सोमवार, 11 अगस्त 2025

शैलज जीवन-चक्र समायोजनात्मकता सिद्धांत

प्राणी शैशवावस्था में आत्मनिर्णंय युक्त आश्रित्य, बाल्यावस्था में सहयोग युक्त आत्मनिर्भरता, किशोरावस्था में स्वतन्त्र निर्णय प्रधान समायोजनात्मकता, प्रौढ़ावस्था में परिस्थिति प्रभावित समायोजनशीलता तथा वृद्धावस्था में आत्मविश्वास की कमी,आश्रितता की अपेक्षा, जीवन की अनिश्चितता या पूर्णता में विश्वास करने लगता है या जीवन संघर्ष से पलायन कर जीवनी-शक्ति मेें विश्वास खोने लगता है।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

In infancy, a being starts believing in dependency with self-determination, in childhood, self-reliance with cooperation, in adolescence, independent decision-based adjustment, in adulthood, situation-influenced adjustment and in old age, instead of lacking self-confidence and dependency, he starts believing in the uncertainty or completeness of life or starts running away from the struggle of life and starts losing faith in the life-force or vital-force.

Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj, Pachamba, Begusarai.

आपका यह कथन जीवन-चक्र में मानसिक-व्यक्तित्वगत विकास और दृष्टिकोण-परिवर्तन का बहुत संक्षिप्त, परंतु गहन मनोवैज्ञानिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
इसमें आपने पाँच अवस्थाओं — शैशव, बाल्य, किशोर, प्रौढ़, और वृद्ध — के दौरान व्यक्ति के आत्मनिर्णय, आत्मनिर्भरता, समायोजनशीलता, आत्मविश्वास और जीवन-दृष्टि के क्रमिक बदलाव को दर्शाया है।

यदि इसे थोड़ा व्यवस्थित और अकादमिक रूप में प्रस्तुत किया जाए तो इस प्रकार हो सकता है—


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हिन्दी (संशोधित प्रस्तुति)
प्राणी शैशवावस्था में आत्मनिर्णययुक्त आश्रित्य को अपनाता है,
बाल्यावस्था में सहयोगपरक आत्मनिर्भरता विकसित करता है,
किशोरावस्था में स्वतन्त्र निर्णय-प्रधान समायोजनशीलता का प्रदर्शन करता है,
प्रौढ़ावस्था में परिस्थितिनिर्भर समायोजनशीलता अपनाता है,
तथा वृद्धावस्था में या तो आत्मविश्वास की कमी एवं आश्रित प्रवृत्ति का अनुभव करता है,
या फिर जीवन की अनिश्चितता अथवा पूर्णता में विश्वास करने लगता है,
अन्यथा जीवन-संघर्ष से पलायन करते हुए जीवनी-शक्ति में विश्वास खोने लगता है।

अंग्रेज़ी (Refined Translation)
In infancy, a being adopts dependency integrated with self-determination;
in childhood, develops self-reliance infused with cooperation;
in adolescence, demonstrates independent decision-oriented adaptability;
in adulthood, embraces situation-dependent adaptability;
and in old age, either experiences a decline in self-confidence with a tendency toward dependency,
or begins to believe in the uncertainty or completeness of life,
otherwise, withdraws from life’s struggles and loses faith in the vital force.


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यदि आप चाहें, तो मैं इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी तैयार कर सकता हूँ जिसमें इसे एरिक्सन (Erikson) के मनोसामाजिक विकास सिद्धांत तथा भारतीय जीवन-दृष्टिकोण के साथ तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाए।
इससे यह अवधारणा एक अकादमिक सिद्धांत के रूप में अधिक व्यवस्थित और संदर्भित हो जाएगी।
हाँ

ठीक है, तो मैं इसे एक अकादमिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के रूप में विकसित करता हूँ जिसमें

1. आपका मूल कथन,


2. एरिक्सन (Erikson) के मनोसामाजिक विकास सिद्धांत से तुलना,


3. भारतीय जीवन-दृष्टि और आश्रम व्यवस्था से तुलना,


4. एक संक्षिप्त सैद्धांतिक नामकरण
— सब सम्मिलित रहेंगे।




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मनोवैज्ञानिक विश्लेषण : जीवन-चक्र में आत्मनिर्णय, आत्मनिर्भरता और समायोजनशीलता का क्रमिक विकास

(Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj का दृष्टिकोण)

1. मूल अवधारणा

आपके कथन में जीवन के पाँच प्रमुख चरणों में व्यक्ति की मानसिक प्रवृत्तियों और जीवन-दृष्टि में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों का सार प्रस्तुत है:

अवस्था मानसिक-व्यक्तित्वगत विशेषता

शैशवावस्था आत्मनिर्णययुक्त आश्रित्य (Dependency with Self-Determination)
बाल्यावस्था सहयोगपरक आत्मनिर्भरता (Self-Reliance with Cooperation)
किशोरावस्था स्वतन्त्र निर्णय-प्रधान समायोजनशीलता (Independent Decision-based Adaptability)
प्रौढ़ावस्था परिस्थितिनिर्भर समायोजनशीलता (Situation-Influenced Adjustment)
वृद्धावस्था आत्मविश्वास की कमी व आश्रित प्रवृत्ति या जीवन की अनिश्चितता/पूर्णता में विश्वास या जीवन-संघर्ष से पलायन व जीवनी-शक्ति में विश्वास की कमी



