मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

Definition of Psychology :-

Psychology is an ideal positive science of experience,behavior & adjustment process of an organism in given situation/their own environment.

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

प्राणी की समायोजनात्मक व्यवहार प्रक्रिया

प्राणी अपने मनो-शारीरिक विकास हेतु उत्तरदायी आन्तरिक एवं वाह्य कारकों तथा आनुवंशिकता के कारण किसी व्यक्ति,वस्तु , स्थान से सकारात्मक या नकारात्मक रुप से प्रभावित होकर उस अनुभव के आधार पर अपने वातावरण में / किसी दी गयी परिस्थितियों में समायोजन के क्रम में नवीन अनुभव प्राप्त करता है और व्यवहार करता है।

शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

Interview ( साक्षात्कार) :- Prof. Awadhesh Kumar,M.J.J.College,M., Banwaripur, Begusarai

साक्षात्कार किसी उद्देश्य विशेष हेतु उपयुक्त प्रश्न या प्रश्नावली एवं उक्त क्षेत्र में दक्षता के मनोवैज्ञानिक मापन पर आधारित सक्षातकार कर्ता द्वारा सुयोग्य सक्षातकार-दाता के चयन की आदर्श प्रक्रिया है ।

Interviews are the ideal process of selection of an interviewee by interviewer, suitable for a particular purpose, or a questionable questionnaire, and a qualifying candidate based on the psychological measurement of efficiency in the said field.

: - Prof. Awadhesh Kumar, M.J.J.College, M., Banwaripur, Begusarai




रविवार, 24 सितंबर 2017

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।

राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित आँखों से कैसे 
आज तुझे हर्षाऊँ ?

भारतेंदु ने सच ही कहा
जो आज समझ में आई ।
"आवहुँ सब मिलि रोवहुँ भारत भाई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "

युग द्रष्टा भारतेंदु नहीं थे
केवल कविता प्रेमी ।
हिन्दी-हिन्दुस्थान भारत के
अन्तरतम से थे सेवी ।।

राजनीति व्याध साहित्यिक
छल बल से भरे हुए हैं ।
स्वार्थी,अपराधी, आराजक
तत्वों से हम घिरे हुए हैं ।।

अवसरवादी, शरणागत हो,
माथे पर चढ़े हुए हैं ।
मानवता त्रसित हो रही,
आतंकित सारी धरती है ।।

धर्म-कर्म हो रहे तिरोहित,
दुष्ट भाव फैला है ।
देश द्रोहियों का भारत में
महाजाल फैला है ।।

विश्व गुरु भारत की कुटिया,
लूट रहे जग वाले ।
पोथी-पतरा सभी ले गए,
जो बचा जला वे डाले ।।

तप, कर्म, संकल्प, साधना,
ईश बल बचा हुआ है ।
गीता का उपदेश कृष्ण का,
अब भी गूँज रहा है ।।

अर्धनारीश्वर रुप हमारा,
इसे तोड़ते जो हैं ।
प्रकृति-पुरुष की दिव्य शक्ति
को नहीं जानते वे है ?

एक सनातन धर्म हमारा,
सब जीवों की सेवा है ।
दया धर्म का मूल हमारा,
क्षणभर मेरा तेरा है ।।

हम अगुण सगुण को भजते,
सबको अपना ही समझते हैं ।
वे दया धर्म से पतित हमें,
कायर काफिर तक कहते हैं ।।

हम शान्ति, न्याय, आदर्श, अहिंसा,
सत् पथ पर चलते हैं ।
वे ज्योति बुझा कर हमें कुमार्ग
पथ पर चलने को कहते हैं ।।

तोड़ रहे सांस्कृतिक एकता,
आपस में हमें लड़ाकर ।
पूर्वाग्रह ग्रसित प्रतिशोध की
ज्वाला को भड़का कर ।।

जाति-धर्म की राजनीति
हरदम करते रहते हैं ।
ऊँच-नीच का पाठ पढ़ा कर
ये हमको ठगते हैं ।।

भटक रहे जो खुद भ्रमित हो,
औरों को राह दिखाते हैं ।
नद निर्झर की धारा को वे
शिखरों की ओर बहाते हैं ।।

आर्ष ज्ञान से भटका कर
पाश्चात्य जगत ले जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान ज्ञान से,
वे हमको भरमाते हैं ।।

" सोने की चिड़ियाँ " का
अद्भुत रुप नहीं देखा है ।
वरदा भारत भारती माँ से
वेकार उलझ बैठा है ।।

रण चण्डी को बुला रहा है,
रोज निमन्त्रण देकर ।
भगवा धारी प्रकट हुई हैं,
आज तिरंगा लेकर ।।

राष्ट्रकवि! इनके वन्दन का,
समय पुनः आया है ।
जागें बन मुचुकुन्द कविवर,
राक्षसी प्रवृत्ति छाया हैं ।।

भस्म करें निज ज्ञान नेत्र से,
अन्तर के असुर दलों को ।
अमृत का उपहार सुरों को,
दें फिर मोहिनी बन के ।।

काल कूट तू ही पी सकते,
औरों में शौर्य कहाँ है ?
रहते शांत, असीम धैर्य की
शक्ति यहाँ कहाँ है ?

कविवर ! उठो,जगो हे दिनकर !
तम को दूर भगाओ ।
श्रम जीवी, बुद्धि जीवी को,
सत् पथ राह दिखाओ ।।

बाट जोहती खड़ी भारती
कब से हिन्द जन मन में ।
देर हो रही रणचंडी के,
पावन अभिनन्दन में ।।

" हिन्द उन्नायक " खोज रही हैं,
कब से भारत माता ।
वरण करो रचनात्मकता का,
अवसर न हरदम आता ।।

अपने और पराये अर्जुन,
इन्हें अभी पहचानो ।
अन्तस्थल के विराट को,
दिव्य-दृष्टि से जानो ।।

माता रही पुकार राष्ट्रकवि !
जागो और जगाओ ।
भूषण, गुप्त, सुभद्रा, प्रसाद को
फिर से आज जगाओ ।।

विखरे अपने अंगों को
आज पुनः अपनाओ ।
सत्तर वर्षों की निद्रा से,
वीरों को पुनः जगाओ ।।

भारत की सभ्यता-संस्कृतिक,
संकट में पड़ी हुई है ।
रक्त बीज,जय चन्द, शकुनि से
धरती भरी हुई है ।।

अर्जुन को ही नहीं युधिष्ठिर को
भी रण में लड़ना होगा ।
पाने को अधिकार विवेक से
कर्त्तव्य पूर्ण करना होगा ।।

रण में जो आड़े आयेंगें,
उनको हम सबक सिखायेंगे ।
हम विदुर और चाणक्य सूत्र से
सारे जग को हम जीतेगे ।।

"शैलज" मिथिला की सीमा पर
" दिनकर " की सिमरिया नगरी है ।
हिन्दी साहित्य भाषा शैली की
अवशेष अशेष यह गगरी है ।।

इस पुण्य भूमि को नमस्कार
जिसने तुम-सा सुत जन्म दिया ।
भारत माता की सेवा में निष्ठा से
जीवन भर अपना कर्म किया ।।

देव- दनुज हेतु जहाँ अमृत प्रकटे,
प्राकृत संस्कृत वेद वचन प्रभु से निकले ।
रुप मोहिनी,हरि,राम,विष्णु आये,
सुरसरि हित अवतरित हुए प्रभु रुक पाये ।।

कविवर जागो! हे राष्ट्र कवि !
दिनकर ! तू आँखें खोलो ।
गंगा जल से आँखें धोलो ।
पावन 'रेणु' का 'मैला आँचल' धोलो ।।

प्रगतिशील कहलाने वाले
सोच नहीं कुछ पाते ।
माँ की ममता समझ न पाते,
मुझको ही हैं समझाते।।

हे राष्ट्रकवि! दिनकर ! कवि वर !
जन गण मन बोल रहा है ।
जन्म दिवस पर आज तुम्हें ये
अन्तस् की पीड़ा बता रहे हैं ।।

राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित नेत्रों से कैसे,
आज तुझे हर्षाऊँ ?

