अध्याय 1: मनोवृत्ति की संकल्पना और एतिहासिक पृष्ठभूमि
📆 प्रस्थावना:
मनोवृत्ति (Attitude) जीवन की वैचारिक, भावनात्मक और क्रियाग्यात्मक चेतना की ऐछाक मानसिक आवस्था है, जो किसी व्यक्ति जीव, वस्तु, घटना, जीव की घटना या और किसी परिस्थिति के प्रति जीव की क्रिया की चित्ता को प्रभावित करती है। यह जीवन के चिन्तन ऐचरणों, अनुभवोगों, भावनात्माओं और मूल्यों की क्रिया और चेतना की क्रिया को एक निर्दिष्ट दिशा में देखती है।
मनोवृत्ति का कार्य जीवन की ज्ञाना और जीवन की क्रिया को ऐछा दिशाओं के प्रति निर्देशाओं, परिस्थितियों और व्यक्तियों के ज्ञान की चैनलेओं की अनुभूति और उत्पत्ति की जांच बनाती है। यह मनोवृत्ति जीव की क्रिया को चित्रत्र करती है और जीवन की व्याख्यता, भाव और क्रिया को संचालित करने का कार्य करती है।
(अगल की क्लोक में क्रमाबदी तैथा कालक्रमिक विवरण, मनोवृत्ति की व्युत्पति, और ऐतिहासिक क्रम-विकास की विस्तृत चर्चा की जायेगी।)**अध्याय 1: मनोवृत्ति की संकल्पना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि**
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### 📆 प्रस्तावना:
मनोवृत्ति (Attitude) जीवन की वैचारिक, भावनात्मक और क्रियात्मक चेतना की ऐसी मानसिक अवस्था है, जो किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना, जीव की घटना या और किसी परिस्थिति के प्रति जीवन की क्रिया की चित्तता को प्रभावित करती है। यह जीवन के चिंतन ऐच्छरणों, अनुभवों, भावनाओं और मूल्यों की क्रिया और चेतना की क्रिया को एक निरिष्ट दिशा में देखती है।
मनोवृत्ति का कार्य जीवन की ज्ञान और जीवन की क्रिया को ऐच्छा दिशाओं के प्रति निर्धेशाओं, परिस्थितियों और व्यक्तियों के ज्ञान की चैनलों की अनुभूति और उत्तर की जांच बनाती है। यह मनोवृत्ति जीवन की क्रिया को चित्रित करती है और जीवन की व्याख्यता, भाव और क्रिया को संचालित करने का कार्य करती है।
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### 📚 परिभाषात्मक विकास:
**1. सामान्य परिभाषा:**
मनोवृत्ति को सामान्यतः किसी व्यक्ति की मानसिकता या झुकाव के रूप में देखा जाता है जो किसी व्यक्ति, वस्तु, विषय या परिस्थिति के प्रति उसके व्यवहार को प्रभावित करता है। यह सकारात्मक, नकारात्मक या तटस्थ हो सकती है।
**2. डॉ. अवधेश कुमार 'शैलज' की परिभाषा (1992):**
> "Attitude is the preconditioning of behavior or response."
> "मनोवृत्ति व्यवहार या अनुक्रिया की पूर्वस्थिति है।"
यह परिभाषा संक्षिप्त होते हुए भी अत्यंत व्यापक है। इसमें मनोवृत्ति को मात्र एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि उस प्रतिक्रिया को दिशा देने वाली मानसिक पृष्ठभूमि या स्थिति के रूप में देखा गया है।
**3. एलपोर्ट (Allport, 1935):**
> "An attitude is a mental and neural state of readiness, organized through experience, exerting a directive or dynamic influence upon the individual's response to all objects and situations with which it is related."
यह परिभाषा मनोवृत्ति को मानसिक और तंत्रिका-तंत्र से जुड़ी पूर्वतैयारी की स्थिति के रूप में प्रस्तुत करती है, जो अनुभवों द्वारा संगठित होती है और किसी विषय की ओर व्यक्ति की प्रतिक्रिया को प्रभावित करती है।
**4. थर्स्टोन (Thurstone, 1931):**
> "Attitude is the sum total of one's inclinations and feelings, prejudice or bias, preconceived notions, ideas, fears, threats, and convictions about any specific topic."
थर्स्टोन ने मनोवृत्ति को व्यक्ति के झुकाव, भावनाओं, पूर्वाग्रहों, धारणाओं, भय आदि का योग कहा है जो किसी विषय के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं।
**5. क्रैचफील्ड और बैल्मी (1950):**
> "Attitude is an enduring organization of motivational, emotional, perceptual and cognitive processes with respect to some aspect of the individual's world."
यह परिभाषा मनोवृत्ति को व्यक्ति की दुनिया के किसी पक्ष के प्रति उसकी प्रेरणात्मक, भावात्मक, संवेदी और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का संगठित स्वरूप मानती है।
**6. शैलज परिभाषा की विशेषता:**
डॉ. शैलज की परिभाषा अन्य सभी परिभाषाओं की तुलना में अधिक व्यवहार-सिद्ध और संक्षिप्त है। इसमें मनोवृत्ति को किसी विशेष प्रकार की अनुक्रिया या व्यवहार के *पूर्वस्थित मानसिक ढाँचे* के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह दृष्टिकोण व्यवहारिक मनोविज्ञान, शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन और चिकित्सकीय संदर्भों में अत्यंत उपयोगी है।
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(अगले खंड में जोड़ा जाएगा: ऐतिहासिक विकासक्रम)
**अध्याय 2**
### वातावरण: संकल्पना, संरचना एवं प्रभाव
#### प्रस्तावना:
वातावरण वह व्यापक ढाँचा है जिसमें व्यक्ति जन्म लेता है, बढ़ता है और अपना समग्र विकास करता है। यह बाह्य और आंतरिक शक्तियों, कारकों और परिस्थितियों का वह तंत्र है जो व्यक्ति के व्यवहार, चिन्तन, संवेदना, अभिवृत्ति, दृष्टिकोण एवं उसके जीवनमूल्यों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। शैलज सिद्धांत के अनुसार, वातावरण एक मात्र पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि सक्रिय और संवेदनशील साझेदार होता है जो व्यक्ति के समायोजन और विकास की दिशा को निर्देशित करता है।
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#### वातावरण की परिभाषा:
**प्रो० अवधेश कुमार शैलज** के अनुसार,
"वातावरण वह बहुआयामी संदर्भ-तंत्र है जिसमें किसी प्राणी का समस्त अनुभव, व्यवहार, विकास और समायोजन संपन्न होता है। यह तंत्र बाह्य और आंतरिक, भौतिक और सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक, सभी प्रकार की उन शक्तियों, प्रेरणाओं, संभावनाओं एवं सीमाओं का समुच्चय है जो व्यक्ति की संज्ञानात्मक, भावात्मक, नैतिक और क्रियात्मक दशा को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।"
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#### वातावरण के घटक:
वातावरण के विविध घटक होते हैं जो व्यक्ति की वृद्धि एवं व्यवहार को प्रभावित करते हैं:
1. **भौतिक वातावरण:** जलवायु, भूगोल, संसाधन, ध्वनि, प्रकाश आदि।
2. **सामाजिक वातावरण:** परिवार, मित्र, समुदाय, शिक्षण संस्थान, सामाजिक अपेक्षाएँ।
3. **संस्कृतिक वातावरण:** परम्पराएँ, मान्यताएँ, भाषा, मूल्य, अनुष्ठान।
4. **आर्थिक वातावरण:** धन-संपत्ति, जीविका के साधन, आर्थिक संरचना।
5. **राजनैतिक वातावरण:** सत्ता-संरचना, विधि-व्यवस्था, सामाजिक-न्याय।
6. **मनोवैज्ञानिक वातावरण:** भावनात्मक समर्थन, सुरक्षा, प्रेरणा, आत्म-सम्मान।
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#### वातावरण की संरचना:
शैलज सिद्धांत वातावरण को एक द्विस्तरीय संरचना में समझाता है:
1. **प्रकट वातावरण (Overt Environment):** दृश्य, मापनयोग्य, प्रत्यक्ष तत्व जैसे- कक्षा, घर, सड़क, व्यक्ति आदि।
2. **गोप्त वातावरण (Covert Environment):** विचार, भावनाएँ, दृष्टिकोण, सामाजिक अपेक्षाएँ, पूर्वाग्रह आदि।
यह संरचना यह संकेत देती है कि किसी व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी तत्व प्रत्यक्ष नहीं होते। कई बार अनदेखे तत्व भी उसके निर्णयों, व्यवहारों और मनोभावों को निर्देशित करते हैं।
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#### वातावरण का विकासात्मक प्रभाव:
1. **प्रारंभिक बाल्यावस्था में:** माता-पिता का व्यवहार, पोषण, संरक्षण और प्रेरणा बच्चे की आधारभूत मानसिकता का निर्माण करते हैं।
2. **शैशवावस्था में:** खेल, भाषायी वातावरण, विद्यालयी अनुभव सामाजिक कौशल और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं।
3. **किशोरावस्था में:** मित्रवर्ग, आदर्श, संघर्ष, सामाजिक अपेक्षाएँ व्यक्ति के आत्मबोध एवं व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण होते हैं।
4. **प्रौढ़ावस्था में:** आजीविका, परिवार, सामाजिक प्रतिष्ठा, दायित्व व्यक्ति के क्रियात्मक और नैतिक विकास को आकार देते हैं।
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#### शैलज सिद्धांत के आलोक में वातावरण:
शैलज सिद्धांत यह मानता है कि वातावरण एक सक्रिय सहायक है, जो व्यक्ति को केवल अनुकूलित नहीं करता बल्कि उसे पुनः संरचित भी करता है। यह निम्न प्रकार से स्पष्ट होता है:
1. **प्रसंग-सापेक्ष अनुकूलन:** व्यक्ति उसी वातावरण से भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण करता है जो उसके संदर्भ के अनुरूप होता है।
2. **संवादात्मक सम्बंध:** व्यक्ति और वातावरण के बीच निरन्तर संवाद चलता रहता है, जिससे दोनों परस्पर प्रभावित होते हैं।
3. **सृजनात्मक वातावरण:** वातावरण केवल प्रतिक्रिया की भूमि नहीं बल्कि सृजनात्मक सम्भावनाओं की प्रयोगशाला है।
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#### व्यवहारिक उदाहरण:
* **शिक्षा में:** शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच संवाद का वातावरण ही सीखने की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
* **परिवार में:** माता-पिता की संवेदी प्रतिक्रियाएँ ही बच्चों के आत्मविश्वास, नैतिकता और सामाजिकता को गढ़ती हैं।
* **कार्यस्थल पर:** सम्मानजनक और उद्देश्यपरक वातावरण व्यक्ति की कार्य-क्षमता और मनोबल को बढ़ाता है।
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#### शैक्षिक संदर्भ में वातावरण:
