योग के माध्यम से अणिमादि अष्ट सिद्धियों एवं नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा होना असम्भव एवं काल्पनिक नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक एवं योग पथ के अनुशीलन से शत प्रतिशत संभव है, परन्तु इसके लिए श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित भगवान श्री कृष्ण की वाणी "युक्ताहारविहारस्य, युक्त कर्म सुचेष्ठषु।
युक्त स्वप्नाववोधस्य, योगो भवति दु:खहा।।" का अनुशीलन अनिवार्य है।वर्षों पूर्व जब मैंने योग मार्ग का अनुशरण किया था, उस समय आकाश गमन की प्रक्रिया एवं स्थिति खुद मेरे द्वारा भी अनुभूत है। आयुर्वेद में जड़ीबूटी एवं रसायन के उपयोग से तथा प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार विभिन्न प्रयोगों एवं सिद्धियों द्वारा भी ऐसा कर पाना सम्भव है, परन्तु इन क्रियाकलापों को प्रायः कौतुक के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि अत्यावश्यक परिस्थिति में और सदुपयोग को ध्यान में रखकर उपयोग में लाया जाता है।
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