Psychology is an ideal positive science of experience,behavior & adjustment process of an organism in given situation/their own environment.
मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017
रविवार, 1 अक्टूबर 2017
प्राणी की समायोजनात्मक व्यवहार प्रक्रिया
शुक्रवार, 29 सितंबर 2017
Interview ( साक्षात्कार) :- Prof. Awadhesh Kumar,M.J.J.College,M., Banwaripur, Begusarai
रविवार, 24 सितंबर 2017
राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।
राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित आँखों से कैसे
भारतेंदु ने सच ही कहा
जो आज समझ में आई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "
केवल कविता प्रेमी ।
हिन्दी-हिन्दुस्थान भारत के
अन्तरतम से थे सेवी ।।
राजनीति व्याध साहित्यिक
छल बल से भरे हुए हैं ।
स्वार्थी,अपराधी, आराजक
तत्वों से हम घिरे हुए हैं ।।
अवसरवादी, शरणागत हो,
माथे पर चढ़े हुए हैं ।
मानवता त्रसित हो रही,
आतंकित सारी धरती है ।।
धर्म-कर्म हो रहे तिरोहित,
दुष्ट भाव फैला है ।
देश द्रोहियों का भारत में
महाजाल फैला है ।।
विश्व गुरु भारत की कुटिया,
लूट रहे जग वाले ।
पोथी-पतरा सभी ले गए,
जो बचा जला वे डाले ।।
तप, कर्म, संकल्प, साधना,
ईश बल बचा हुआ है ।
गीता का उपदेश कृष्ण का,
अब भी गूँज रहा है ।।
अर्धनारीश्वर रुप हमारा,
इसे तोड़ते जो हैं ।
प्रकृति-पुरुष की दिव्य शक्ति
को नहीं जानते वे है ?
एक सनातन धर्म हमारा,
सब जीवों की सेवा है ।
दया धर्म का मूल हमारा,
क्षणभर मेरा तेरा है ।।
हम अगुण सगुण को भजते,
सबको अपना ही समझते हैं ।
वे दया धर्म से पतित हमें,
कायर काफिर तक कहते हैं ।।
हम शान्ति, न्याय, आदर्श, अहिंसा,
सत् पथ पर चलते हैं ।
वे ज्योति बुझा कर हमें कुमार्ग
पथ पर चलने को कहते हैं ।।
तोड़ रहे सांस्कृतिक एकता,
आपस में हमें लड़ाकर ।
पूर्वाग्रह ग्रसित प्रतिशोध की
ज्वाला को भड़का कर ।।
जाति-धर्म की राजनीति
हरदम करते रहते हैं ।
ऊँच-नीच का पाठ पढ़ा कर
ये हमको ठगते हैं ।।
भटक रहे जो खुद भ्रमित हो,
औरों को राह दिखाते हैं ।
नद निर्झर की धारा को वे
शिखरों की ओर बहाते हैं ।।
आर्ष ज्ञान से भटका कर
पाश्चात्य जगत ले जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान ज्ञान से,
वे हमको भरमाते हैं ।।
" सोने की चिड़ियाँ " का
अद्भुत रुप नहीं देखा है ।
वरदा भारत भारती माँ से
वेकार उलझ बैठा है ।।
रण चण्डी को बुला रहा है,
रोज निमन्त्रण देकर ।
भगवा धारी प्रकट हुई हैं,
आज तिरंगा लेकर ।।
राष्ट्रकवि! इनके वन्दन का,
समय पुनः आया है ।
जागें बन मुचुकुन्द कविवर,
राक्षसी प्रवृत्ति छाया हैं ।।
भस्म करें निज ज्ञान नेत्र से,
अन्तर के असुर दलों को ।
अमृत का उपहार सुरों को,
दें फिर मोहिनी बन के ।।
काल कूट तू ही पी सकते,
औरों में शौर्य कहाँ है ?
रहते शांत, असीम धैर्य की
शक्ति यहाँ कहाँ है ?
कविवर ! उठो,जगो हे दिनकर !
तम को दूर भगाओ ।
श्रम जीवी, बुद्धि जीवी को,
सत् पथ राह दिखाओ ।।
बाट जोहती खड़ी भारती
कब से हिन्द जन मन में ।
देर हो रही रणचंडी के,
पावन अभिनन्दन में ।।
" हिन्द उन्नायक " खोज रही हैं,
कब से भारत माता ।
वरण करो रचनात्मकता का,
अवसर न हरदम आता ।।
अपने और पराये अर्जुन,
इन्हें अभी पहचानो ।
अन्तस्थल के विराट को,
दिव्य-दृष्टि से जानो ।।
माता रही पुकार राष्ट्रकवि !
