गुरुवार, 7 मार्च 2024

दोहा

काम, क्रोध, मद, लोभ में, 
शैलज भूला सत् राह। 
चला रौंदने जगत को,
रहित हर्ष परवाह।।

रविवार, 14 जनवरी 2024

# रामायणं # वैदेही अवध रामायणं (अद्यतनं संशोधितं):- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

वैदेही अवध रामायणं :- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

नमामि भक्त वत्सलं, श्री रामं अवधेशं।
द्वादश कला युक्तं प्रभु श्री रामावतारं।।१।।
धर्मार्थकाममुक्तिदं ईशं, विष्णु जगदीश्वरं।
भजाम्यहम् अवधेशं, जगत् पाप मोचनं। २।।
कृतयुगेरेकदा श्री हरि दर्शनेन सुविचारं।
सनकादिक मुनिवरा: गताः विष्णुलोकं।। ३।।
द्वारपालौ बोध हीनं, न कृतं अतिथि सम्मानं।
प्रभु माया विस्तारं, द्वारपालौ प्राप्त शापं।। ४।।
जय-विजय द्वारपालादि शापोद्धार सेतु।
स्वीकारं कृतं नारदस्य श्रापं कल्याण हेतु।। ५।।
सतोगुणं रजोगुणं तमोगुणस्य मूलम्।
अनन्तं प्रणव ऊँ सर्वज्ञं समर्थं।।६।।
निराकारं आकारं , रंजनं निरंजनं।
निर्गुणं गुणं, सचराचरस्य मूलम्।।७।।
कर्त्ता त्रिलोकी देवासुर जनकं।
अव्यक्तं सुव्यक्तं, अबोधं सुबोधं।।८।।
प्रकृति पुरुषात्मकं कार्य कारणस्य मूलम्।
अर्धनारीश्वरं स्वयंभू अज विष्णु स्वरूपं।।९।।
ज्योति: प्रकाशं, नित्यं, चैतन्यं स्वरूपं।
तिमिर नाशकं, जीवनामृतं स्वरूपं।।१०।।
ताड़नं जड़त्वं, अहं मोहान्धकारं।
गगन ध्रुव शिशुमार चक्र स्वरूपं।।११।।
प्रभा श्रोत दीपस्य, अवतरणं अशेषं।
भास्करस्य भास्करं, श्री रामं रं स्वरूपं।।१२।।
कौसिल्या, कैकेयी, सुमित्रा सुपुत्रं ।
अवधेश दशरथ रघुकुल प्रदीपं।।१३।।
प्रसीदति अहैतुकी सज्जनानां भक्त्या।
सर्वस्य कारणं यस्य माया दुरत्यया।।१४।।
वरं श्राप भक्तस्य उद्धार हेतु।
अवतरति जगत धर्म कल्याण सेतु।।१५।।
प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समस्तं।
प्राकट्यं वभूव संस्थापनार्थं सुधर्मं।।१६।।
सानुजं गुरु विश्वामित्रेण सुसंगं,
मिथिला सिमरिया धामं प्रवासं।।१७।।
शिव धनु दधीचि अस्थि विशालं,
जनकी हेतु भंगं अकुर्वत पिनाकंं।।१८।।
स्वयंवरं विवाहं जनकात्मजा सुवेदं।
सहोदरं सवेदं निज शक्ति स्वरूपं।।१९।।
माण्डवी, श्रुतकीर्ति, उर्मिला सहर्षं।
अनुशीलनं जनकस्य, वशिष्ठ आदेशं।।२०।।
सृजनहार, पालन, समाहार कर्त्ता।
रामौ परशु आदौ देशकालस्वरूपं।।२१।।
नारद, जय-विजय, देवादि, भानु प्रतापस्य उद्धारं।
मनु शतरूपा प्रिय प्रभु अवध भारत भुवि अवतारं।।२२।।
माता कुल कैकेयी सप्रजा दशरथ अवधेशं।
हर्षितं राज्याभिषेकं रमापति रामं जगदीशं।।२३।।
शारदा मायापति विचारं, मंथरा कैकयी कूट सम्वादं।
देवार्थे अवधेश रथचक्रस्य कीलांगुलि वरं संस्मरणं।।२४।।
लोक जननी जन्म भूमिश्च हितार्थं, सवल्कल वने गमनं।
वैदेही शेषश्च रामानुशरणं, वियोगेन रं जनकस्य निधनं।।२५।।
प्रणार्थ प्राणेश भजनं, प्रणार्थ प्राण तजनं।
प्रणार्थ प्राणेश रंजनं, प्रणार्थ राज तजनं।।२६।।
