रविवार, 2 अक्टूबर 2022
गाँधी मानव नहीं, साधक नीतिज्ञ विद्वान् थे।
शुक्रवार, 23 सितंबर 2022
वक्त पर याद आते हैं :-
वक्त पर याद आते हैं :-
निकालते वक्त हैं हम सब, जरूरी जब समझते हैं।
जरूरी कब ? किसे ? कितना ? यहाँ कितने समझते हैं ?
पहुँचना है सभी को पुनः, चिरपरिचित ठिकाने पर।
निभा निज भूमिका जग में, वक्त पर लौट जाना है।
टिकट आवागमन का, साथ में लेकर सभी आये।
यहाँ पर सौंप तन,मन,धन; प्रभु में लीन होना है।
वक्त को जो समझ में है, वक्त पर ही बताता है।
वक्त न आम होता है, वक्त न खास होता है।
वक्त पर काम जो आते, भले ही भूल जायें हम।
वक्त जब गुजर जाता है, वक्त पर याद आते हैं।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
आओ ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
आओ ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माता के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
जाड़ा, गर्मी, बर्षा, बसन्त सब का स्वागत सत्कार करें।
हर मौसम में बसन्त की नित अनुभूति हम स्वीकार करें।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
सत्तर वर्षों की बेड़ी से मुक्त हुई माँ, हर्षित संसार सुनो।
टूट गये सब चक्र व्यूह, भारत माँ कर रही पुकार सुनो।।
हवा हवाई है अब केवल, शुभ अवसर है, अंगीकार करो।
छोड़ो भूल, मूल को पकड़ो, सच सच है, स्वीकार करो।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।,
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
इस मिट्टी की मूरत हैं हम, हरि ऊँ कृपा को याद करो।
मौसम है अनुकूल,अपनी विराट सीमा स्वीकार करो।।
पाक इरादा साफ नहीं,खुदगर्जी,सत्ता व्यापार कहो।
सौतेलापन, क्रूरता, मातृवत रहा कहाँ व्यवहार कहो ?
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
ओ मेरे सिर मौर! तुम्हारी रक्षा मेरा प्रण है।
पुत्र ! तुम्हारा हित सम्वर्धन लक्ष्य अहम् मेरा है।
धाराओं को काट अनेकों आज पास आयी हूँ।
शपथ तिरंगा,आतंकी बन्धन मुक्ति-पत्र लायी हूँ।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
राज रिश्तों का...
राज रिश्तों का...
राज रिश्तों का अन्तर को पता है,
और कुछ कहना नहीं, केवल बचा है।
श्री चरण का ध्यान धर कर अग्रसर जो,
हर चुनौती झेल वह आगे खड़ा है।।
राज रिश्तों का सरित सर कूप जल का,
एक अन्त: श्रोत अविरल भूमि तल का।
जलद निर्झर गिरि शिखर से श्रवित अविरल,
दोष हर प्रियतम! अहर्निश भूमि तल का।।
राज रिश्तों का पयोधि मृदु मधुर जल का,
अतल अथाह सैलाब सुन्दर कलश जल का।
मस्त पंकज क्रोड में अलि गोधूलि से,
सच्चिदानंद सुख मग्न मादकता मदन रस पा।।
राज रिश्तों का श्री अवधेश प्रभुवर,
पूछते है कुंज वन से, सरित सरि से।
अग्नि अर्पिता वैदही, रावण ले गया क्या ?
पार कर रेखाग्नि अनुज खचित शर से ?