जागो और जगाओ ।
भूषण, गुप्त, सुभद्रा, प्रसाद को
फिर से आज जगाओ ।।
विखरे अपने अंगों को
आज पुनः अपनाओ ।
सत्तर वर्षों की निद्रा से,
वीरों को पुनः जगाओ ।।
भारत की सभ्यता-संस्कृतिक,
संकट में पड़ी हुई है ।
रक्त बीज,जय चन्द, शकुनि से
धरती भरी हुई है ।।
अर्जुन को ही नहीं युधिष्ठिर को
भी रण में लड़ना होगा ।
पाने को अधिकार विवेक से
कर्त्तव्य पूर्ण करना होगा ।।
रण में जो आड़े आयेंगें,
उनको हम सबक सिखायेंगे ।
हम विदुर और चाणक्य सूत्र से
सारे जग को हम जीतेगे ।।
"शैलज" मिथिला की सीमा पर
" दिनकर " की सिमरिया नगरी है ।
हिन्दी साहित्य भाषा शैली की
अवशेष अशेष यह गगरी है ।।
इस पुण्य भूमि को नमस्कार
जिसने तुम-सा सुत जन्म दिया ।
भारत माता की सेवा में निष्ठा से
जीवन भर अपना कर्म किया ।।
देव- दनुज हेतु जहाँ अमृत प्रकटे,
प्राकृत संस्कृत वेद वचन प्रभु से निकले ।
रुप मोहिनी,हरि,राम,विष्णु आये,
सुरसरि हित अवतरित हुए प्रभु रुक पाये ।।
कविवर जागो! हे राष्ट्र कवि !
दिनकर ! तू आँखें खोलो ।
गंगा जल से आँखें धोलो ।
पावन 'रेणु' का 'मैला आँचल' धोलो ।।
प्रगतिशील कहलाने वाले
सोच नहीं कुछ पाते ।
माँ की ममता समझ न पाते,
मुझको ही हैं समझाते।।
हे राष्ट्रकवि! दिनकर ! कवि वर !
जन गण मन बोल रहा है ।
जन्म दिवस पर आज तुम्हें ये
अन्तस् की पीड़ा बता रहे हैं ।।
राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
ऐसा राष्ट्र बनाऊँ ।
एक राष्ट्र ही नहीं विश्व में
जीवन शेष बिताऊँ ।
जनता की सच्ची सेवा कर
जन सेवक कहलाऊँ ।।
कभी नहीं घबराऊँ ।
ज्ञान- विज्ञान, कला ,अध्यात्म
का जग को पाठ पढ़ाऊँ ।।
कैसे राह दिखाऊँ ?
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढाऊँ ?
प्रो० अवधेश कुमार " शैलज "‛
पचम्बा, बेगूसराय ।
मंगलवार, 8 अगस्त 2017
महिला उपेक्षा : समाज का कलंक
स्त्रियों का आहार दुगुणा, साहस चार गुणा,
व्यवसाय बुद्धि छ: गुणा तथा कामचेष्टा आठ गुणा पाया जाता है । यह प्रचीन कालिक मत है।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।
फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।
यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ प्रायः अधिक पाया जाता है ।
नर-नारी के मध्य पारस्परिक स्वाभाविक या आकस्मिक आकर्षण के फलस्वरूप नर बीज का नारी के अण्डाणु के साथ संयोग से अथवा परखनली शिशु का जन्म होता है और एक माँ जो अपने सन्तान का परित्याग वह अपने वात्सल्य भाव के परिणाम स्वरूप एक क्षण के लिए भी नहीं कर सकती है उसे प्रायः उसकी मानसिकता के विपरीत वातावरण में रहने, पलने, विकसित या अभियोजित होने हेतु भेजने की यथासंभव हर तैयारी के साथ प्रायः स्वेच्छा से और / या अपने परिवार / समाज के प्रभाव में आकर भेज देती है जहाँ पहुँचकर उस लड़की का उस नये वातावरण में अपने आपको अभियोजित करना या न करना नये परिवेश के साथी या सदस्य की मनोदशा से अधिक उस लड़की पर मुख्य रूप से निर्भर करता
है।
( क्रमशः )
नर-नारी सम्बन्धों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।
फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।
यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य स्वाभाविक आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ प्रायः अधिक पाया जाता है ।
( क्रमशः )
सोमवार, 7 अगस्त 2017
असुरक्षा भावना (Insecurity feeling)
अपने अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा हेतु प्राणी द्वारा किये जा रहे संघर्षों के वावजूद यदि लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित बाधायें दूर नहीं हो पाती है , तो असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है ।
होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र :-
होमियोपैथी के जनक जर्मनी के प्रसिद्ध एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन ने एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका के जर्मन भाषा में अनुवाद के क्रम में China के अध्ययन के सन्दर्भ में किये गए अपने प्रयोगात्मक अध्ययन के पश्चात् आरोग्य प्राप्ति के ' समं समे समेयति ' का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे होमियोपैथी कहा गया ।
होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र अधोलिखित हैं :-
1. जिससे रोग होता है, उससे रोग जाता है।
2. रोगी की चिकित्सा करें, न कि रोग की ।
3. रोगी की प्रसन्नता में वृद्धि, रोग नाश का सूचक लक्षण है ।
4. किसी भी प्राणी के शरीर एवं मन पर यदि किसी सजीव या निर्जीव पदार्थ का प्रभाव पड़ता है तो उस पदार्थ के विषाक्त प्रभाव से मुक्त होने के लिये उसी पदार्थ की सूक्ष्म मात्रा का उपयोग करने से प्राणी मनोशारीरिक रुप से रोग मुक्त या स्वस्थ हो जाता है ।
5.
