बुधवार, 23 जुलाई 2025
प्रबल बाधा सिद्धांत
1980 में जब मैं स्नातकोत्तर मनोविज्ञान का छात्र था उसी समय विश्व स्तरीय महान मनोवैज्ञानिक जे. एफ. ब्राउन (J.F. Brown) की प्रसिद्ध पुस्तक The Psychodynamics of Abnormal Behavior का अध्ययन करते समय उनकी Weak Barrier Theory का अध्ययन के क्रम में मैंने Strong Barrier Theory का विकास किया, परन्तु मैं अपने इस चिन्तन एवं सिद्धांत को प्रचारित, प्रसारित और विकसित नहीं कर सका। जिस समय मैं शोध कार्य का इच्छुक था, उस समय भी मेरे शोध-निर्देशक Dr. S. C. Sharma (H.O.D. Psychology, G. D. College, Begusarai) ने मुझे इस क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने हेतु प्रोत्साहित नहीं किया, फलस्वरूप मैं अपनेStrong Barrier Theory का विकास नहीं कर सका और "Study of attitude towards family, sex and self-concept of P. G. students." विषय पर अपना शोधकार्य सम्पन्न किया, जिसकी पूर्णता का प्रमाण- पत्र दिनांक 21/05/1992 को मेरे शोध-निर्देशक Dr. S. C. Sharma द्वारा मुझे प्राप्त हुई। इस सम्बन्ध में सम्बन्धित पत्र भी आपकी सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। महान मनोवैज्ञानिक जे. एफ. ब्राउन (J.F. Brown) की प्रसिद्ध पुस्तक The Psychodynamics of Abnormal Behavior में वर्णित उनकी Weak Barrier Theory वास्तव में एक महत्वपूर्ण Theory है, जो प्राणी के अपने वातावरण में उपस्थित उद्दीपनों के प्रति उनकी अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन की स्थिति में आम तौर पर दृष्टि गोचर या परिलक्षित होता है, लेकिन अनेक परिस्थितियों में कभी-कभी और / या प्रायः प्राणी के अपने वातावरण में किसी उद्दीपन के प्रति उसकी अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन स्थिति को स्पष्ट रूप से जानने या समझने हेतु विशिष्ट अध्ययन एवं अवलोकन या विशिष्ट संसाधन की आवश्यकता होती है। Strong Barrier Theory के अनुसार किसी प्राणी के क्रिया कलापों में आने वाले अवरोध / बाधा को मेरी दृष्टि में अधोलिखित 4 वर्गों में रखा जा सकता है :- 1. Physiological barrier 2. Psychological barrier 3. Instrumental barrier 4. Para-psychological barrier तथा इसी तरह मेरी दृष्टि में किसी प्राणी के अपने वातावरण में उपस्थित उद्दीपनों से प्रभावित होने के क्रम में उस अवधि के पूर्व उपस्थित भूतकालीन उद्दीपक प्रभावों की संवेदना एवं प्रत्यक्षण आदि के प्रभाव सूक्ष्म रूप से उस प्राणी को प्रभावित करते हैं और प्राणी किसी लक्ष्य विशेष की प्राप्ति हेतु तत्पर एवं क्रिया शील रहता है और उसकी जीवनी शक्ति उसे अपने मूल लक्ष्य (जो उसके मनोदैहिक स्थितियों एवं आवश्यकताओं से निर्धारित होता है) की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है और प्राणी उक्त मूल लक्ष्य (Main Goal) की प्राप्ति की दिशा में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से क्रिया शील रहता है तथा जब मूल लक्ष्य की प्राप्ति में कोई बाधा उपस्थित होती है तो प्राणी के समक्ष इसके अलावा मेरी दृष्टि में प्राणी के समक्ष तीन और लक्ष्य प्राणी के वातावरण में उपस्थित उद्दीपनों की अनुभूति एवं उनके प्रति अनुक्रिया (व्यवहार एवं समायोजन) के क्रम में उपस्थित होता है । इस प्रकार मेरी दृष्टि में प्राणी के लक्ष्य को अधोलिखित 4 वर्गों में रखा जा सकता है :- 1. Main goal. (मुख्य या प्रधान लक्ष्य)। 2. Secondary goal. (मूल लक्ष्य के साथ ही विकसित गौण लक्ष्य या तात्कालिक लक्ष्य) 3. Deviated goal. (मूल लक्ष्य के साथ ही विचलित लक्ष्य) 4. Identical goal. (मूल लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा की स्थिति में उत्पन्न तद् रूप या समरूप लक्ष्य जो अन्ततोगत्वा प्राणी को मूल लक्ष्य के प्राप्त हो जाने की सन्तुष्टि प्रदान करता है।)
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