"कामात्मक विकास: एक अध्ययन"
(दिनांक: 09.12.2015)
यह लेख प्रसिद्ध मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड के काम-आधारित (Sex-based) मनोवैज्ञानिक विकास सिद्धांत पर आधारित है। इसमें मानव जीवन के विभिन्न विकासात्मक चरणों में काम (Sexual) ऊर्जा के केंद्र और उससे जुड़ी मानसिक प्रवृत्तियों का वर्णन किया गया है।
लेख की मुख्य बिंदुवार संरचना:
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1. Oral Stage (मुख-अवस्था)
जन्म से 18 माह तक की अवस्था
दो उपचरण:
Oral Sucking Stage: शिशु मां का स्तन चूसकर सुख की अनुभूति करता है।
Oral Biting Stage: 6 माह के बाद दांत आने पर शिशु वस्तुओं को चबाने लगता है।
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2. Anal Stage (गुदा अवस्था)
1½ वर्ष से 4 वर्ष तक
दो उपचरण:
Anal Expulsion Stage: शिशु मल त्याग को आनंददायक अनुभव करता है।
Anal Retentive Stage: सामाजिक नियमों के अनुसार मल त्याग का नियंत्रण सीखता है।
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3. Phallic Stage (लैंगिक अवयव अवस्था)
3 से 7 वर्ष की अवस्था
शिशु अपने लिंग (Penis/Vagina) के प्रति जागरूक होता है।
इसी अवस्था में ईडिपस कॉम्प्लेक्स (Oedipus Complex) और इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स (Electra Complex) की शुरुआत होती है।
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4. Latency Stage (सुप्त अवस्था)
5 से 12 वर्ष की अवस्था
काम ऊर्जा का सामाजिकता में रूपांतरण होता है।
शिक्षा, कला, नैतिकता, सामाजिक संबंधों की समझ विकसित होती है।
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5. Genital Stage (यौनिक अवस्था)
12 से 20 वर्ष की अवस्था
यौनिकता पूर्णरूपेण विकसित होती है और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है।
यह अवस्था सामाजिक, वैवाहिक, नैतिक, आर्थिक, और व्यवहारिक जिम्मेदारियों के निर्माण का चरण है।
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लेख की विशिष्टताएँ:
यह अध्ययन केवल फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत पर आधारित नहीं, बल्कि इसे वैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और खगोल-शारीरिक (Astrological) दृष्टिकोणों से भी जोड़ा गया है।
इसमें Positive Science तथा Normative Science के बीच का अंतर स्पष्ट किया गया है।
लेख के अंत में यह निष्कर्ष दिया गया है कि यदि सामाजिक, खगोलिक एवं वैज्ञानिक तत्वों के साथ कामात्मक विकास को समझा जाए, तो मनुष्य के आचरण, व्यवहार और निर्णय को बेहतर रूप से समझा जा सकता है।
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लेखक:
प्रो. अवधेश कुमार
(Principal, Senior Lecturer & HOD, Psychology, M.J.J. College, Banwaripur, Begusarai)
संपर्क: akumarpbbb@gmail.com | 9801434304
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प्रस्तुत लेख का प्राचीन एवं आर्वाचीन सिद्धांतों, ग्रन्थों और विद्वानों के मतों के साथ तुलनात्मक अध्ययन (ग्रन्थों का विवरण सहित) एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