भरतस्य हेतु पादुका, राज पद तजनं।
सुर नर जगत् हित लीला सुरचितम् ।।२७।।
नन्दी निवासं करणं, व्रती भरतस्य राज सुख तजनं।
सिंहासीनं प्रभु श्री राम चरणस्य पदुकादेशं सुपालनं।।२८।।
रक्षार्थ वचनं कुल शीलं समेतं, गतं वन उदासं कुलाचारं कुलीनं।
रक्षार्थ धर्मं, सुकर्मं प्रबोधं, असुरोद्धार हेतु विचरन्ति नर रूपं।। २९।।
जनकस्यादेशं पालकं, भव पालकं सुरेशं। 
मर्यादा पुरुषोत्तमम् रघुकुल भूषणं श्री रामं।३०।।
पद् नख नि:सृता यस्य सुर सरि श्रेष्ठ गंगा।
केवटस्याश्रितं भव केवट, तटे त्रिपथगा।।३१।।
चरण स्पर्श आतुर कुलिष कंटकादि।
शुचि सौम्य उदभिद् खग पशु नरादि।।३२।।          
पथ अवलोकति शबरी, जड़ अहिल्या।
उद्धारं कृतं शबरी, निर्मला अहिल्या।।३३।।
दर्शनं अत्रि ऋषि वर, सती संग सीता।
प्रभु मुग्ध रामानुज वैदेही विनीता।।३४।।
भव मोक्ष याचक जड़ भील मुनि वर।
विचरन्ति सर्वे असुर भय मुक्त सत्वर ।।३५।।
बधं ताड़कादि असुरगणं समस्तं।
कुर्वीतं श्री रामं शास्त्रोचितं पुनीतं।। ३६।।
गिरि वन सरित सर तटे निवास करणं।
योगानुशरणं, नित्यानुष्ठानादि करणं।। ३७।।
कन्दमूलफलपयौषधि प्रसाद ग्रहणं।
जल-वायु सेवनं, आश्रम धर्म विवेचनं।। ३८।।
चित्रकूटादि सुदर्शनं, सर्व धाम सुसेवनं।
सुजन सम्मान करणं, मदान्ध मद मर्दनं।। ३९।।
सूर्पनखा सौंदर्य वर्धनं, लक्ष्मण रामाकर्षणम्।
नासासौन्दर्य छेदनं, खरदूषणादि उन्मूलनम्।।४०।।
साष्टांग, ध्यान मग्नं प्रणत् सुर नर मुनीन्द्रं ।
यजयते स्त्री रुपं ऋषि कुमारा: षोडशं सहस्त्रं।।४१।।
स्वीकारं कृतं वरं राम भक्तंं सस्नेहं। 
भवामि प्रिया केशवस्य कृष्णावतारं ।४२।।
पावकं ऊँ रं राम शक्ति सीता निवासं।
वधं हेतु गतं राम मृगा स्वर्णिम मारीचं।।४३।।
मिथिलेश नंदिनी सीता वैदेही अम्बा।
रावणस्य कुलोद्धार हेतु गता द्वीप लंका।।४४।।
ब्राह्मणवेश रावणस्य कृतं सम्मानं।
दानं हेतु कृतं लक्ष्मण रेखाग्नि पारं।।४५।।
सहितं पंचवटी पर्णकुटी उदासं।
सानुज प्रभु सर्व लोकाधिवासं।।४६।।
वैदेही हरणं चराचर खग वन पशूनां।
पृच्छति सानुज सरित सर पर्वताणां।।४७।।
महेश्वरस्य सुवन्दनं राजकुमारौ स्वरूपं।
चकितं उमा माया पति माया जगदीशं।।४८।।
वैदेही स्वरूपा जगन्माता स्वरूपं।
वन्दिता भवानी हरि हर रूपं अनेकं ।।४९।।
स्त्री गुण प्रधानं निज सन्तति वात्सल्य सेतु।
स्वीकारं कृतं सहर्ष भवानी , भवेशं वृषकेतु।।५०।।
उमा भवानी त्र्यम्बिके प्रजापति दुहिता।
पतिव्रता भवानी, जगन्माता स्वरुपा।।५१।।
व्यथिता भवानी देवादि स्थानं भवेश रहितं।
उमा आहूति करणं, शिव रौद्र शक्ति सहितं ।।५२।।
अष्टोत्तरशतं शक्ति पीठं संस्थापनं।
भवं भवानी कृपा लोकहित कारकं।।५३।।
वरणं हरं मैना सुता शैलजा सुख कारकं।
पाणिग्रहणाख्यानमिदं सर्व मंगल कारकं।।५४।।
वैदेही पूज्या भवानी वैदेही वरदायिनी।
माता सर्व लोकस्य त्रिविध ताप हारिणी।।५५।।
मिथिलेश नन्दिनी जानकी जगन्माता अम्बा।
