दिवा-निशा मिलन महोत्सव
उठ जाग प्रिय! उठ जाग जाग,है आने को है प्राची प्रकाश।
निस्तब्ध निशा,नि:शब्द दिशा,अरुणाभ हो रहा है आकाश।।
झिंगुर धुन ध्यान लगाये हैं, निशिचर मन मोद बढ़ाये हैं।
बज रही मधुर नारद वीणा, मादकता नयन समायी है।।
रात्र्यान्तिम प्रहर, हो रही भोर, ले रही निशा अंगराई है।
चन्दा को पुनः मनाने को,जुगनू ने जुगुत लगायी है ।।
काजल में छिपे उगे सूरज, प्रिय नयन छटा मनुहारी है।
फैली है ज्योति जगत भर में,अरुणाभ छटा अति न्यारी है।।
चहचहा रही कब से चिड़ियाँ, खग-कुल ने शोर मचाई है।
हो गई, भोर उठ जाग प्रिय, मुर्गे ने बाँग लगायी है।
तारक प्रहरी थक सोये हैं,अलसायी नयन लजाई है।
रति-काम युगल मदन रस पा, तन्वंगी सोयी अलसाई है।।
दिन-रात मिलन में साँझ-उषा, रवि-निशि दे रहे बधाई हैं।
प्रातः वन्दन करती सखियाँ,स्वर राग पलासी छायी है।।
उस पार छितिज सायं-संध्या,दरबारी स्वर लहरायी है।।
गोधूलि गोपाल चरण वन्दन,गोपिका ग्वाल सब आये हैं।
स्नेहिल पिय हिय चरणरज से,प्रभु ने संताप मिटाये हैं।।
रवि-निशि दिन-रात मिलन उत्सव, अभिनव मादकता दायी है।
मलय समीर शबनम सिक्त कली संग करत बसन्त अगुआई हैं।।
अण्डज,पिण्डज,उद्भिज नारी-नर निज सुधि तज डाली है।
प्रकृति-पुरुष मिलन जग जाहिर प्राकृतिक प्रेम बढ़ायी है।।
दो प्रहर मिलन अदभुत संगम,घनश्याम घटा नभ छायी है।
पिया मिलन वन जन मन मोर चकोर स्वसुधि बिसराई है।।
आरुढ़ अरुण संग रश्मिरथी,रथ सप्त अश्व युत सारथी संग।
वन,देवी-देव,नर-नारी गण,मुनि-दनुज कर रहे अभिनन्दन।।
"शैलज" राग पराग महोत्सव हर ओर जगत में छायी है।
अलि देवांगना दिव्यांगना संग प्रभु पद पखारने आयी है।।
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