बीतता जो एक लम्हा
युग-युगों सा लग रहा है।
भीड़ में खोया हुआ हूँ,
स्वप्न सा सब लग रहा है।।
मीत मेरे प्रीत तेरे,
बस जिलाये रख रहा है।
तूँ कहाँ ? किस ठौर में हो?
यह जिलाये रख रहा है।।
पूछता - खग, अलि, जन से,
खोजता हर कुंज वन में ।
मारीच मृग से भरे जग में,
सखा आशा साथ मग में ।।
जब तुम्हें हूँ याद करता,
एक बस फरियाद करता।
किस खता पर ? क्यों खफा हो ?
बता दो, फरियाद करता।।
प्रो० अवधेश कुमार "शैलज",पचम्बा, बेगूसराय।
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