त्रिविध ताप नाशिनी वैदेही सीता जगदम्बा।।५६।।
सीता हित विकल विधि त्रिभुवन पति लक्ष्मी रमणं।
बालि बध, सुग्रीव सहायं, किष्किंधा पावन करणं।।५७।।
सीता सुधिदं, सम्पाती मिलनं, जटायु संग्राम करणं।
सुग्रीव सहायं, नल नील सेतु, सागर पथ प्रदानं।।५८।।
असुर विभीषण रहित सर्वे सशंका।
त्रिजटा करोति वैैदेेही सेवा नि:शंका।।५९।।
शरणागत दीनार्त त्रिविध ताप हारं।
राजीव लोचनस्य रामेश्वरानुष्ठानं।।६०।।
जामबन्त अंगद वन्य बासिन: समस्तं।
समर्पित सशरीरं सुकाजं समीपं।।६१।।
लंकेश विभीषण अनुग्रह श्री रामंं।
सहायं कपीशं भू आकाशं पातालं।।६२।।
पातालं गता: पद स्पर्शात् पर्वताणि।
छाया ग्रह दम्भ हननं समुद्र मध्याणि।।६३।।
द्विगुण विस्तारं, मुख कर्णे निकासं।
अहिन अम्बा सुरसा परीक्षा कृत पारं।।६४।। 
लंका प्रवेश द्वारे लंकिनी निवासं।
राम दूतं बधे तेन मुष्टिका प्रहारं।। ६५।।
सूचकं लंकोद्धारं, लंकिनी उदघोषं।
असुर संहारं हेतुमिदं श्री रामावतारं।।६६।।
उल्लंघ्यं समुद्रं, लंका प्रवेशं।
हरि भक्त विभीषण सम्वादं।।६७।।
लंका सुदर्शनं, अशोक शोक हरणं।
मुद्रिका रं दर्शनं, वैदेही शोक हरणं।।६८।।
वने फल भक्षणं, निज प्रकृति रक्षणं।
राक्षस दल दलनं, रावणस्य मद मर्दनं।६९।।
राज धर्मानुसरणं, ब्रह्म पाश सम्मानं।
पुच्छ विस्तरणं, घृत, तैल वस्त्र हरणं।।७०।।
हरि माया करणं, कपि पुच्छ दहनं।
निज रक्षणं, स्वर्णपुरी लंका दहनं।।७१।।
अंगद पदारोपणं, असुर सामर्थ्य दोहनं।
विभीषण पद दलनं, मंदोदरी नीति हननं।।७२।।
कुम्भकर्ण मेघनादादि संहरणं।
अहिरावणादि विनाश करणं।।७३।।
देवादि ग्रह कष्ट हरणं, रावणोद्धार करणं।
विद्वत् सम्मान करणं, राज धर्मानुशरणं।।७४।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि निधानं।
बुद्धि, बल, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धामं।
जगत प्रत्यक्ष देवं, सकल सिद्धि दायकं।
चिरायु, राम भक्तं, हनुमानं सुखदायकं।।७६।।
हनुमानं संस्मरे नित्यं आयु आरोग्य विवर्धनम्।
त्रिविध ताप हरणं, अध्यात्म ज्योति प्रदायकम्।।७७।।
शंकर स्वरूपं, पवन सुतं, अंजना केसरी नन्दनं।
रावण मद मर्दनं, जगन्माता जानकी शोक भंजनं ।।७८।।
श्री राम भक्तं, चिरायु, भानु सुग्रासं।
हृदये वसति रामं लोकाभिरामं।।७९।।
एको अहं पूर्णं , वेद सौरं प्रमाणं।
रघुनाथस्य वचनं, भरतस्य ध्यानं।।८०।।
जलज वनपशु खग गोकुल नराणां।
सरयू प्रसन्ना, भूपति, दिव्यांगनानां।।८१।।
आलोकितं पथ, नगर, ग्राम, कुंज, वन सर्वं।
प्रज्वलितं सस्नेहं दीप, कुटी भवनंं समस्त्तं।।८२।।
गुरू चरण पादुका राज प्रजा प्रतीकं।
दर्शनोत्सुकं सर्वे  सीता राम पदाम्बुजं।।८३।।
नैयायिक समदर्शी प्रभु श्री चरणं।
भव भय हरणं, सुख समृद्धि करणं।।८४।।
आचारादर्श धर्म गुण शील धनं।
सूर्य वंशी सत्पथ रत निरतं ।।८५।।
जनहित दारा सुत सत्ता तजनं।
लीला कुर्वन्ति लक्ष्मी रमणं।।८६।।
शुचि सत्य सनातन पथ गमनं।
