सुभाषितं
धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष चार फल
प्रभु ने तुझे दिये।
प्रकृति-पुरुष पीयूष कृपा का
सम्यक् उपभोग करो।।
छोड़ो अहं, हीन भाव को,
सबको निज-सा समझो।
कल, बल, छल से है भरा जगत्,
फिर भी निज कर्म करो।।
आर्ष ज्ञान, विज्ञान, खोज का
सदुपयोग, सम्मान करो।
कर सकते हो यदि कुछ जग में,
निज तन-मन को स्वस्थ करो।।
काम, क्रोध औ लोभ पंक में
पंकज-सा नित्य खिलो।
दुनिया के प्यासे प्याले में -
"शैलज", अपना प्रेम भरो।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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