(क्रमशः)
शुक्रवार, 28 जुलाई 2017
सर्व कल्याणकारी प्रार्थना:-
' सर्व कल्याणकारी प्रार्थना '
......................................…..................
प्रियतम ! स्वामी ! सुन्दरतम् ! माधव ! हे सखा ! हमारे !
मिलती है , शान्ति -👌जगत में, केवल प्रभु ! तेरे सहारे ।।
तुम अमल धवल ज्योति हो, ज्योतित करते हो- जग को ।
स्रष्टा! पालक ! संहर्ता ! तुम एक नियन्ता-जग के ।।
कैसे मैं तुझे पुकारूँ, जड़ हूँ, न ज्ञान -मुझको है ।
प्रभु एक सहारा-तुम हो, रखनी प्रभु लाज -तुझे है ।।
सर्वज्ञ ! सम्प्रभु ! माधव ! तुम तो -त्रिकालदर्शी हो ।
अन्तर्यामी ! जगदीश्वर ! तम-हर ! भास्कर भास्कर हो ।।
मायापति! जन सुख दायक ! तुम व्याप्त -चराचर में हो ।
हे अगुण ! सगुण ! परमेश्वर ! सर्वस्व हमारे -तुम हो ।।
आनन्दकन्द ! करूणाकर ! शशि-सूर्य नेत्र हैं -तेरे ।
तुम बसो अहर्निश प्रतिपल, प्रभु ! अभ्यन्तर में -मेरे ।।
तेरी ही दया कृपा से, अन्न धन सर्वस्व मिला है ।
तेरी ममता इच्छा से, यह जीवन कमल खिला है ।
उपहास किया कर ते हैं, जग के प्राणी सब -मेरे ।
स्वीकार उन्हें करता हूँ, प्रेरणा मान सब -तेरे ।।
कर्त्तव्य किया न कभी मैं, प्रभु ! प्रबल पाप धोने का ।
जुट पाता नहीं मनोबल, प्रभु ! अहंकार खोने का ।।
बस, तिरस्कार पाता हूँ , यह पुरस्कार है- जग का ।
है बोध न मुझको कुछ भी, जगती का और नियति का ।।
यह जीवन चले शतायु, मंगलमय हो जग सारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
हे हरि ! दयानिधि! दिनकर! सब जग के तुम्हीं -सहारे ।
हम सब को प्रेम सिखाओ, हे प्रेमी परम हमारे ।।
हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा ।
अनुकरण योग्य प्रति पल हो, जीवन आदर्श हमारा ।।
ईर्ष्या ,माया,मत्सर का लव लेश नहीं हो हममें ।
धन, बल, विकास, काया का -सुन्दर विकास हो हममें ।।
सौहार्द, प्रेम भावों का प्रभु ! उत्स हृदय में फूटे ।
उत्तम् विचार राशि को,जगती जी भर कर लूटे ।।
सार्थक हो जग में जीवन, सार्थक हो प्रेम हमारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय ।
( प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान, एम.जे.जे.कालेज, एम., बनवारीपुर, बेगूसराय। )
(कालेज कोड : ८४०१४)
गुरुवार, 13 जुलाई 2017
स्मरणीय सूत्र :-
१- हमें अपने शरीर की जरूरत को पूरा करना चाहिए न कि मन की प्रसन्नता हेतु शरीर विरोधी वैसे किसी निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जो तत्काल मन को आनन्दित करनेवाला हो, शरीर के लिए हानिकारक हो ।
२- मन की बात को जबरन नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि मन की दबी हुई इच्छा की पूर्त्ति नहीं होने पर वह व्यक्ति भविष्य में कुछ न कुछ मानसिक या मनोशारीरिक रोगों का शिकार हो सकता है ।
३- हमारा सम्यक् मनोशारीरिक विकास ही हमारे सम्यक् वैयक्तिक,समाजिक, नैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक , व्यवसायिक,कला, ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्मिक विकास का आधार हो सकता है ।
४- प्रकृति से हमारा जितना अधिक तादात्म्य रहता है, हम उसी अनुपात में पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित होते हैं ।
५- हमें किसी भी समस्या के समाधान के लिए यथा संभव प्रयास करते रहना चाहिए।
६- हमें आतीत के अनुभव से लाभान्वित होने के लिए वर्तमान में उन अनुभवों का सदुपयोग भविष्य के लिए करना चाहिए ।
७- हमें अपने जीवन के समान ही दूसरों के जीवन को महत्वपूर्ण मानना चाहिए ।
८- हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की जरूरत की पूर्ति में यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।
९- हमें अपनी सीमाओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए ताकि हमारा अहंकार हमें जीवन के आनन्द और परमात्मा से दूर नहीं कर सके ।
मंगलवार, 11 जुलाई 2017
Biochemic Remedies :-
- डॉ० प्रो० अवधेश कुमार' 'शैलज'
एम. ए.मनोविज्ञान, होमियोपैथ,
पता:- पचम्बा, बेगूसराय (851218)
होमियोपैथी केअख जनक महान् एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन के शिष्य डॉ०शुस्लर ने महात्मा हैनीमैन द्वारा प्रमाणित दवाओं में से 12 ऐसी दवाओं को चुना जो प्राणी के रक्त एवं अस्थियों में समान रूप से एक निश्चित अनुपात में पाया जाता है, जिसे उन्होंने Twelve Tissues ( 12 नमक ) कहा । इन 12 नमकों में से यदि किसी भी कारण से किसी एक भी नमक की कमी या अधिकता हो जाती है तो शरीरस्थ अन्य लवणों और अन्य तत्वों में असन्तुलन पैदा हो जाता है, फलस्वरूप प्राणी अपने आप को अस्वस्थ महसूस करता है, अतः
ये 12 लवण अधोलिखित हैं :-
1. Calcaria Flourica
2. Calcaria Phosphorica / Calcaria Phos.
3. Calcaria Sulphurica / Calcaria Sulph. तलवे मेंं खुजली एवं घाव।
4. Ferrum Phosphoricum/ Ferrum Phos. यह बायोकेमिक एकोनाइट है।
5. Kalium Mureticum / Kali Mure.
6. Kalium Phosphoric / Kali Phos.
मस्तिष्क का हिल जाना ।
7. Kalium Sulphuricum / Kali Sulph.:-
8. Magnashium Phosphoricum / Mag Phos.
कष्टार्तव मेन्स या रज:श्राव होने पर घटना। द्विदृष्टि (एक का दो दिखाई पड़ना।
9. Natrum Mureticum / Natrum Mure.
चावल / भात, नमक या मिर्च अधिक पसन्द । सूर्य की धूप मुख्यतः 9 बजे दिन से 3 बजे दिन तक वेवर्दास्त या नापसन्द ।सुबह 10 बजे से 11बजे के मध्य रोग लक्षण में विशेष वृद्धि ।
10. Natrum Phosphoricum / Natrum Phos. :-
11. Natrum Sulphuricum / Natrum Sulph. जिह्वा का रंग हरा ।
वाँयी करवट लेटने में कष्ट का बढ़ जाना।
12. Silica :-
सोमवार, 10 जुलाई 2017
रविवार, 9 जुलाई 2017
प्रज्ञा-सूक्तं :
'प्रज्ञा-सूक्तं'
-प्रो०अवधेश कुमार 'शैलज',पचम्बा, बेगूसराय ।
ऊँ स्वयमेव प्रकटति ।। १।।
अर्थात्
परमात्मा स्वयं प्रकट होते हैं ।
प्रकटनमेव जीवस्य कारणं भवति ।।२।।
परमात्मा का प्रकट होना ही जीव का कारण होता है ।
जीव देहे तिष्ठति ।।३।।
जीव देह में रहता है ।
देहात काल ज्ञानं भवति ।।४।।
देह से समय का ज्ञान होता है ।
देहमेव देशोच्चयते ।।५।।
देह ही देश कहलाता है ।
देशकालस्य सम्यक् ज्ञानाभावं अज्ञानस्य कारणं भवति ।।६।।
देश एवं काल के सम्यक् (ठीक-ठीक एवं पूरा-पूरा) ज्ञान का अभाव अज्ञान का कारण होता है ।
अज्ञानात् भ्रमोत्पादनं भवति ।।७।।
अज्ञान् से भ्रम ( वस्तु/व्यक्ति/स्थान/घटना की उपस्थिति में भी सामान्य लोगों की दृष्टि में उसका सही ज्ञान नहीं होना) पैदा/ उत्पादित होता है ।
भ्रमात् विभ्रमं जायते ।।८।।
भ्रम (Illusion) से विभ्रम (Hallucination) पैदा या उत्पन्न होता है ।
विभ्रमात् पतनं भवति ।।९।।
विभ्रम (विशेष भ्रम अर्थात् व्यक्ति,वस्तु या घटना के अभाव में उनका बोध या ज्ञान होना) से पतन होता है ।
पतनमेव प्रवृत्तिरुच्चयते ।।१०।।
पतन ही प्रवृत्ति कहलाती है ।
प्रवृत्ति: भौतिकी सुखं ददाति ।।११।।
प्रवृत्ति भौतकी सुख प्रदान करता है ।
भौतिकी सुखं दु:खोत्पादयति ।।१२।।
भौतिकी सुख दु:ख उत्पन्न करती है ।
सुखदु:खाभात् निवृत्ति: प्रकटति ।। १३ ।।
