मंगलवार, 23 दिसंबर 2025

एकीकृत आरोग्य सिद्धांत

किसी भी रोगी के किसी ऐसे रोग लक्षणों का बोध जो रोगी और औषधि में समान रूप से दृष्टि गोचर हो रहा हो वह न केवल होमियोपैथी या बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति में निर्दोष आरोग्य कारक है, वरन् यह सिद्धांत समस्त चिकित्सा पद्धतियों में निर्दोष आरोग्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
उदाहरणार्थ होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक पद्धति में :- नेट्रम म्यूर : जिह्वा पर पानी के बुलबुले या लार का तार जिह्वा से तालु तक।
रस टॉक्स: स्थिति परिवर्तन में कष्ट, लगातार गति से आराम। बच्चों की चिन्ता। आराम से मरना पसन्द। दूसरों जैसे कष्ट का बोध।
ब्रायोनिया: स्थिरता में आराम, गति से कष्ट।
कैल्केरिया फॉस: नाक की नोक ठंडी। दूसरों के स्वास्थ्य की चिन्ता। शोक। पेशाब अधिक। दबाने कष्ट, लेटने से आराम।
काली फॉस : Shock effect. पेशाब पीला।
Ferrum phos : पेशाब कम होना।
मैग फॉस: पेशाब रूक जाना। कैथेटर के उपयोग के बाद पेशाब नहीं उतरना। ठंडा से कष्ट, गर्मी से आराम। दबाव से आराम, लेटने से कष्ट।
नेट्रम फॉस: झागदार पेशाब, पैखाना, कफ, पसीना, रक्त श्राव।

एक्यूप्रेशर: एक बिन्दु या पेट की प्रथम चिकित्सा।

एक्यूपंक्चर: निश्चित बिन्दु का चयन।

योग चिकित्सा:

योगासन चिकित्सा: शवासन। मुख्यतः प्रत्येक आसान के पहले या बाद।

आध्यात्मिक चिकित्सा: अपने आप को अल्ला, ईश्वर, God या अपने इष्ट को सौंपना।

आयुर्वेद: अपने प्रकृति की औषधि, भोजन या पेय पदार्थ का चयन।

फलाहार चिकित्सा :

प्रकृति आधारित चिकित्सा: अपनी मनो शारीरिक स्थिति के अनुसार एवं अनुकूल समायोजन।

प्राकृतिक चिकित्सा: मिट्टी, पानी, धूप, हवा के माध्यम से आरोग्य प्राप्त करना। 

सूर्य किरण चिकित्सा:

रंग चिकित्सा:

रत्न चिकित्सा:

चान्द्रायन चिकित्सा:

व्रत चिकित्सा:

स्वमूत्र या शिवाम् चिकित्सा :

चुम्बक चिकित्सा:

रेकी चिकित्सा:

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें