रश्मि रथी :-
सजा रही माता सपने को,
किन्तु पिता सम्बल हैं ।
दोनों के सागर मन्थन से,
निकला हर्ष कमल है ।।
तम को भेद ऊषा चूमने,
रवि संग रश्मि रथी हो।
आते नित्य वलैया लेने,
उतर स्वर्ग से नीचे ।।
पकड़ कला विज्ञान शिशु,
अपने नित कोमल कर से ।
हठ करते असीम को,
संग सदा रहने को ।।
खिले मुकुल अरुण रस पाकर,
कली- कुसुम मुसकाये ।
पुष्प वाण लेकर अनंग,
रति संग जगती पर छाये ।।
दे आशीष जगत् को दिनकर,
राज काज में लागे ।
प्रजा वर्ग के हित में दिनपति,
असुरों पर कोप दिखाये ।।
धरती तपी, तपे साधक गण,
कृषक, जीव अकुलाये ।
" शैलज " काल करम गति लखि,
प्रभु पद प्रीति बढ़ाये।।
मधुकर कुञ्ज कुमुद रस पा,
श्रम औ स्वेद मिटाये ।
छाया का सम्मान बढ़ा,
नारद नीरद नभ छाये।।
ऐरावत आरुढ़ शचीपति,
प्रभु को तुरत मनाये ।।
देव-दनुज,नर-नारी,मुनिगण,
सकल सुमंगल गाये ।,
प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।
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