शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

कंचन :-

कंचन
कंचन कंचन का होता है,
पर,कंचन न कंचन होता है।
लेकिन वास्तव में कंचन के
रूप अनेकों होते हैं।
कंचन मन को कंचन करता है,
कंचन न कंचन  करता है।
कंचन अपने दर्शन से,
सदा अचम्भित करता है।
कंचन कंचन है दर्शन में,
कंचन से दिल कंचन होता
कंचन से सजती हैं दुल्हन,
कंचन से मिलती है इज्ज़त
कंचन से आता है संकट,
कंचन से खजाना भरता है।
मृग मारीच बना कंचन,
मर्यादा को भी भटकाता है,
लक्ष्मण सा स्थिर मन को भी,
वह विचलित कर जाता है।
सीता हरण, रावण मरण
कंचन युद्ध कराता है।
कंचन जोड़ता है हमको,
अपनों से जुदा कराता है।
निज सभ्यता संस्कृति से कर दूर,
हमें कुपथ कुराह बताता है।
कंचन अथाह, कंचन अभाव,
दोनों निज रुप दिखाता है।
कंचन दोनों मौके पर
सन्यास मार्ग दिखलाता है।
कंचन तमोगुणी होकर
अमानवीय कर्म कराता है,
कंचन रजोगुणी होकर
संसाधन सुलभ कराता है।
कंचन सतोगुणी होकर
जीवन रक्षक हो जाता है।
शैलज कंचन के खातिर,
आखिर नर क्यों मरता है?
कंचन खातिर मरता है वह,
कंचन के खातिर जीता है।
पर, अन्तिम क्षण में कंचन,
न संग उसे दे पाता है।
कंचन कंचन रटते रटते,
जीवन को तज वो जाता है।
कंचन ध्येय न हो जीवन का,
अनुभव यही बताता है,
कर कंचन का उपयोग सही,
नर दुर्लभ सुख पा सकता है।
कंचन से जीवन पाता है,
कंचन से जीवन जाता है।
कंचन मन कंचन पा करके
जीवन कंचन कर पाता है।

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


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