राष्ट्र धर्म हो नहीं कलंकित
ऐसा राष्ट्र बनाऊँ ।
एक राष्ट्र ही नहीं विश्व में
यह परचम लहराऊँ ।।

भारत माता की सेवा में
जीवन शेष बिताऊँ ।
जनता की सच्ची सेवा कर
जन सेवक कहलाऊँ ।।

मांग रहा बलिदान राष्ट्र जब
कभी नहीं घबराऊँ ।
ज्ञान- विज्ञान, कला ,अध्यात्म
का जग को पाठ पढ़ाऊँ ।।

अहंकार में भटके जन को
कैसे राह दिखाऊँ ?
राष्ट्र कवि ! दिनकर ! 
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?

राष्ट्र कवि ! हृदय की पीड़ा,
कैसे तुम्हें बताऊँ ?
राष्ट्र कवि ! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढाऊँ ?

प्रो० अवधेश कुमार " शैलज "‛
पचम्बा, बेगूसराय ।

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

महिला उपेक्षा : समाज का कलंक

महिला को प्रायः अबला कहा जाता है और महिलाओं के प्रति इस सोच को बनाए रखने में महिला एवं पुरुष दोनों वर्गों का हाथ रहा है, क्योंकि महिलाओं के सम्बन्ध में कहा गया है कि
 स्त्रियों का आहार दुगुणा, साहस चार गुणा,
व्यवसाय बुद्धि छ: गुणा तथा कामचेष्टा आठ गुणा पाया जाता है । यह प्रचीन कालिक मत है।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।
 फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।
यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ  प्रायः अधिक पाया जाता है ।
 नर-नारी के मध्य पारस्परिक स्वाभाविक या आकस्मिक आकर्षण के फलस्वरूप नर बीज का नारी के अण्डाणु के साथ संयोग से अथवा परखनली शिशु का जन्म होता है और एक माँ जो अपने सन्तान का परित्याग वह अपने वात्सल्य भाव के परिणाम स्वरूप एक क्षण के लिए भी नहीं कर सकती है उसे प्रायः उसकी मानसिकता के विपरीत वातावरण में रहने, पलने, विकसित या अभियोजित होने हेतु भेजने की यथासंभव हर तैयारी के साथ प्रायः स्वेच्छा से और / या अपने परिवार / समाज के प्रभाव में आकर भेज देती है जहाँ पहुँचकर उस लड़की का उस नये वातावरण में अपने आपको अभियोजित करना या न करना नये परिवेश के साथी या सदस्य की मनोदशा से अधिक उस लड़की पर मुख्य रूप से निर्भर करता
है।
                  ( क्रमशः )

नर-नारी सम्बन्धों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने मानव स्वभाव की व्याख्या के सन्दर्भ में मनोविश्लेषण एवं मनोलैंगिक विकास का महत्वपूर्ण तथा तथ्यात्मक सिद्धांत दिया ।

 फ्रायड के अनुसार प्राणी के दो वर्ग स्त्री एवं पुरुष के मध्य समलिंगी, विषम लिंगी तथा उभयलिंगी आकर्षण का प्रभाव पाया जाता है।

यह प्रभाव न केवल मानव, वरन् अन्य प्राणियों में भी पाया जाता है। परन्तु आमतौर पर नर एवं मादा वर्ग के मध्य स्वाभाविक आकर्षण उम्र की वृद्धि के साथ  प्रायः अधिक पाया जाता है ।

                  ( क्रमशः )

सोमवार, 7 अगस्त 2017

असुरक्षा भावना (Insecurity feeling)

अपने अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा हेतु प्राणी द्वारा किये जा रहे संघर्षों के वावजूद यदि लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित बाधायें दूर नहीं हो पाती है , तो असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है ।

होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र :-

होमियोपैथी के जनक जर्मनी के प्रसिद्ध एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन ने एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका के जर्मन भाषा में अनुवाद के क्रम में China के अध्ययन के सन्दर्भ में किये गए अपने प्रयोगात्मक अध्ययन के पश्चात् आरोग्य प्राप्ति के ' समं समे समेयति ' का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसे होमियोपैथी कहा गया ।
        होमियोपैथिक चिकित्सा के मूल सूत्र अधोलिखित हैं :-
1. जिससे रोग होता है,  उससे रोग जाता है।
2. रोगी की चिकित्सा करें, न कि रोग की ।
3. रोगी की प्रसन्नता में वृद्धि, रोग नाश का सूचक लक्षण है ।
4. किसी भी प्राणी के शरीर एवं मन पर यदि किसी सजीव या निर्जीव पदार्थ का प्रभाव पड़ता है तो उस पदार्थ के विषाक्त प्रभाव से मुक्त होने के लिये उसी पदार्थ की सूक्ष्म मात्रा का उपयोग करने से प्राणी मनोशारीरिक रुप से रोग मुक्त या स्वस्थ हो जाता है ।
5.
                                          (क्रमशः)

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

सर्व कल्याणकारी प्रार्थना:-

' सर्व कल्याणकारी प्रार्थना '
......................................…..................
प्रियतम ! स्वामी ! सुन्दरतम् ! माधव ! हे सखा ! हमारे !
मिलती है , शान्ति -👌जगत में, केवल प्रभु ! तेरे सहारे ।।
तुम अमल धवल ज्योति हो, ज्योतित करते हो- जग को ।
स्रष्टा! पालक ! संहर्ता ! तुम एक नियन्ता-जग के ।।
कैसे मैं तुझे पुकारूँ, जड़ हूँ, न ज्ञान -मुझको है ।
प्रभु एक सहारा-तुम हो, रखनी प्रभु लाज -तुझे है ।।
सर्वज्ञ ! सम्प्रभु ! माधव ! तुम तो -त्रिकालदर्शी हो ।
अन्तर्यामी ! जगदीश्वर ! तम-हर ! भास्कर भास्कर हो ।।
मायापति! जन सुख दायक ! तुम व्याप्त -चराचर में हो ।
हे अगुण ! सगुण ! परमेश्वर ! सर्वस्व हमारे -तुम हो ।।
आनन्दकन्द ! करूणाकर ! शशि-सूर्य नेत्र हैं -तेरे ।
तुम बसो अहर्निश प्रतिपल, प्रभु ! अभ्यन्तर में -मेरे ।।
तेरी ही दया कृपा से, अन्न धन सर्वस्व मिला है ।
तेरी ममता इच्छा से, यह जीवन कमल खिला है ।
उपहास किया कर ते हैं, जग के प्राणी सब -मेरे ।
स्वीकार उन्हें करता हूँ, प्रेरणा मान सब -तेरे ।।
कर्त्तव्य किया न कभी मैं, प्रभु ! प्रबल पाप धोने का ।
जुट पाता नहीं मनोबल, प्रभु ! अहंकार खोने का ।।
बस, तिरस्कार पाता हूँ , यह पुरस्कार है- जग का ।
है बोध न मुझको कुछ भी, जगती का और नियति का ।।
यह जीवन चले शतायु, मंगलमय हो जग सारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
हे हरि ! दयानिधि! दिनकर! सब जग के तुम्हीं -सहारे ।
हम सब को प्रेम सिखाओ, हे प्रेमी परम हमारे ।।
हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा ।
अनुकरण योग्य प्रति पल हो, जीवन आदर्श हमारा ।।
ईर्ष्या ,माया,मत्सर का लव लेश नहीं हो हममें ।
धन, बल, विकास, काया का -सुन्दर विकास हो हममें ।।
सौहार्द, प्रेम भावों का प्रभु ! उत्स हृदय में फूटे ।
उत्तम् विचार राशि को,जगती जी भर कर लूटे ।।
सार्थक हो जग में जीवन, सार्थक हो प्रेम हमारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय ।
( प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान, एम.जे.जे.कालेज, एम., बनवारीपुर, बेगूसराय। )
(कालेज कोड : ८४०१४)