सुख दुःख के अभाव से निवृत्ति ( संसार से मुक्त होने की प्रवृत्ति ) प्रकट होती है ।
निवृत्ति: मार्गमेव संन्यासरुच्चयते ।।१४।।
निवृत्ति मार्ग ही संन्यास कहलाता है ।
संन्यासमेव ऊँकारस्य पथं अस्ति ।। १५।।
संन्यास ही परमात्म का पथ या मार्ग है ।
संन्यासी आत्मज्ञ: भवति ।। १६।।
संन्यासी आत्मज्ञानी होते हैं ।।
आत्मज्ञ: ब्रह्मविद् भवति ।।१७।।
आत्मज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी होते हैं ।.
जीव ब्रह्म योग समाधिरुच्चयते ।।१८।।
जीव और ब्रह्म का योग ही वास्तव में समाधि कहलाता है ।
नोट :- ज्ञातव्य है कि थियोसोफिकल सोसायटी की अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ० राधा वर्नीयर को जब मेरी इस रचना की जानकारी हुई तो उन्होंने इस रचना का शीर्षक 'सत्य की ओर' दिया साथ ही इस रचना पर अपनी टिप्पणी देते हुए थियोसोफिकल सोसायटी की महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका 'अध्यात्म ज्योति' में मुझ अवधेश कुमार 'शैलज' के नाम से इस रचना को प्रकाशित करवाया, जिसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ ।
मंगलवार, 27 जून 2017
Concise Psychological Dictionary (संक्षिप्त मनोवैज्ञानिक शब्दकोश) :-
Psychology :" Psychology is an ideal positive science of experience, behavior and adjustment process of an / any organism in their own environment. "
अर्थात्
" मनोविज्ञान प्राणी के अपने वातावरण में उनके अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श समर्थक / विधायक विज्ञान है । "
A
A : 'A' is the first capital letter & alfabate of English language.
It is called vowel also.
It comes before any term related with subject & / or predicate of any sentence which is started with consonant letter.
One can use this letter or term in mathematics ( mainly algebra & trigonometry).
It means one / single.
A : In Psychology A denotes 1. , 2. Amplitude & 3. Assumed
a : 'a' is the small letter /alfabate of English language.
An : 'a, an & the ' these are articles.
'an' comes before words starting with vowel but 'a' comes before words starting with consonant and 'the' denotes specific quality or characteristics of any person, place, things, time or event.
Ab : Away ( दूर / अभाव / अलग ) , Absent ( अनुपस्थित )
Abnormal : Away from normal. (सामान्य या मानक से दूर या अलग अर्थात् असामान्य)
Abbreviation : Short form or essence of any term or the first letter of any term / word.
किसी पद ( शब्द या शब्दसमूह ) हेतु प्रयुक्त प्रथम, संक्षिप्त एवं सार स्वरूप अक्षर या वर्ण यथा A. P. A. (American Psychological Association) ।
Ach : Acetycholine
AChE : Acetycholinsterase
ACT : American Collage Testing Program.
ACTH : Adrenocorticotropic . Hormone
AD : Average Deviation
AD = £ (Xi-X)÷N ;
AD = Average Deviation
X = Mean
Xi = The ith score
i= Class interval
N = The total number of score
ADH : Antidiuretic Hormone
AI : Artificial Intelligence
AL : Adaptive Level
AM : Assumed Mean
ASL : American Sign Language
A-S scale : Anti - Semitic scale
ANOVA : Analysis of variance
ANS : Autonomic Nervous system
ARP test : Aptitude Research Project Test
B
B : 1. Behavior, 2. Barrier, 3.Black, 4.Block, 5.Boy, 6.Basic.....etc .