प्रस्तुत लेख "कामात्मक विकास: एक अध्ययन" (Prof. Awadhesh Kumar द्वारा) मनोविश्लेषक सिग्मंड फ्रायड के सिद्धांतों पर आधारित है, परंतु इसमें मनुष्य की मनो-यौनिक प्रवृत्तियों को केवल मनोवैज्ञानिक ही नहीं, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, खगोल-शारीरिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी समझने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इसी सन्दर्भ में इस लेख का तुलनात्मक अध्ययन प्राचीन भारतीय (वैदिक, उपनिषदिक, तान्त्रिक) और आधुनिक पश्चिमी मनोविज्ञान के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
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🔶 तुलनात्मक अध्ययन : प्राचीन एवं आधुनिक सिद्धांतों के साथ
क्रम फ्रायड का सिद्धांत प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण ग्रन्थ एवं विद्वान
1 Oral Stage (मुख-चयन अवस्था) <br> - 0-1.5 वर्ष स्तनपान एवं मातृ-संवेदना को प्राण और मूलाधार चक्र से जोड़ा जाता है। - चरक संहिता में शिशु के पोषण की चर्चा<br>- योगसूत्र (पातंजलि): प्रथम संस्कार – जीवनी शक्ति
2 Anal Stage (गुद-नियंत्रण अवस्था) <br> - 1.5-4 वर्ष अपान वायु एवं शौच से संबंधित शुद्धि प्रक्रिया, संयम की शिक्षा। - हठयोग प्रदीपिका – शौच, संकल्प और नियम<br>- मनुस्मृति – बालक को शील, मर्यादा सिखाने का समय
3 Phallic Stage (लैंगिक पहचान) <br> - 3-7 वर्ष कामोपासना एवं संयम का आरंभ, बाल ब्रह्मचारी की अवधारणा। - कामसूत्र (वात्स्यायन) – बालकाम, स्वाभाविक कामवृत्ति<br>- संन्यास उपनिषद – इन्द्रिय निग्रह
4 Latency Stage (काम-निषेध अवस्था) <br> - 5-12 वर्ष विद्या-अध्ययन, ब्रह्मचर्य व्रत, गुरुकुल परंपरा में इन्द्रियों का निग्रह - तैत्तिरीय उपनिषद – विद्याध्ययन की सर्वोच्चता<br>- मनुस्मृति – गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
5 Genital Stage (यौनिक परिपक्वता) <br> - 12-20 वर्ष गृहस्थाश्रम का आरंभ, विवाह द्वारा यौनिकता का धर्मसम्मत प्रयोग - धर्मशास्त्र, गृह्यसूत्र, महाभारत – विवाह एवं यौन नीति<br>- कामशास्त्र – धर्म, अर्थ, काम का समन्वय
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🔶 प्रमुख तुलनात्मक दृष्टियाँ
1. काम ऊर्जा को फ्रायड जहाँ केवल जैविक यौन शक्ति मानते हैं, वहीं भारतीय दृष्टिकोण में इसे “प्राकृतिक सर्जनात्मक शक्ति (प्रजनन/सृजन)” के रूप में समझा गया है।
2. फ्रायड ने "इड (Id)", "ईगो (Ego)" और "सुपर ईगो (Super Ego)" के माध्यम से यौन प्रवृत्ति को मानसिक संघर्ष में रूपांतरित किया; जबकि उपनिषदों में यह संघर्ष काम, क्रोध, लोभ इत्यादि के निग्रह द्वारा आत्मा की शुद्धि के रूप में वर्णित है।
3. ओडीपस कॉम्प्लेक्स (माँ से प्रेम, पिता से ईर्ष्या) को भारतीय ग्रंथों में श्रद्धा-पितृ भक्ति एवं मातृस्नेह के रूप में आदर्श बनाया गया है। उदाहरण: रामायण में राम का मातृभक्ति एवं पितृ आज्ञा पालन।
4. जहाँ फ्रायड काम-विकास को केंद्रीय विषय मानते हैं, वहीं भारतीय परंपरा में काम को केवल पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में एक मानकर उसे धर्म और मोक्ष के अधीन माना गया है।
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🔶 उपयोगिता : शैक्षणिक, चिकित्सीय और सामाजिक दृष्टिकोण से
क्षेत्र उपयोगिता
1. शैक्षणिक विद्यार्थियों, मनोविज्ञान छात्रों को फ्रायडियन मनोविश्लेषण और भारतीय दर्शन के तुलनात्मक अध्ययन से संस्कृति-सापेक्ष मनोविज्ञान की समझ मिलती है।
2. चिकित्सीय आधुनिक मनोचिकित्सक फ्रायड के सिद्धांतों को विश्लेषणात्मक थेरेपी में प्रयोग करते हैं, वहीं भारतीय चिकित्सा (आयुर्वेद, योग, तंत्र) काम ऊर्जा को कुंडलिनी शक्ति के रूप में जाग्रत कर मानसिक संतुलन हेतु उपयोग करती है।