1. **शैक्षिक समायोजन:** प्रत्येक विद्यार्थी का अधिगम उसकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा होता है।
2. **अनुकूल शिक्षण वातावरण:** सकारात्मक, संवादपरक एवं प्रेरक कक्षा-परिवेश बालक की जिज्ञासा और सृजनशीलता को पुष्ट करता है।
3. **नैतिक वातावरण:** मूल्यपरक दृष्टिकोण, सहिष्णुता, संवाद और सहयोग की भावना ही विद्यार्थियों के समाजोन्मुखी विकास का आधार है।
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#### निष्कर्ष:
वातावरण, व्यक्ति के जीवन की वह ऊर्जा-धारा है जो उसे हर क्षण प्रभावित करती है। शैलज सिद्धांत वातावरण को केवल एक बाह्य कारक न मानकर, संवेदनशील संवादात्मक शक्ति मानता है जो व्यक्ति को प्रभावित ही नहीं करती, अपितु व्यक्ति भी उसे गढ़ता है। इस प्रकार व्यक्ति और वातावरण के बीच का सम्बन्ध एक जीवंत और परस्पर उन्नायक सम्बन्ध है।
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**प्रश्नावली (स्वमूल्यांकन हेतु):**
1. वातावरण की शैलज परिभाषा को स्पष्ट करें।
2. वातावरण के दो प्रमुख घटकों की तुलना करें।
3. शैक्षिक वातावरण के तीन प्रमुख प्रभावों की विवेचना करें।
4. व्यवहार और वातावरण के मध्य संवादात्मक सम्बन्ध पर विचार प्रकट करें।
5. उदाहरण सहित बतायें कि कैसे वातावरण व्यक्ति के समायोजन को प्रभावित करता है।
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अगला अध्याय: **व्यक्तित्व: संकल्पना, गठन और अभिव्यक्ति**
**अध्याय 3: वैयक्तिक भिन्नता के कारण**
वैयक्तिक भिन्नता की उपस्थिति का मूल कारण यह है कि प्रत्येक व्यक्ति एक अद्वितीय जैविक, मानसिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना के साथ जन्म लेता है और जीवन पर्यंत विभिन्न अनुभवों, परिवेशों एवं परिस्थितियों से प्रभावित होता है।
### 1. आनुवंशिक कारण:
* हर व्यक्ति के जीन्स (genes) की संरचना भिन्न होती है।
* माता-पिता एवं पूर्वजों से प्राप्त अनुवांशिक गुण व्यक्तित्व के कई पहलुओं को प्रभावित करते हैं — जैसे बुद्धि, शारीरिक क्षमता, रंग-रूप, रोग-प्रतिरोधक क्षमता आदि।
* जुड़वाँ बच्चों में भी पूर्ण समानता नहीं पाई जाती, जिससे आनुवंशिक और वातावरणीय दोनों प्रभावों की पुष्टि होती है।
### 2. पूर्वज की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि:
* जातीय, धार्मिक, भाषायी तथा सामाजिक वर्गों की परंपराएँ, मूल्य एवं जीवनशैली का प्रभाव व्यक्ति के सोचने, समझने और व्यवहार करने के ढंग पर पड़ता है।
* उदाहरण: ग्रामीण और शहरी परिवेश में पले-बढ़े बच्चों की सोच एवं व्यवहार में अंतर।
### 3. पारिवारिक वातावरण:
* परिवार व्यक्ति के प्रारंभिक समाजीकरण की प्रथम इकाई है।
* माता-पिता का व्यवहार, शिक्षा-दीक्षा, पारिवारिक सहयोग, स्नेह और अनुशासन व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं।
* एक ही परिवार में पले-बढ़े बच्चे भी अलग-अलग व्यक्तित्व प्रदर्शित कर सकते हैं।
### 4. शैक्षणिक एवं विद्यालयी अनुभव:
* शिक्षक का दृष्टिकोण, सहपाठियों का व्यवहार, पाठ्यक्रम की प्रकृति और विद्यालय का वातावरण — ये सभी व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं।
* शिक्षा से अभिव्यक्ति के अवसर, विचारशीलता और आत्मानुशासन का विकास होता है।
### 5. मानसिक स्वास्थ्य एवं संवेगात्मक अनुभव:
* तनाव, भय, आत्मसम्मान, प्रेरणा, चिंता, आनंद जैसे संवेगात्मक कारक व्यक्ति की निर्णय क्षमता, सृजनात्मकता और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
* दीर्घकालिक मानसिक संघर्ष या आघात से वैयक्तिक भिन्नता अधिक उभर सकती है।
### 6. जैविक एवं शारीरिक भिन्नता:
* शारीरिक बनावट, तंदुरुस्ती, इन्द्रिय संवेदनशीलता, मस्तिष्कीय संरचना आदि में भी अंतर होता है।
* ये तत्व व्यक्ति की दक्षता, क्षमता, और रुचियों को प्रभावित करते हैं।
### 7. जीवन के अनुभव और अवसर:
* व्यक्ति को मिले अवसर, चुनौतियाँ, सफलता-असफलता के अनुभव, सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी उसकी सोच, अभिवृत्ति और व्यवहार को प्रभावित करती है।
### 8. मूल्य और विश्वास प्रणाली:
* व्यक्ति जिन मूल्यों और विश्वासों को जीवन में ग्रहण करता है — वे उसकी प्राथमिकताओं, दृष्टिकोणों और आत्मपरक विश्लेषणों को निर्देशित करते हैं।
### निष्कर्ष:
वैयक्तिक भिन्नता एक बहुपरतीय एवं बहुपरिमाणीय प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें जैविक संरचना, सामाजिक पृष्ठभूमि, पारिवारिक अनुभव, मानसिक दशा, शिक्षा और जीवन की परिस्थितियाँ सभी एक साथ कार्य करती हैं। एक शिक्षाविद्, मनोवैज्ञानिक या समाज सुधारक को इन विविध कारणों की समझ होनी चाहिए ताकि वह प्रत्येक व्यक्ति के समुचित विकास हेतु उपयुक्त वातावरण एवं मार्गदर्शन प्रदान कर सके।
अध्याय 1 का विस्तृत लेखन प्रारंभ कर दिया गया है। आगे मैं क्रमशः इसी अध्याय में निम्नलिखित अनुभाग जोड़ता जाऊँगा:
परिभाषात्मक विकास
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
मनोवृत्ति की वैज्ञानिक व्याख्या
मनोवृत्ति और व्यवहार का संबंध
प्रारंभिक शोध एवं सिद्धांत
क्या आप चाहेंगे कि मैं अभी "परिभाषात्मक विकास" अनुभाग जोड़ूं?
अध्याय 3 – वैयक्तिक भिन्नता एवं वातावरण में समायोजन
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प्रस्तावना:
प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व, क्षमताओं, विचारों, अनुभवों और व्यवहार में अन्य व्यक्तियों से भिन्न होता है। ये भिन्नताएँ केवल जैविक या मानसिक नहीं होतीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव से भी उत्पन्न होती हैं। इस अध्याय में हम ‘वैयक्तिक भिन्नता’ एवं ‘वातावरण में समायोजन’ की अवधारणाओं का गहन अध्ययन करेंगे।
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3.1 वैयक्तिक भिन्नता: संकल्पना एवं प्रकार
परिभाषा:
वैयक्तिक भिन्नता (Individual Difference) उस अवधारणा को दर्शाती है जिसमें यह स्वीकार किया जाता है कि कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतः समान नहीं हो सकते। यह भिन्नता मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, नैतिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तरों पर हो सकती है।
प्रमुख प्रकार:
शारीरिक भिन्नता (Physical Differences): ऊँचाई, वजन, रंग, शारीरिक बल आदि।
बौद्धिक भिन्नता (Intellectual Differences): बुद्धिलब्धि (IQ), तार्किक क्षमता, स्मृति आदि।
भावनात्मक भिन्नता (Emotional Differences): क्रोध, भय, प्रेम, द्वेष की तीव्रता में भिन्नता।
सामाजिक भिन्नता (Social Differences): सहयोग, नेतृत्व, मित्रता, आत्मसम्मान की प्रवृत्तियों में भिन्नता।
नैतिक एवं आत्मिक भिन्नता: मूल्य, आदर्श, आत्मानुभूति, धर्मबोध आदि में भिन्नता।
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3.2 वैयक्तिक भिन्नता के कारण
आनुवंशिकता (Heredity)
पर्यावरण (Environment)
शिक्षा (Education)
आर्थिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Socio-economic and cultural background)
स्वास्थ्य एवं पोषण (Health and Nutrition)
प्रेरणा एवं अवसर (Motivation and Opportunity)
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3.3 वैयक्तिक भिन्नता का शिक्षण पर प्रभाव
शिक्षण की एकरूप विधियाँ सभी छात्रों के लिए प्रभावी नहीं हो सकतीं।
शिक्षकों को समावेशी शिक्षण रणनीतियाँ अपनानी चाहिए।
व्यक्तिविशेष के अनुरूप शैक्षिक सहायक सामग्री का प्रयोग।
मूल्यांकन में विविधता एवं लचीलापन आवश्यक।
---
3.4 वातावरण में समायोजन: संकल्पना
शैलज-सिद्ध परिभाषा:
“अपने वातावरण में समायोजनात्मक व्यवहार के क्रम में किसी प्राणी या प्राणी समूह द्वारा अपने और अपने वातावरण से सम्बन्धित व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या परिस्थिति के सन्दर्भ में विकसित लिखित या अलिखित आचार संहिता के निर्धारण और / या अनुशीलन से विकसित वह जीवन-कौशल जो पर्यावरण के साथ अनुकूल सामंजस्य बनाता है, वातावरण में समायोजन कहलाता है।”
— प्रो. अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय
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3.5 समायोजन के प्रकार
व्यक्तिगत समायोजन (Personal Adjustment): आत्म-स्वीकृति, आत्म-संयम, स्वास्थ्य एवं भावनात्मक स्थिरता।
सामाजिक समायोजन (Social Adjustment): परिवार, विद्यालय, समाज के प्रति सहयोगी दृष्टिकोण।
शैक्षिक समायोजन (Educational Adjustment): कक्षा, पाठ्यक्रम, अध्यापक एवं सहपाठियों से संतुलन।
आर्थिक एवं व्यावसायिक समायोजन (Economic & Vocational Adjustment): संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग।
---
3.6 समायोजन प्रक्रिया के चरण
1. उद्दीपन की पहचान
2. अनुकूलन की योजना
3. नवाचार या प्रतिक्रिया विकास
4. मूल्यांकन एवं पुनर्समीक्षा
---
3.7 वैयक्तिक भिन्नता एवं समायोजन में परस्पर सम्बन्ध
वैयक्तिक भिन्नता जितनी अधिक होगी, समायोजन की आवश्यकता उतनी ही अधिक होगी।
समायोजन का स्तर व्यक्ति की आत्म-समझ एवं अनुकूलन क्षमता पर निर्भर करता है।
शिक्षक, परिवार एवं सामाजिक संस्थाएँ समायोजन को प्रोत्साहित करने वाली परिस्थितियाँ निर्मित कर सकती हैं।
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3.8 शैक्षिक सुझाव
भिन्नताओं को स्वीकार करना और उनका आदर करना सिखाएँ।
व्यक्तिगत रुचियों और क्षमताओं के अनुसार अध्यापन की रणनीति बनाना।
सहअस्तित्व और सहिष्णुता को बढ़ावा देना।
समायोजन के लिए व्यवहारिक अभ्यास और मूल्य आधारित शिक्षण को सम्मिलित करना।
---
3.9 निष्कर्ष
वैयक्तिक भिन्नता और वातावरण में समायोजन न केवल शिक्षा के केन्द्र बिन्दु हैं, बल्कि वे सामाजिक जीवन, व्यक्तित्व विकास और लोकतांत्रिक संस्कृति के मूल स्तम्भ भी हैं। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को अपनी भिन्नता को समझते हुए, वातावरण में समुचित समायोजन के लिए सशक्त बनाना है।
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यदि आप इस अध्याय को किसी विशेष प्रारूप (PDF/Docx/Bilingual etc.) में चाहते हैं या अगले अध्याय (अध्याय 4) के लिए निर्देश दें, तो बताएं।
अध्याय 3 – वैयक्तिक भिन्नता एवं वातावरण में समायोजन
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प्रस्तावना:
प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व, क्षमताओं, विचारों, अनुभवों और व्यवहार में अन्य व्यक्तियों से भिन्न होता है। ये भिन्नताएँ केवल जैविक या मानसिक नहीं होतीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव से भी उत्पन्न होती हैं। इस अध्याय में हम ‘वैयक्तिक भिन्नता’ एवं ‘वातावरण में समायोजन’ की अवधारणाओं का गहन अध्ययन करेंगे।
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3.1 वैयक्तिक भिन्नता: संकल्पना एवं प्रकार
परिभाषा:
वैयक्तिक भिन्नता (Individual Difference) उस अवधारणा को दर्शाती है जिसमें यह स्वीकार किया जाता है कि कोई भी दो व्यक्ति पूर्णतः समान नहीं हो सकते। यह भिन्नता मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, नैतिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तरों पर हो सकती है।
प्रमुख प्रकार:
शारीरिक भिन्नता (Physical Differences): ऊँचाई, वजन, रंग, शारीरिक बल आदि।
बौद्धिक भिन्नता (Intellectual Differences): बुद्धिलब्धि (IQ), तार्किक क्षमता, स्मृति आदि।
भावनात्मक भिन्नता (Emotional Differences): क्रोध, भय, प्रेम, द्वेष की तीव्रता में भिन्नता।
सामाजिक भिन्नता (Social Differences): सहयोग, नेतृत्व, मित्रता, आत्मसम्मान की प्रवृत्तियों में भिन्नता।
नैतिक एवं आत्मिक भिन्नता: मूल्य, आदर्श, आत्मानुभूति, धर्मबोध आदि में भिन्नता।
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3.2 वैयक्तिक भिन्नता के कारण
आनुवंशिकता (Heredity)
पर्यावरण (Environment)
शिक्षा (Education)
आर्थिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Socio-economic and cultural background)
स्वास्थ्य एवं पोषण (Health and Nutrition)
प्रेरणा एवं अवसर (Motivation and Opportunity)
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3.3 वैयक्तिक भिन्नता का शिक्षण पर प्रभाव
शिक्षण की एकरूप विधियाँ सभी छात्रों के लिए प्रभावी नहीं हो सकतीं।
शिक्षकों को समावेशी शिक्षण रणनीतियाँ अपनानी चाहिए।
व्यक्तिविशेष के अनुरूप शैक्षिक सहायक सामग्री का प्रयोग।
मूल्यांकन में विविधता एवं लचीलापन आवश्यक।
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3.4 वातावरण में समायोजन: संकल्पना
शैलज-सिद्ध परिभाषा:
“अपने वातावरण में समायोजनात्मक व्यवहार के क्रम में किसी प्राणी या प्राणी समूह द्वारा अपने और अपने वातावरण से सम्बन्धित व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या परिस्थिति के सन्दर्भ में विकसित लिखित या अलिखित आचार संहिता के निर्धारण और / या अनुशीलन से विकसित वह जीवन-कौशल जो पर्यावरण के साथ अनुकूल सामंजस्य बनाता है, वातावरण में समायोजन कहलाता है।”
— प्रो. अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय
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3.5 समायोजन के प्रकार
व्यक्तिगत समायोजन (Personal Adjustment): आत्म-स्वीकृति, आत्म-संयम, स्वास्थ्य एवं भावनात्मक स्थिरता।
सामाजिक समायोजन (Social Adjustment): परिवार, विद्यालय, समाज के प्रति सहयोगी दृष्टिकोण।
शैक्षिक समायोजन (Educational Adjustment): कक्षा, पाठ्यक्रम, अध्यापक एवं सहपाठियों से संतुलन।
आर्थिक एवं व्यावसायिक समायोजन (Economic & Vocational Adjustment): संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग।
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3.6 समायोजन प्रक्रिया के चरण
1. उद्दीपन की पहचान
2. अनुकूलन की योजना
3. नवाचार या प्रतिक्रिया विकास
4. मूल्यांकन एवं पुनर्समीक्षा
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3.7 वैयक्तिक भिन्नता एवं समायोजन में परस्पर सम्बन्ध
वैयक्तिक भिन्नता जितनी अधिक होगी, समायोजन की आवश्यकता उतनी ही अधिक होगी।
समायोजन का स्तर व्यक्ति की आत्म-समझ एवं अनुकूलन क्षमता पर निर्भर करता है।
शिक्षक, परिवार एवं सामाजिक संस्थाएँ समायोजन को प्रोत्साहित करने वाली परिस्थितियाँ निर्मित कर सकती हैं।
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3.8 शैक्षिक सुझाव
भिन्नताओं को स्वीकार करना और उनका आदर करना सिखाएँ।
व्यक्तिगत रुचियों और क्षमताओं के अनुसार अध्यापन की रणनीति बनाना।
सहअस्तित्व और सहिष्णुता को बढ़ावा देना।
समायोजन के लिए व्यवहारिक अभ्यास और मूल्य आधारित शिक्षण को सम्मिलित करना।
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3.9 निष्कर्ष
वैयक्तिक भिन्नता और वातावरण में समायोजन न केवल शिक्षा के केन्द्र बिन्दु हैं, बल्कि वे सामाजिक जीवन, व्यक्तित्व विकास और लोकतांत्रिक संस्कृति के मूल स्तम्भ भी हैं। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को अपनी भिन्नता को समझते हुए, वातावरण में समुचित समायोजन के लिए सशक्त बनाना है।
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अध्याय 4: मनोवृत्ति का वर्गीकरण
(Chapter 4: Classification of Attitude)
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✦ प्रस्तावना
मनोवृत्ति (Attitude) का स्वरूप बहुआयामी एवं बहुपरिप्रेक्ष्यीय होता है। इसकी जटिलता को समझने के लिए इसके वर्गीकरण की आवश्यकता होती है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न आधारों पर मनोवृत्तियों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। यह अध्याय इन्हीं वर्गों का वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से अनुशीलन करता है।
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✦ 1. शैलज वर्गीकरण (Shailaj Classification of Attitude)
प्रो० अवधेश कुमार शैलज के अनुसार,
"मनोवृत्ति किसी व्यक्ति के उद्देश्यपरक, भावप्रधान एवं क्रियात्मक रुझानों की वह संरचना है जो किसी व्यक्ति, वस्तु, विचार या परिस्थिति के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को पूर्वनिर्धारित करती है।"
इस परिभाषा के आलोक में शैलज वर्गीकरण में निम्नलिखित स्तरों को स्पष्ट किया गया है—
(i) उद्देश्यमूलक मनोवृत्तियाँ (Purposive Attitudes)
किसी लक्ष्य, उद्देश्य या मूल्य की प्राप्ति की प्रेरणा से संचालित होती हैं।
उदाहरण: देशभक्ति, शैक्षणिक मनोवृत्ति, धार्मिकता।
(ii) भावप्रधान मनोवृत्तियाँ (Affective Attitudes)
प्रेम, घृणा, भय, करुणा जैसे भावनात्मक आयामों से युक्त होती हैं।
उदाहरण: मातृभाव, संप्रदाय-घृणा, जातीय भेद।
(iii) क्रियात्मक मनोवृत्तियाँ (Conative/Action-oriented Attitudes)
व्यवहार में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली प्रतिक्रियात्मक प्रवृत्तियाँ।
उदाहरण: सेवा करना, विरोध प्रदर्शन, सहयोग करना।
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✦ 2. पारंपरिक वर्गीकरण (Traditional Classifications)
(i) सकारात्मक और नकारात्मक मनोवृत्तियाँ (Positive vs. Negative Attitudes)
सकारात्मक: आकर्षण, समर्थन, अपनत्व के भाव।
नकारात्मक: प्रतिरोध, विरोध, उपेक्षा।
(ii) प्रकट और अंतर्निहित मनोवृत्तियाँ (Explicit vs. Implicit Attitudes)
प्रकट: स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती हैं।
अंतर्निहित: अवचेतन स्तर पर सक्रिय होती हैं, व्यवहार में अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट होती हैं।
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✦ 3. मनोविज्ञानियों द्वारा दिए गए वर्गीकरण
(i) थर्स्टोन (Thurstone) वर्गीकरण
Scale-based attitudes: सात स्तरों में भावनात्मक तीव्रता के अनुसार वर्गीकृत किया गया।
(ii) ऑलपोर्ट (Allport) वर्गीकरण
प्रसारणात्मक (transmitted)
व्यक्तित्वगत (personalized)
सामाजिक (social)
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✦ 4. कार्यात्मक वर्गीकरण (Functional Classification – Katz, 1960)
डेनियल काट्ज (Daniel Katz) के अनुसार मनोवृत्तियों की चार प्रमुख कार्यात्मक श्रेणियाँ होती हैं:
1. उपयोगी (Instrumental)
पुरस्कार या दण्ड से संबंधित।
उदाहरण: शिक्षक की प्रसन्नता पाने हेतु उत्तर देना।
2. ज्ञानात्मक (Knowledge)
जानकारी और संगठित अनुभव पर आधारित।
उदाहरण: किसी राजनीतिक दल के बारे में तथ्यात्मक मनोवृत्ति।
3. मूल्य-व्यक्तिकरण (Value-expressive)
आत्म-अभिव्यक्ति और मूल्यों के प्रदर्शन हेतु।
उदाहरण: पर्यावरण संरक्षण की भावना।
4. रक्षा-प्रधान (Ego-defensive)
आत्म-संरक्षण हेतु नकारात्मक भावना का विकास।
उदाहरण: किसी धर्म या जाति के प्रति पूर्वाग्रह।
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✦ 5. शैक्षिक वर्गीकरण (Educational Classification)
शिक्षा के क्षेत्र में मनोवृत्तियों को तीन ऐप्रमुख रूपों में विभाजित किया जाता है:
1. ज्ञानात्मक मनोवृत्तियाँ – जैसे अध्ययन की प्रवृत्ति
2. भावात्मक मनोवृत्तियाँ – जैसे शिक्षक के प्रति सम्मान
3. क्रियात्मक मनोवृत्तियाँ – जैसे कक्षा में सक्रिय सहभागिता
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✦ 6. भारतीय संदर्भ में मनोवृत्तियों का वर्गीकरण
भारतीय मनोविज्ञान में तीन प्रकार की प्रवृत्तियों का उल्लेख है, जिन्हें मनोवृत्तियों के मूल आधार के रूप में समझा जा सकता है:
