शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

शैलज दोहावली : भाग-४ (दोहा संख्या १४५ से १९२ तक का संग्रह सम्प्रति प्रकाशन की प्रक्रिया में है।)

तन सुन्दर, मन मैल संग, 
रूपसी अहम् विकार।
शैलज शील सुलक्षणा,
प्रियंवदा सुखदा संसार।।१४५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा,बेगूसराय।

शैलज मजदूर किसान हैं,
मौसम से अनजान।
भू सेवक भूखे मरे,
नारद नेता देते दिक्ज्ञान।।१४६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज सुमन समाज में,
अंकित करे विचार।
पुष्पाकाँछा शुभद सदा,
उत्तम मृदु व्यवहार।।१४७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय। 

वेनीपुरी की जादू कलम,
चित्रण राज समाज।
शैलज हृदय निवास करे,
हिन्दी साहित्य श्री राज।।१४८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज आत्म अनुशासन बिना,
सब उपलब्धि ज्ञान बेकार।
मुक्ति बोध, जग धरम करम,
अर्थ, आदर्श काम व्यवहार।।१४९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

सुमति सुकर्म आदर्श सुहाई।
शैलज रीति नीति अपनाई।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।
दया धर्म बिनु को जग भाई ?।।१५०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

परिणय, मंगल दिवस का, 
गीत सुमंगल गान।
गाली साली शुभद् सुखद, 
शैलज सुहृद सुजान।।१५१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज सुध बुध खो दिया, 
राज श्री संग सुख पाय।
सुदिन सौभाग्य सुकर्म बिनु, 
जग में को जन पाय ?।।१५२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 राज श्री सुख वर्धिनी, 
अहम् रहित शुभ भाव।
शुभदा सौम्या जय प्रदा, 
शैलज सरल सुभाव।।१५३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज अपने गाँव में, 
कोई न पूछनहार ।
आये शहर विदेश से, 
धनी गुणी सरदार ।।१५४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय ।

मधुमय पूनम चाँदनी, 
नन्दन चन्दन वन माहिं।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् कृपा,
शैलज मोद बढ़ाहिं।।१५५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज भनत विश्वास हरि,
विश्वास करें विश्वास।
युग-युग पायें हरि कृपा,
युगल कुमार विश्वास।।१५६।।

पावन परिणय बन्धन में,
जो प्राणी बँध जाते हैं ।
संसार सुखों से भरकर,
मंगलमय हो जाते हैं ।।१५७।।

ऋषि-मुनि मोक्ष के सुख में,
अपने को खोते हैं ।
दम्पती परिणय में ही तो,
सम्पूर्ण मोक्ष पाते हैं।।१५८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

 सकल चराचर व्याप्त प्रभु, 
समदर्शी जगत आधार।
विधि हरि हर शैलज भजे, 
निज मति कुमति विसारि।।१५९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय। 

 राज, श्री, सुखदा, शुभा; 
प्रियंवदा, प्रिया, अनमोल। 
कुलवर्धिनी, सहधर्मिणी; 
शैलज निज मति तोल।।१६०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 कंचन कामिनी चंचला, 
तजे आलसी उदास।
प्रेम करम हठ वश रहे, 
स्वामी शैलज दास।।१६१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 तन भव सागर में रहे, 
मन क्षीरोदधि पास।
शैलज तरणी सुकरम, 
हरि शरण में बास।।१६२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।   

शैलज प्रेमी जगत का, 
अभिव्यक्ति सहज वेवाक।
सुजन सुहृद संगत करे, 
शेष समाज मजाक।।१६३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

सृष्टि कामना हेतु नर, 
करत शुभाशुभ कर्म।
नारी आकाँक्षा रहित, 
शैलज समाज नहीं धर्म।।१६४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज किस धन के लिए, 
झगड़ रहे नित आप ?
रूप अहं गुण जायेगा, 
कर्म धर्म पुण्य संग पाप।।१६५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

नारी प्रकृति नारायणी, 
हरि नर पुरुष स्वरुप। 
अर्द्ध नारीश्वर शिव शक्तिदा, 
शैलज प्रेम प्रतिरूप।।१६६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज अवगुण से भरा,
गुण समाज के पास।
भोगी मन,आत्मा अमर,
निर्णायक रमानिवास।।१६७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शब्द रुप रस गुण कर्म रहित मैं, 
तू भावाभिव्यक्ति काव्य सहारे।
शैलज प्रस्तर, सुमन मदार मैं, 
आयुष राज श्री दाता शिव प्यारे।।१६८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

अलि प्रिय भ्रमर सुमन रस,
मधु संचय प्रकृति सुभाव।
शैलज षडरस स्नेह युत,
मधुमय शुभ सुखद प्रभाव।।१६९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
(कवि जी)
पचम्बा, बेगूसराय।

