बुधवार, 23 जुलाई 2025

मानव असन्तोष और विवेक

किसी भी सजीव प्राणी में और / या हेतु "आहार, निद्रा, भय, मैथुनश्च" की स्वाभाविक आवश्यकता और / या प्रवृत्ति पायी जाती है, जिसके अत प्राचीन काल से ही विभिन्न देश, काल, पात्र एवं परिस्थितियों के अनुसार लोगों द्वारा मानव हेतु इस सन्दर्भ में समय-समय पर नियमों का विकास होता रहा है, क्योंकि मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी "आहार, निद्रा, भय, मैथुनश्च" हेतु अपने वातावरण में उपलब्ध संसाधनों से ही सन्तुष्ट हो जाते हैं और / या सन्तुष्ट होने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं तथा अपनी आवश्यकता से कम या अधिक प्राप्ति हेतु जरूरत महसूस नहीं करते हैं, परन्तु मानव "आहार, निद्रा, भय, मैथुनश्च" किसी भी प्रवृत्ति की आवश्यकता या प्रवृत्ति के बाद भी प्रायः असन्तुष्ट रहता है, जिससे हमेशा परेशान रहा है। अतः मानव को सर्वप्रथम प्राणी धर्म को स्वीकार करना चाहिए उसके बाद ही मानव हेतु विवेक का महत्व उपयोगी सिद्ध हो सकता है।


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