BAS -1: Awadhesh Kumar's Basic Anxiety Scale - 1
BAS - 2 : Awadhesh Kumar's Basic Anxiety Scale - 2
EAS : Awadhesh Kumar's Emotional Adjustment Scale
EASCS : Awadhesh Kumar's Emotional Adjustment Sentence Completion Scale
IEAS : Awadhesh Kumar's Ideal Educational Anxiety Scale
BMR : Basal Metabolism Rate
BSD scale : Bogardus Social Distance Scale
'B - R' Law : Bunsen - Roscoe Law
Brunswick Ratio = ( P - R ) ÷ ( C - R ) ;
Where P = Perceived or Judged Size
R = Relative Regional Size
C = Objective Physical Size
B = f ( OME )..... Editor's Concept.
Where B = Behavior
f = Factor
O = Organism
M = Motivation
E = Environment
C
C : 1. Centigrade , 2. Control Group ,
3. Constant , 4. Correction Factor.
C : Correction Factor
C = (£ fx') ÷ N ,
Where £ = The sum of total
f = Frequency
X' = Deviation
N = Number
C.A. : Chronological Age
CAH : Congenital Adrenal Hyperplasia
CAI : Computer Assisted Instruction
CAT :1. Children's Apperception Test
2. Computerised Axial Tomography
CAT Scan : Computerised Axial Tomography Scan
CPI : California Personality Inventory
CCC : Component Trigram
CER : Conditioned Emotional Response
CFF : Critical Flicker Frequency
COD : Change Over Delay ( Reinforcement )
CMD : Classification of Mental Disease
Chi (x) : Chi (x) is a Greek letter. It is used often in many/ various formula & statistical Test.
Chisquire (x squire) = The test between. observation & expectations.
Chisquire (x squire)=€(oi-Ei)
Where oi = Each of I observed score.
Ei=Each of I expected score.
€=The sum total of.
CNS : Central Nervous System
CPS : Cycle Per Second / Hertz or Hz
CR : 1. Conditioned Response
2. Critical Ratio
CRF : Continuous Reinforcement
CRT : Cathode Ray Tube
(The out put "screen" of an ocillescope)
CS : Conditioned Stimulus
CCC : Consonant Vowel Consonent
( Trigram )
D
D : 1. A difference score in statistics
2. Drive in Hall's Theory.
d : 1. Deviation of a score .
2.
d' : It is an index for the Ideal observer which can
df : Degree of freedom.
df = (N1- 1) + ( N2 - 1)
DAT : Differential Aptitude Test
DAT test : Machover 'Drow-a-person' Test.
dB ( cradle ) : decibel
de : 1. Apart from undone.
2. Away from down.
∆ : Delta :- 1. ∆ R is an increment in responding.
2. ∆ S is an increment in stimulus.
3. ∆ I in intensity.
∆ : D
DIN Colour System :
DNA : Deoxyribonucleic Acid.
DQ : Developmental Quotient.
DRH ( drh ) : Differential Reinforcement of high rate.
DRL ( drl ) : Differential Reinforcement of low rate.
DRO ( dro ) : Defferential Reinforcement of other behavior.
DRP ( drp ) : Defferential Reinforcement of paced response.
(Continue)
सोमवार, 26 जून 2017
Important Psychological Terms :- Prof. Awadhesh Kumar, Principal; Lecturer Psychology, M.J.J.College, M.,Banwaripur, Begusarai.
Psychology : In my view "Psychology is an ideal positive science of experience, behavior and adjustment process of an / any organism in their own environment."
अर्थात्
" मनोविज्ञान किसी प्राणी के अपने वातावरण में उनके अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श समर्थक / विधायक विज्ञान है ।"
शनिवार, 24 जून 2017
कंचन
कंचन
कंचन कंचन का होता है,
पर,कंचन न कंचन होता है।
लेकिन वास्तव में कंचन के
रूप अनेकों होते हैं।
कंचन मन को कंचन करता है,
कंचन न कंचन करता है।
कंचन अपने दर्शन से,
सदा अचम्भित करता है।
कंचन कंचन है दर्शन में,
कंचन से दिल कंचन होता
कंचन से सजती हैं दुल्हन,
कंचन से मिलती है इज्ज़त
कंचन से आता है संकट,
कंचन से खजाना भरता है।
मृग मारीच बना कंचन,
मर्यादा को भी भटकाता है,
लक्ष्मण सा स्थिर मन को भी,
वह विचलित कर जाता है।
सीता हरण, रावण मरण
कंचन युद्ध कराता है।
कंचन जोड़ता है हमको,
अपनों से जुदा कराता है।
निज सभ्यता संस्कृति से कर दूर,
हमें कुपथ कुराह बताता है।
कंचन अथाह, कंचन अभाव,
दोनों निज रुप दिखाता है।
कंचन दोनों मौके पर
सन्यास मार्ग दिखलाता है।
कंचन तमोगुणी होकर
अमानवीय कर्म कराता है,
कंचन रजोगुणी होकर
संसाधन सुलभ कराता है।
कंचन सतोगुणी होकर
जीवन रक्षक हो जाता है।
शैलज कंचन के खातिर,
आखिर नर क्यों मरता है?