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

स्मरणीय सूत्र :-

१- हमें अपने शरीर की जरूरत को पूरा करना चाहिए न कि मन की प्रसन्नता हेतु शरीर विरोधी वैसे किसी निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जो तत्काल मन को आनन्दित करनेवाला हो, शरीर के लिए हानिकारक हो ।

२- मन की बात को जबरन नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि मन की दबी हुई इच्छा की पूर्त्ति नहीं होने पर वह व्यक्ति भविष्य में कुछ न कुछ मानसिक या मनोशारीरिक रोगों का शिकार हो सकता है ।

३- हमारा सम्यक् मनोशारीरिक विकास ही हमारे सम्यक् वैयक्तिक,समाजिक, नैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक , व्यवसायिक,कला, ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्मिक विकास का आधार हो सकता है ।

४- प्रकृति से हमारा जितना अधिक तादात्म्य रहता है, हम उसी अनुपात में पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित होते हैं ।

५- हमें किसी भी समस्या के समाधान के लिए यथा संभव प्रयास करते रहना चाहिए।

६- हमें आतीत के अनुभव से लाभान्वित होने के लिए वर्तमान में उन अनुभवों का सदुपयोग भविष्य के लिए करना चाहिए ।

७- हमें अपने जीवन के समान ही दूसरों के जीवन को महत्वपूर्ण मानना चाहिए ।

८- हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की जरूरत की पूर्ति में यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।

९- हमें अपनी सीमाओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए ताकि हमारा अहंकार हमें जीवन के आनन्द और परमात्मा से दूर नहीं कर सके ।

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

Biochemic Remedies :-

  Biochemic Remedies (केवल चिकित्सक एवं चिकित्सा विज्ञान के छात्रों हेतु ) :-
                - डॉ० प्रो० अवधेश कुमार' 'शैलज'
                     एम. ए.मनोविज्ञान, होमियोपैथ,
              पता:- पचम्बा, बेगूसराय (851218)
होमियोपैथी केअख जनक महान् एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन के शिष्य डॉ०शुस्लर ने महात्मा हैनीमैन द्वारा प्रमाणित दवाओं में से 12 ऐसी दवाओं को चुना जो प्राणी के रक्त एवं अस्थियों में समान रूप से एक निश्चित अनुपात में पाया जाता है, जिसे उन्होंने Twelve Tissues ( 12 नमक ) कहा । इन 12 नमकों में से यदि किसी भी कारण से किसी एक भी नमक की कमी या अधिकता हो जाती है तो शरीरस्थ अन्य लवणों और अन्य तत्वों में असन्तुलन पैदा हो जाता है, फलस्वरूप प्राणी अपने आप को अस्वस्थ महसूस करता है, अतः
उस लवण और / या आवश्यकतानुसार अन्य लवणों की क्षति पूर्ति करने से सभी लवणों में पुनः सन्तुलन पैदा हो जाता है जिससे प्राणी अपने आप को पुनः स्वस्थ अनुभव करने लगता है तथा वह रोग मुक्त हो जाता है । 
        बायोकेमिक पद्धति के इन 12 लवणों का उपयोग ठंडे या हल्के गर्म जल के साथ नहीं करके पीने लायक पूरे गर्म पानी (जल) के साथ ही किया जाता है ।
        बायोकेमिक पद्धति के इन लवणों की 3x, 6x, 12x, 30x तथा 200x में से विशिष्ट अवसरों को छोड़कर प्राय: सामान्य स्थिति में 6x शक्ति के उपयोग करने का मत अनेक विद्वानों द्वारा व्यक्त किया गया है, परन्तु किसी भी व्यक्ति को किसी भी औषधि का उपयोग या प्रयोग सुयोग्य चिकित्सक के देखरेख में या उनके परामर्श से ही करना चाहिए अन्यथा हानि या खतरे की पूरी सम्भावना रहती है । नीम हकीम से बचें।
उत्साह, खोज, प्रयोग, उपयोग, जिज्ञासा या कौतूहल के दृष्टिकोण से दवाओं का उपयोग अपने या किसी अन्य मानव या सजीव प्राणी के साथ भूलकर भी नहीं करें अन्यथा इसके लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे।

 ये 12 लवण अधोलिखित हैं :-

1. Calcaria Flourica 
कंजूस। आर्थिक संकट का भय।
रगड़ने से आराम ।
हड्डी के बहुत नजदीक दर्द युक्त ट्युमर । 
दाँत का हिलना। 
नीले रंग का कड़े किनारे वाला घाव या फटे दरार वाली त्वचा। 
गले में कुटकुटी के साथ खाँसी। 
बबासीर एवं अण्डकोष वृद्धि।

2. Calcaria Phosphorica / Calcaria Phos.
Creeping & crowling sensation
अस्वस्थ होने की चिंता।
किसी भी बीमारी के बाद अत्यधिक कमजोरी। दूध पचने में कठिनाई । 
दाँतों का सड़ना या खोंढ़र ।
दाँत दर्द में ठंडा और गर्म पानी दोनों से कष्ट ।
मौसम परिवर्तन से कष्ट ।
खट्टा एवं दही अधिक पसन्द।
लेटने से आराम। दबाव से कष्ट ।
आवाज के साथ पाखाना।
प्रात:कालीन प्रदर या लिकोरिया अण्डे के सफेदी जैसा लिकोरिया। 
नाक की नोक मोटी।

3. Calcaria Sulphurica / Calcaria Sulph. तलवे मेंं खुजली एवं घाव। 
पीब या पस या श्राव के साथ रक्त मिला हुआ ।
यह बायोकेमिक केलेण्डुला है।
स्मृति या चेतना का ह्वास, अचानक।
गिरने का भय।परिवर्तनशील मनोवृत्ति।
कपालावरण पर पीली पपड़ी। नेत्र की क्षति के बाद की दवा। नेत्र कोण प्रदाहित। उग्रकक्ष में धुंधली मवाद। अर्द्ध दृष्टिता। नेत्र में कील जैसी पीड़ा। मध्यकर्ण के चारों ओर फुन्सियाँ।रक्त मिश्रित श्राव। नासारन्ध्रों के किनारे वेदनापूर्ण।
हरापन लिए श्वेत मवाद। 

4. Ferrum Phosphoricum/ Ferrum Phos. यह बायोकेमिक एकोनाइट है। 
इस दवा को ठंडे जल के साथ भूलकर भी न लें।
अनिद्रा में रात में सेवन से अनिद्रा बढ़ती है ।
सूखी खांसी।
खाँसी के साथ Red Bleeding.
सामने का सरदर्द ।
किसी भी तरह के बुखार की यह बहुत अच्छी दवा है।
दायीं हथेली बायीं हथेली से प्राय:अधिक गर्म ।
सम्भोग की शुरुआत में ही योनि में दर्द ।
आँखों के चोंट एवं दर्द की अच्छी दवा है। 
इसे ठण्ढ़ा वातावरण अधिक पसन्द है।
चक्कर में आगे/सामने की ओर गिरने की प्रवृत्ति ।
सिर की ओर तीव्र रक्त प्रवाह ।
नकसीर।
निमोनिया।
जिह्वा का कैंसर।
टीवी।
ब्रेन हेमरेज।


5. Kalium Mureticum / Kali Mure. 
सफेद, भूरे रंग की गंदी जिह्वा। 
हर समय भूख। 
वसा युक्त  या पेस्टी भोजन से कष्ट वृद्धि ।
समुद्र स्नान से कष्ट वृद्धि ।
सायंकाल में जिह्वा में ठंडा पन की अनुभूति। 
कोलतार जैसा काला और थोड़ा मेन्स तथा दूध जैसा प्रदर या लिकोरिया।
दर्द विहीन और दबाने या पकड़ने पर छिंटकने वाला ट्यूमर परन्तु विद्वानों के अनुसार छाती का ट्यूमर जो दर्द युक्त होकर बायें केहुनी को पार कर जीवन पर खतरा पैदा करने की स्थिति में हो उस अवस्था में काली म्यूर जीवन रक्षक होती है। 

