुण शीलंं प्रकृति दिव्यं,
हर्षितं दर्शितं अवध पुष्पक विमानं।।९५।।
रजकस्यारोपं वैदेही वने प्रवासं।
ऋषि सुता चरितं, वाल्मीकि शरणं।।९६।।
अश्वमेध यज्ञस्य हय विजय करणं।
सीता सुत लव कुश संग्राम करणं।।९७।।
श्री राम राज्यं समत्वं योग वर्धनं।
प्रजा सुपालनं त्रिविध ताप हरणं।।९८।।
सुता हेतु धरित्री हृदय विदीर्णं।
सीतया धरा अर्पणं निज शरीरं।।९९।।
सीता वसुधा, प्रभु सरयू शरणं।
शेषावतार सहर्ष सत् पथ गमनं।।१००।।
अवधेश गतं साकेत शुभम्।
सप्रजा साकेत अवध सहितं।।१०१।।
शुचि कथा उमाशंकर पावन।
कैलाश कपोत युगल सहितं।।१०२।।
खग काक भुषुण्डि शिव श्राप हरं।
गुरु कृपा श्री राम भव पाप हरं।।१०३।।
रामायण अवध अवधेश कृतं।
मन मोद धाम शुभदं सुखदं।।१०४।।
भारत बिहार जम्बूद्वीपं।
नयागाँव पचम्बा सुसंगम्।।१०५।।
ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र कुलं।
जातक शैलजा राजेन्द्र सुतं।।१०६।।
आख्यानं रचितं शैलज अनुपम।
निज ज्ञान विवेक सहित अल्पम्।।१०७।।
सप्रेम रामायणमिदं पठनं।
आतप त्रयताप हरं सुखदं।।१०८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शुभ संवत् २०७६-२०७७ की दीपावली के शुभ अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं मिथिलेश नन्दिनी जगत् जननी माँ सीता जी की प्रेरणा एवं कृपा से १०८ शलोकों वाला प्रस्तुत "वैदेही अवध रामायणं " की रचना १०४ श्लोकों वाले "अवध रामायणं" के रूप में हुई जो दिनांक ०५/०८/२०२० तदनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया बुधवार को श्री राम जी के जन्म काल सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त अभिजित मुहूर्त्त के दिव्य एवं मांगलिक अवसर पर भगवत्कृपा से १०४ श्लोकों वाला "अवध रामायणं" १०८ श्लोकों वाला "वैदेही अवध रामायणं" के रूप में पूर्ण हुआ जिसका यह अद्यतन संशोधित रूप भगवान् श्री राम एवं उनके पार्षदों की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के शुभावसर पर  प्रस्तुत किया जा रहा है। देव भाषा संस्कृत, साहित्यानुराग, इष्ट भक्ति -भाव एवं कथा-बोध के अभाव में हुई भूल हेतु अन्यथा भाव न लेंगे और क्षमा करेंगे।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
दिनांक : ०६/०१/२०२४ ईसा पश्चात्।