गुरुवार, 13 जुलाई 2017

स्मरणीय सूत्र :-

१- हमें अपने शरीर की जरूरत को पूरा करना चाहिए न कि मन की प्रसन्नता हेतु शरीर विरोधी वैसे किसी निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जो तत्काल मन को आनन्दित करनेवाला हो, शरीर के लिए हानिकारक हो ।

२- मन की बात को जबरन नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि मन की दबी हुई इच्छा की पूर्त्ति नहीं होने पर वह व्यक्ति भविष्य में कुछ न कुछ मानसिक या मनोशारीरिक रोगों का शिकार हो सकता है ।

३- हमारा सम्यक् मनोशारीरिक विकास ही हमारे सम्यक् वैयक्तिक,समाजिक, नैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक , व्यवसायिक,कला, ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्मिक विकास का आधार हो सकता है ।

४- प्रकृति से हमारा जितना अधिक तादात्म्य रहता है, हम उसी अनुपात में पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित होते हैं ।

५- हमें किसी भी समस्या के समाधान के लिए यथा संभव प्रयास करते रहना चाहिए।

६- हमें आतीत के अनुभव से लाभान्वित होने के लिए वर्तमान में उन अनुभवों का सदुपयोग भविष्य के लिए करना चाहिए ।

७- हमें अपने जीवन के समान ही दूसरों के जीवन को महत्वपूर्ण मानना चाहिए ।

८- हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की जरूरत की पूर्ति में यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।

९- हमें अपनी सीमाओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए ताकि हमारा अहंकार हमें जीवन के आनन्द और परमात्मा से दूर नहीं कर सके ।

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