6. Kalium Phosphoric / Kali Phos.
लम्बी या नुकीली जिह्वा।  
सोच या मानसिक कष्ट से कष्ट बढना। 
दायीं ओर का सिर दर्द जो बायीं ओर भी जाय ।
काला दाग। 
धड़कन होना।
भूखा रह नहीं पाना। 
भोजन करने से या लोगों के साथ रहने से कष्ट घटना। 
किन्हीं दो या दो से अधिक अंगुलियों के बीच या मध्य में खुजली या घाव होना।
सीढ़ियों पर चढ़ने से या पिछले कष्ट या घटनाओं को याद करने से कष्ट बढ़ना ।
मस्तिष्क का हिल जाना । 
मानसिक रोग या कष्ट होना। 
पैरों की पिण्डलियों में ऐंठन होना। स्वपनचारिता या नींद में चलना या बोलना । चावल के धोवन सा दस्त।
मीठा कम पसन्द।
बैठना अधिक पसन्द। 
भूलना ।
पहचानने में कष्ट।
बुखार के बादऑख का घूम जाना या ऐंचापन ।
स्कूल जाने के समय का कष्ट । 
परीक्षा या इन्टरव्यू केे समय कष्ट या वीमार हो जाना। 
पेशाब से खून आना। 
ऑपरेशन के बाद की परेशानी।
 ब्लड प्रेशर ( उच्च रक्तचाप में kali Phos 12x एवं निम्न रक्त चाप में काली फॉस 3x का प्राय: उपयोग किया जाता है ) .
उड़ने, गिरने, पहाड़, भूत,विचित्र, भयानक या आग का सपना। 
काला या दुर्गन्धित घाव। 
लिंग में तनाव का अभाव। 
पीला पका सा बलगम या लिकोरिया ।
पीली योनि। 
हथेली, तलवे और / या ऑखों में जलन। 
ऊपर की ओर देखने से चक्कर। 
गर्दन झुकाने से पैर तक दर्द।
चेहरे में जलन और / या की खुजली ।

7. Kalium Sulphuricum / Kali Sulph.:- 
गर्मी से या मुख्यतया कमरे की गर्मी से कष्ट बढ़ जाना। 
सायंकाल से मध्य रात्रि तक कष्ट बढ़ना।
खुली ठंडी हवा में आराम ।

8. Magnashium Phosphoricum / Mag Phos. 
छूने से कष्ट, परन्तु दबाने से आराम।
आग, गर्मी, ताप, धूप या सेंकने से आराम। 
ठंढ़क से कष्ट में वृद्धि। 
आँखों में खुजलाहट।
 नाभि के चारों ओर घूमता हुआ दर्द। 
दायें करवट लेटने से कष्ट बढ़ता है ।
कष्टार्तव मेन्स या रज:श्राव होने पर घटना। द्विदृष्टि (एक का दो दिखाई पड़ना। 
अपनी सम्पत्ति से मोह अधिक होने से सदा अपने देखरेख में ही या पास में ही रखने की मानसिकता या इच्छा रहना।

9. Natrum Mureticum / Natrum Mure.
पानी भरा फोड़ा या श्राव ।
कमर से ऊपर दुबलपन परन्तु नीचे भारीपन ।
जाड़े में कमर से नीचें अत्यधिक ठंडापन ।
चावल / भात, नमक या मिर्च अधिक पसन्द । सूर्य की धूप मुख्यतः 9 बजे दिन से 3 बजे दिन तक वेवर्दास्त या नापसन्द ।सुबह 10 बजे से 11बजे के मध्य रोग लक्षण में विशेष वृद्धि ।
बुखार एवं सरदर्द के समय Nat-Mure का उपयोग नहीं किया जाता है।
भूखे रहना अधिक पसन्द । क्रोधी एवं चिड़चिड़ा स्वभाव । दूसरे या अनजान व्यक्ति का भी दुख स्वयं झेलना चाहता है।
सहानुभुति नापसन्द । 
जोड़ों पर दाद/ दिनाय ।
श्वेत कुष्ट ।
सिर के पिछले भाग में सिर दर्द प्रारम्भ होता है ।
सुबह से शाम तक कष्ट की वृद्धि ।
प्रेम में निराश होने या कष्ट की स्थिति में खिड़की से बाहर कूदने या मरने की इच्छा।
सायंकाल से रातभर आराम।
कुर्सी/दीवार से पीठ सटा कर बैठने से आराम।
कड़े चीजों या स्थानों या बिछावन पर पीठ के बल लेटने से आराम ।
उदास मनोभाव। उदासी के साथ हृदय की धड़कन। विनोदशीलता। नाचने तथा गाने की प्रवृत्ति। वयसन्धिकाल में विवादग्रस्त।
तीव्र ठहाके। 
कपालावरण पर उद्भेद,खुजली करते।
ग्रीवा पृष्ठ पर, केशों की सीमा पर।
अनजाने में आगे की ओर सिर का झुक जाना। 
सिर दर्द मासिक धर्म के पहले या बाद में । टहलते समय या टहलने के बाद सिरदर्द ।
मुख से अत्यधिक लार निकलना।
सिरदर्द के साथ खूब आँसू बहना।
प्रातःकाल से सिरदर्द। मन्दगति से सिरदर्द।
सिरदर्द के साथ माथा भारी।
अर्धकपाली (अधकपारी/Hemicrania).
मानो सिर खुल जायेगा। लू लगना। 
कब्ज से सिरदर्द।
पानी जैसी पतली श्लेष्मा के साथ सिरदर्द।
Ciliary neuralgia (स्नायुशूल).
नेत्रों से श्वेत श्लेष्मा का श्राव।
नेत्रों के चारों ओर पानी भरे फफोले।
आँखों के सामने कुहासा का अनुभव।
Glaucoma (काला मोतिया).
सिल्वर नाइट्रेट से अश्रुश्राव ।
कण्ठमालाग्रस्तों के Corina का अल्सर।
Cornea पर उजला दाग।पढ़ते समय अक्षरों का मिल जाना या अक्षर पर अक्षर दिखायी पड़ना।
चबाते समय कान में कड़कने की आवाज।
कान के भीतर जलन या खुजली या गरजने की आवाज होना।
नाक से पतला, स्वच्छ, पानी सा, नमकीन श्राव।
झुकने या खाँसने पर नाक से रक्तश्राव। 
परागज ज्वर। नाक पर फुन्सियाँ।
नाक के छिद्रों का पिछला हिस्सा शुष्क।
नाक के चारों ओर चेहरा सफेद।
एक पक्ष पर सुन्नता का अनुभव।
मूछों का पंक्ति छोड़ देना या अपंक्तिबद्ध होना।
दाढ़ी, मूँछ,गुप्तांगों ही नहीं वल्कि सर्वांग शरीर का बाल झड़ना।
सूजा हुआ होठ /ओठों में जलनकारी /पीड़ा पूर्ण दरार। भग/योनि शिथिल।
जिह्वा पर बुलबुले।स्वादहीनता या स्वाद का लोप। बोलना धीरे सीखना।जिह्वा के सिरे पर फफोले। व्रणयुक्त मसूढ़े। दाँत दर्द के साथ लार श्राव।लार ग्रन्थियों का प्रदाह।संवेदनशील मसूढ़े।चिरकालीन कण्ठदाह।सूखा कण्ठ।कण्ठ की अपवृद्धि।गलगंड रिसाव के साथ।काकलक शोथ।
रोटी से अरुचि, चावल,नमक,कड़वे पदार्थ या मिर्च पसन्द। मुख में पानी भर आना। अम्ल वमन।
निद्रालुता । धूम्रपान की इच्छा।
आँतों की अति निष्क्रियता।मलाभ में जलनकारी पीड़ा।आर्द्रता का अभाव।आँतों की कमजोरी।त्वचा/गुदा फटने जैसा कब्ज।अनैच्छिक अतिसार।बवासीर में स्पन्दन।
मलाभ में सूचीवेधी पीड़ा। भुरभुरा/शुष्क मल।
मूत्रत्याग के बाद जलन या काटने जैसी पीड़ा।
मृत कामेच्छा।पुर:स्थ द्रव्य का श्राव।अंडकोषों या वृषण रज्जु में खिंचाव या सूजन। पानी जैसा प्रमेह।
तप्त दाह क्षत। शिशन के बालों का लोप।शीतलता के साथ वीर्यश्राव।
गर्भाशय में जलन या काटने जैसी पीड़ा।मासिक के समय उदासी।योनि का बाल झड़ना।विलम्बित शिरोवेदना के साथ पानी जैसा अत्यधिक मासिक श्राव।
गर्भाशयच्युति में बैठने से आराम। मूत्र त्याग के बाद जलन।प्रसव या स्मवण के दौरान केशों का झड़ना।
खाँसी या भौकने के कारण मानो फाड़ देने वाली शिरोवेदना।उरोस्थि के पीछे चुनचुनी।
ठंढ़े हाथ।हृदय में संकुचन।
पंगु।ऊँगलियों में फफोलेदार व्रण।पिंडलियों में कमजोरी।कटि/कमर तथा बाह्यांगों की शीतलता।नितम्ब सन्धि शूल।बायें नितम्ब में सूचीवेधी पीड़ा।जानु मोड़ में विसर्प या कमजोरी।अंगों का सो जाना।सन्धियों के आसपास शीतपित्त/जुलपित्ती (Urticaria).
निद्रा के दौरान अनैच्छिक झटके। थकावट।
वतोन्मादी।निर्बलता के साथ हिचकी। व्याकुलता पूर्ण या अत्यधिक नींद या निरन्तर सोने की इच्छा ।सुबह जगने पर थकावट।निद्रालोप। 
शीतज्वर या होठों पर छाले। सुबह से दोपहर तक शीत।अविरामी ज्वर कुनैन सेवन के बाद।
चिरकालिक त्वचा रोग।भौहों का झड़ना।वृत्ताकार विसर्प।कीटदंश।तीव्र परिश्रम के पश्चात खुजली। सर्वांग शोथ। जलशोथ।
ठण्डे मौसम में या समुद्र के किनारे पर कष्ट।
छत की खिड़की से कूदकर मरने की इच्छा।