कंचन खातिर मरता है वह,
कंचन के खातिर जीता है।
पर, अन्तिम क्षण में कंचन,
न संग उसे दे पाता है।
कंचन कंचन रटते रटते,
जीवन को तज वो जाता है।
कंचन ध्येय न हो जीवन का,
अनुभव यही बताता है,
कर कंचन का उपयोग सही,
नर दुर्लभ सुख पा सकता है।
कंचन से जीवन पाता है,
कंचन से जीवन जाता है।
कंचन मन कंचन पा करके
जीवन कंचन कर पाता है।
-प्रो०अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
'शैलज काव्य कोश'
शुक्रवार, 16 जून 2017
श्रीमद् भगवद् गीता,अ०४,श्लोक७ के सन्दर्भ में सम्यक् एवं संतुलित चिंतन:-.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृज्याहम् ।।
श्रीमद् भगवद् गीता, अध्याय:४,श्लोक:७
का भावार्थ होता है कि "हे भारत! जब-जब धर्म की ग्लानि होती है ,अधर्म का अभ्युत्थान होता है, तब/उस समय मैं स्वयं का सृजन करता हूँ । परन्तु इस श्लोक में "अभ्युत्थानमधर्मस्य" पद के पश्चात् अल्पविराम का प्रयोग/उपयोग नहीं किया गया है, अतः मेरी अल्प बुद्धि में यह भ्रम उत्पन्न हो गया कि इस श्लोक का अर्थ होना चाहिए कि भगवान् श्रीकृष्ण पार्थ अर्जुन से धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में कहते हैं कि " हे भारत ! जब धर्म की ग्लानि / हानि / पतन होता है, उस समय मैं धर्म के अभ्युत्थान / अभ्युदय के लिए अपने आपका / स्वयं का सृजन करता हूँ / अवतार लेता हूँ । "
" अभ्युत्थानमधर्मस्य " पद का अन्वय "अभ्युत्थानम् अधर्मस्य " होता है और 'वामन शिवराम आप्टे' के 'संस्कृत-हिन्दी कोश ' में अभ्युत्थानम् का अर्थ सत्कारार्थ उठना, प्रस्थान करना,उठना, उन्नति, सम्पन्नता तथा.मर्यादा है ।
परन्तु गीता की व्याख्या से सम्बन्धित विभिन्न ग्रन्थों में "अभ्युत्थानमधर्मस्य" का अर्थ "अधर्म का विकास होने पर या स्थिति में " बताया गया है ,जबकि मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार इसका अर्थ " अधर्म का अभ्युत्थान " होता है, जो इस अर्थ में उपयुक्त नहीं है क्योंकि भगवान् का अवतार अधर्म को समाप्त कर धर्म की रक्षा, विकास एवं धर्म की स्थापना हेतु होता है ।
ज्ञातव्य है कि श्रीमद् भगवद् गीता के प्रस्तुत श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से "अभ्युत्थानमधर्मस्य" अर्थात् " अभ्युत्थानम् अधर्मस्य " का प्रादुर्भाव हुआ है, इस तरह के अर्थ से युक्त पद का प्रयोग या उपयोग होना श्लोक की मूल भावना के दृष्टिकोण से वास्तव में पूर्णतया प्रासंगिक है। ऐसा मानना उन अन्तर्यामी सर्वेश्वर प्रभु की कृपा एवं प्रेरणा से सम्यक्, यथोचित तथा प्रासंगिक प्रतीत होता है। आशा एवं विश्वास है कि धर्मशास्त्रज्ञ, विद्वत् जन, भगवद् भक्त गण, वैयाकरण, चराचर जगत् में व्याप्त दृश्यादृश्य शक्ति गण तथा परम् प्रेममय प्रभु इन पंक्तियों के द्वारा अपने अन्तर्भावों या प्रमाद /अहंकारी प्रवृत्तियों को नहीं रोक पाने के कारण अपनी भावाभिव्यक्ति में वौराये इस अकिंचन अवधेश कुमार "शैलज" के हृदय की आवाज को सुनेंगे, समझेंगे, मार्गदर्शन करायेंगे एवं क्षमा करेंगे। वास्तव में यह लेखक का सम्यक् एवं संशोधित चिंतन है ।
शनिवार, 20 मई 2017
आपस में पति-पत्नी के कर्त्तव्य:-
पति-पत्नी को आपस में पति-पत्नी के कर्त्तव्य के पालन के अलावे आवश्यकतानुसार पिता-पुत्री एवं माता-पुत्र जैसे समझ के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
शुक्रवार, 19 मई 2017
मानव एवं मानवेतर प्राणी का जीवन:-
सोमवार, 1 मई 2017
बुधवार, 26 अप्रैल 2017
रविवार, 23 अप्रैल 2017
गुरुवार, 6 अप्रैल 2017
नेतृत्व (Leadership) :-
नेतृत्व प्राणी का जन्मजात् या परिस्थिति प्रेरित वैयक्तिक,सामूहिक या अनुयायी हित में थोपा गया या स्वाभाविक या आत्माभिव्यक्ति का गुण होता है।
Thursday, April 6, 2017
Leadership: -
The birth or position of the lead creature is imputed in the interest of the individual, the collective or the follower, or the nature or the nature of self-expression.