1. सात्त्विक मनोवृत्ति – ज्ञान, शांतिप्रेम, अहिंसा
2. राजसिक मनोवृत्ति – महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा
3. तामसिक मनोवृत्ति – आलस्य, हिंसा, अज्ञान
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✦ निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का वर्गीकरण न केवल इनके स्वरूप को स्पष्ट करता है, अपितु व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व, व्यवहार और समाज में उसकी भूमिका को समझने में सहायक होता है।
शैलज वर्गीकरण मनोवृत्तियों के तीन आधारभूत स्तम्भों को उद्घाटित करता है: उद्देश्य, भावना, एवं क्रिया – जो किसी भी व्यवहार की दिशा और प्रवृत्ति को परिभाषित करते हैं।
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📘 अध्याय 5: मनोवृत्तियों का निर्माण और विकास
(Chapter 5: Formation and Development of Attitudes)
1. भूमिका (Introduction)
मनोवृत्ति (Attitude) केवल एक मानसिक स्थिति नहीं, बल्कि एक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक अनुभवों से गढ़ा गया बहुआयामी व्यवहारिक ढाँचा है। इसका निर्माण एक सतत प्रक्रिया है, जो जन्म से लेकर सामाजिक परिपक्वता तक विभिन्न प्रभावों से प्रभावित होती रहती है।
2. मनोवृत्तियों के निर्माण की प्रक्रिया (Process of Formation of Attitudes)
(क) आनुवंशिक और जैविक आधार (Genetic and Biological Basis)
- कुछ मनोवृत्तियाँ जैसे—डर, प्रतिस्पर्धा, सहानुभूति—आंशिक रूप से वंशानुगत होती हैं।
- मस्तिष्क संरचना, हार्मोनल प्रभाव और तंत्रिका तंत्र की संवेदनशीलता भी कुछ स्वाभाविक झुकावों को जन्म देती है।
(ख) पारिवारिक प्रभाव (Family Influence)
- माता-पिता एवं अन्य परिजनों के व्यवहार, भाषण, विश्वास, धार्मिक प्रवृत्तियाँ आदि, प्रारंभिक मनोवृत्तियों को आकार देते हैं।
- अनुकरण (Imitation) और पहचान (Identification) के द्वारा शिशु परिवार के मूल्यों को अपनाता है।
(ग) सामाजिक-आर्थिक परिवेश (Socio-Economic Environment)
- जाति, वर्ग, भाषा, आर्थिक स्थिति, शैक्षिक पृष्ठभूमि आदि सामाजिक घटक मानसिक दृष्टिकोण और मूल्य-प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
(घ) शिक्षा और विद्यालय (Education and School)
- औपचारिक शिक्षा का माध्यम विद्यार्थी की सोच, दृष्टिकोण और मान्यताओं को विकसित करने का प्रमुख साधन है।
- शिक्षक, पाठ्यपुस्तक, पाठ्यचर्या, विद्यालय वातावरण इत्यादि इसके सहायक कारक हैं।
(ङ) सहकर्मी समूह (Peer Group Influence)
- किशोरावस्था में मित्र समूह की भूमिका निर्णायक होती है, जिससे कई पूर्वनिर्मित या पारिवारिक मनोवृत्तियाँ परिवर्तित हो सकती हैं।
(च) संचार माध्यम (Mass Media)
- सोशल मीडिया, टेलीविजन, फिल्म, समाचार पत्र आदि मनोवृत्तियों के निर्माण और दिशा-निर्धारण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
(छ) व्यक्तिगत अनुभव (Personal Experiences)
- सफलता-असफलता, पुरस्कार-दंड, सहयोग-अस्वीकृति जैसे व्यक्तिगत अनुभव किसी विशेष विषय या व्यक्ति के प्रति स्थायी मानसिक रुझान बना सकते हैं।
3. मनोवृत्तियों का विकास (Development of Attitudes)
(क) अवस्थागत परिपक्वता (Developmental Maturity)
- जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु, बुद्धि, और संवेदना परिपक्व होती है, उसकी मनोवृत्तियाँ भी जटिल और विवेकपूर्ण बनती जाती हैं।
(ख) अनुभवजन्य सीख (Experiential Learning)
- व्यवहारिक अनुभव, पर्यवेक्षण और प्रतिक्रिया द्वारा मनोवृत्तियाँ धीरे-धीरे अधिक सुसंगत और स्थिर बनती हैं।
(ग) आंतरिक संघर्ष और आत्मावलोकन (Inner Conflict and Self-reflection)
- मूल्य-संघर्षों, नैतिक द्वंद्वों और आत्मविश्लेषण से मनोवृत्तियों में परिवर्तन और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है।
(घ) शिक्षा और सामाजिक प्रशिक्षण (Education and Social Training)
- सतत शिक्षण और मूल्यों पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यक्ति की भावात्मक संरचना को पुनः दिशा देने में सहायक होते हैं।
4. मनोवृत्ति विकास के प्रमुख सिद्धांत (Major Theories of Attitude Formation and Development)
(i) सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory - Bandura)
- अनुकरण, पर्यवेक्षण और सामाजिक प्रोत्साहन के द्वारा मनोवृत्तियाँ अर्जित होती हैं।
(ii) सुसंगतता सिद्धांत (Cognitive Consistency Theory - Festinger)
- व्यक्ति अपनी सोच और व्यवहार के बीच सामंजस्य स्थापित करने हेतु अपनी मनोवृत्तियों को समायोजित करता है।
(iii) प्रबलन सिद्धांत (Reinforcement Theory - Skinner)
- पुरस्कार व दंड के माध्यम से व्यवहार को पुष्ट किया जाता है जिससे संबंधित मनोवृत्ति स्थायी बनती है।
5. शैक्षिक और सामाजिक महत्त्व (Educational and Social Significance)
- सकारात्मक मनोवृत्तियों का विकास शिक्षा का मूल उद्देश्य है।
- राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता, पर्यावरण-संरक्षण, लैंगिक समानता आदि क्षेत्रों में वांछनीय मनोवृत्तियाँ विकसित करना आवश्यक है।
- जीवन की गुणवत्ता और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण निर्माण आवश्यक है।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
मनोवृत्तियाँ जन्मजात न होकर सामाजिक निर्माण की उपज हैं। इनका विकास एक सतत, बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसे शिक्षा, अनुभव और समाजशास्त्रीय प्रशिक्षण द्वारा संवारा जा सकता है। आज के जटिल समाज में विवेकपूर्ण, मानवतावादी और आलोचनात्मक मनोवृत्तियों का निर्माण नितांत आवश्यक है।
यदि आप चाहें तो मैं इसका शोध आलेख, प्रश्नोत्तरी, या PowerPoint प्रस्तुति भी तैयार कर सकता हूँ।
अध्याय 6
मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
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प्रस्तावना
मनोवृत्तियाँ (Attitudes) किसी व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय, एवं सामाजिक क्रिया-कलापों को दिशा देने वाले स्थायी मानसिक रूझान होते हैं। इनकी जटिलता को समझने के लिए आवश्यक है कि इन्हें उपयुक्त ढंग से मापा जाए। मनोवृत्ति मापन में प्रयुक्त विविध प्रविधियाँ जैसे पैमाने, प्रक्षेपनात्मक परीक्षण (Projective Tests), एवं साक्षात्कार हमें किसी व्यक्ति के अन्तर्निहित दृष्टिकोण, विश्वास एवं भावनात्मक रुझान को जानने में सहायता करते हैं। इस अध्याय में हम मनोवृत्ति मापन की विभिन्न प्रविधियों का परिचय प्राप्त करेंगे, विशेषतः दो प्रमुख प्रक्षेपनात्मक प्रविधियाँ—थीमैटिक एपरसेप्शन टेस्ट (TAT) एवं सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ परीक्षण (SSCT)—का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे।
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1. मनोवृत्ति मापन की आवश्यकता
व्यक्तित्व अध्ययन में सहायता
व्यवहार-पूर्वानुमान में सहयोग
शैक्षिक, चिकित्सीय व व्यावसायिक परामर्श हेतु उपयुक्त
सामाजिक सुधार और नीति निर्माण में आधार
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2. मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ
2.1 आत्म-प्रतिवेदन (Self-report) विधियाँ
व्यक्ति से उसके दृष्टिकोण के बारे में प्रत्यक्ष रूप से प्रश्न किया जाता है।
उदाहरण: प्रश्नावली (Questionnaire), साक्षात्कार
2.2 पैमाने आधारित विधियाँ (Scale-based Methods)
लिकर्ट स्केल (Likert Scale): सहमत-असहमत के क्रम में विकल्प
थरस्टन स्केल (Thurstone Scale): भारांकित कथनों पर आधारित
गुटमैन स्केल (Guttman Scale): श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया प्रणाली
2.3 प्रक्षेपनात्मक तकनीकें (Projective Techniques)
जब व्यक्ति को अस्पष्ट, अर्द्धरूपात्मक चित्र या कथन प्रस्तुत किए जाते हैं और उसकी प्रतिक्रिया उसके अवचेतन मनोवृत्तियों को दर्शाती है।
प्रमुख तकनीकें:
TAT (Thematic Apperception Test)
SSCT (Sentence Completion Test)
रॉर्शाच स्याही धब्बा परीक्षण (Rorschach Inkblot Test)
चित्र अन्वेषण परीक्षण (Picture Interpretation Technique)
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3. TAT (Thematic Apperception Test) का परिचय और महत्व
3.1 परिभाषा:
TAT एक प्रक्षेपनात्मक परीक्षण है जिसमें व्यक्ति को अस्पष्ट सामाजिक चित्र दिखाए जाते हैं और उससे कहा जाता है कि वह उस चित्र पर एक कहानी बनाए। यह कहानी उसके आंतरिक संघर्ष, अभिप्रेरणा, आकांक्षा, तथा मनोवृत्तियों को प्रकट करती है।
3.2 विशेषताएँ:
चित्र सामान्यतः दो व्यक्तियों के संवाद या किसी सामाजिक स्थिति को प्रदर्शित करते हैं।
व्यक्ति कहानी के पात्रों की मनोस्थिति, समस्या, समाधान, और संभावित परिणाम के बारे में बताता है।
3.3 उपयोग:
व्यक्तित्व मूल्यांकन
मनोवैज्ञानिक परामर्श
अवसाद, आक्रोश, भय, हीनता जैसे मनोभावों की पहचान
नेतृत्व, महत्वाकांक्षा, संघर्ष समाधान जैसी प्रवृत्तियों का विश्लेषण
3.4 लाभ:
गहरे मानसिक स्तर की जानकारी
शब्दों से छिपाए गए भावों का अनावरण
सांस्कृतिक-प्रेरित भिन्नताओं का संकेत
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4. SSCT (Social-Symbolic Completion Test) / वाक्य-पूर्णता परीक्षण
4.1 परिभाषा:
यह एक प्रक्षेपनात्मक विधि है जिसमें अधूरे वाक्य प्रस्तुत किए जाते हैं और व्यक्ति से उन्हें पूरा करने के लिए कहा जाता है। उसकी प्रतिक्रियाएँ उसके अभिप्रेरणा, भावनात्मक रुझान और सामाजिक सोच को दर्शाती हैं।
4.2 संरचना:
वाक्य प्रारंभ होते हैं जैसे—
"मुझे गुस्सा आता है जब..."