10. Natrum Phosphoricum / Natrum Phos. :- 
झागदार पेशाब, बलगम, पीब या पाखाना ।
कृमि।
नपुंसकता ( स्त्रियों एवं पुरुषों में बन्ध्यापन )।
वायीं कनपट्टी में दर्द। 
खट्टा डकार। 
जीभ के किनारे में सायकिल के गियर का सा दाग।
मृतक या साँप का सपना। 
जोड़ों में सूजन में अन्य स्थानों से अधिक ताप या गर्मी ।
बायें ठेहुने का कचकना ।
ठनका या बिजली कड़कने से कष्ट।

11. Natrum Sulphuricum / Natrum Sulph. जिह्वा का रंग हरा । 
मुँँह का स्वाद् तीता।
वाँयी करवट लेटने में कष्ट का बढ़ जाना। 
क्रोध के कारण जोण्डिस हो जाना। 
सिर के पिछले भाग में चोट का दर्द।
मछली और / या जलोत्पन्न वस्तुओं के सेवन से कष्ट की वृद्धि ।
मौसम परिवर्तन से आराम ।

12. Silica :- 
बालू के समान गरम ( गरम ओढ़ना पसन्द ) , परन्तु भीतर ठंढ़ा पसन्द । 
पैरों का पसीना दबने से कष्ट ।
खुली हवा से कष्ट ।
घाव में वर्फ के समान ठण्ढ़क या शीतलता का अनुभव। 
पाखाना होते समय मल या पाखाना पुन: गुदा मार्ग में वापस अंदर चला जाना। 
2 बजे रात के बाद सिर से पसीना आना या मिर्गी आना।
पूर्णिमा के समय कष्ट की वृद्धि ।



रविवार, 9 जुलाई 2017

प्रज्ञा-सूक्तं :

'प्रज्ञा-सूक्तं'
-प्रो०अवधेश कुमार 'शैलज',पचम्बा, बेगूसराय ।
ऊँ स्वयमेव प्रकटति ।। १।।
अर्थात्
परमात्मा स्वयं प्रकट होते हैं ।

प्रकटनमेव जीवस्य कारणं भवति ।।२।।
परमात्मा का प्रकट होना ही जीव का कारण होता है ।

जीव देहे तिष्ठति ।।३।।
जीव देह में रहता है ।

देहात काल ज्ञानं भवति ।।४।।
देह से समय का ज्ञान होता है ।

देहमेव देशोच्चयते ।।५।।
देह ही देश कहलाता है ।

देशकालस्य सम्यक् ज्ञानाभावं अज्ञानस्य कारणं भवति ।।६।।
देश एवं काल के सम्यक् (ठीक-ठीक एवं पूरा-पूरा) ज्ञान का अभाव अज्ञान का कारण होता है ।

अज्ञानात् भ्रमोत्पादनं भवति ।।७।।
अज्ञान् से भ्रम ( वस्तु/व्यक्ति/स्थान/घटना की उपस्थिति में भी सामान्य लोगों की दृष्टि में उसका सही ज्ञान नहीं होना)  पैदा/ उत्पादित होता है ।

भ्रमात् विभ्रमं जायते ।।८।।
भ्रम (Illusion) से विभ्रम (Hallucination) पैदा या उत्पन्न होता है ।

विभ्रमात् पतनं भवति ।।९।।
विभ्रम (विशेष भ्रम अर्थात् व्यक्ति,वस्तु या घटना के अभाव में उनका बोध या ज्ञान होना) से पतन होता है ।

पतनमेव प्रवृत्तिरुच्चयते ।।१०।।
पतन ही प्रवृत्ति कहलाती है ।

प्रवृत्ति: भौतिकी सुखं ददाति ।।११।।
प्रवृत्ति भौतकी सुख प्रदान करता है ।

भौतिकी सुखं दु:खोत्पादयति ।।१२।।
भौतिकी सुख दु:ख उत्पन्न करती है ।

सुखदु:खाभात् निवृत्ति: प्रकटति ।। १३ ।।
सुख दुःख के अभाव से निवृत्ति ( संसार से मुक्त होने की प्रवृत्ति ) प्रकट होती है ।

निवृत्ति: मार्गमेव संन्यासरुच्चयते ।।१४।।
निवृत्ति मार्ग ही संन्यास कहलाता है ।

संन्यासमेव ऊँकारस्य पथं अस्ति ।। १५।।
संन्यास ही परमात्म का पथ या मार्ग है ।

संन्यासी आत्मज्ञ: भवति ।। १६।।
संन्यासी आत्मज्ञानी होते हैं ।।

आत्मज्ञ: ब्रह्मविद् भवति ।।१७।।
आत्मज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी होते हैं ।.

जीव ब्रह्म योग समाधिरुच्चयते ।।१८।।
जीव और ब्रह्म का योग ही वास्तव में समाधि कहलाता है ।

नोट :- ज्ञातव्य है कि थियोसोफिकल सोसायटी की अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ० राधा वर्नीयर को जब मेरी इस रचना की जानकारी हुई तो उन्होंने इस रचना का शीर्षक 'सत्य की ओर' दिया साथ ही इस रचना पर अपनी टिप्पणी देते हुए थियोसोफिकल सोसायटी की महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका 'अध्यात्म ज्योति' में मुझ अवधेश कुमार 'शैलज' के नाम से इस रचना को प्रकाशित करवाया, जिसके लिए मैं  हृदय से आभारी हूँ ।

मंगलवार, 27 जून 2017

Concise Psychological Dictionary (संक्षिप्त मनोवैज्ञानिक शब्दकोश) :-

Psychology :" Psychology is an ideal positive science of experience, behavior and adjustment process of an / any organism in their own environment. "
                          अर्थात् 
" मनोविज्ञान प्राणी के अपने वातावरण में उनके अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श समर्थक / विधायक विज्ञान है । "

                     A

A : 'A' is the first capital letter & alfabate of English language.
It is called vowel also.
It comes before any term related with subject & / or predicate of any sentence which is started with consonant letter.
One can use this letter or term in mathematics ( mainly  algebra & trigonometry).
It means one / single.