शिव राम कृपा दुर्लभं सुलभं।।८७।।
दीपावल्याख्यानं तमान्तरस्य हरणं।
दलनं राक्षसत्वं, रक्षकस्य गुण भरणं।।८८।।
आदौ महाकाव्यं ऋषि वाल्मीकि रचितं।
क्रौंचस्य वियोगाहतं कृतं राम चरितं।।८९।।
चरितं सुरचितं निज भाषानुरूपं।
निज भावानुरूपं रावणं राम काव्यं।।९०।।
संस्कृत सुगूढ़ं, अवधी सुलब्धं।
दनुज व्यूह त्रसितं कृते तदर्थेकं।।९१।।
सत्यं शिवं सुन्दरं श्री राम चरितं।
भरद्वाज कथनं, गोस्वामी रचितं।।९२।।
कथा सज्जनानां अवतार हेतु।
आगमनस्य रघुकुल साकेत धामं।।९३।।
वैष्णवी तपस्या, अवतार कल्कि,
गाथा सुदिव्यं जग कल्याण हेतु।।९४।।
एकासनवर्धनं गुण शीलंं प्रकृति दिव्यं,
हर्षितं दर्शितं अवध पुष्पक विमानं।।९५।।
रजकस्यारोपं वैदेही वने प्रवासं।
ऋषि सुता चरितं, वाल्मीकि शरणं।।९६।।
अश्वमेध यज्ञस्य हय विजय करणं।
सीता सुत लव कुश संग्राम करणं।।९७।।
श्री राम राज्यं समत्वं योग वर्धनं।
प्रजा सुपालनं त्रिविध ताप हरणं।।९८।।
सुता हेतु धरित्री हृदय विदीर्णं।
सीतया धरा अर्पणं निज शरीरं।।९९।।
सीता वसुधा, प्रभु सरयू शरणं।
शेषावतार सहर्ष सत् पथ गमनं।।१००।।
अवधेश गतं साकेत शुभम्।
सप्रजा साकेत अवध सहितं।।१०१।।
शुचि कथा उमाशंकर पावन।
कैलाश कपोत युगल सहितं।।१०२।।
खग काक भुषुण्डि शिव श्राप हरं।
गुरु कृपा श्री राम भव पाप हरं।।१०३।।
रामायण अवध अवधेश कृतं।
मन मोद धाम शुभदं सुखदं।।१०४।।
भारत बिहार जम्बूद्वीपं।
नयागाँव पचम्बा सुसंगम्।।१०५।।
ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र कुलं।
जातक शैलजा राजेन्द्र सुतं।।१०६।।
आख्यानं रचितं शैलज अनुपम।
निज ज्ञान विवेक सहित अल्पम्।।१०७।।
सप्रेम रामायणमिदं पठनं।
आतप त्रयताप हरं सुखदं।।१०८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शुभ संवत् २०७६-२०७७ की दीपावली के शुभ अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं मिथिलेश नन्दिनी जगत् जननी माँ सीता जी की प्रेरणा एवं कृपा से १०८ शलोकों वाला प्रस्तुत "वैदेही अवध रामायणं " की रचना १०४ श्लोकों वाले "अवध रामायणं" के रूप में हुई जो दिनांक ०५/०८/२०२० तदनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया बुधवार को श्री राम जी के जन्म काल सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त अभिजित मुहूर्त्त के दिव्य एवं मांगलिक अवसर पर भगवत्कृपा से १०४ श्लोकों वाला "अवध रामायणं" १०८ श्लोकों वाला "वैदेही अवध रामायणं" के रूप में पूर्ण हुआ जिसका यह अद्यतन संशोधित रूप भगवान् श्री राम एवं उनके पार्षदों की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के शुभावसर पर  प्रस्तुत किया जा रहा है। देव भाषा संस्कृत, साहित्यानुराग, इष्ट भक्ति -भाव एवं कथा-बोध के अभाव में हुई भूल हेतु अन्यथा भाव न लेंगे और क्षमा करेंगे।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
दिनांक : ०६/०१/२०२४ ईसा पश्चात्।


