सुमन :-
पंकज अथाह जल में भी, निज मौलिकता में रहता।
हों उदधि, सरोवर कोई, निर्मल, सुरभित, अति सुन्दर।
नीरज, जलज, कमल कीच संग
हों कीच परित्यक्त मानव
नर पशु अधम के पथ पर, आरूढ़ कभी न होता।।
शौचाशौच विषय की, परवाह सुमन न करता।
समदर्शी गुण के कारण, देवो के सिर पर चढ़ता।।
वय कली, मुकुल कुछ भी हो, मधु प्रेम हृदय में रहता।
मानव या देव-दनुज हों, सम्मानित सबको करता।।
छल-कपट हृदय या मन में, उसको न कभी होता है।
प्रिय मिलन पर्व संगम में, मध्यस्थ मुदित होता है।।
शैलज, कपास, पंकज या, गूलर, गुलाब, गुलमोहर।
है प्रकृति फूल सुमन की, सुख-दुःख में भाव मनोहर।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।
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