3. सामाजिक किशोरावस्था में काम-चेतना को केवल अपराध या विकृति न मानकर, भारतीय ग्रंथों के अनुसार संयम, मर्यादा, ब्रह्मचर्य आदि सिखाने की दिशा में जागरूकता लायी जा सकती है।
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🔶 ग्रंथों एवं विद्वानों का उल्लेख:
ग्रंथ / लेखक विषय
कामसूत्र – वात्स्यायन यौनिकता का समाजशास्त्रीय और नैतिक विश्लेषण
हठयोग प्रदीपिका – स्वात्माराम इन्द्रिय निग्रह और आंतरिक ऊर्जा का विकास
उपनिषद (तैत्तिरीय, छांदोग्य) ब्रह्मचर्य, आत्मसंयम और शिक्षा
मनुस्मृति शील, मर्यादा और सामाजिक यौन नियम
सिग्मंड फ्रायड मनोविश्लेषण, काम ऊर्जा, इड-ईगो-सुपर ईगो
कार्ल गुस्ताव युंग अचेतन मन, मिथकों का मनोविज्ञान
विल्हेम राइख, एरिक फ्रॉम काम और प्रेम का सामाजिक एवं ऊर्जात्मक विश्लेषण
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🔶 निष्कर्ष
प्रो. अवधेश कुमार का यह लेख केवल फ्रायड के चरणों की पुनरावृत्ति नहीं है, बल्कि यह एक बहु-आयामी दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसमें:
यौनिक विकास को केवल जैविक न मानकर,
उसे सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक और खगोल-शारीरिक सन्दर्भों में देखा गया है।
इसलिए यह लेख मनोविज्ञान के छात्रों, शोधकर्ताओं, योग-तंत्र साधकों, नैतिक शिक्षा से जुड़े प्रशिक्षकों तथा संस्कृति-सापेक्ष थेरैपी विकसित करने वाले मनोचिकित्सकों के लिए अत्यंत उपयोगी, नवीन और शोधयोग्य है।
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"कामात्मक विकास: एक तुलनात्मक अध्ययन"
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कामात्मक विकास: एक तुलनात्मक अध्ययन
प्रस्तावना: प्रो. अवधेश कुमार द्वारा प्रस्तुत "कामात्मक विकास: एक अध्ययन" फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांतों को आधार बनाकर यौनिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करता है। यह लेख इस विकास को केवल जैविक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, खगोल-शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझने का आग्रह करता है। इस अध्ययन का तुलनात्मक विश्लेषण प्राचीन भारतीय ग्रंथों एवं आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के सिद्धांतों के साथ किया गया है।
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1. तुलनात्मक सारणी : फ्रायड बनाम प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण
फ्रायड की अवस्था भारतीय समकक्ष अवधारणा ग्रन्थ/स्रोत
Oral Stage (0-1.5 वर्ष) <br>मुख-द्वारा सुख मातृ-स्तनपान, प्राण शक्ति, मूलाधार चक्र चरक संहिता, योगसूत्र
Anal Stage (1.5-4 वर्ष) <br>गुद-नियंत्रण अपान वायु, स्वच्छता, अनुशासन हठयोग प्रदीपिका, मनुस्मृति
Phallic Stage (3-7 वर्ष) <br>लैंगिक चेतना कामोपासना, ब्रह्मचर्य की शिक्षा कामसूत्र, संन्यास उपनिषद
Latency Stage (5-12 वर्ष) <br>काम-निषेध गुरुकुल शिक्षा, विद्या, अनुशासन तैत्तिरीय उपनिषद, मनुस्मृति
Genital Stage (12-20 वर्ष) <br>यौनिकता का पुनः प्रकटीकरण विवाह, गृहस्थाश्रम, धर्म-आधारित यौनिकता धर्मशास्त्र, महाभारत, गृह्यसूत्र
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2. प्रमुख विश्लेषणात्मक बिंदु:
फ्रायड के अनुसार काम ऊर्जा (Libido) ही व्यवहार का मूल प्रेरक तत्व है, जबकि भारतीय दृष्टिकोण में इसे एक नियंत्रित, सृजनात्मक शक्ति माना गया है।
