लेते हो अवतार,
जगत् का करने को उद्धार,
परन्तु तुम कायर-से डरते हो ।
लेते हो संकल्प,
प्राणी की पीड़ा को हरने का,
पर, मोह बन्धन से क्यों डरते हो ?
वचनबद्धता भूल यहाँ क्या करने तुम आये हो ?
सचमुच पशु से भी जीवन की कला न सीख पाये हो ।
अर्जुन, कृष्ण, एकलव्य, युधिष्ठिर कुछ भी तो तुम होते।
राम,विभीषण ,रामानुज, ईसा,शंकर से होते ।
भ्रातृहरि या कालिदास-से जग का अनुभव लेते।
जरथुस्त्र, जड़ भरत, कन्फ्युशियस-सा दर्शन देते।
भीष्म प्रतिज्ञा ,गाँधी का सत्याग्रह करते ।
मीरा,तुलसी,सूर, कवीर,कपिल, कणाद् कहाते।
सिंह शावक संग क्रीड़ा, भरत सी भक्ति करते।
रोक पिता के अश्व माता का गौरव बनते ।
लव-कुश का आदर्श,प्रह्लाद,ध्रुव भक्ति करते ।
पत्रकार नारद से होते सच को तुम सच कहते।
नीति विदुर,कौटिल्य-चाणक्य ,अटल ,मोदी सा तू बनते।
अंगद,हनुमान तुममें हैं, कण-कण में हरि बसते।
लेते हो अवतार..........।
कुल मर्यादा भूल,धर्म से मुख तुम मोड़ रहे हो ।
भूल सभी कर्त्तव्य,अधिकार के पीछे पड़े हुए हो।
लेते हो अवतार........।
(क्रमशः)
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