गुरुवार, 30 नवंबर 2023

वैदेही अवध रामायणं

वैदेही अवध रामायणं :- अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

नमामि भक्त वत्सलं, श्री रामं अवधेशं।
द्वादश कला युक्तं प्रभु श्री रामावतारं।।१।।
धर्मार्थकाममुक्तिदं प्रभु, विष्णु जगदीश्वरं।
भजाम्यहम् अवधेशं, जगत् पाप मोचनं। २।।
कृतयुगेरेकदा श्री हरि दर्शनेन सुविचारं।
सनकादिक मुनिवरा: गताः विष्णुलोकं।। ३।।
द्वारपालौ बोध हीनं, न कृतं अतिथि सम्मानं।
प्रभु माया विस्तारं, द्वारपालौ प्राप्त शापं।। ४।।
जय-विजय द्वारपालादि शापोद्धार सेतु।
स्वीकारं कृतं नारदस्य श्रापं कल्याण हेतु।। ५।।
सतोगुणं रजोगुणं तमोगुणस्य मूलम्।
अनन्तं प्रणव ऊँ सर्वज्ञं समर्थं।।६।।
निराकारं आकारं , रंजनं निरंजनं।
निर्गुणं गुणं, सचराचरस्य मूलम्।।७।।
कर्त्ता त्रिलोकी देवासुर जनकं।
अव्यक्तं सुव्यक्तं, अबोधं सुबोधं।।८।।
प्रकृति पुरुषात्मकं कार्य कारणस्य मूलम्।
अर्धनारीश्वरं स्वयंभू अज विष्णु स्वरूपं।।९।।
ज्योति: प्रकाशं, नित्यं, चैतन्यं स्वरूपं।
तिमिर नाशकं, जीवनामृतं स्वरूपं।।१०।।
ताड़नं जड़त्वं, अहं मोहान्धकारं।
गगन ध्रुव शिशुमार चक्र स्वरूपं।।११।।
प्रभा श्रोत दीपस्य, अवतरणं अशेषं।
भास्करस्य भास्करं, श्री रामं रं स्वरूपं।।१२।।
कौसिल्या, कैकेयी, सुमित्रा सुपुत्रं ।
अवधेश दशरथ रघुकुल प्रदीपं।।१३।।
प्रसीदति अहैतुकी सज्जनानां भक्त्या।
सर्वस्य कारणं यस्य माया दुरत्यया।।१४।।
वरं श्राप भक्तस्य उद्धार हेतु।
अवतरति जगत धर्म कल्याण सेतु।।१५।।
प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समस्तं।
प्राकट्यं वभूव संस्थापनार्थं सुधर्मं।।१६।।
सानुजं गुरु विश्वामित्रेण सुसंगं,
मिथिला सिमरिया धामं प्रवासं।।१७।।
शिव धनु दधीचि अस्थि विशालं,
जनकी हेतु भंगं अकुर्वत पिनाकंं।।१८।।
स्वयंवरं विवाहं जनकात्मजा सुवेदं।
सहोदरं सवेदं निज शक्ति स्वरूपं।।१९।।
माण्डवी, श्रुतकीर्ति, उर्मिला सहर्षं।
अनुशीलनं जनकस्य, वशिष्ठ आदेशं।।२०।।
सृजनहार, पालन, समाहार कर्त्ता।
रामौ परशु आदौ देशकालस्वरूपं।।२१।।
नारद, जय-विजय, देवादि, भानु प्रतापस्य उद्धारं।
मनु शतरूपा प्रिय प्रभु अवध भारत भुवि अवतारं।।२२।।
माता कुल कैकेयी सप्रजा दशरथ अवधेशं।
हर्षितं राज्याभिषेकं रमापति रामं जगदीशं।।२३।।
शारदा मायापति विचारं, मंथरा कैकयी कूट सम्वादं।
देवार्थे अवधेश रथचक्रस्य कीलांगुलि वरं संस्मरणं।।२४।।
लोक जननी जन्म भूमिश्च हितार्थं, सवल्कल वने गमनं।
वैदेही शेषश्च रामानुशरणं, वियोगेन रं जनकस्य निधनं।।२५।।
प्रणार्थ प्राणेश भजनं, प्रणार्थ प्राण तजनं।
प्रणार्थ प्राणेश रंजनं, प्रणार्थ राज तजनं।।२६।।
भरतस्य हेतु पादुका, राज पद तजनं।
सुर नर जगत् हित लीला सुरचितम् ।।२७।।
नन्दी निवासं करणं, व्रती भरतस्य राज सुख तजनं।
सिंहासीनं प्रभु श्री राम चरणस्य पदुकादेशं सुपालनं।।२८।।
रक्षार्थ वचनं कुल शीलं समेतं, गतं वन उदासं कुलाचारं कुलीनं।
रक्षार्थ धर्मं, सुकर्मं प्रबोधं, असुरोद्धार हेतु विचरन्ति नर रूपं।। २९।।
जनकस्यादेशं पालकं, भव पालकं सुरेशं। 
मर्यादा पुरुषोत्तमम् रघुकुल भूषणं श्री रामं।३०।।
पद् नख नि:सृता यस्य सुर सरि श्रेष्ठ गंगा।
केवटस्याश्रितं भव केवट, तटे त्रिपथगा।।३१।।
चरण स्पर्श आतुर कुलिष कंटकादि।
शुचि सौम्य उदभिद् खग पशु नरादि।।३२।।          
पथ अवलोकति शबरी, जड़ अहिल्या।
उद्धारं कृतं शबरी, निर्मला अहिल्या।।३३।।
दर्शनं अत्रि ऋषि वर, सती संग सीता।
प्रभु मुग्ध रामानुज वैदेही विनीता।।३४।।
भव मोक्ष याचक जड़ भील मुनि वर।
विचरन्ति सर्वे असुर भय मुक्त सत्वर ।।३५।।
बधं ताड़कादि असुरगणं समस्तं।
कुर्वीतं श्री रामं शास्त्रोचितं पुनीतं।। ३६।।
गिरि वन सरित सर तटे निवास करणं।
योगानुशरणं, नित्यानुष्ठानादि करणं।। ३७।।
कन्दमूलफलपयौषधि प्रसाद ग्रहणं।