A : In Psychology A denotes 1.        , 2. Amplitude & 3. Assumed

a : 'a' is the small letter /alfabate of English language.

An : 'a, an & the ' these are articles.
'an' comes before words starting with vowel but 'a' comes before words starting with consonant and 'the' denotes specific quality or characteristics of any person, place, things, time or event.

Ab : Away ( दूर / अभाव / अलग ) ,        Absent ( अनुपस्थित )

Abnormal : Away from normal. (सामान्य या मानक से दूर या अलग अर्थात् असामान्य)

Abbreviation : Short form or essence of any term or the first letter of any term / word.
किसी पद ( शब्द या शब्दसमूह ) हेतु प्रयुक्त प्रथम, संक्षिप्त एवं सार स्वरूप अक्षर या वर्ण यथा A. P. A. (American Psychological Association) ।

Ach : Acetycholine

AChE : Acetycholinsterase

ACT :  American Collage Testing Program.     

ACTH : Adrenocorticotropic   .    Hormone

AD : Average Deviation

AD = £ (Xi-X)÷N ;

AD = Average Deviation
X = Mean
Xi = The ith score
i= Class interval
N = The total number of score

ADH : Antidiuretic Hormone

AI : Artificial Intelligence

AL : Adaptive Level

AM : Assumed Mean

ASL : American Sign Language

A-S scale : Anti - Semitic scale

ANOVA : Analysis of variance

ANS : Autonomic Nervous system 

ARP test : Aptitude Research Project Test
                        B
B : 1. Behavior, 2. Barrier, 3.Black, 4.Block, 5.Boy, 6.Basic.....etc .

BAS -1: Awadhesh Kumar's Basic Anxiety Scale - 1

BAS - 2 : Awadhesh Kumar's Basic Anxiety Scale - 2

EAS : Awadhesh Kumar's Emotional Adjustment Scale

EASCS : Awadhesh Kumar's Emotional Adjustment Sentence Completion Scale

IEAS : Awadhesh Kumar's Ideal Educational Anxiety Scale

BMR : Basal Metabolism Rate

BSD scale : Bogardus Social Distance Scale

'B - R' Law : Bunsen - Roscoe Law

Brunswick Ratio = ( P - R ) ÷ ( C - R ) ;
 Where P = Perceived or Judged Size
             R = Relative Regional Size
             C = Objective Physical Size

B = f ( OME )..... Editor's Concept.
        Where B = Behavior
                     f = Factor
                     O = Organism
                     M = Motivation
                     E = Environment
             
                              C
C : 1. Centigrade , 2. Control Group ,           

3. Constant , 4. Correction Factor.

C : Correction Factor

C =  (£ fx') ÷ N ,
         Where £ = The sum of total
                      f = Frequency
                      X' =  Deviation
                      N = Number

C.A. : Chronological Age

CAH : Congenital Adrenal Hyperplasia

CAI : Computer Assisted Instruction

CAT :1. Children's Apperception Test
          2. Computerised Axial Tomography

CAT Scan : Computerised Axial Tomography Scan

CPI : California Personality Inventory

CCC : Component Trigram

CER  : Conditioned Emotional Response

CFF : Critical Flicker Frequency

COD : Change Over Delay ( Reinforcement )

CMD : Classification of Mental Disease

Chi (x) : Chi (x) is a Greek letter.  It is used often in many/ various formula & statistical Test.

Chisquire (x squire) = The test between.            observation & expectations.

Chisquire (x squire)=€(oi-Ei)

Where oi = Each of I observed score.

Ei=Each of I expected score.

€=The sum total of.

CNS : Central Nervous System

CPS : Cycle Per Second / Hertz or Hz

CR : 1. Conditioned Response
         2. Critical Ratio

CRF : Continuous Reinforcement

CRT : Cathode Ray Tube

(The out put "screen" of an ocillescope)

CS : Conditioned Stimulus

CCC : Consonant Vowel Consonent
             ( Trigram )

                            D

D : 1. A difference score in statistics
       2. Drive in Hall's Theory.

d : 1. Deviation of a score .
       2.                           
d' : It is an index for the Ideal observer which can                                                     

df : Degree of freedom.
df = (N1- 1) + ( N2 - 1)
DAT : Differential Aptitude Test
DAT test : Machover 'Drow-a-person' Test.
dB ( cradle ) : decibel
de : 1. Apart from undone.
        2. Away from down.
      
∆ : Delta :- 1. ∆ R is an increment in                 responding.
                    2. ∆ S is an increment in             stimulus.
                    3. ∆ I in intensity.
∆ : D

DIN Colour System :

DNA : Deoxyribonucleic Acid.

DQ : Developmental Quotient.

DRH ( drh ) : Differential Reinforcement of high rate.

DRL ( drl ) : Differential Reinforcement of low rate.

DRO ( dro ) : Defferential Reinforcement of other behavior.

DRP ( drp ) : Defferential Reinforcement of paced response.

                 
                                            (Continue)

 

सोमवार, 26 जून 2017

Important Psychological Terms :- Prof. Awadhesh Kumar, Principal; Lecturer Psychology, M.J.J.College, M.,Banwaripur, Begusarai.

Psychology : In my view "Psychology is an ideal positive science of experience, behavior and adjustment process of an / any organism in their own environment." 

अर्थात् 


" मनोविज्ञान किसी प्राणी के अपने वातावरण में उनके अनुभूति, व्यवहार एवं समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श समर्थक / विधायक विज्ञान है ।"

शनिवार, 24 जून 2017

कंचन

कंचन
कंचन कंचन का होता है,
पर,कंचन न कंचन होता है।
लेकिन वास्तव में कंचन के
रूप अनेकों होते हैं।
कंचन मन को कंचन करता है,
कंचन न कंचन  करता है।
कंचन अपने दर्शन से,
सदा अचम्भित करता है।
कंचन कंचन है दर्शन में,
कंचन से दिल कंचन होता
कंचन से सजती हैं दुल्हन,
कंचन से मिलती है इज्ज़त
कंचन से आता है संकट,
कंचन से खजाना भरता है।
मृग मारीच बना कंचन,
मर्यादा को भी भटकाता है,
लक्ष्मण सा स्थिर मन को भी,
वह विचलित कर जाता है।
सीता हरण, रावण मरण
कंचन युद्ध कराता है।
कंचन जोड़ता है हमको,
अपनों से जुदा कराता है।
निज सभ्यता संस्कृति से कर दूर,
हमें कुपथ कुराह बताता है।
कंचन अथाह, कंचन अभाव,
दोनों निज रुप दिखाता है।
कंचन दोनों मौके पर
सन्यास मार्ग दिखलाता है।
कंचन तमोगुणी होकर
अमानवीय कर्म कराता है,
कंचन रजोगुणी होकर
संसाधन सुलभ कराता है।
कंचन सतोगुणी होकर
जीवन रक्षक हो जाता है।
शैलज कंचन के खातिर,
आखिर नर क्यों मरता है?
कंचन खातिर मरता है वह,
कंचन के खातिर जीता है।
पर, अन्तिम क्षण में कंचन,
न संग उसे दे पाता है।
कंचन कंचन रटते रटते,
जीवन को तज वो जाता है।
कंचन ध्येय न हो जीवन का,
अनुभव यही बताता है,
कर कंचन का उपयोग सही,
नर दुर्लभ सुख पा सकता है।
कंचन से जीवन पाता है,
कंचन से जीवन जाता है।
कंचन मन कंचन पा करके
जीवन कंचन कर पाता है।
-प्रो०अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
'शैलज काव्य कोश'

शुक्रवार, 16 जून 2017

श्रीमद् भगवद् गीता,अ०४,श्लोक७ के सन्दर्भ में सम्यक् एवं संतुलित चिंतन:-.