फ्रायड जहाँ इड-ईगो-सुपर ईगो के संघर्ष में मानसिक विकृति की जड़ देखते हैं, वहीं भारतीय ग्रंथों में इन्द्रिय निग्रह, संयम और साधना द्वारा मानसिक शुद्धि की बात होती है।
ओडीपस कॉम्प्लेक्स के विपरीत भारतीय परंपरा में मातृ-पितृ भक्ति और नैतिक मर्यादा पर बल दिया गया है।
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3. ग्रन्थों एवं विद्वानों का उल्लेख:
ग्रंथ / लेखक विषय
कामसूत्र – वात्स्यायन यौनिकता का समाजशास्त्रीय विश्लेषण
हठयोग प्रदीपिका – स्वात्माराम चक्र, अपान, संयम, इन्द्रिय निग्रह
उपनिषद (तैत्तिरीय, छांदोग्य) ब्रह्मचर्य, शिक्षा, आत्मसंयम
मनुस्मृति नैतिक मर्यादा, संस्कार, यौनिकता पर नियंत्रण
सिग्मंड फ्रायड मनोविश्लेषण, यौन विकास की अवस्थाएँ
कार्ल युंग, एरिक फ्रॉम सामूहिक अचेतन, प्रेम और सामाजिक ऊर्जा
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4. शैक्षणिक उपयोगिता:
यह तुलनात्मक अध्ययन विद्यार्थियों को मनोविज्ञान की संस्कृति-सापेक्ष समझ प्रदान करता है।
शोधार्थियों को भारतीय और पाश्चात्य सिद्धांतों के मध्य संतुलन साधने की दिशा देता है।
शिक्षक इस विश्लेषण का प्रयोग विविध पाठ्यक्रमों में सैद्धांतिक गहराई प्रदान करने हेतु कर सकते हैं।
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5. चिकित्सीय उपयोगिता:
फ्रायड के विश्लेषणात्मक उपचार (Psychoanalysis) और भारतीय योग-तंत्र की विधियों को समन्वयित कर मनोचिकित्सा की नई दृष्टियाँ विकसित की जा सकती हैं।
यौनिक विकृतियों, आत्मसंघर्ष और पारिवारिक विक्षोभ के समाधान हेतु यह तुलनात्मक दृष्टिकोण उपयोगी है।
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6. सामाजिक उपयोगिता:
किशोरावस्था की यौन चेतना को अपराध या विकृति न मानते हुए, उचित शिक्षण व नैतिक मार्गदर्शन द्वारा सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।
यह अध्ययन नीति-निर्माताओं, शिक्षा नीति विशेषज्ञों एवं माता-पिता को व्यवहारिक दृष्टि प्रदान करता है।
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7. निष्कर्ष:
प्रो. अवधेश कुमार का यह लेख मनोवैज्ञानिक विकास के जैविक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सभी पक्षों को समेटने का प्रयास करता है। यह अध्ययन फ्रायड के सिद्धांत को अंधानुकरण नहीं करता, बल्कि उसे भारतीय ज्ञान परंपरा की कसौटी पर तौलता है। इस प्रकार यह लेख शैक्षणिक, शोधपरक, चिकित्सीय और नैतिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है।
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लेखक विवरण: प्रो. अवधेश कुमार
प्राचार्य, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान
M.J.J. कॉलेज, बनवारीपुर, बेगूसराय
Email: akumarpbbb@gmail.com
Mob: 9801434304
अद्यतन संपर्क विवरण:
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार (उर्फ अवधेश कुमार 'शैलज')
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार (भारत)
मोबाइल: 8210938389
ई-मेल: akumarpbi@gmail.com, akshailajpbi@gmail.com
आपका अद्यतन विवरण व लेखक परिचय पूर्व विवरण के साथ सफलतापूर्वक जोड़ दिया गया है। अब दस्तावेज़ के अंत में निम्न प्रकार से प्रस्तुत है:
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लेखक विवरण:
प्रो. अवधेश कुमार
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डॉ० प्रो० अवधेश कुमार (उर्फ अवधेश कुमार 'शैलज')
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