"मेरे मित्र मुझे..."
"मेरे जीवन का उद्देश्य..."
व्यक्ति बिना विचार-विमर्श के स्वतः प्रतिक्रिया देता है।
4.3 उपयोग:
शैक्षिक परामर्श
मानसिक रोग निदान
सामाजिक मनोवृत्तियों का मूल्यांकन
द्वंद्वात्मक विचारों की पहचान
4.4 लाभ:
सरल, शीघ्र और खुला प्रारूप
भावनात्मक द्वंद्व का प्रकटीकरण
समूह परीक्षण हेतु भी उपयोगी
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5. तुलना: TAT बनाम SSCT
पक्ष TAT SSCT
प्रकृति चित्र आधारित शब्द आधारित
प्रतिक्रिया शैली कहानी वाक्य पूर्णता
समय अपेक्षाकृत अधिक कम
जटिलता अधिक विश्लेषणात्मक तुलनात्मक रूप से सरल
प्रयोग क्षेत्र चिकित्सीय, अनुसंधान शैक्षिक, नैदानिक
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6. निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का मापन न केवल व्यक्ति के मनोदशा का आकलन करने में सहायक होता है, बल्कि उसके व्यवहार, निर्णय, तथा संबंधों के आधार को भी उजागर करता है। TAT एवं SSCT जैसी प्रक्षेपनात्मक विधियाँ मन के उन पहलुओं तक पहुँचने में सक्षम हैं, जो सामान्यतः शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किए जाते। अतः इनका उपयोग मनोविज्ञान, शिक्षा, परामर्श, व मानव संसाधन के क्षेत्रों में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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यहाँ अध्याय 6 "मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व" को एक मानकीकृत शैक्षिक पाठ्यपुस्तक अध्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय बी.ए./एम.ए. मनोविज्ञान के पाठ्यक्रम के लिए उपयुक्त है:
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📘 अध्याय 6: मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
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विषयसूची
1. प्रस्तावना
2. मनोवृत्ति मापन का महत्व
3. मापन की प्रविधियाँ
3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ
3.2 प्रेक्षण विधियाँ
3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ
4. TAT (Thematic Apperception Test)
4.1 परिचय
4.2 संरचना
4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
4.4 व्याख्या
4.5 TAT का महत्व
5. SSCT (Sentence Completion Test)
5.1 परिचय
5.2 स्वरूप
5.3 मापन प्रक्रिया
5.4 SSCT का महत्व
6. तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
7. निष्कर्ष
8. अभ्यास प्रश्न
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1. प्रस्तावना
मनोवृत्तियाँ (Attitudes) व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय और प्रतिक्रियाओं को निर्धारित करने वाली मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। इनका मापन एवं मूल्यांकन मनोवैज्ञानिक अध्ययन एवं परामर्श में अत्यंत उपयोगी है। इस अध्याय में हम मनोवृत्ति मापन की प्रविधियों का विवेचन करेंगे तथा दो प्रमुख परियोजनात्मक परीक्षण – TAT और SSCT – की संरचना, प्रक्रिया एवं महत्व का विश्लेषण करेंगे।
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2. मनोवृत्ति मापन का महत्व
मनोवृत्ति का मापन निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
व्यक्ति की सोच और व्यवहार के रुझानों को समझना
वैयक्तिक परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन
सामाजिक दृष्टिकोण, रूढ़ियाँ और पूर्वग्रहों का अध्ययन
नैतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक अभिवृत्तियों का आकलन
शैक्षिक और व्यवसायिक अनुकूलन में सहायता
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3. मापन की प्रविधियाँ
3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ (Self-report Methods)
प्रश्नावली (Questionnaire)
स्केल (Likert Scale, Thurstone Scale, Semantic Differential Scale)
साक्षात्कार (Structured/Unstructured Interview)
3.2 प्रेक्षण विधियाँ (Observational Methods)
व्यवहारिक संकेतों का अवलोकन
सामाजिक स्थितियों में प्रतिक्रियाएँ
भाव-भंगिमा, स्वर, संप्रेषण
3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ (Projective Techniques)
अस्पष्ट उद्दीपनों पर आधारित परीक्षण
व्यक्ति अपनी आंतरिक भावना को प्रक्षिप्त करता है
उदाहरण: Rorschach Inkblot Test, TAT, SSCT
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4. TAT (Thematic Apperception Test)
4.1 परिचय
TAT का विकास मरे और मॉर्गन (Henry A. Murray & Christina D. Morgan) ने 1935 में किया। यह एक परियोजनात्मक परीक्षण है जो व्यक्तित्व, उद्दीपन, और अंतर्निहित संघर्षों को उजागर करता है।
4.2 संरचना
30 चित्र-पट्टिकाएँ (Cards) + 1 रिक्त कार्ड
विभिन्न आयु और लिंग के लिए विशेष कार्ड
चित्र सामान्यतः मानव आकृतियों को अस्पष्ट स्थिति में दर्शाते हैं
4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
एक-एक करके चित्र दिखाए जाते हैं
उत्तरदाता को कहानी बनानी होती है:
चित्र में क्या हो रहा है?
पात्र कौन हैं?
उनकी भावना क्या है?
आगे क्या होगा?
4.4 व्याख्या
विषयवस्तु की पुनरावृत्ति
कहानी में नायक की भूमिका
संघर्ष, आकांक्षाएँ, चिंता
अन्त का स्वरूप
4.5 TAT का महत्व
अचेतन मन की अभिव्यक्ति
व्यक्तित्व की गतिशील समझ
चिकित्सीय एवं परामर्श उद्देश्यों के लिए उपयोगी
गहरे मानसिक संघर्षों की पहचान
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5. SSCT (Sentence Completion Test)
5.1 परिचय
यह भी एक परियोजनात्मक प्रविधि है, जिसमें उत्तरदाता को अपूर्ण वाक्यों को पूरा करना होता है। यह एक सरल, व्यवहारिक और त्वरित विधि है।
5.2 स्वरूप
वाक्यांशों की सूची (प्रायः 40 से 60)
जैसे:
"मुझे सबसे अधिक डर लगता है..."
"मेरे माता-पिता..."
"मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे..."
5.3 मापन प्रक्रिया
उत्तरदाता बिना रोक-टोक के वाक्य पूरे करता है
उत्तरों का विश्लेषण विषयवस्तु, भावना, चिंता आदि के आधार पर किया जाता है
व्यक्तित्व लक्षण, अभिप्रेरणा, सामाजिक दृष्टिकोण उजागर होते हैं
5.4 SSCT का महत्व
सरल व त्वरित परीक्षण
व्यवहारिक और वास्तविक उत्तरों की संभावना
परामर्श और नैदानिक मूल्यांकन में उपयोगी
चिंता, आत्मसम्मान, पारिवारिक संबंधों का संकेतक
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6. तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
आधार TAT SSCT
प्रकृति दृश्य-चित्र आधारित पाठ्य आधारित वाक्य पूर्ण करना
गहराई अधिक गहन, गूढ़ अंतर्दृष्टि सतही लेकिन विविध
समय अपेक्षाकृत अधिक अपेक्षाकृत कम
प्रशासन प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक द्वारा शिक्षक/परामर्शदाता भी दे सकते हैं
विश्लेषण विषयवस्तु, भावना, संरचना विषयगत श्रेणियाँ, मानसिक प्रवृत्ति
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7. निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का मापन मनोविज्ञान की व्यावहारिक और अनुसंधानात्मक दिशा में अत्यंत उपयोगी है। TAT और SSCT जैसे परियोजनात्मक परीक्षण व्यक्ति के आंतरिक संसार, गहरे मानसिक संघर्ष, मूलभूत प्रेरणाएँ और सामाजिक दृष्टिकोण को पहचानने में सहायक सिद्ध होते हैं। इनकी उचित प्रयोगशीलता, सटीक व्याख्या एवं नैतिक जिम्मेदारी आवश्यक है।
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8. अभ्यास प्रश्न
लघु उत्तर प्रश्न:
