तू चन्दा, मैं तेरा चकोर,
हूँ तड़प रहा, हो गया भोर।
तेरे किरणों से घायल हो
आ रहा घटा प्राचीर तोड़ ।
तू सारे जग में करते इंजोर,
निज को रवि हेतु सहज छोड़,
तू चन्दा, मैं तेरा चकोर।
चन्दा अंधियारी रातों में,
घुटता रहता तेरी यादों में।
परवाह कहाँ तुम्हें मेरी ?
तू बसते हो मेरी आँखों में।
प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय ।
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