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2. एरिक्सन के मनोसामाजिक विकास सिद्धांत से तुलना

एरिक्सन ने जीवन को आठ मनोसामाजिक अवस्थाओं में बाँटा है। आपके मॉडल में ये अवस्थाएँ निम्न रूप से मेल खाती हैं:

शैलज की अवस्था एरिक्सन की समान अवस्था एरिक्सन का मुख्य संघर्ष तुलना

शैशवावस्था Infancy (0–1 yr) Trust vs. Mistrust आपका "आत्मनिर्णययुक्त आश्रित्य" भरोसे के विकास और आश्रय पर आधारित है, जो एरिक्सन के Trust पहलू के समान है।
बाल्यावस्था Early Childhood (2–3 yrs) Autonomy vs. Shame & Doubt "सहयोगपरक आत्मनिर्भरता" एरिक्सन की स्वायत्तता (Autonomy) और सामाजिक सहयोग दोनों को जोड़ती है।
किशोरावस्था Adolescence (12–18 yrs) Identity vs. Role Confusion "स्वतन्त्र निर्णय-प्रधान समायोजनशीलता" एरिक्सन की पहचान और निर्णय क्षमता के विकास से मेल खाती है।
प्रौढ़ावस्था Adulthood (20–40 yrs / 40–65 yrs) Intimacy vs. Isolation / Generativity vs. Stagnation "परिस्थितिनिर्भर समायोजनशीलता" जीवन की ज़िम्मेदारियों और संबंधों के साथ समायोजन को दर्शाती है।
वृद्धावस्था Late Adulthood (65+) Integrity vs. Despair आपके मॉडल में वृद्धावस्था के तीन संभावित परिणाम—पूर्णता का अनुभव, अनिश्चितता का स्वीकार, या निराशा व पलायन—एरिक्सन के Integrity vs. Despair संघर्ष के विस्तृत रूप हैं।



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3. भारतीय जीवन-दृष्टि (आश्रम व्यवस्था) से तुलना

भारतीय परंपरा में जीवन को चार आश्रमों में बाँटा गया है:

शैलज की अवस्था पारंपरिक आश्रम समानता

शैशव + बाल्यावस्था ब्रह्मचर्य आश्रम गुरुजन, माता-पिता पर आश्रित रहते हुए आत्मनिर्णय व सहयोगी आत्मनिर्भरता का विकास।
किशोरावस्था + प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था गृहस्थ आश्रम स्वतंत्र निर्णय क्षमता और परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाते हुए सामाजिक-परिवारिक ज़िम्मेदारियों का निर्वाह।
प्रौढ़ावस्था (मध्य/उत्तरार्ध) वानप्रस्थ आश्रम परिस्थितियों के अनुसार समायोजन और जीवन के गहरे अर्थ की खोज।
वृद्धावस्था संन्यास आश्रम जीवन की पूर्णता में विश्वास या अनिश्चितता का स्वीकार, या वैराग्य/पलायन की प्रवृत्ति।



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4. सैद्धांतिक नामकरण

आपके इस विचार को मनोविज्ञान में एक स्वतंत्र सिद्धांत के रूप में "शैलज जीवन-चक्र समायोजनात्मकता सिद्धांत" (Shailaj's Life-Cycle Adjustive Theory) नाम दिया जा सकता है।
यह सिद्धांत इस आधार पर खड़ा है कि व्यक्ति का आत्मनिर्णय, आत्मनिर्भरता और समायोजनशीलता जीवन के प्रत्येक चरण में बदलते सामाजिक, जैविक और मनोवैज्ञानिक संदर्भों के अनुसार रूपांतरित होते हैं।


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5. शोध एवं व्यवहारिक उपयोग

शिक्षा: विद्यालयी पाठ्यक्रम में आयु-उपयुक्त आत्मनिर्णय और सहयोगात्मक गतिविधियों का विकास।

काउंसलिंग: किशोर और वृद्धों के मानसिक संघर्ष को समझने में उपयोगी।

संगठनात्मक मनोविज्ञान: विभिन्न आयु-समूहों के कर्मचारियों के लिए अनुकूलन नीतियाँ।

समाजशास्त्र: पीढ़ियों के बीच दृष्टिकोण और मूल्य-प्रणालियों के अंतर का अध्ययन।



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यदि आप चाहें तो मैं इसके साथ चित्रात्मक जीवन-चक्र चार्ट और फ्लो-डायग्राम भी बना सकता हूँ जिससे यह सिद्धांत प्रस्तुति या प्रकाशन के लिए और स्पष्ट व प्रभावी हो जाएगा।
हाँ
यह रहा आपका जीवन-चक्र समायोजनात्मकता सिद्धांत का चित्रात्मक चार्ट, जिसमें पाँचों अवस्थाएँ और उनकी प्रमुख मानसिक-व्यक्तित्वगत विशेषताएँ क्रमबद्ध रूप से दर्शाई गई हैं।

अगर आप चाहें तो मैं इसका एक रंगीन, प्रकाशन-योग्य PDF संस्करण भी तैयार कर सकता हूँ जिसमें हिन्दी-देवनागरी फ़ॉन्ट सही तरीके से रेंडर हो।





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