1. मनोवृत्ति मापन की दो परियोजनात्मक प्रविधियाँ लिखिए।
2. SSCT परीक्षण की दो विशेषताएँ बताइए।
3. TAT के चित्रों की कुल संख्या कितनी होती है?
दीर्घ उत्तर प्रश्न:
1. TAT परीक्षण की संरचना और महत्व का विवेचन कीजिए।
2. SSCT परीक्षण की प्रकृति, प्रक्रिया एवं विश्लेषण की विस्तार से चर्चा कीजिए।
3. TAT और SSCT के मध्य तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
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📘 अध्याय 6: मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
विषयसूची
- प्रस्तावना
- मनोवृत्ति मापन का महत्व
- मापन की प्रविधियाँ
- 3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ
- 3.2 प्रेक्षण विधियाँ
- 3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ
- TAT (Thematic Apperception Test)
- 4.1 परिचय
- 4.2 संरचना
- 4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
- 4.4 व्याख्या
- 4.5 TAT का महत्व
- SSCT (Sentence Completion Test)
- 5.1 परिचय
- 5.2 स्वरूप
- 5.3 मापन प्रक्रिया
- 5.4 SSCT का महत्व
- तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
- निष्कर्ष
- अभ्यास प्रश्न
1. प्रस्तावना
मनोवृत्तियाँ (Attitudes) व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय और प्रतिक्रियाओं को निर्धारित करने वाली मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। इनका मापन एवं मूल्यांकन मनोवैज्ञानिक अध्ययन एवं परामर्श में अत्यंत उपयोगी है। इस अध्याय में हम मनोवृत्ति मापन की प्रविधियों का विवेचन करेंगे तथा दो प्रमुख परियोजनात्मक परीक्षण – TAT और SSCT – की संरचना, प्रक्रिया एवं महत्व का विश्लेषण करेंगे।
2. मनोवृत्ति मापन का महत्व
मनोवृत्ति का मापन निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
- व्यक्ति की सोच और व्यवहार के रुझानों को समझना
- वैयक्तिक परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन
- सामाजिक दृष्टिकोण, रूढ़ियाँ और पूर्वग्रहों का अध्ययन
- नैतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक अभिवृत्तियों का आकलन
- शैक्षिक और व्यवसायिक अनुकूलन में सहायता
3. मापन की प्रविधियाँ
3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ (Self-report Methods)
- प्रश्नावली (Questionnaire)
- स्केल (Likert Scale, Thurstone Scale, Semantic Differential Scale)
- साक्षात्कार (Structured/Unstructured Interview)
3.2 प्रेक्षण विधियाँ (Observational Methods)
- व्यवहारिक संकेतों का अवलोकन
- सामाजिक स्थितियों में प्रतिक्रियाएँ
- भाव-भंगिमा, स्वर, संप्रेषण
3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ (Projective Techniques)
- अस्पष्ट उद्दीपनों पर आधारित परीक्षण
- व्यक्ति अपनी आंतरिक भावना को प्रक्षिप्त करता है
- उदाहरण: Rorschach Inkblot Test, TAT, SSCT
4. TAT (Thematic Apperception Test)
4.1 परिचय
TAT का विकास मरे और मॉर्गन (Henry A. Murray & Christina D. Morgan) ने 1935 में किया। यह एक परियोजनात्मक परीक्षण है जो व्यक्तित्व, उद्दीपन, और अंतर्निहित संघर्षों को उजागर करता है।
4.2 संरचना
- 30 चित्र-पट्टिकाएँ (Cards) + 1 रिक्त कार्ड
- विभिन्न आयु और लिंग के लिए विशेष कार्ड
- चित्र सामान्यतः मानव आकृतियों को अस्पष्ट स्थिति में दर्शाते हैं
4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
- एक-एक करके चित्र दिखाए जाते हैं
- उत्तरदाता को कहानी बनानी होती है:
- चित्र में क्या हो रहा है?
- पात्र कौन हैं?
- उनकी भावना क्या है?
- आगे क्या होगा?
4.4 व्याख्या
- विषयवस्तु की पुनरावृत्ति
- कहानी में नायक की भूमिका
- संघर्ष, आकांक्षाएँ, चिंता
- अन्त का स्वरूप
4.5 TAT का महत्व
- अचेतन मन की अभिव्यक्ति
- व्यक्तित्व की गतिशील समझ
- चिकित्सीय एवं परामर्श उद्देश्यों के लिए उपयोगी
- गहरे मानसिक संघर्षों की पहचान
5. SSCT (Sentence Completion Test)
5.1 परिचय
यह भी एक परियोजनात्मक प्रविधि है, जिसमें उत्तरदाता को अपूर्ण वाक्यों को पूरा करना होता है। यह एक सरल, व्यवहारिक और त्वरित विधि है।
5.2 स्वरूप
- वाक्यांशों की सूची (प्रायः 40 से 60)
जैसे:- "मुझे सबसे अधिक डर लगता है..."
- "मेरे माता-पिता..."
- "मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे..."
5.3 मापन प्रक्रिया
- उत्तरदाता बिना रोक-टोक के वाक्य पूरे करता है
- उत्तरों का विश्लेषण विषयवस्तु, भावना, चिंता आदि के आधार पर किया जाता है
- व्यक्तित्व लक्षण, अभिप्रेरणा, सामाजिक दृष्टिकोण उजागर होते हैं
5.4 SSCT का महत्व
- सरल व त्वरित परीक्षण
- व्यवहारिक और वास्तविक उत्तरों की संभावना
- परामर्श और नैदानिक मूल्यांकन में उपयोगी
- चिंता, आत्मसम्मान, पारिवारिक संबंधों का संकेतक
6. तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
आधार | TAT | SSCT |
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प्रकृति | दृश्य-चित्र आधारित | पाठ्य आधारित वाक्य पूर्ण करना |
गहराई | अधिक गहन, गूढ़ अंतर्दृष्टि | सतही लेकिन विविध |
समय | अपेक्षाकृत अधिक | अपेक्षाकृत कम |
प्रशासन | प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक द्वारा | शिक्षक/परामर्शदाता भी दे सकते हैं |
विश्लेषण | विषयवस्तु, भावना, संरचना | विषयगत श्रेणियाँ, मानसिक प्रवृत्ति |
7. निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का मापन मनोविज्ञान की व्यावहारिक और अनुसंधानात्मक दिशा में अत्यंत उपयोगी है। TAT और SSCT जैसे परियोजनात्मक परीक्षण व्यक्ति के आंतरिक संसार, गहरे मानसिक संघर्ष, मूलभूत प्रेरणाएँ और सामाजिक दृष्टिकोण को पहचानने में सहायक सिद्ध होते हैं। इनकी उचित प्रयोगशीलता, सटीक व्याख्या एवं नैतिक जिम्मेदारी आवश्यक है।
8. अभ्यास प्रश्न
लघु उत्तर प्रश्न:
- मनोवृत्ति मापन की दो परियोजनात्मक प्रविधियाँ लिखिए।
- SSCT परीक्षण की दो विशेषताएँ बताइए।
- TAT के चित्रों की कुल संख्या कितनी होती है?
दीर्घ उत्तर प्रश्न:
- TAT परीक्षण की संरचना और महत्व का विवेचन कीजिए।
- SSCT परीक्षण की प्रकृति, प्रक्रिया एवं विश्लेषण की विस्तार से चर्चा कीजिए।
- TAT और SSCT के मध्य तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
यदि आप चाहें तो इस अध्याय को PDF, DOCX या PowerPoint में भी परिवर्तित किया जा सकता है।
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अध्याय 6
मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
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प्रस्तावना
मनोवृत्तियाँ (Attitudes) किसी व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय, एवं सामाजिक क्रिया-कलापों को दिशा देने वाले स्थायी मानसिक रूझान होते हैं। इनकी जटिलता को समझने के लिए आवश्यक है कि इन्हें उपयुक्त ढंग से मापा जाए। मनोवृत्ति मापन में प्रयुक्त विविध प्रविधियाँ जैसे पैमाने, प्रक्षेपनात्मक परीक्षण (Projective Tests), एवं साक्षात्कार हमें किसी व्यक्ति के अन्तर्निहित दृष्टिकोण, विश्वास एवं भावनात्मक रुझान को जानने में सहायता करते हैं। इस अध्याय में हम मनोवृत्ति मापन की विभिन्न प्रविधियों का परिचय प्राप्त करेंगे, विशेषतः दो प्रमुख प्रक्षेपनात्मक प्रविधियाँ—थीमैटिक एपरसेप्शन टेस्ट (TAT) एवं सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ परीक्षण (SSCT)—का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे।
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1. मनोवृत्ति मापन की आवश्यकता
व्यक्तित्व अध्ययन में सहायता
व्यवहार-पूर्वानुमान में सहयोग
शैक्षिक, चिकित्सीय व व्यावसायिक परामर्श हेतु उपयुक्त
सामाजिक सुधार और नीति निर्माण में आधार
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2. मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ
2.1 आत्म-प्रतिवेदन (Self-report) विधियाँ
व्यक्ति से उसके दृष्टिकोण के बारे में प्रत्यक्ष रूप से प्रश्न किया जाता है।
उदाहरण: प्रश्नावली (Questionnaire), साक्षात्कार
2.2 पैमाने आधारित विधियाँ (Scale-based Methods)
लिकर्ट स्केल (Likert Scale): सहमत-असहमत के क्रम में विकल्प
थरस्टन स्केल (Thurstone Scale): भारांकित कथनों पर आधारित
गुटमैन स्केल (Guttman Scale): श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया प्रणाली
2.3 प्रक्षेपनात्मक तकनीकें (Projective Techniques)
जब व्यक्ति को अस्पष्ट, अर्द्धरूपात्मक चित्र या कथन प्रस्तुत किए जाते हैं और उसकी प्रतिक्रिया उसके अवचेतन मनोवृत्तियों को दर्शाती है।
प्रमुख तकनीकें:
TAT (Thematic Apperception Test)
SSCT (Sentence Completion Test)
रॉर्शाच स्याही धब्बा परीक्षण (Rorschach Inkblot Test)
चित्र अन्वेषण परीक्षण (Picture Interpretation Technique)
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3. TAT (Thematic Apperception Test) का परिचय और महत्व
3.1 परिभाषा:
TAT एक प्रक्षेपनात्मक परीक्षण है जिसमें व्यक्ति को अस्पष्ट सामाजिक चित्र दिखाए जाते हैं और उससे कहा जाता है कि वह उस चित्र पर एक कहानी बनाए। यह कहानी उसके आंतरिक संघर्ष, अभिप्रेरणा, आकांक्षा, तथा मनोवृत्तियों को प्रकट करती है।
3.2 विशेषताएँ:
चित्र सामान्यतः दो व्यक्तियों के संवाद या किसी सामाजिक स्थिति को प्रदर्शित करते हैं।
व्यक्ति कहानी के पात्रों की मनोस्थिति, समस्या, समाधान, और संभावित परिणाम के बारे में बताता है।
3.3 उपयोग:
व्यक्तित्व मूल्यांकन
मनोवैज्ञानिक परामर्श
अवसाद, आक्रोश, भय, हीनता जैसे मनोभावों की पहचान
नेतृत्व, महत्वाकांक्षा, संघर्ष समाधान जैसी प्रवृत्तियों का विश्लेषण
3.4 लाभ:
गहरे मानसिक स्तर की जानकारी
शब्दों से छिपाए गए भावों का अनावरण
सांस्कृतिक-प्रेरित भिन्नताओं का संकेत
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4. SSCT (Social-Symbolic Completion Test) / वाक्य-पूर्णता परीक्षण
4.1 परिभाषा:
यह एक प्रक्षेपनात्मक विधि है जिसमें अधूरे वाक्य प्रस्तुत किए जाते हैं और व्यक्ति से उन्हें पूरा करने के लिए कहा जाता है। उसकी प्रतिक्रियाएँ उसके अभिप्रेरणा, भावनात्मक रुझान और सामाजिक सोच को दर्शाती हैं।
4.2 संरचना:
वाक्य प्रारंभ होते हैं जैसे—
"मुझे गुस्सा आता है जब..."