जल-वायु सेवनं, आश्रम धर्म विवेचनं।। ३८।।
चित्रकूटादि सुदर्शनं, सर्व धाम सुसेवनं।
सुजन सम्मान करणं, मदान्ध मद मर्दनं।। ३९।।
सूर्पनखा सौंदर्य वर्धनं, लक्ष्मण रामाकर्षणम्।
नासासौन्दर्य छेदनं, खरदूषणादि उन्मूलनम्।।४०।।
साष्टांग, ध्यान मग्नं प्रणत् सुर नर मुनीन्द्रं ।
यजयते स्त्री रुपं ऋषि कुमारा: षोडशं सहस्त्रं।।४१।।
स्वीकारं कृतं वरं राम भक्तंं सस्नेहं। 
भवामि प्रिया केशवस्य कृष्णावतारं ।४२।।
पावकं ऊँ रं राम शक्ति सीता निवासं।
वधं हेतु गतं राम मृगा स्वर्णिम मारीचं।।४३।।
मिथिलेश नंदिनी सीता वैदेही अम्बा।
रावणस्य कुलोद्धार हेतु गता द्वीप लंका।।४४।।
ब्राह्मणवेश रावणस्य कृतं सम्मानं।
दानं हेतु कृतं लक्ष्मण रेखाग्नि पारं।।४५।।
सहितं पंचवटी पर्णकुटी उदासं।
सानुज प्रभु सर्व लोकाधिवासं।।४६।।
वैदेही हरणं चराचर खग वन पशूनां।
पृच्छति सानुज सरित सर पर्वताणां।।४७।।
महेश्वरस्य सुवन्दनं राजकुमारौ स्वरूपं।
चकितं उमा माया पति माया जगदीशं।।४८।।
वैदेही स्वरूपा जगन्माता स्वरूपं।
वन्दिता भवानी हरि हर रूपं अनेकं ।।४९।।
स्त्री गुण प्रधानं निज सन्तति वात्सल्य सेतु।
स्वीकारं कृतं भवानी, भवेशं वृषकेतु।।५०।।
उमा भवानी त्र्यम्बिके प्रजापति दुहिता।
पतिव्रता भवानी, जगन्माता स्वरुपा।।५१।।
व्यथिता भवानी देवादि स्थानं भवेश रहितं।
उमा आहूति करणं, शिव रौद्र शक्ति सहितं ।।५२।।
अष्टोत्तरशतं शक्ति पीठं संस्थापनं।
भवं भवानी कृपा लोकहित कारकं।।५३।।
वरणं हरं मैना सुता शैलजा सुख कारकं।
पाणिग्रहणाख्यानमिदं सर्व मंगल कारकं।।५४।।
वैदेही पूज्या भवानी वैदेही वरदायिनी।
माता सर्व लोकस्य त्रिविध ताप हारिणी।।५५।।
मिथिलेश नन्दिनी जानकी जगन्माता अम्बा।
त्रिविध ताप नाशिनी वैदेही सीता जगदम्बा।।५६।।
सीता हित विकल विधि त्रिभुवन पति लक्ष्मी रमणं।
बालि बध, सुग्रीव सहायं, किष्किंधा पावन करणं।।५७।।
सीता सुधिदं, सम्पाती मिलनं, जटायु संग्राम करणं।
सुग्रीव सहायं, नल नील सेतु, सागर पथ प्रदानं।।५८।।
असुर विभीषण रहित सर्वे सशंका।
त्रिजटा करोति वैैदेेही सेवा नि:शंका।।५९।।
शरणागत दीनार्त त्रिविध ताप हारं।
राजीव लोचनस्य रामेश्वरानुष्ठानं।।६०।।
जामबन्त अंगद वन्य बासिन: समस्तं।
समर्पित सशरीरं सुकाजं समीपं।।६१।।
लंकेश विभीषण अनुग्रह श्री रामंं।
सहायं कपीशं भू आकाशं पातालं।।६२।।
पातालं गता: पद स्पर्शात् पर्वताणि।
छाया ग्रह दम्भ हननं समुद्र मध्याणि।।६३।।
द्विगुण विस्तारं, मुख कर्णे निकासं।
अहिन अम्बा सुरसा परीक्षा कृत पारं।।६४।। 
लंका प्रवेश द्वारे लंकिनी निवासं।
राम दूतं बधे तेन मुष्टिका प्रहारं।। ६५।।
सूचकं लंकोद्धारं, लंकिनी उदघोषं।
असुर संहारं हेतुमिदं श्री रामावतारं।।६६।।
उल्लंघ्यं समुद्रं, लंका प्रवेशं।
हरि भक्त विभीषण सम्वादं।।६७।।
लंका सुदर्शनं, अशोक शोक हरणं।
मुद्रिका रं दर्शनं, वैदेही शोक हरणं।।६८।।
वने फल भक्षणं, निज प्रकृति रक्षणं।
राक्षस दल दलनं, रावणस्य मद मर्दनं।६९।।
राज धर्मानुसरणं, ब्रह्म पाश सम्मानं।
पुच्छ विस्तरणं, घृत, तैल वस्त्र हरणं।।७०।।
हरि माया करणं, कपि पुच्छ दहनं।
निज रक्षणं, स्वर्णपुरी लंका दहनं।।७१।।
अंगद पदारोपणं, असुर सामर्थ्य दोहनं।
विभीषण पद दलनं, मंदोदरी नीति हननं।।७२।।
कुम्भकर्ण मेघनादादि संहरणं।
अहिरावणादि विनाश करणं।।७३।।
देवादि ग्रह कष्ट हरणं, रावणोद्धार करणं।
विद्वत् सम्मान करणं, राज धर्मानुशरणं।।७४।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि निधानं।
बुद्धि, बल, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धामं।
जगत प्रत्यक्ष देवं, सकल सिद्धि दायकं।
चिरायु, राम भक्तं, हनुमान सुखदायकं।।७६।।
हनुमानं संस्मरे नित्यं आयु आरोग्य विवर्धनम्।
त्रिविध ताप हरणं, अध्यात्म ज्योति प्रदायकम्।।७७।।

