जब मुझे तुम खो चुकोगे,भीड़ में तुम खो चुकोगे।।
है अटल विश्वास मुझको,विश्वास मुझ पर तब करोगे।।
लिया जब अवतार मैंने,आर्त्तों की पीड़ हरने।
झेल झंझावात सारे,हर हृदय में प्रेम भरने।
प्राणियों के त्रिविध तापों को सहज ही दूर करने।
कार्य कारण की समझ स्थापना विधि मान्य करने।
पर, नहीं विश्वास, अमर फल स्वाद तुम कैसे चखोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे,विश्वास मुझ पर तब करोगे।।
प्रणव ऊँ स्वरूप मेरा, त्रिगुण त्रिविमीय आयाम गोचर।
पंच तत्वों में परस्पर व्याप्त चराचर अनन्त स्वरूप मेरा।।
वेद वाणी, सर्वज्ञ, सम्प्रभु, आद्यान्त, सगुणागुण नियन्ता।
मैं प्रकृति पुरुषात्मक जगत् स्रष्टा, पालन, संहार कर्त्ता।।
पर, बिना श्रद्धा समर्पण पहचान तुम कैसे सकोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।।
मूल जड़ चैतन्यता, अहं, उदगार प्रकृति समरूपता का।
है जगत् नि:सार शैलज, मोह भ्रम क्या तज सकोगे ?
सत्य पर विश्वास करने, अग्नि पथ पर चल सकोगे ?
योग या फिर भोग में सम भाव में मुझसे मिलोगे।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।।
मन्दिरों, मस्जिदों, गह्वरों में, या कि फिर गिरिजाघरों में।
चींख कर दम तोड़ दोगे, या कि साधना रत रहोगे ?
कष्ट देकर क्या किसी को, लक्ष्य तक तुम चल सकोगे ?
प्रेम को जाने बिना तू, एक पग क्या बढ़ सकोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।।
प्रो० ए० के० शैलज,पचम्बा,बेगूसराय
(डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।)
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