5:58 am on Awadhesh Kumar
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शनिवार, 1 अप्रैल 2017
विवाह :-
" विवाह को कानून अथवा धर्म की स्वीकृति मिली हो या न मिली हो, फिर भी विवाह जीववैज्ञानिक अर्थ में कुछ हद तक सामाजिक अर्थ में एक स्थायी यौन संबंध है । " :- The Psychology of sex (यौन मनोविज्ञान) मूल लेखक:-हैवलॉक एलिस ( 1938), अनुवादक :- मन्मथ नाथ गुप्त (2008), राजपाल एण्ड सन्स (प्रकाशन)।
गुरुवार, 23 मार्च 2017
मनोविज्ञान व्यक्ति या प्राणी की....
मंगलवार, 14 मार्च 2017
पूर्वाग्रह ( P r e j u d I c e )
गुरुवार, 9 मार्च 2017
सामान्य
इस प्रकार 'सामान्य' से तात्पर्य किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, प्राणी, समय, घटना, कला, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकि, गोचरागोचर प्रभाव, वातारण, परिस्थिति, मत, विश्वास, सिद्धान्त , प्रमाण आदि से सम्बन्धित एक या एकाधिक व्यक्तियों द्वारा स्वीकृत या स्थापित उस मान्यता, निर्णय या दृष्टिकोण से है जिसे उस समाज के अधिकांश सदस्यों द्वारा आदर्श या मानक के रूप में स्वीकार किया गया हो।
:-प्रो० अवधेश कुमार उपनाम शैलज, पचम्बा,बेगूसराय।
प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान ,
एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर,बेगूसराय।
बुधवार, 8 मार्च 2017
नारी/बालिका/स्त्री/महिला और नर/बालक/पुरूष का पारस्परिक आकर्षण स्वाभाविक है:-
Favoritism/ Participent ( पक्षपात ) की परिभाषा:-
:- प्रो० अवधेश कुमार .
प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान,
मधैपुरा जवाहर ज्योति महाविद्यालय,
ममारकपुर / ममारखपुर, बनवारीपुर,बेगूसराय ।
कालेज कोड : 84014.
पक्षपात् की परिभाषा:-
:- प्रो० अवधेश कुमार .
सेेवानिवृत प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान,
मधैपुरा जवाहर ज्योति महाविद्यालय,
ममारकपुर / ममारखपुर, बनवारीपुर,बेगूसराय ।
कालेज कोड : 84014.
सोमवार, 13 फ़रवरी 2017
प्रत्येक प्राणी में वैयक्तिक भिन्नता :-
शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017
शनिवार, 28 जनवरी 2017
E.A.S.(Emotional Adjustment Scale/संवेगात्मक अभियोजन मापिनी) के सम्बन्ध में संक्षिप्त निर्देश :-प्रो०अवधेश कुमार(प्राचार्य सह विभागाध्ययक्ष मनोविज्ञान:एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर, बेगूसराय।
इस प्रश्नावली में दिये गए प्रश्नों के उत्तर के प्रति प्रयोक्ता को किसी तरह के पूर्वाग्रह एवं पक्षपात् युक्त निर्णय लेना समुचित नहीं है, क्योंकि प्रयोज्य की वैयक्तिक भिन्नता एवं उनके मनो-शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है।
शुक्रवार, 27 जनवरी 2017
T.A.T. & S.S.C.T.
.T. is also a reliable projective test who can reveal a person's attitude towards family, sex and self-concept. Attitude towards mother, father and family unit comes under family area ; attitude towards hetrosexual relations comes under sex area and attitude towards future, own achievement and goal comes under the area of self-concept.
:- From my research work " Study of attitude towards family, sex and self-concept of Post-Graduate students."(1992)- Prof.Awadhesh kumar (H.O.D. Psy., M.J.J.College, M., Banwaripur,Begusarai.