शंकर पवन सुतं, अंजना केसरी नन्दनं।
रावण मद मर्दनं, जानकी शोक भंजनं ।।७८।।
श्री राम भक्तं, चिरायु, भानु सुग्रासं।
हृदये वसति रामं लोकाभिरामं।।७९।।
एको अहं पूर्णं , वेद सौरं प्रमाणं।
रघुनाथस्य वचनं, भरतस्य ध्यानं।।८०।।
जलज वनपशु खग गोकुल नराणां।
सरयू प्रसन्ना, भूपति, दिव्यांगनानां।।८१।।
आलोकितं पथ, नगर, ग्राम, कुंज, वन सर्वं।
प्रज्वलितं सस्नेहं दीप, कुटी भवनंं समस्त्तं।।८२।।
गुरू चरण पादुका राज प्रजा प्रतीकं।
दर्शनोत्सुकं सर्वे  सीता राम पदाम्बुजं।।८३।।
नैयायिक समदर्शी प्रभु श्री चरणं।
भव भय हरणं, सुख समृद्धि करणं।।८४।।
आचारादर्श धर्म गुण शील धनं।
सूर्य वंशी सत्पथ रत निरतं ।।८५।।
जनहित दारा सुत सत्ता तजनं।
लीला कुर्वन्ति लक्ष्मी रमणं।।८६।।
शुचि सत्य सनातन पथ गमनं।
शिव राम कृपा दुर्लभ सुलभं।।८७।।
दीपावल्याख्यानं तमान्तस् हरणं।
दलनं राक्षसत्वं, रक्षक गुण भरणं।।८८।।
आदौ महाकाव्यं वाल्मीकि ऋषि रचितं।
क्रौंचस्य वियोगाहत कृतं राम चरितं।।८९।।
चरितं सुरचितं निज भाषानुरूपं।
निज भावानुरूपं रावणं राम काव्यं।।९०।।
संस्कृत सुगूढ़ं, अवधी सुलब्धं।
दनुज व्यूह त्रसितं कृते तदर्थेकं।।९१।।
सत्यं शिवं सुन्दरं श्री राम चरितं।
भरद्वाज कथनं, गोस्वामी रचितं।।९२।।
कथा सज्जनानां अवतार हेतु।
आगमनस्य रघुकुल साकेत धामं।।९३।।
वैष्णवी तपस्या, अवतार कल्कि,
गाथा सुदिव्यं जग कल्याण हेतु।।९४।।
एकासनवर्धनं गुण शीलंं प्रकृति दिव्यं,
हर्षितं दर्शितं अवध पुष्पक विमानं।।९५।।
रजकस्यारोपं वैदेही वने प्रवासं।
ऋषि सुता चरितं, वाल्मीकि शरणं।।९६।।
अश्वमेध यज्ञस्य हय विजय करणं।
सीता सुत लव कुश संग्राम करणं।।९७।।
श्री राम राज्यं समत्वं योग वर्धनं।
प्रजा सुपालनं त्रिविध ताप हरणं।।९८।।
सुता हेतु धरित्री हृदय विदीर्णं।
सीतया धरा अर्पणं निज शरीरं।।९९।।
सीता वसुधा, प्रभु सरयू शरणं।
शेषावतार सहर्ष सत् पथ गमनं।।१००।।
अवधेश गतं साकेत शुभम्।
सप्रजा साकेत अवध सहितं।।१०१।।
शुचि कथा उमाशंकर पावन।
कैलाश कपोत युगल सहितं।।१०२।।
खग काक भुषुण्डि शिव श्राप हरं।
गुरु कृपा श्री राम भव पाप हरं।।१०३।।
रामायण अवध अवधेश कृतं।
मन मोद धाम शुभदं सुखदं।।१०४।।
भारत बिहार जम्बूद्वीपं।
नयागाँव पचम्बा सुसंगम्।।१०५।।
ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र कुलं।
जातक शैलजा राजेन्द्र सुतं।।१०६।।
आख्यान रचित शैलज अनुपम।
निज ज्ञान विवेक सहित अल्पम्।।१०७।।
सप्रेम रामायणमिदं पठनं।
आतप त्रयताप हरं सुखदं।।१०८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शुभ संवत् २०७६-२०७७ की दीपावली के शुभ अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं मिथिलेश नन्दिनी जगत् जननी माँ सीता जी की प्रेरणा एवं कृपा से १०८ शलोकों वाला प्रस्तुत "वैदेही अवध रामायणं " की रचना १०४ श्लोकों वाले "अवध रामायणं" के रूप में हुई जो दिनांक ०५/०८/२०२० तदनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया बुधवार को श्री राम जी के जन्म काल सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त अभिजित मुहूर्त्त के दिव्य एवं मांगलिक अवसर पर भगवत्कृपा से १०४ श्लोकों वाला "अवध रामायणं" १०८ श्लोकों वाला "वैदेही अवध रामायणं" के रूप में पूर्ण हुआ जिसका यह अद्यतन संशोधित रूप प्रस्तुत किया जा रहा है। देव भाषा संस्कृत, साहित्यानुराग, इष्ट भक्ति -भाव एवं कथा-बोध के अभाव में हुई भूल हेतु अन्यथा भाव न लेंगे और क्षमा करेंगे।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

