चिकित्सा के पंचकोषीय मार्ग: रोग की आत्मिक यात्रा
(Integral Healing through Panchakosha: The Spiritual Journey of Disease)
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लेखक: डॉं. प्रो. अवधेश कुमार शैलज
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समर्पण:
"जिन रोगों को बोलने कोई न था, या जिन्हें सुनना ग़ैर संभव था — उन्हीं रोगों की चिकित्सा सम्भव है जब हम आत्मा की भाषा को समझें।"
यह ग्रंथ उन सभी ज्ञानी चिकित्सकों, चिकित्साज्ञों और आध्यात्मिक साधकों के लिए एक नवीन दृष्टिकोण और पंचकोषीय चिकित्सा-दर्शन की चरम यात्रा की प्रस्तुति करता है।
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लेखक परिचय:
डॉ. प्रो. अवधेश कुमार 'शैलज'
प्रख्यात मनोवैज्ञानिक, वैदिक अध्येता, जैव रसायन चिकित्सक एवं अध्यात्मिक चिंतक — आपने समन्वयी चिकित्सा, दर्शन, भाषा और मानवता के क्षेत्र में कई नवाचार किए। यह पुस्तक आपके दशकों के अनुभव, साधना और अनुसंधान का परिणाम है, जहाँ रोग का संबंध आत्मा और चेतना के गहरे स्तर से जोड़ा गया है।
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भूमिका:
इस पुस्तक की रचना उस गहन पीड़ा और चिंतन से जन्मी है जहाँ एक साधारण रोगी की पुकार और आत्मा की मौन कराह को सुना गया। आधुनिक चिकित्सा ने जहाँ रोग को शरीर में खोजा, वहीं प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ आत्मा और चित्त में। यह ग्रंथ उन दोनों धाराओं के संगम स्थल पर खड़ा है, जहाँ होम्योपैथी, बायोकेमिक, योग, ध्यान, दर्शन और मानवता एक समग्र चिकित्सा सूत्र में बदल जाते हैं।
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उद्धरण:
> “रोग एक भाषा है, जो शरीर नहीं, आत्मा बोलती है।”
“दवा केवल तब कारगर होती है, जब वह आत्मा को भी छूती है।”
“जहाँ चिकित्सा समाप्त होती है, वहीं आत्म-चिकित्सा प्रारंभ होती है।”
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अनुक्रमणिका:
1. अध्याय 1 – रोग के परे: मूल दर्शन
2. अध्याय 2 – रुग्णता की व्यापक परिभाषा और सिद्धांत
3. अध्याय 3 – जैव रसायन और ऊतक चिकित्सा
4. अध्याय 4 – ग्रह और रोग
5. अध्याय 5 – वंश और जीवन चैतन्य
6. अध्याय 6 – रोग और संस्कार
7. अध्याय 7 – रोग और संवाद
8. अध्याय 8 – रोग और संस्कार (विस्तृत विवेचन)
9. अध्याय 9 – भाषा और चिकित्सा
10. अध्याय 10 – रोग और आत्मा
11. अध्याय 11 – रोग और मोक्ष
12. अध्याय 12 – पंचकोषीय चिकित्सा का समग्र सिद्धांत
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📖 अध्याय 12 – पंचकोषीय चिकित्सा का समग्र सिद्धांत
(The Integral Principle of Panchakosha Healing)
✍️ डॉ. प्रो. अवधेश कुमार "शैलज"
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🔷 1. प्रस्तावना:
पंचकोषीय चिकित्सा कोई एक प्रणाली नहीं, बल्कि यह एक समग्र दृष्टि है — जिसमें जीवन के पाँच आयामों: अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, और आनन्दमय को समझकर चिकित्सा की जाती है। यह अंतिम अध्याय सभी पूर्व अध्यायों को एक सूत्र में पिरोता है।
> “रोग एक कोष में उत्पन्न होकर अन्य सभी कोषों को प्रभावित करता है। चिकित्सा तब ही सफल होती है जब पंचकोषों में संतुलन स्थापित किया जाए।”
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🔶 2. पंचकोषीय स्वरूप:
कोष अर्थ चिकित्सा विधि
अन्नमय स्थूल शरीर आहार, औषधि, योग
प्राणमय ऊर्जा-तंत्र प्राणायाम, रसायन, ध्वनि
मनोमय मानसिक भाव संवाद, परामर्श, होम्योपैथी
विज्ञानमय विवेक और ज्ञान चिंतन, ध्यान, वैदिक दृष्टि
आनन्दमय ब्रह्मिक अनुभव मौन, प्रार्थना, आत्मा-साक्षात्कार
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🔷 3. पंचकोषीय असंतुलन के लक्षण:
लक्षण संभावित कोष में असंतुलन
थकावट, व्याधि अन्नमय
घबराहट, नाड़ी विकृति प्राणमय
चिंता, भावनात्मक अस्थिरता मनोमय
भ्रम, कर्त्तव्य-अज्ञान विज्ञानमय
अर्थहीनता, मौन से डर आनन्दमय
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🔶 4. समग्र चिकित्सा सूत्र:
“दवा + आत्म-चेतना + जीवन अनुशासन = समग्र आरोग्य”
हर रोगी के भीतर के पाँचों कोषों को ध्यान में रखते हुए उपचार की योजना बनानी चाहिए।
चिकित्सा में चिकित्सक का स्वयं जागरूक होना आवश्यक है।
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🔷 5. चिकित्सक की पंचकोषीय भूमिका:
कोष चिकित्सक का गुण
अन्नमय चिकित्सा ज्ञान
प्राणमय ऊर्जस्विता और स्पंदन
मनोमय करुणा और संवाद-कौशल
विज्ञानमय विवेक, निर्णय शक्ति
आनन्दमय मौन उपस्थिति, आस्था
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🔶 6. निष्कर्ष:
यह पंचकोषीय चिकित्सा-दृष्टि भविष्य की चिकित्सा नहीं — मानवता की मूल चिकित्सा है, जिसे हम भूल गए थे। अब समय है कि रोग को केवल हटाएँ नहीं, बल्कि समझें, सुनें, और उसके पीछे छिपे आत्मिक रहस्य को जानें। यही चिकित्सा का अंतिम और सर्वोच्च पथ है।
📍 यह अंतिम अध्याय चिकित्सा को पूर्णता देता है — जहाँ रोग, आत्मा, मोक्ष और मानवता एक दूसरे में विलीन हो जाते हैं।
✅ अध्याय 12 – "पंचकोषीय चिकित्सा का समग्र सिद्धांत"
यह अंतिम अध्याय सभी पूर्व अध्यायों की समग्रता को समाहित करता है और पंचकोषीय चिकित्सा को एक व्यावहारिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक ढाँचे में रूपांतरित करता है।
📘 अब यह पुस्तक पूर्ण हो चुकी है।
शुभमस्तु।।
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