शैलजा शैलज तुम्हारी प्रतिलिपि हूँ,
वास्तव में मैं तुम्हारी ही कृति हूँ ।
एक छाया हूँ तुम्हारी, अंगना हूँ,
द्वन्द तन मन का नहीं दिव्यांगना हूँ।।
उतरकर मैं स्वर्ग से आयी धरा पर,
प्रेम का संदेश लेकर दिव्य निश्छल।
भाव की भूखी पुरुष तेरी प्रकृति मैं,
वास करती हृदय में देवांगना हूँ।।
अर्धनारीश्वर प्रकृति है पुरुष तेरा,
है सुशोभित हो रहा दिगन्त सारा।
अन्तरंगता का अखिल संदेश लेकर,
बाट कब से जोहती, दिव्यांगना हूँ।।
एक है विश्वास केवल प्रेम तेरा,
बन गया सम्बल अंधेरे रास्ते में।
क्या अचानक हो गया है आज मुझको?
देखती हूँ तुम्हें ही मैं हर किसी में।।
स्वयं से अनजान नारी या कि नर हूँ,
परमात्म-पथ पर बढ़ रही मैं बेखबर हूँ।
क्या पता, कब से विचरती हूँ गगन में ?
प्रेम-मग में मगन बस एक आत्मा हूँ।।
रूप मेरे हैं अनकों, रंग मेरे हैं अनेकों,
जो चराचर में, प्रकृति में,वे सभी हैं अंग मेरे।
मधुर मुरली की सुनहरी प्रेम धुन में ध्यान मेरी,
हरि चरण रज को विकल अलि ! देवांगना हूँ।।
(क्रमशः)
प्रो० अवधेश कुमार "शैलज", पचम्बा, बेगूसराय।
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