शैलज मूरख समझे नहीं

शैलज मूरख समझे नहीं, 
 परहित, निजहित बात। 
संगति दोष, भ्रम, मोह वश, 
निशिदिन पावे दु:ख,घात।।

शैलज मूरख समझे नहीं

शैलज मूरख समझे नहीं, 
निजहित अनहित बात। 
संगति दोष, भ्रम, मोह वश, 
निशिदिन पावे दु:ख,घात।।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

Basis of determination of Swadoya and Bhav Ascendant in astrology:-

Basis of determination of Swadoya and Bhav Ascendant in astrology:-
 According to Swadoya opinion, there is variation in the value or duration of all Meshadhi ascendants, but according to Bhava opinion, the values ​​of all ascendants are equal.  On earth there is a 24-hour day or night.  The Earth rotates on its axis once during this period, hence the constellation, star or zodiac sign located in front of any fixed point or place on the Earth comes into view again only after 24 hours, hence the value of all the 12 zodiac signs will be equal because  According to the Swadoya Lagna value, the Anshaadi value of all the 12 zodiac signs is considered to be 30 degrees or degrees only, whereas the Ghantaadi value of those 12 zodiac signs is said to be different from each other.  Thus, discrepancy is found in the Ghantaadi and Anshaadi values ​​of Swadoya Lagna, but the Anshaadi values ​​of each sign of Bhava Lagna are 30, so the Ghantaadi values ​​are of 2 hours, Maharishi Parashar ji has also approved this Bhava Lagna, as a result Bhava Lagna  Anomaly free, valid, reliable and acceptable in all respects.  Astrologer Kamlakar Bhatt has addressed those who do not believe in Bhava Lagna but believe in Swadoya Lagna as the blind people following the blind in Lagna Vivek.  Therefore, instead of Swadoya Lagna, Bhava Lagna should be used by all the learned astrologers for the welfare of the world in mathematics and astrology or other disciplines.