गुरुवार, 10 जुलाई 2025

प्राकृतिक नियम एवं व्यवहार

"मानव कृत समस्त चिन्तन, नियम, आदर्श, आदेश या उपदेश चाहे वह "धर्मार्थकाममोक्षश्च" क्षेत्र की हों और / या "आहारनिद्राभयमैथुश्च" से सम्बन्धित रही हों, इन सबों से बढ़कर और महत्वपूर्ण "प्रकृति प्रदत्त प्राकृतिक नियम" तथा सजीव प्राणियों का "स्वाभाविक और / या स्वत: संचालित प्राकृतिक नियम" है, जिसका सम्यक् पालन नहीं करने से ही प्राणी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से प्रभावित होता है और दूसरे शब्दों में शारीरिक, मानसिक, मनो-शारीरिक, परा-मनोवैज्ञानिक और / या अतीन्द्रिय प्रभावों से सम्बन्धित सहजता (सुख) या असहजता (दु:ख) का अनुभव कर अपने वातावरण में उपस्थित उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया (तत्काल व्यवहार और समायोजनात्मक व्यवहार) करता है।"

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