किसी भी प्राणी के वातावरण उपस्थित उद्दीपनों के प्रभाव उस प्राणी पर सूक्ष्म और / या स्थूल रूप से तथा व्यक्त और / या अव्यक्त रूप से पड़ते हैं, जिसका उस प्राणी की मानसिक, दैहिक और मनोदैहिक स्थिति पर गौण और / या स्पष्ट प्रभाव उसकी अनुक्रिया (समायोजन एवं व्यवहार) में दृष्टिगोचर होता है। ज्ञातव्य है कि किसी प्राणी द्वारा वातावरण में उपस्थित उद्दीपनों के प्रति व्यक्ति Lower Brain द्वारा सद्यः लिये गये Action जिसे संयोजक स्नायु द्वारा संचालित निर्णय अर्थात् Reflex Arch भी कहा जाता है और जो मानसिक निर्णय रहित होते हैं उसे "स्वत: अनुक्रिया व्यवहार" कहते हैं तथा मस्तिष्क तक उद्दीपन प्रभाव पहुँचने के पश्चात् मस्तिष्क द्वारा प्राणी के मनोदैहिक स्थिति हेतु लिये गये "अत्यावश्यक एवं तात्कालिक अनुक्रिया" को "व्यवहार" कहते हैं, लेकिन उद्दीपन बोध के पश्चात् मस्तिष्क को प्राप्त भूतकालिक प्रभाव से वर्त्तमान परिस्थिति के साथ विश्लेषण के आधार पर भावी प्रभाव के दृष्टिकोण से लिये गये निर्णय के आलोक में की गई अनुक्रिया "समायोजनात्मक व्यवहार" की श्रेणी में आता है या वास्तव मे समायोजनात्मक व्यवहार कहलाता है।
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
"सजीव प्राणियों का जीवन दर्शन"
(अप्रकाशित पुस्तक)
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