अलि प्रिय भ्रमर सुमन रस,
मधु संचय प्रकृति सुभाव।
शैलज षड् रस स्नेह युत,
मधुमय शुभ सुखद प्रभाव।।१७०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

सपरिवार आपको तथा समस्त परिजन -पुरजन के दीर्घायुष्य और सर्वांगीण विकास हेतु ईश्वर से प्रार्थना के साथ ही ईसाई नववर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामना।

धन बल जन पद मद भरा, 
आपु जीव नर चाल।
चढ़े गिरे अविवेकी कुटिल, 
शैलज अधम मिशाल।।१७१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

योग विवेक परहित सुकृति,
दया धर्म शुचि दान।
सुमन गृहस्थ, सुदेह सुख,
शैलज प्रभु पथ ज्ञान।।१७२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज गदहा श्वान सिंह,
गीदड़ काक वृष जान।
सेवत गुरुवत् जीव प्रकृति,
शत्रु मित्र समान।।१७३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज शुक पिक हंस अलि,
गोपद हरि हिय ध्यान।
सेवत गुरुजन जीव प्रकृति,
देश काल पहचान।।१७४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज पर दु:ख दु:खी जो,
सुर नर मुनि महान्।
दया रहित स्वार्थी मनुज,
अधर्मी दनुज समान।।१७५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

साक्षी आत्मा, वकील मन,
सच माया जग जीव संघर्ष।
शैलज न्यायाधीश हरि,
प्रकृति पुरुष विधि विमर्श।।१७६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

तर्जनी वात, पित्त मध्यमा, 
अनामिका कफ प्रकृति आधार।
शैलज नाड़ी ज्ञान शुभ , 
दक्षिण वाम नर नारी अनुसार।।१७७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

तीतर, लावा, बटेर गति, 
नाड़ी त्रिदोष गति चाल।
अहि गति मेढ़क हंस शुभद्, 
हंस मध्य कुचाल।।१७८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

हंस मन्द गति कफ प्रकृति,
काम कबूतर मोर।
मेढ़क कौवा अति तीव्र गति,
पित्त क्रोध घनघोर।।१७९।।

वात जोंक अहि कुटिल गति,
लोभ मोह सन्ताप।
शैलज नाड़ी गति जानिये,
आयु वैद्य प्रभु आप।।१८०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज कुमति शिकार जो,
बाल, वृद्ध युवा नर-नारि।
देश, काल औ विधि विमुख,
दु:ख पावत जीव अपार।।१८१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज तू क्या कर रहा,
आकर जग में नित काज ?
समय चूक पछतायेगा,
सत् धर्म कर्म का राज।।१८२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

दैनान्दिनी शुभदायिनी,
अनुपमा  सुखधाम।
शैलज राज श्री वर्धिनी,
अभिव्यक्ति गुण ग्राम।।१८३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

रवि सुत शनि गृह आगमन,
शुभ मुहूर्त, सुख मूल।
शैलज मकर त्रिदोष हर,
नव ग्रह जनित त्रिशूल।।१८४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शीश रेणु गोपद धरत,
कान्हा ब्रज गोधूलि प्रात।
शैलज रेणु गोपाल पद,
भव तारक हरि तात।।१८५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

नीर प्रवाह नीरज नयन,
श्याम प्रेम पिय मोर।
शैलज भींगत स्नेह रस,
राज, श्री, सुख चहुँ ओर।।१८६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज कन्या शक्तिदा, 
प्रकृति पुरुष हिय हार।
नैहर की जंगल अलि!
पिय गृह वंदनवार।।१८७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

केसरिया संस्कृति सनातन, 
कीर्ति, शौर्य, बल दायक।
सादा सादगी, सच्चाई, आदर्श, 
न्याय, बुद्धि, शुभ कारक।।
हरा भारत भूमि माता श्री, 
ज्ञान, विज्ञान, विकास का सूचक।
अनवरत प्रगति चक्र, 
तिरंगा भारत वर्ष का द्योतक।।१८८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय। 

अनिल पतंग विचरे नभ,
भोग योग सुख साथ।
कटी पतंग सुमिरन करे,
शैलज हरि जग नाथ।।१८९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज अहं विकार गुण,
सद् गुण गुण हरि लेत।
हरि प्रभु आँकलन करत,
अपयश जग में लेत।।१९०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

निज हित शैलज कर रहा,
जग में नित हर काज।
आया जग में फिर जायेगा,
विधि धर्म कर्म सुख राज।।१९१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

भव सागर जग बन्धु प्रकृति,
प्रिय सखा शत्रु व्यवहार।
धर्म कर्म विधि संगति फलद्,
शैलज विश्वास विचार।।१९२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 
पद मद अहं सौन्दर्य बल,
निज देह ज्ञान बल यार।
कोटि जतन संग जात नहीं,
शैलज राज श्री सुख सार।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।