शालिग्राम शिला
शैलज शालिग्राम शिला,
आये हरि अवध श्री राम।
भिड़े भगत विनु सोच समझ,
दुःखी अवध सिय राम।।
हरि प्रभु कृपा तैरे उदधि ,
शैलज मति मूढ़ अज्ञान।
कहाँ प्रभु ? कब व्याप्त नहीं?
को जानत जगत जहान ?
शैलज नीच भौतिक मति,
ज्ञान अहम् अज्ञान।
सजन कसाई तौले सदा,
भाव भगति सम्मान।।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।