राधा
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राधा तू मेरे जीवन की,
मेरी प्रकृति की धारा ।
तेरे विना नहीं मिलता है,
कोई कूल किनारा ।
तू चिन्मय आनन्दमयी औ
मैं चिन्मयानंद कहाता ।
तेरी माया के कारण ही
मैं जड़-चेतन को रच पाता ।
राधे! प्रकृति तू आदि शक्ति,
मैं पुरुष कन्हैया तेरा हूँ ।
तू सगुण, तुम्हारा निर्गुण मैं,
अर्धनारीश्वर कहलाता हूँ।
तेरा दर्शन श्रम हर लेता,
ममता मयी तू, माता हो ।
वात्सल्य तुम्हारा अनुपम है,
तू त्रिविध ताप की त्राता हो ।
अक्षय है प्रेम, कृपा तेरी,
मैं कृपानिधि कहलाता हूँ ।
राधे!राधे! जो जपते रहते,
उनमें जाकर बस जाता हूँ ।
तुझसे न होऊँ अलग राधे!
बस राह यही रह जाता है ।
तू माँ हो, ममता की मूर्ति हो,
सच कहूँ- बहुत अकुलाता हूँ ।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
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