"मेरे मित्र मुझे..."
"मेरे जीवन का उद्देश्य..."
व्यक्ति बिना विचार-विमर्श के स्वतः प्रतिक्रिया देता है।
4.3 उपयोग:
शैक्षिक परामर्श
मानसिक रोग निदान
सामाजिक मनोवृत्तियों का मूल्यांकन
द्वंद्वात्मक विचारों की पहचान
4.4 लाभ:
सरल, शीघ्र और खुला प्रारूप
भावनात्मक द्वंद्व का प्रकटीकरण
समूह परीक्षण हेतु भी उपयोगी
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5. तुलना: TAT बनाम SSCT
पक्ष TAT SSCT
प्रकृति चित्र आधारित शब्द आधारित
प्रतिक्रिया शैली कहानी वाक्य पूर्णता
समय अपेक्षाकृत अधिक कम
जटिलता अधिक विश्लेषणात्मक तुलनात्मक रूप से सरल
प्रयोग क्षेत्र चिकित्सीय, अनुसंधान शैक्षिक, नैदानिक
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6. निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का मापन न केवल व्यक्ति के मनोदशा का आकलन करने में सहायक होता है, बल्कि उसके व्यवहार, निर्णय, तथा संबंधों के आधार को भी उजागर करता है। TAT एवं SSCT जैसी प्रक्षेपनात्मक विधियाँ मन के उन पहलुओं तक पहुँचने में सक्षम हैं, जो सामान्यतः शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किए जाते। अतः इनका उपयोग मनोविज्ञान, शिक्षा, परामर्श, व मानव संसाधन के क्षेत्रों में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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यहाँ अध्याय 6 "मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व" को एक मानकीकृत शैक्षिक पाठ्यपुस्तक अध्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय बी.ए./एम.ए. मनोविज्ञान के पाठ्यक्रम के लिए उपयुक्त है:
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📘 अध्याय 6: मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
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विषयसूची
1. प्रस्तावना
2. मनोवृत्ति मापन का महत्व
3. मापन की प्रविधियाँ
3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ
3.2 प्रेक्षण विधियाँ
3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ
4. TAT (Thematic Apperception Test)
4.1 परिचय
4.2 संरचना
4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
4.4 व्याख्या
4.5 TAT का महत्व
5. SSCT (Sentence Completion Test)
5.1 परिचय
5.2 स्वरूप
5.3 मापन प्रक्रिया
5.4 SSCT का महत्व
6. तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
7. निष्कर्ष
8. अभ्यास प्रश्न
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1. प्रस्तावना
मनोवृत्तियाँ (Attitudes) व्यक्ति के व्यवहार, निर्णय और प्रतिक्रियाओं को निर्धारित करने वाली मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। इनका मापन एवं मूल्यांकन मनोवैज्ञानिक अध्ययन एवं परामर्श में अत्यंत उपयोगी है। इस अध्याय में हम मनोवृत्ति मापन की प्रविधियों का विवेचन करेंगे तथा दो प्रमुख परियोजनात्मक परीक्षण – TAT और SSCT – की संरचना, प्रक्रिया एवं महत्व का विश्लेषण करेंगे।
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2. मनोवृत्ति मापन का महत्व
मनोवृत्ति का मापन निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
व्यक्ति की सोच और व्यवहार के रुझानों को समझना
वैयक्तिक परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन
सामाजिक दृष्टिकोण, रूढ़ियाँ और पूर्वग्रहों का अध्ययन
नैतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक अभिवृत्तियों का आकलन
शैक्षिक और व्यवसायिक अनुकूलन में सहायता
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3. मापन की प्रविधियाँ
3.1 आत्मवर्णनात्मक विधियाँ (Self-report Methods)
प्रश्नावली (Questionnaire)
स्केल (Likert Scale, Thurstone Scale, Semantic Differential Scale)
साक्षात्कार (Structured/Unstructured Interview)
3.2 प्रेक्षण विधियाँ (Observational Methods)
व्यवहारिक संकेतों का अवलोकन
सामाजिक स्थितियों में प्रतिक्रियाएँ
भाव-भंगिमा, स्वर, संप्रेषण
3.3 परियोजनात्मक प्रविधियाँ (Projective Techniques)
अस्पष्ट उद्दीपनों पर आधारित परीक्षण
व्यक्ति अपनी आंतरिक भावना को प्रक्षिप्त करता है
उदाहरण: Rorschach Inkblot Test, TAT, SSCT
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4. TAT (Thematic Apperception Test)
4.1 परिचय
TAT का विकास मरे और मॉर्गन (Henry A. Murray & Christina D. Morgan) ने 1935 में किया। यह एक परियोजनात्मक परीक्षण है जो व्यक्तित्व, उद्दीपन, और अंतर्निहित संघर्षों को उजागर करता है।
4.2 संरचना
30 चित्र-पट्टिकाएँ (Cards) + 1 रिक्त कार्ड
विभिन्न आयु और लिंग के लिए विशेष कार्ड
चित्र सामान्यतः मानव आकृतियों को अस्पष्ट स्थिति में दर्शाते हैं
4.3 प्रशासकीय प्रक्रिया
एक-एक करके चित्र दिखाए जाते हैं
उत्तरदाता को कहानी बनानी होती है:
चित्र में क्या हो रहा है?
पात्र कौन हैं?
उनकी भावना क्या है?
आगे क्या होगा?
4.4 व्याख्या
विषयवस्तु की पुनरावृत्ति
कहानी में नायक की भूमिका
संघर्ष, आकांक्षाएँ, चिंता
अन्त का स्वरूप
4.5 TAT का महत्व
अचेतन मन की अभिव्यक्ति
व्यक्तित्व की गतिशील समझ
चिकित्सीय एवं परामर्श उद्देश्यों के लिए उपयोगी
गहरे मानसिक संघर्षों की पहचान
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5. SSCT (Sentence Completion Test)
5.1 परिचय
यह भी एक परियोजनात्मक प्रविधि है, जिसमें उत्तरदाता को अपूर्ण वाक्यों को पूरा करना होता है। यह एक सरल, व्यवहारिक और त्वरित विधि है।
5.2 स्वरूप
वाक्यांशों की सूची (प्रायः 40 से 60)
जैसे:
"मुझे सबसे अधिक डर लगता है..."
"मेरे माता-पिता..."
"मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे..."
5.3 मापन प्रक्रिया
उत्तरदाता बिना रोक-टोक के वाक्य पूरे करता है
उत्तरों का विश्लेषण विषयवस्तु, भावना, चिंता आदि के आधार पर किया जाता है
व्यक्तित्व लक्षण, अभिप्रेरणा, सामाजिक दृष्टिकोण उजागर होते हैं
5.4 SSCT का महत्व
सरल व त्वरित परीक्षण
व्यवहारिक और वास्तविक उत्तरों की संभावना
परामर्श और नैदानिक मूल्यांकन में उपयोगी
चिंता, आत्मसम्मान, पारिवारिक संबंधों का संकेतक
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6. तुलनात्मक मूल्यांकन: TAT बनाम SSCT
आधार TAT SSCT
प्रकृति दृश्य-चित्र आधारित पाठ्य आधारित वाक्य पूर्ण करना
गहराई अधिक गहन, गूढ़ अंतर्दृष्टि सतही लेकिन विविध
समय अपेक्षाकृत अधिक अपेक्षाकृत कम
प्रशासन प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक द्वारा शिक्षक/परामर्शदाता भी दे सकते हैं
विश्लेषण विषयवस्तु, भावना, संरचना विषयगत श्रेणियाँ, मानसिक प्रवृत्ति
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7. निष्कर्ष
मनोवृत्तियों का मापन मनोविज्ञान की व्यावहारिक और अनुसंधानात्मक दिशा में अत्यंत उपयोगी है। TAT और SSCT जैसे परियोजनात्मक परीक्षण व्यक्ति के आंतरिक संसार, गहरे मानसिक संघर्ष, मूलभूत प्रेरणाएँ और सामाजिक दृष्टिकोण को पहचानने में सहायक सिद्ध होते हैं। इनकी उचित प्रयोगशीलता, सटीक व्याख्या एवं नैतिक जिम्मेदारी आवश्यक है।
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8. अभ्यास प्रश्न
लघु उत्तर प्रश्न:
