बुधवार, 17 सितंबर 2025

संक्रान्ति का पुण्य काल :-

संक्रान्ति का पुण्य काल :-
1. मेष : +- 10 घटी या 4 घंटा। 
2. वृष : - 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। /
3. मिथुन : +16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 
4. कर्क : - 30 घटी या 12 घंटा। 
5. सिंह : - 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 
6. कन्या : + 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 
7. तुला : - +10 घटी या 4 घंटा। 
8. वृश्चिक : - 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 
9. धनु : + 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 
10. मकर : + 40 घटी या 16 घंटा। 
11. कुम्भ : 
12. मीन : + 16 घटी या 6 घंटा 24 मिनट। 

ज्ञातव्य है कि संक्रान्ति का पुण्य काल के वर्णन के सन्दर्भ में संक्रान्ति के पूर्व के समय को दर्शाने हेतु (-) अर्थात् ॠण चिह्न का उपयोग किया गया है तथा संक्रान्ति के पश्चात् या बाद के समय को दर्शाने हेतु (+) अर्थात् धन चिह्न का उपयोग किया गया है। 
माधव के मत में समस्त संक्रान्तियों की पिछली बीस घड़ी पुण्य काल है, केवल कुम्भ में पहली सोलह और मीन में पिछली सोलह घड़ी पुण्य काल में ग्रहण करी है। 
संक्रान्ति यदि सायंकाल या अर्द्ध रात्रि के पूर्व हो तो संक्रान्ति का पुण्य काल सायंकाल से पूर्व मनाया जाता है तथा अर्द्ध रात्रि के बाद या सूर्योदय के पूर्व हुआ हो तो पुण्य अगले दिन सूर्योदय के बाद होगा। 
संक्रान्ति यदि मध्य रात्रि में हुआ हो तो पुण्य काल अगले एवं पिछले दोनों दिन में व्यतीत होगा। 
आज सूर्य की कन्या राशि में संक्रान्ति सायंकाल 5:20:00 में बतायी गयी है, अतः आज प्रातः 10:56:00 बजे से सायंकाल 5:20:00 बजे तक कन्या संक्रान्ति का पुण्य काल रहेगा। कन्या संक्रान्ति में ही भगवान् विश्वकर्मा जी की पूजा होती है अतः पूजा भी पुण्य काल में ही होगी। 
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय। 
ज्योतिष-प्रेमी
आपका प्रस्तुत लेख “संक्रान्ति का पुण्य काल” बहुत सुव्यवस्थित और शास्त्रीय ढंग से संक्रान्ति की परम्परा, काल-गणना और पूजा-विधान की व्याख्या करता है। इसमें दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं –

1. पुण्यकाल का गणितीय निर्धारण

आपने राशि-विशेष के अनुसार संक्रान्ति से पूर्व (-) और संक्रान्ति के बाद (+) का स्पष्ट चिह्न देकर समय-सीमा बताई है।

उदाहरणार्थ, कन्या संक्रान्ति का +16 घटी (लगभग 6 घण्टा 24 मिनट) संक्रान्ति के पश्चात् माना गया है।

यह पद्धति ज्योतिष-प्रेमियों और पंचांग-अध्येताओं के लिए सरल मार्गदर्शन देती है।



2. धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व

माधव का मत और परम्परागत आचार का उल्लेख कर आपने प्राचीन एवं आर्वाचीन दृष्टिकोण का संगम प्रस्तुत किया है।

कन्या संक्रान्ति के अवसर पर भगवान् विश्वकर्मा की पूजा के पुण्यकाल का निर्धारण करके आपने धार्मिक व्यवहारिकता को जोड़ा है।




👉 संक्षेप में कहा जाए तो यह लेख ज्योतिषीय शुद्धता + धार्मिक आचार + व्यवहारिक मार्गदर्शन – तीनों का सुंदर संगम है।

क्या आप चाहेंगे कि मैं इसे एक तालिका (Table format) में रूपांतरित कर दूँ, ताकि प्रत्येक राशि की संक्रान्ति का पुण्यकाल और उसके नियम अधिक सुगमता से समझे जा सकें?


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