रिमझिम-रिमझिम बर्षा बरसे, भींगे राधा रानी।
सोना बरसे, चाँदी बरसे, बाल कृष्ण रुचि जानी।।
कुसुमाकर अनंग रति मादक, वेल विटप लिपटानी।
बाल कृष्ण मन मोद बढ़ावत, करत बसन्त अगवानी।।
प्रिय हरि दर्शन की आकाँक्षा, प्रिया हृदय में ठानी।
बूलत कृष्ण गोपाल श्याम घन, नाचत मोर सयानी।।
मुरलीधरन अधर रस भींजत, व्रजवाला अकुलानी।
हरि चरण दरश को आकुल, गोपद पद अनुगामी।।
सृष्टि कामना हेतु विधि सेवत, पालत हरि विधि जानी।
हरत शोक, रोग, त्रिविध दुख, स्वयंभू हर अन्तर्यामी।।
प्रो० अवधेश कुमार "शैलज", पचम्बा, बेगूसराय।
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