रुक-रुक क्यों तू ढ़लकता ?
बहता जा तू अविरल रे ।
अविराम अनन्त सुख-दु:ख में,
मिटता जा घुल शैलज कण में ।
अरुणाभ कपोलों से गिर गिर से,
टूटे न हृदय औ मन रे ।
इसलिए सुनो मेरे सुन्दरतम् !
बहता जा तू अविरल रे ।
प्रो० अवधेश कुमार "शैलज" ,पचम्बा, बेगूसराय ।
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