सोमवार, 3 नवंबर 2025

सुख (Happiness)तुलनात्मक विश्लेषणात्मक अध्ययन


सुख (Happiness)
तुलनात्मक विश्लेषणात्मक अध्ययन
By – Dr. Prof. Awadhesh Kumar ‘Shailaj’
Date – 14 February 2018 | Place – Pachamba, Begusarai (Bihar, India)
🔹 मूल परिभाषा (Original Definition by Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj)
“प्राणी अपने वातावरण में और / या किसी भी परिस्थिति में अपनी अनुभूति के आधार पर समायोजनात्मक व्यवहार करने के क्रम में किसी मनोनुकूल परिस्थिति के प्रभाव को सुख के रूप में स्वीकार करता है।”
— डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय (14 फ़रवरी 2018)
English Translation:
“The organism accepts the effect of a favorable condition in the form of pleasure while adaptively adjusting its behavior within the environment and/or in any situation based on its perception.”
— Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj (2018)
🔸 विश्लेषण (Analytical Note)
यह परिभाषा “सुख” को केवल बाह्य वस्तुओं या परिस्थितियों से प्राप्त अनुभूति न मानकर —
“अनुकूलन की प्रक्रिया” (adaptive process) और “अनुभूति आधारित स्वीकृति” (perceptual acceptance) के रूप में परिभाषित करती है।
इसमें तीन वैज्ञानिक घटक स्पष्ट हैं:
1. Anubhuti (Perception): व्यक्ति बाह्य परिस्थितियों को जैसे अनुभव करता है।
2. Samayojanatmak Vyavahar (Adaptive Behaviour): व्यक्ति अपने वातावरण के अनुरूप व्यवहार में समायोजन करता है।
3. Manonukul Prabhav (Favourable Effect): जब वह परिस्थिति उसके अंतःसंतुलन के अनुकूल हो, तो उसे ‘सुख’ कहा जाता है।
🔹 तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study)
1. अरस्तु (Aristotle – Eudaimonia Theory)
अरस्तु के अनुसार —
“Happiness (Eudaimonia) is the activity of the soul in accordance with virtue.”
यह ‘सुख’ को एक आचरणगत अवस्था (state of activity) मानता है जो नैतिकता के अनुरूप होती है।
शैलज जी की परिभाषा में भी सुख एक “समायोजनात्मक व्यवहार” है — जो व्यवहारगत और गुणानुकूल है।
🔸 समानता: दोनों में “सुख” एक गतिशील, नैतिक-अनुकूल व्यवहार का परिणाम है।
2. सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud – Pleasure Principle)
फ्रायड के अनुसार —
“The pleasure principle drives individuals to seek pleasure and avoid pain.”
फ्रायड ने इसे जैविक प्रेरणा से जोड़ा।
शैलज जी की परिभाषा में भी जैविक इकाई (प्राणी/organism) का उल्लेख है, परंतु यहाँ सुख केवल प्रवृत्ति नहीं — अनुकूलनात्मक चेतना का परिणाम है।
🔸 अंतर: फ्रायड का सुख जैविक प्रेरणा पर केंद्रित, जबकि शैलज जी का सुख चेतन-अनुकूलन पर केंद्रित है।
3. विलियम जेम्स (William James – Stream of Consciousness and Emotion)
जेम्स के अनुसार भावनाएँ संवेदनात्मक अनुभूति से उत्पन्न होती हैं।
“We feel sorry because we cry, happy because we smile.”
शैलज जी की परिभाषा में भी “अनुभूति के आधार पर” सुख की स्वीकृति का उल्लेख है — जो जेम्स की भावनात्मक-चेतना की प्रक्रिया से मेल खाती है।
🔸 समानता: सुख एक प्रत्यक्षणीय अनुभूति का परिणाम है।
4. अब्राहम मास्लो (Abraham Maslow – Self-Actualization and Need Hierarchy)
मास्लो के अनुसार —
“Happiness arises from the fulfillment of one’s potential and needs.”
शैलज जी की परिभाषा में “मनोनुकूल परिस्थिति” की स्वीकृति, व्यक्ति की आवश्यकताओं की संतुष्टि और स्वयं के अनुरूप समायोजन के समान है।
🔸 समानता: दोनों में सुख स्व-संतुष्टि और समायोजन का परिणाम है।
5. बुद्ध (Buddha – Dukha and Sukha)
बौद्ध दृष्टि के अनुसार —
“Sukha is the peace that arises when craving ceases.”
सुख यहाँ स्वीकृति और अनासक्ति से उत्पन्न होता है।
शैलज जी की परिभाषा में भी “स्वीकृति” (acceptance) को मुख्य आधार बनाया गया है — मनोनुकूल परिस्थिति को स्वीकार करने की आंतरिक प्रक्रिया ही सुख है।
🔸 समानता: दोनों में सुख बाह्य वस्तु नहीं, बल्कि आंतरिक स्वीकार्यता है।
6. मार्टिन सेलिग्मन (Martin Seligman – Positive Psychology)
सेलिग्मन के PERMA मॉडल में “Pleasure”, “Engagement” और “Meaning” सुख के घटक हैं।
शैलज जी की परिभाषा में यह तीनों अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हैं — अनुभूति (Perception), समायोजनात्मक व्यवहार (Engagement), और मनोनुकूल प्रभाव (Pleasure)।
🔸 समानता: सुख का स्वरूप बहुआयामी, अनुकूलन-आधारित और अनुभवात्मक है।
🔸 निष्कर्ष (Conclusion)
आयाम डॉ० प्रो० शैलज की परिभाषा पश्चिमी/पूर्वीय दृष्टियाँ तुलनात्मक सार
अनुभूति प्रमुख तत्व जेम्स, सेलिग्मन समान
समायोजनात्मक व्यवहार क्रियात्मक तत्व अरस्तु, मास्लो समान
स्वीकृति दार्शनिक तत्व बुद्ध, जेम्स समान
जैविक प्रेरणा गौण तत्व फ्रायड आंशिक समानता
आत्मसिद्धि अन्तर्निहित भाव मास्लो, सेलिग्मन समान
अतः निष्कर्षतः —
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार ‘शैलज’ की “सुख” की परिभाषा आधुनिक मनोविज्ञान, प्राचीन दर्शन और व्यावहारिक विज्ञान — तीनों का एकीकृत रूप प्रस्तुत करती है।
यह सुख को न तो केवल संवेदनात्मक अनुभूति मानती है, न ही भौतिक उपलब्धि; बल्कि अनुभूति-आधारित, समायोजनात्मक और स्वीकृतिजन्य व्यवहारात्मक स्थिति के रूप में परिभाषित करती है।

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