राज रिश्तों का जगत् व्यवहार मन का,
माया प्रकृति पुरूष का, संसार जन का।
आवाज आत्मा की, हृदय के धड़कनों का,
प्रेममय पीयूष वर्धन शुभ आशीष प्रभु का।।
राज रिश्तों का न "शैलज" को पता है,
भाव को लिपिबद्ध करने को चला है।
सौंदर्य श्री अनुपम नयन पथ से उतरकर,
कवि हृदय में क्या कहूँ ? आ बस गया है।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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केशव ने समझाया :-
केशव ने समझाया
अभिनन्दन करने को प्रकृति उषा संग में आई।
धूप, दीप,नैवेद्य,आरती से हुई रवि की अगुआई।।
कुसुमाकर अनंग रति संग मलय ने रास रचाई।
जाड़ा, गर्मी, वर्षा, बसन्त ने मंगल गान सुनाई।।
रजनीचर छिप गए, सभी ने नकली रूप बनाई।
हरित धरा को शवनम ने मोती माणिक पहनाई।।
नील गगन में निशा अंक में जुगनू तारक अठखेली।
सचिव चाँद रानी सूरज मन स्व अनुगामी अलवेली।।
दिवा रात्रि के मिलन महोत्सव असुरों को नहीं भाया।
भगवा रंग में रंगा अरुण रथ सुर पर आरोप लगाया।।
राहु केतु द्वारा, अमृत हित जिसको था उसकाया।।
सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाकर रंग में भंग कराया।।
घनश्याम घटा का रूप बना, भरमाया और डराया।
मन मयूर तब भी शैलज का अपना रंग दिखाया।।
शत्रु दलन करने को रक्षक सत्ता ने मूड बनाया।
प्रजावर्ग हित भक्षक को उसका औकात बताया।।
फैला सद्यः प्रकाश जगत में,अज्ञान तिमिर सब भागा।
तेज पुञ्ज दिनकर का लख कर राष्ट्रवाद् शुभ जागा।।
टुकड़े-टुकड़े बादल छँट गये सभी उपद्रव कारी।
रवि का अनुशासन आदेश हुआ जगत में जारी।।
प्रकृति नटी ने भा-रत जग में अदभुत रास रचाया।
हरित धरा, चक्र सुदर्शन, भगवा नभ में फहराया।।
मध्यम मार्ग, वाहेगुरु,आयत अव्यक्त का, प्रेयर गौड को भाया।
सचराचर व्याप्त सगुणागुण प्रभु को संस्कृत वेद ध्वनि भाया।।
गीता, वेद,पुराण, कुरान, वाईविल, कण-कण में निज को दर्शाया।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:" केशव ने समझाया।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय, बिहार।
गुरु वंदना :-
शैलज तन रक्षा करे, मन की सुधि नित लेत।
ज्योतिर्मय कर ज्ञान पथ, पाप भरम हरि लेत।।
अन्त:करण सुचि देव नर, जीव चराचर कोई।
दृश्यादृश्य पुनीत प्रभु, गुरु प्रणम्य जग सोई।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।
सनातन हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) के दिन गुरु व्यासजी की पूजा होती है, परन्तु भारत के भूत पूर्व राष्ट्रपति एवं आदर्श शिक्षक डॉ० सर्वे पल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस ५ सितम्बर के दिन प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है और हम सभी भारत के भूत पूर्व राष्ट्रपति एवं आदर्श शिक्षक डॉ० सर्वे पल्ली राधाकृष्णन एवं अपने-अपने अन्य गुरु देवों को भी याद करते हैं, उनका सम्मान करते हैं तथा उनके द्वारा बताये गये मार्ग का अनुशरण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं, क्योंकि गुरु का अर्थ होता है अन्धकार से प्रकाश में लाने वाले।
ऊँ असतो मां सदगमय।। तमसो मां ज्योतिर्गमय।। मृत्योर्मा अमृतं गमय।। शुभमस्तु।।
शिक्षक दिवस हार्दिक शुभकामना एवं बधाई के साथ।
सुभाषितं :-
सुभाषितं
धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष चार फल
प्रभु ने तुझे दिये।
प्रकृति-पुरुष पीयूष कृपा का
सम्यक् उपभोग करो।।
छोड़ो अहं, हीन भाव को,
सबको निज-सा समझो।
कल, बल, छल से है भरा जगत्,
फिर भी निज कर्म करो।।
आर्ष ज्ञान, विज्ञान, खोज का
सदुपयोग, सम्मान करो।
कर सकते हो यदि कुछ जग में,
निज तन-मन को स्वस्थ करो।।
काम, क्रोध औ लोभ पंक में
पंकज-सा नित्य खिलो।
दुनिया के प्यासे प्याले में -
"शैलज", अपना प्रेम भरो।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।