तुम हृदय में बस चुके हो, प्रीति जानो या न जानो ।
वेदना के गीत हैं ये,मीत मानो या न मानो ।।
तुम हृदय में बस चुके हो.....।
बोध मुझको कुछ नहीं है ,एक तुम ही याद आते ।
याद अब भी वही है, प्रथम मिलन की मधुर बातें ।
तुम हृदय में बस चुके हो......।
रूप तेरा है सलोना, रंग तेरा है सलोना ।
सामने तेरे नहीं, अनमोल चाँदी और सोना ।।
मौन हो कर साधना तुम कर रहे दिन रात प्रतिपल ।
और उसके ताप से हूँ विकल शैलज नित्य अविचल ।।
समय स्थिर हो गया है,
देखकर यह धैर्य तेरा ।
क्या कहूँ?किस हाल में हूँ? कौन जाने मर्म मेरा?
तुम हृदय में......।
(क्रमशः)
अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय ।
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