बुधवार, 23 जुलाई 2025

प्रकाश एवं विज्ञान का रहस्य

विज्ञान की पढ़ाई मैंने मैट्रिक तक ही की, लेकिन हर विषय की तरह विज्ञान के भी अध्ययन की रूचि मेरी बाद में भी बनी रही।
मैट्रिक की पढ़ाई पूरी होने वाली थी, उसके कुछ दिन पूर्व जब मैं बी० एस० एस० कॉलेजिएट स्कूल, बेगूसराय का छात्र था, भौतिक विज्ञान के विद्वान् शिक्षक राम पदारथ बाबू हमें एक दिन प्रकाश के सम्बन्ध में प्रयोगात्मक अध्ययन के बारे में बता रहे थे और उसके बाद उन्होंने "प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है" इस स्वयं भी प्रयोगात्मक अध्ययन के माध्यम से बताया और बाद में उनके आदेश पर मैंने भी सभी छात्र-छात्राओं की उपस्थिति में भौतिक विज्ञान की प्रयोगशाला में उक्त प्रयोग सफलता पूर्वक किया। उक्त प्रयोग के बाद गुरुदेव राम पदारथ बाबू ने वर्ग के विद्यार्थियों को समझाने के दृष्टिकोण से मुझसे प्रकाश के गमन के बारे में पूछा। सभी विद्यार्थियों ने बताया कि प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है, लेकिन मैंने उनसे कहा कि "प्रकाश वक्र रेखा में गमन करती है।" उन्होंने कहा कि जब तुम अभी अभी खुद प्रयोग कर चुके हो कि "प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है" उसके बाद भी कह रहे हो कि "प्रकाश सीधी रेखा में नहीं बल्कि वक्र रेखा में गमन करती है" लेकिन मैं भी मानने वाला नहीं था। भौतिकी के उस समय के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान् , चरित्रवान् तथाअनुशासन प्रिय शिक्षक श्री राम पदारथ सिंह उस समय इस इलाके के सुप्रसिद्ध शिक्षक माने जाते थे एवं उस समय आधुनिक भौतिक विज्ञान जिस दौर से गुजर रहा था उसके अनुसार गुरु देव हम लोगों को प्रकाश के बारे में सही समझा रहे थे और आज भी यदि मैं सामान्य लोग ही नहीं बल्कि विद्वानों के बीच में चर्चा करता हूँ कि प्रकाश वक्र रेखा मैं गमन करती है तो लोग मुझे मूर्ख एवं पागल तक समझते हैं और यही कारण है कि उस दिन मेरी अच्छी पिटाई भी हुई। दो रोल टूटने के बाद भी भी मेरे समझ में नहीं आया कि "प्रकाश वक्र रेखा में नहीं बल्कि सीधी रेखा में गमन करती है"। गुरु देव राम पदारथ बाबू पता नहीं जीवित हैं या नहीं, लेकिन उस दिन के बाद जब भी उनसे मुलाकात होती थी, वे कहते थे अवधेश क्या अभी भी प्रकाश सीधी नहीं हुई, प्रकाश वक्र रेखा में ही है। और आज की तिथि में मेरा मानना है कि प्रकाश‌ यद्यपि सीधी रेखा में चलती है, लेकिन "प्रकाश के कणों पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रकाश वक्र रेखा में चलती है।
1980 के बाद जब मेरी रूचि ज्योतिष विज्ञान के प्रति विशेष रूप से आकर्षित हुई तो मैंने अनुभव किया कि हमारे ॠषि, महर्षियों एवं भारत के प्राचीन काल के विद्वान् इस तथ्य से सहमत रहे हैं कि प्रकाश वक्र रेखा में भी गमन करती है और मेरी दृष्टि में ज्योतिषीय गणना में "किरण वक्री भवन संस्कार" इसका सम्यक् एवं सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसे विश्व के लगभग सभी ज्योतिर्विद् मानते हैं, लेकिन इन बातों को और ऐसे अन्य कई संकल्पनाओं और सिद्धांतों को मैं विश्व पटल पर अभी तक कई कारणों से नहीं रख सका क्योंकि मैं भारत के गाँव का रहने वाला अति साधारण भूमिहार ब्राह्मण हूँ जहाँ अभी भी "जिसकी लाठी उसकी भैंस" चरितार्थ होती है, क्योंकि हमारे देश और समाज में विकास के इस दौर में भी नहला पर दहला और सत्ता का खेल चल रहा है तथा कला, विज्ञान एवं जीवन दर्शन भटक रहा है। विश्व में हर जगह वर्चस्व स्थापित करने का दौर चलता आ रहा है और यही कारण है कि भगवान् शिव शंकर को, मीरा को एवं सुकरात को विषपान करना पड़ा; शान्ति दूत भगवान् श्रीकृष्ण को कौरव समझ नहीं सके; महावीर, बुद्ध, ईसा मसीह, गैलीलियो, वशिष्ठ नारायण सिंह आदि विशिष्ट विभूतियों को कोई समझ नहीं सका।
मैं हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तानी हूँ तथा मैं सभी भाषाओं का सम्मान करता हूँ, परन्तु अपनी मातृभाषा हिन्दी मेरे दैनिक जीवन एवं व्यवहार की भाषा रही है अत: अन्य भाषाओं के उपयोग या प्रयोग के प्रति मेरा ध्यान कुछ कम रहा है। जो मेरी कमजोरी या कमी कही जा सकती है।
पारिवारिक उलझनों, कार्य व्यस्तता, कमजोर शैक्षणिक डिग्रियाँ और अनेक अन्य परेशानियों के कारण अभी भी मैं पातञ्जल योग सूत्र का स्मरण करने से "संतोषाद् अनुत्तम सुखलाभ:" को जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग के रूप में स्वीकार करने का प्रयास करता हूँ।


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