गुरुवार, 22 सितंबर 2022

द्वन्द्व की दीवार तोड़ें :-

द्वन्द्व की दीवार तोड़ें

सम्यक् भाव विचार हैं जिनके, वंदनीय वे जन हैं।
काम, क्रोध, मद, लोभ रहित, लोग सभी सज्जन हैं।।
मातु-पिता से बढ़कर केवल सदगुरु एक होते हैं।
मित्र, सहायक, शत्रु से भी, हम सीख सदा लेते हैं।।
अच्छे सभी नहीं हैं जग में, हर सुन्दर चेहरे वाले।
सावधान "शैलज" उनसे भी जो लगते हैं रखवाले।।
पर, सब में अपनापन,सुन्दरता, सद्गुण यदि देख सकते हो।
शत्रु मित्र बनेंगे, प्रभु कृपा अहैतुकी अनुभव कर सकते हो।
जिसने तेरी रचना की है और जगत् में भेजा।
कर्म करो नित उन्हें याद कर, बदलेगी हर रेखा।।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का चक्र अहर्निश चलता।
देश, काल औ पात्र बोध से अनुपम फल है मिलता।।
अपने पर विश्वास और श्रद्धा हो हर कण-कण में।
आत्मनियंत्रण, जीवन का सदुपयोग भाव हर क्षण में।।
भावुकता से नहीं चलेगी, जीवन की यह गाड़ी।
पर कठोरता सह न सकेगी, सपने की लाचारी।।
विटप-वेल, रति-काम महोत्सव, योग-भोग सुख दायी।
धर्म-कर्म निज निरत चराचर, सबाल वृद्ध युवा नर-नारी।।
सुख-दुःख भोग, जगत् का मेला, आवागमन यहाँ अकेले।
दुर्गम नहीं, सुगम पथ जग का, बस खेल समझ कर खेलें।।
सुन्दर सुभग अनुपम बसन्त संग प्राकृतिक छटा सुहावन।
प्रकृति पुरुषात्मकम् जगत् श्री हरि बोध हृदय मन भावन।।
जीवन पथ में हम सफर के संग दीवार द्वन्द्व की तोड़ें।
अनुकरणीय आदर्श जीवन की सदा छाप हम छोड़ें।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


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