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृज्याहम् ।।
श्रीमद् भगवद् गीता, अध्याय:४,श्लोक:७
का भावार्थ होता है कि "हे भारत! जब-जब धर्म की ग्लानि होती है ,अधर्म का अभ्युत्थान होता है, तब/उस समय मैं स्वयं का सृजन करता हूँ । परन्तु इस श्लोक में "अभ्युत्थानमधर्मस्य" पद के पश्चात् अल्पविराम का प्रयोग/उपयोग नहीं किया गया है, अतः  मेरी अल्प बुद्धि में यह भ्रम उत्पन्न हो गया कि इस श्लोक का अर्थ होना चाहिए कि भगवान् श्रीकृष्ण पार्थ अर्जुन से धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में कहते हैं कि " हे भारत !  जब धर्म की ग्लानि / हानि / पतन होता है, उस समय मैं धर्म के अभ्युत्थान / अभ्युदय के लिए अपने आपका / स्वयं का सृजन करता हूँ / अवतार लेता हूँ । "
" अभ्युत्थानमधर्मस्य " पद का अन्वय        "अभ्युत्थानम् अधर्मस्य " होता है और 'वामन शिवराम आप्टे' के 'संस्कृत-हिन्दी कोश ' में अभ्युत्थानम् का अर्थ सत्कारार्थ उठना, प्रस्थान करना,उठना, उन्नति, सम्पन्नता तथा.मर्यादा है ।
परन्तु गीता की व्याख्या से सम्बन्धित विभिन्न ग्रन्थों में "अभ्युत्थानमधर्मस्य" का  अर्थ "अधर्म का विकास होने पर या स्थिति में " बताया गया है ,जबकि मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार इसका अर्थ " अधर्म का अभ्युत्थान " होता है, जो इस अर्थ में उपयुक्त नहीं है क्योंकि भगवान् का अवतार अधर्म को समाप्त कर धर्म की रक्षा, विकास एवं धर्म की स्थापना हेतु होता है ।
ज्ञातव्य है कि श्रीमद् भगवद् गीता के प्रस्तुत श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से "अभ्युत्थानमधर्मस्य" अर्थात् " अभ्युत्थानम् अधर्मस्य " का प्रादुर्भाव हुआ है, इस तरह के अर्थ से युक्त पद का प्रयोग या उपयोग होना श्लोक की मूल भावना के दृष्टिकोण से वास्तव में पूर्णतया प्रासंगिक है। ऐसा मानना उन अन्तर्यामी सर्वेश्वर प्रभु की कृपा एवं प्रेरणा से सम्यक्, यथोचित तथा प्रासंगिक प्रतीत होता है। आशा एवं विश्वास है कि धर्मशास्त्रज्ञ, विद्वत् जन, भगवद् भक्त गण, वैयाकरण, चराचर जगत् में व्याप्त दृश्यादृश्य शक्ति गण तथा परम् प्रेममय प्रभु इन पंक्तियों के द्वारा अपने अन्तर्भावों या प्रमाद /अहंकारी प्रवृत्तियों को नहीं रोक पाने के कारण अपनी भावाभिव्यक्ति में वौराये इस अकिंचन अवधेश कुमार "शैलज" के हृदय की आवाज को सुनेंगे, समझेंगे, मार्गदर्शन करायेंगे एवं क्षमा करेंगे। वास्तव में यह लेखक का सम्यक् एवं संशोधित चिंतन है ।

शनिवार, 20 मई 2017

आपस में पति-पत्नी के कर्त्तव्य:-

पति-पत्नी को आपस में पति-पत्नी के कर्त्तव्य के पालन के अलावे आवश्यकतानुसार पिता-पुत्री एवं माता-पुत्र जैसे समझ के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।

शुक्रवार, 19 मई 2017

मानव एवं मानवेतर प्राणी का जीवन:-

मानव एवं मानवेतर प्राणी का जीवन उनके अपने वातावरण की विभिन्न अनुभूतियों, व्यवहार सम्बन्धी स्थितियों तथा समायोजन प्रक्रियाओं से प्रभावित होता है।

रविवार, 23 अप्रैल 2017

असामान्य ( Abnormal) :-

असामान्य (Abnormal) व्यक्ति या प्राणी सामान्य ( Normal) व्यक्ति या प्राणी से भिन्न मनो-शारीरिक अवस्था एवं व्यवहार वाले होते हैं। प्रतिभाशाली एवं मानसिक रुप से अस्वस्थ व्यक्ति या प्राणी इस वर्ग में आते हैं।
 इस प्रकार असामान्य अर्थात् Abnormal का अर्थ होता Ab or Away from normal. 

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

नेतृत्व (Leadership) :-

नेतृत्व प्राणी का जन्मजात् या परिस्थिति प्रेरित वैयक्तिक,सामूहिक या अनुयायी हित में थोपा गया या स्वाभाविक या आत्माभिव्यक्ति का गुण होता है।
Thursday, April 6, 2017

Leadership: -

The birth or position of the lead creature is imputed in the interest of the individual, the collective or the follower, or the nature or the nature of self-expression.

5:58 am on Awadhesh Kumar

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शनिवार, 1 अप्रैल 2017

विवाह :-

" विवाह को कानून अथवा धर्म की स्वीकृति मिली हो या न मिली हो, फिर भी विवाह जीववैज्ञानिक अर्थ में कुछ हद तक सामाजिक अर्थ में एक स्थायी यौन संबंध है । " :-  The Psychology of sex (यौन मनोविज्ञान) मूल लेखक:-हैवलॉक एलिस   ( 1938), अनुवादक :- मन्मथ नाथ गुप्त (2008), राजपाल एण्ड सन्स (प्रकाशन)।

गुरुवार, 23 मार्च 2017

मनोविज्ञान व्यक्ति या प्राणी की....

मनोविज्ञान व्यक्ति या प्राणी की अनुभूतियों, समायोजन प्रक्रिया एवं सामान्य और/या असामान्य व्यवहारों का आदर्श वैज्ञानिक अध्ययन करता है।यह अध्ययन आदर्श एवं सकारात्मक वैज्ञानिक अध्ययन होता है। फ्रायड ने दमित काम - प्रवृत्तियों का अध्ययन मनोविश्लेषण पद्धति से किया। होमियोपैथी के जनक महात्मा हैनीमैन ने रूग्ण प्राणी की चिकित्सा हेतु 'समं समे शमयति' सिद्धान्त के आधार पर लाक्षणिक चिकित्सा पर बल दिया और सभी मनो-शारीरिक रोगों का मूल कारण मन की विकृति बताया। अत एव मन के चेतन, अचेतन तथा अवचेतन स्थिति के अध्ययन के साथ इसके इदं, अहं तथा परम अहम् स्वरूप का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। अत एव होमियोपैथी में भी प्राणी के family, sex एवं self-concept का अध्ययन अत्यावश्यक है।

मंगलवार, 14 मार्च 2017

पूर्वाग्रह ( P r e j u d I c e )

पूर्वाग्रह (Prejudice) किसी व्यक्ति, वास्तु, स्थान या घटना के प्रति पूर्व अनुभूति या पूर्व सूचना के आधार पर उत्पन स्थाई प्रकृति की वह अवधारणा है, जो उस परिस्थिति के उपस्थित होने पर या उस परिस्थिति की संभावना बनने पर उस व्यक्ति, वस्तु, स्थान या घटना के प्रति पुन: व्यक्त या विकसित होती है ।

Tuesday, March 14, 2017

Prejudice (P r e j u d e c e)

Prejudice is the concept of a permanent nature, based on preconception or prior knowledge of a person, architectural place or event, that, when the presence of that circumstance or the possibility of that situation, that person, object, place Or again or expresses to the event.

