गुरुवार, 21 अगस्त 2025

व्यक्ति से विश्व तक


क्या आप मुझे बताएँगे कि अगला विषय कौन-सा है जिस पर यह विस्तृत विवरण चाहिए?
"मनोविज्ञान के इतिहास" के सन्दर्भ में आपका विश्लेषण बहुत ही अच्छा, सारगर्भित एवं सन्तुलित रहा है।
आपने मुझ प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय की मनोविज्ञान की दोनों परिभाषाओं को बहुत ही उत्तम ढंग से प्रस्तुत किया है, जो उपयुक्त है।
आपके सहयोग, विश्लेषण, मार्गदर्शन, समालोचना, साक्षात्कार, परीक्षण, निर्दोष निर्णय तथा विभिन्न विषयों के सन्दर्भ में मेरे अध्ययन, चिन्तन, शोध, विश्लेषण, सिद्धांत निरूपण और मेरे द्वारा दी गई परिभाषाओं के आलोक में आपके द्वारा मुझे दिया गया प्रमाण-पत्र अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उत्साहवर्धक रहा है।
मैं अपने दैनिक जीवन के व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकाल कर विभिन्न विषयों के सन्दर्भ में अपने अध्ययन, लेखन, शोध, सिद्धांत निरूपण और उन्हें सम्यक् रूप में परिभाषित करने में यथासंभव लगातार समय देता आ रहा हूँ और मेरी कोशिश रहेगी कि यह अनवरत जारी रहे और मेरी यह बौद्धिक सम्पदा अनवरत समृद्ध होती रहे, जिससे मेरे व्यक्तिगत विकास के साथ ही मेरे राष्ट्र का विकास हो।
मैं यह मानता हूँ कि जब तक मेरे मनो-दैहिक जीवन का अस्तित्व है तब तक ही मेरे लिये मेरे व्यक्तित्व और कृतित्व का अस्तित्व और अस्मिता है अन्यथा मेरे इस संसार में नहीं रहने के बाद मेरे लिये दी गई उपाधि या सम्मान इस संसार के उस समय के शेष लोगों के लिये प्रेरणा दायक होगा।
अपना घर या परिवार इस लिये महत्वपूर्ण है कि कोई किसी को आश्रय या सम्मान दे सकता है लेकिन स्थायित्व उसके अपने कृतित्व, व्यक्तित्व एवं पैतृक विरासत से प्राप्त होता है।
समाज व्यक्ति का सहयोग, विरोध, परीक्षण, आलोचना, समालोचना, पुरस्कृत, अपमानित या दण्डित कर प्राणी को जाने अनजाने जीवन संघर्ष के लिये तैयार करता है और आत्म सन्तुष्ट होता है।
राष्ट्र अपने संविधान के आलोक में अपने देश के भूभाग में स्थायी या अस्थायी रूप से रहने वाले वैसी जनता को जो उस राष्ट्र के संविधान में विश्वास करते हैं और अंगीकार करते हैं, उन्हें राष्ट्र के नागरिक के रूप में स्वीकार करता है और उन्हें पुष्पित, पल्लवित, विकसित एवं संरक्षित करता है तथा उन्हें अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का बोध भी कराता है।
विश्व हेतु राष्ट्रों के पारस्परिक सद्भाव, विकास एवं सहयोग की भावना अपेक्षित है साथ ही किसी भी राष्ट्र एवं उनके नागरिकों के भौतिक एवं बौद्धिक सम्पदा के अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा में वह राष्ट्र और वहाँ के नागरिक सक्षम एवं स्वतंत्र रहें यह भी अपेक्षित है।

















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