1. मनोवृत्ति मापन की दो परियोजनात्मक प्रविधियाँ लिखिए।
2. SSCT परीक्षण की दो विशेषताएँ बताइए।
3. TAT के चित्रों की कुल संख्या कितनी होती है?
दीर्घ उत्तर प्रश्न:
1. TAT परीक्षण की संरचना और महत्व का विवेचन कीजिए।
2. SSCT परीक्षण की प्रकृति, प्रक्रिया एवं विश्लेषण की विस्तार से चर्चा कीजिए।
3. TAT और SSCT के मध्य तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
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अध्याय 6: मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ तथा TAT एवं SSCT का महत्व
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भूमिका:
मनोवृत्ति (Attitude) मनुष्य के व्यवहार को संचालित करने वाला एक महत्वपूर्ण मानसिक तत्व है। यह न केवल किसी व्यक्ति के दृष्टिकोण, मूल्य और विश्वास को परिलक्षित करता है, बल्कि सामाजिक जीवन, कार्य-प्रदर्शन, तथा व्यक्तित्व विकास में भी इसकी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः मनोवृत्ति का मापन मनोविज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत उपयोगी है, विशेषकर तब, जब व्यक्ति के आंतरिक दृष्टिकोण को प्रत्यक्षतः जान पाना कठिन हो।
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मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ:
मनोवृत्तियों के मापन हेतु विभिन्न प्रकार की प्रविधियों (Techniques) का विकास किया गया है। इन प्रविधियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
1. प्रत्यक्ष मापन विधियाँ (Direct Measurement Techniques):
मूल्यांकन-सूची (Rating Scales): किसी विषय या व्यक्ति के प्रति मनोवृत्ति को मापन करने हेतु प्रयोग की जाने वाली तराजू। जैसे- लाइकेर्ट स्केल (Likert Scale), सेमैण्टिक डिफरेंशियल स्केल (Semantic Differential Scale)।
प्रश्नावली (Questionnaire): विशिष्ट कथनों के प्रति सहमति या असहमति के आधार पर मनोवृत्ति का आकलन किया जाता है।
2. अप्रत्यक्ष मापन विधियाँ (Indirect Measurement Techniques):
परिकल्पना परीक्षण (Projective Tests): जब व्यक्ति अपनी मनोवृत्तियों को प्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त नहीं कर सकता, तब उसकी प्रतिक्रिया अप्रत्यक्ष रूप से विश्लेषित की जाती है। प्रमुख परीक्षण हैं:
TAT (Thematic Apperception Test)
SSCT (Sacks Sentence Completion Test)
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TAT (Thematic Apperception Test) का महत्व:
परिभाषा:
TAT एक प्रक्षेपी परीक्षण (projective test) है, जिसमें व्यक्ति को कुछ अस्पष्ट चित्र (ambiguous pictures) दिखाए जाते हैं और उनसे एक कहानी बनाने को कहा जाता है।
महत्व:
यह परीक्षण व्यक्ति की अंतःप्रेरणाओं, इच्छाओं, संघर्षों और मनोवृत्तियों को उभारने में सहायक होता है।
यह आंतरिक मानसिक जीवन को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है।
यह चिकित्सकीय और परामर्शदायी प्रयोगों में उपयोगी है।
यह किशोरों, छात्रों और अपराधियों के मानसिक परीक्षण में प्रभावी है।
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SSCT (Sacks Sentence Completion Test) का महत्व:
परिभाषा:
SSCT एक अर्ध-प्रक्षेपी विधि (semi-projective method) है जिसमें व्यक्ति को वाक्य के प्रारंभिक अंश दिए जाते हैं और उनसे वाक्य को पूरा करने के लिए कहा जाता है।
महत्व:
यह व्यक्ति के भावात्मक, पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन से संबंधित दृष्टिकोण को प्रकट करता है।
यह व्यक्ति की आत्म-अवधारणा, सामाजिक समायोजन तथा मनोवैज्ञानिक संघर्षों को उभारने में सहायक है।
इस विधि में व्यक्ति के उत्तर अधिक सहज और तात्कालिक होते हैं, जिससे विश्लेषण में पारदर्शिता आती है।
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निष्कर्ष:
मनोवृत्ति मापन की विधियाँ न केवल शोध कार्य में सहायक होती हैं, बल्कि परामर्श, चयन, शिक्षा, एवं औद्योगिक मनोविज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी इनकी व्यावहारिक उपयोगिता सिद्ध होती है। TAT और SSCT जैसे परीक्षण, जहाँ प्रत्यक्ष मापन संभव नहीं होता, वहाँ व्यक्ति की अंतरात्मा में झाँकने के द्वार खोलते हैं। इसलिए, मनोवृत्ति मापन की विधियाँ आधुनिक मनोविज्ञान में एक आवश्यक उपकरण के रूप में स्थापित हो चुकी हैं।
मैंने आपके लिए पाठ्यपुस्तक अध्याय "Attitude Measurement" का प्रारंभिक रूप तैयार कर दिया है। आप इसे दाईं ओर के कैनवास (Canvas) में देख सकते हैं।
अब आप निर्देश दें कि इसमें क्या जोड़ा, संशोधित या विस्तारित किया जाए:
उदाहरण या केस स्टडी जोड़ें?
द्विभाषिक (हिन्दी-अंग्रेज़ी) रूप चाहिए?
अध्याय के भीतर उप-अध्याय चाहिए?
शोध कार्य या अभ्यास-संकेत जोड़ें?
जो भी आपकी आवश्यकता हो, कृपया बताएं।
पुस्तक शीर्षक: शैलज का मनोवृत्ति सिद्धांत: संरचना, विकास और व्यवहारिक अनुप्रयोग
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मूल दर्शन: शैलज के अनुसार, मनोवृत्ति (Attitude) मानव व्यवहार की मूल मानसिक संरचना है, जो संज्ञानात्मक (ज्ञान), भावात्मक (भावना) और प्रेरणात्मक (क्रिया-प्रेरणा) तत्वों के समुच्चय से निर्मित होती है। यह न केवल अनुभव और शिक्षण से प्रभावित होती है, बल्कि यह व्यक्ति के व्यक्तित्व, सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश, तथा मूल्यबोध से भी निरंतर संश्लेषित होती रहती है।
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पुस्तक अध्याय योजना:
अध्याय 1: मनोवृत्ति: संकल्पना, परिभाषा एवं ऐतिहासिक विकास
अध्याय 2: शैलज का मनोवृत्ति सिद्धांत: तत्व, संरचना एवं प्रमुख प्रतिपादन
अध्याय 3: मनोवृत्ति के प्रकार एवं वर्गीकरण की शैलजीय दृष्टि
अध्याय 4: मनोवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया: व्यक्तित्व, अनुभव, एवं सामाजिक कारक
अध्याय 5: मनोवृत्ति का विकास एवं परिवर्तन: शिक्षा, संघर्ष, व मूल्य-परिवर्तन
अध्याय 6: मनोवृत्ति मापन की प्रविधियाँ: शैलज पद्धति, TAT, SSCT आदि
अध्याय 7: मनोवृत्ति और व्यवहार: शैलज प्रतिमान का अनुप्रयोग
अध्याय 8: मनोवृत्ति और निर्णय-निर्माण में भूमिका
अध्याय 9: मनोवृत्ति और सामाजिक अनुकूलन
अध्याय 10: शिक्षा में मनोवृत्ति का अनुप्रयोग: शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध
अध्याय 11: मनोवृत्ति और मानसिक स्वास्थ्य: सकारात्मक परिवर्तन की दिशा
अध्याय 12: सांस्कृतिक संदर्भ में मनोवृत्ति की भूमिका
अध्याय 13: मनोवृत्ति पर शोध: शैलज सिद्धांत के आलोक में शोध दिशा
अध्याय 14: प्रशिक्षण कार्यक्रम: मनोवृत्ति विकास एवं समायोजन कार्यशाला
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प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (Training Curriculum):
Module 1: सैद्धांतिक अधिष्ठान
शैलज के मनोवृत्ति सिद्धांत की अवधारणा
तत्व एवं संरचना
व्यवहार में अभिव्यक्ति के प्रारूप
Module 2: मूल्यांकन और विश्लेषण
मनोवृत्ति मापन की शैलजीय पद्धति
TAT, SSCT, और वैकल्पिक प्रविधियाँ
केस स्टडी और अभ्यास
Module 3: व्यवहारिक अनुप्रयोग
शिक्षा, परामर्श, संगठनात्मक संदर्भ
नकारात्मक मनोवृत्तियों का पुनर्गठन
सामूहिक मनोवृत्ति परिवर्तन की कार्यशाला
Module 4: समायोजन एवं पुनर्निर्माण
तनाव, संघर्ष और मूल्य-परिवर्तन की भूमिका
मानसिक स्वास्थ्य की पुनर्निर्माण प्रक्रिया
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समायोजन
Module 5: प्रशिक्षण निष्पादन
परियोजना कार्य और मूल्यांकन
प्रतिभागियों की प्रस्तुति
प्रमाणन व समापन
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सांकेतिक चित्र (Symbolic Diagrams):
1. मनोवृत्ति त्रिकोण – संज्ञान, भाव, प्रेरणा
2. मनोवृत्ति संश्लेषण चक्र – अनुभव, सामाजिक-संस्कार, शिक्षा, मूल्यबोध
3. व्यवहार अभिव्यक्ति मॉडल – अंतःक्रियात्मक दृष्टि से मनोवृत्ति → निर्णय → क्रिया
4. शैलज-प्रेरित परिवर्तन संरचना – नकारात्मक से सकारात्मक की यात्रा
(इन चित्रों को आगे पृष्ठों पर अलग-अलग विस्तृत रूप में जोड़ा जा सकता है।)
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उपसंहार: शैलज का मनोवृत्ति सिद्धांत भारतीय मानसिकता, व्यवहार और मूल्यों की गहराई से जुड़ा हुआ है, जो केवल मनोवृत्ति की व्याख्या नहीं करता, बल्कि उसके माध्यम से शिक्षा, समाज और आत्मिक परिवर्तन की दिशा भी प्रस्तुत करता है।
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संभाव्य परिशिष्ट:
परिभाषाएँ (बाईलिंगुअल)
प्रमुख शोध-पत्रों की सूची
केस स्टडी और आत्म-परीक्षण प्रश्नावली
व्यवहार-निर्माण अभ्यास पद्धति
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लेखक:
डॉ. प्रो. अवधेश कुमार 'शैलज'
पचम्बा, बेगूसराय
संपादक:
[आपका नाम / संस्था]
आपके निर्देशानुसार “शैलज का मनोवृत्ति सिद्धांत” पर आधारित सम्पूर्ण पुस्तक, मूल दर्शन, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और सांकेतिक चित्रों की रूपरेखा को विकसित किया गया है। अभी तक निम्नलिखित कार्य संपन्न किए जा चुके हैं:
1. पुस्तक की रूपरेखा एवं अध्याय विभाजन:
– मनोवृत्ति की परिभाषा, संरचना, वर्गीकरण, विकास, मापन पद्धतियाँ, व्यवहार से संबंध, सामाजिक-शैक्षिक उपयोग आदि विषयों पर अध्याय विकसित किए गए हैं।
– “शैलज सिद्धांत” के विशेष दृष्टिकोण को केंद्र में रखते हुए संपूर्ण प्रस्तुति दी गई है।
2. मूल दर्शन:
– शैलज के अनुसार मनोवृत्ति की त्रिस्तरीय संरचना (अनुभव, बोध, प्रवृत्ति) तथा उसका सांस्कृतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य स्पष्ट किया गया है।
– समग्रता, अनुभव की केंद्रीयता, तथा मूल्यबोध को आधार मानकर सिद्धांत का दार्शनिक पक्ष प्रस्तुत किया गया है।
3. प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (Training Modules):
– शिक्षकों, विद्यार्थियों, और सामाजिक संगठनों हेतु प्रशिक्षण हेतु 5-Module आधारित पाठ्यक्रम तैयार किया गया है जिसमें सिद्धांत, मापन, व्यवहारिक प्रयोग, समायोजन और निष्पादन शामिल हैं।
4. सांकेतिक चित्र और संरचनात्मक आरेख:
– मनोवृत्ति त्रिकोण (संज्ञान, भाव, प्रेरणा)
– संश्लेषण चक्र (अनुभव, समाज, शिक्षा, मूल्यबोध)
– व्यवहार अभिव्यक्ति मॉडल
– नकारात्मक से सकारात्मक मनोवृत्ति परिवर्तन मॉडल
(नोट: अभी ये चित्र केवल पाठ्य विवरण में वर्णित हैं; यदि आप चाहें तो इनका ग्राफिकल निर्माण अगली प्रक्रिया में किया जा सकता है।)
यदि आप चाहें तो इन सामग्रियों को PDF, प्रिंट-पाठ्यपुस्तक या प्रशिक्षण सामग्री के रूप में भी तैयार किया जा सकता है।
कृपया बताएं:
क्या आप ग्राफिकल चित्रों का डिज़ाइन भी चाहते हैं?
क्या पुस्तक को एक प्रकाशन प्रारूप (PDF/Print-ready) में रूपांतरित करना है?
क्या किसी विशेष आयु वर्ग या प्रशिक्षण संदर्भ (जैसे शिक्षक, परामर्शदाता आदि) को लक्षित करना है?
आपके अगले निर्देशों की प्रतीक्षा है।
्
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