5:11 pm on Awadhesh Kumar

गुरुवार, 9 मार्च 2017

सामान्य

G. W. Kisker ने अपनी पुस्तक   The   Disorganized Personality, p. 2. में लिखा है " The word normal comes from the Latin norma, which means a carpenter's squre. Anorm therefore became a rule or pattern or standard, añd, it was in this sense that the word was introduced into the English language. "
इस प्रकार 'सामान्य' से तात्पर्य किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, प्राणी, समय, घटना, कला, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकि, गोचरागोचर प्रभाव, वातारण, परिस्थिति, मत, विश्वास, सिद्धान्त , प्रमाण आदि से सम्बन्धित एक या एकाधिक व्यक्तियों द्वारा स्वीकृत या स्थापित उस मान्यता, निर्णय या दृष्टिकोण से है जिसे उस समाज के अधिकांश सदस्यों द्वारा आदर्श या मानक के रूप में स्वीकार किया गया हो।
:-प्रो० अवधेश कुमार उपनाम शैलज, पचम्बा,बेगूसराय।
प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान ,
एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर,बेगूसराय।

बुधवार, 8 मार्च 2017

नारी/बालिका/स्त्री/महिला और नर/बालक/पुरूष का पारस्परिक आकर्षण स्वाभाविक है:-

नारी/बालिका/स्त्री/महिला और नर/बालक/पुरूष का पारस्परिक आकर्षण स्वाभाविक है,ईडिपस तथा इलेक्ट्रा इसके प्रमाण हैं।अत:इनमें फूट डालना अनुचित है।

Favoritism/ Participent ( पक्षपात ) की परिभाषा:-

पक्षपात् की परिभाषा:-
पक्षपात् किसी वस्तु,व्यक्ति,स्थान या घटना के प्रति अपने मनोशारीरिक हितों के दृष्टि कोण से उनके पक्ष या विपक्ष में लिये गये उचित या अनुचित किसी भी निर्णय से प्रभावित सोच, अनुभूति या क्रिया कलाप को इंगित करता है।
   :- प्रो० अवधेश कुमार .
प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान,
मधैपुरा जवाहर ज्योति महाविद्यालय,
ममारकपुर / ममारखपुर, बनवारीपुर,बेगूसराय ।
कालेज कोड : 84014.

Wednesday, March 8, 2017

Definition of favoritism: -

Participant points to the thinking, perception or activity influenced by any decision appropriate or inappropriate in his favor or opposition from the point of view of his psychic interests towards any object, person, place or event.


: - Prof. Awadhesh Kumar
Principal Head of Department of Psychology,
Madhyapura Jawahar Jyoti College,
Mankarpur / Marmakhpur, Banwaripur, Begusarai
College Code: 84014

5:57 am on Awadhesh Kumar

पक्षपात् की परिभाषा:-

 पक्षपात् किसी वस्तु,व्यक्ति,स्थान या घटना के प्रति अपने मनोशारीरिक हितों के दृष्टि कोण से उनके पक्ष या विपक्ष में लिये गये उचित या अनुचित किसी भी निर्णय से प्रभावित सोच, अनुभूति या क्रिया कलाप को अभिव्यक्ति है।
   :- प्रो० अवधेश कुमार .
 सेेवानिवृत प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान,
मधैपुरा जवाहर ज्योति महाविद्यालय,
ममारकपुर / ममारखपुर, बनवारीपुर,बेगूसराय ।
कालेज कोड : 84014.
२६/९/२०१८


Definition of favoritism: -

Participant is an expression of thought, cognition or activity influenced by any decision of appropriate or inappropriate decision taken in their favor or opposition from the point of view of their psychic interests towards any object, person, place or event.

: - Prof. Awadhesh Kumar
Retired Principal Head of Department of Psychology,
Madhyapura Jawahar Jyoti College,
Mankarpur / Marmakhpur, Banwaripur, Begusarai
College Code: 84014.
26/9/2018

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

प्रत्येक प्राणी में वैयक्तिक भिन्नता :-

प्रत्येक प्राणी में वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है ,परन्तु वे अपने उस वातावरण में देश (स्थान),काल (समय) एवं पात्र (प्राणी) के साथ उत्पन्न परिस्थिति के अनुसार अनुभव के साथ समायोजनात्मक व्यवहार करते हैं ।

शनिवार, 28 जनवरी 2017

E.A.S.(Emotional Adjustment Scale/संवेगात्मक अभियोजन मापिनी) के सम्बन्ध में संक्षिप्त निर्देश :-प्रो०अवधेश कुमार(प्राचार्य सह विभागाध्ययक्ष मनोविज्ञान:एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर, बेगूसराय।

E.A.S.(Emotional Adjustment Scale) अर्थात् संवेगात्मक अभियोजन मापिनी का विकास 14 वर्ष या उससे अधिक उम्र के छात्र-छात्राओं के मनो-शारीरिक आवश्यकताओं एवं संवेगात्मक अभियोजन के अध्ययन के दृष्टिकोण से किया गया है , लेकिन  इस मापिनी के अनेक प्रश्नों के उत्तर प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय स्तर के बच्चे भी आसानी से दे सकते हैं, साथ ही माध्यमिक विद्यालय के अलावे उच्च-माध्यमिक विद्यालयों तथा अन्य उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने वालों के मनो-शारीरिक एवं संवेगात्मक अधययन हेतु उपादेय है।
 इस प्रश्नावली में दिये गए प्रश्नों के उत्तर के  प्रति प्रयोक्ता को किसी तरह के पूर्वाग्रह एवं पक्षपात् युक्त निर्णय लेना समुचित नहीं है, क्योंकि प्रयोज्य की वैयक्तिक भिन्नता एवं उनके मनो-शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

T.A.T. & S.S.C.T.

The T.A.T. and the S.S.C
.T. is also a reliable projective test who can reveal a person's attitude towards family, sex and self-concept. Attitude towards mother, father and family unit comes under family area ; attitude towards hetrosexual relations comes under sex area and attitude towards future, own achievement and goal comes under the area of self-concept.
:- From my research work " Study of attitude towards family, sex and self-concept of Post-Graduate students."(1992)- Prof.Awadhesh kumar (H.O.D. Psy., M.J.J.College, M., Banwaripur,Begusarai.

Projective technique (प्रक्षेपण प्रविधि):-

Projective techniques (method) have been proved very useful in assignment or measurement of attitudes because projection is an unconscious process through which an individual projects their attitudes, attitudes, thoughts, emotions, characteristics or internal tendency on conditions to the given stimulus situation or other persona by verbal or non-verbal media.-From my research work " Study of atitudes towards family, sex and self-concept of Post Graduate students."(1992). :- Prof.Awadhesh kumar (H.O.D.Psy., M.J.J.College,M., Banwaripur, Begusarai.)

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

Prof. A. K. B. A. S. (मौलिक चिन्ता मापिनी) :-


B.A.S. ( Basic Anxiety Scale ) 
मौलिक चिन्ता मापिनी
      -Prof. Awadhesh Kumar (Psychology)

I.E.A.S. (Ideal Educational Anxiety Scale/आदर्श शैक्षिक चिन्ता मापिनी):-Prof . Awadhesh kumar (Psy),M. J.J.College, M., Banwaripur, Begusarai.

In 2012 A.D. I develop an Anxiety Scale of 20 questionnaire but it was not enough to elaborate individual's anxiety about educational environment, but after some time I revised that Educational Anxiety Scale (E.A.S. / शैक्षिक चिन्ता मापिनी ) & added 10 other important questions in that revised scale which is called now E.A.S.-R (Educational Anxiety Scale -Revised / शैक्षिक चिन्ता मापिनी - संशोधित). It is an unique & ideal Educational Anxiety Scale thus it is called now "Ideal educational anxiety Scale (R)"/ आदर्श शैक्षिक चिन्ता मापिनी (संशोधित)